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दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)

दहेज मूल रूप से शादी के दौरान दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए नकदी, आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति और अन्य कीमती वस्तुओं आदि की इस प्रणाली को दहेज प्रणाली कहा जाता है। यह सदियों से भारत में प्रचलित है। दहेज प्रणाली समाज में प्रचलित बुराइयों में से एक है। यह मानव सभ्यता पुरानी है और यह दुनिया भर में कई हिस्सों में फैली हुई है।

दहेज प्रथा पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Dahej Pratha par Nibandh

दहेज प्रथा भारतीय समाज की एक पुरानी और बुरी परंपरा है। इसमें लड़की के विवाह के समय उसके परिवार से लड़के के परिवार को धन, गहने, वस्त्र, और अन्य उपहार दिए जाते हैं। यह प्रथा समाज में कई समस्याओं का कारण बनती है। सबसे पहले, दहेज प्रथा से लड़की के परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। गरीब परिवारों के लिए यह बोझ बहुत भारी हो सकता है। कई बार, परिवार को कर्ज लेना पड़ता है, जिसे चुकाना मुश्किल होता है। दूसरा, यह प्रथा समाज में लड़कियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। लड़कियों को बोझ समझा जाता है, और उनके जन्म पर खुशी कम होती है। इससे लड़कियों की शिक्षा और विकास पर भी असर पड़ता है।

तीसरा, दहेज प्रथा के कारण कई बार विवाह के बाद लड़कियों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। यदि दहेज की मांग पूरी नहीं होती, तो उन्हें परेशान किया जाता है और मार भी दिया जाता है। दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। सरकार ने इसके खिलाफ कानून बनाए हैं, लेकिन हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी। हमें लड़कियों को समान अधिकार और सम्मान देना चाहिए। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही इस बुराई को जड़ से मिटाया जा सकता है।

दहेज़ प्रथा पर निबंध – Essay on Dowry in Hindi (250 – 300 शब्द)

दहेज भारत के विभिन्न हिस्सों में फैली एक पुरानी प्रथा है और आज भी प्रचलित है। यह शादी होने पर दो परिवारों के बीच पैसे या उपहारों का आदान-प्रदान है। दुल्हन के माता-पिता द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को पैसा या महँगी चीजे देना दहेज़ प्रथा कहलाता है। यह हमारे देश में प्रचलित एक सामाजिक कुप्रथा है जिसके कारण लड़की के माता-पिता पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

दहेज प्रथा के कारण

समाज में दहेज प्रथा के बढ़ने का एक मुख्य कारण पुरुष प्रधान समाज है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है जिसमें माता-पिता अपनी बेटी की शादी सुनिश्चित करने के लिए दहेज देने के लिए मजबूर होते हैं। दोनों लिंगों के बीच सामाजिक और आर्थिक असमानता एक और प्रमुख कारक है जो हमारे देश में दहेज प्रथा के प्रसार का कारण बनता है।

दहेज प्रथा के प्रभाव

दहेज प्रथा का भारतीय आबादी पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है और इसने समाज को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इसने दुल्हन के परिवारों के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ पैदा कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वे भारी कर्ज में डूब जाते है। यह प्रथा कभी-कभी परिवारों को उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने या यहां तक कि दहेज के लिए अपनी संपत्ति बेचने के लिए मजबूर करता है। इसके परिणामस्वरूप कई निर्दोष लोगों की मौत भी हुई है क्योंकि लोग दूल्हे के परिवार की मांगों को पूरा करने के लिए इस प्रकार के कदम भी उठाते हैं।

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है जो कई सदियों से भारतीय समाज को प्रभावित करती आ रही है। सरकार के प्रयासों के बावजूद, यह प्रथा अभी भी भारत के अधिकांश हिस्सों में प्रचलित है। इस प्रथा के पीछे सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना और समाज में लैंगिक समानता का माहौल बनाना जरूरी है।

दहेज प्रथा पर निबंध – Dowry System Essay in Hindi (300 – 400 शब्द)

दहेज प्रथा भारतीय समाज का एक काला साया है जो सदियों से महिलाओं के अधिकारों और उनके जीवन पर एक बड़ा अभिशाप बना हुआ है। यह प्रथा न केवल महिला सम्मान को ठेस पहुँचाती है, बल्कि उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ भी डालती है। आधुनिक युग में भी, यह कुप्रथा हमारे समाज में जीवित है और समय-समय पर इसके भयावह परिणाम सामने आते रहते हैं।

दहेज प्रथा का इतिहास

दहेज प्रथा का आरंभ प्राचीन काल में हुआ जब स्त्री को स्त्रीधन के रूप में देखा जाता था और दहेज विवाह के समय माता-पिता अपनी पुत्री को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए देते थे। लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा विकृत होती चली गई और महिलाओं के शोषण का माध्यम बन गई।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम

दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक शोषण का सामना करना पड़ता है। दहेज की मांग पूरी न होने पर कई महिलाओं को अत्याचार और हिंसा का शिकार होना पड़ता है। अनेक घटनाएँ सामने आती हैं जिसमे दहेज के लिए महिलाओं को जलाकर मार दिया जाता है या आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है।

वर्तमान स्थिति

आज भी दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्यापक रूप से फैली हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे एक महिला दहेज से संबंधित हिंसा का शिकार होती है। विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह समस्या और भी गंभीर है। NCRB (National Crime Records Bureau) के अनुसार 2021 में, 125,000 से अधिक दहेज उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए। यह दर्शाता है कि हर घंटे 14 महिलाएं दहेज प्रताड़ना का शिकार होती हैं। और 2021 में ही लगभग 7,000 दहेज हत्या के मामले दर्ज किए गए जो दर्शाता है कि लगभग हर दिन 19 महिलाओं की हत्या दहेज की वजह से की जाती है।

दहेज प्रथा के उन्मूलन के प्रयास

सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए कई कदम उठाए हैं। 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम’ (Dowry Prohibition Act) पारित किया गया था, जिसमें दहेज लेना और देना दोनों को अपराध घोषित किया गया। इस अधिनियम के तहत दहेज मांगने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न राज्य सरकारों ने भी समय-समय पर दहेज विरोधी अभियान चलाए हैं। कुछ राज्यों में विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाया गया है ताकि दहेज प्रथा पर रोक लगाई जा सके। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘महिला सशक्तिकरण’ जैसे अभियान दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे हैं।

दहेज प्रथा पर लेटेस्ट अपडेट

हाल ही में, भारत के विभिन्न हिस्सों में दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज उठाया गया है जैसे 2023 में, राजस्थान सरकार ने ‘मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना’ के तहत विवाह के समय दहेज न लेने वाले परिवारों को वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। यह कदम समाज में जागरूकता फैलाने और दहेज प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

वहीं, बिहार में दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए ‘दहेज मुक्त बिहार’ अभियान चलाया गया है। इसके अंतर्गत सामुदायिक विवाह समारोह आयोजित किए जा रहे हैं जिसमें बिना दहेज के विवाह सम्पन्न हो रहे हैं।

सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता

दहेज प्रथा का उन्मूलन केवल कानूनी प्रावधानों से संभव नहीं है। इसके लिए समाज में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। शिक्षित और जागरूक नागरिक ही इस कुप्रथा को समाप्त कर सकते हैं। इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

मीडिया, फिल्म और साहित्य के माध्यम से भी दहेज प्रथा के खिलाफ जन-जागरण किया जाना चाहिए। सिनेमा और टेलीविजन सीरियल्स में दहेज प्रथा के खिलाफ संदेश देकर लोगों को इसके दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए।

दहेज प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसका उन्मूलन अति आवश्यक है। इसके लिए समाज के हर वर्ग को एकजुट होकर प्रयास करना होगा। जब तक हमारे समाज से दहेज प्रथा समाप्त नहीं होती, तब तक महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में किए जा रहे सारे प्रयास अधूरे रहेंगे। दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, और कड़े कानून लागू करने की आवश्यकता है। इसलिए, हमें मिलकर दहेज प्रथा के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए और इसे हमेशा के लिए समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।

Dahej Pratha par Nibandh (400 शब्द)

दहेज प्रथा जो लड़कियों को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए एक सभ्य प्रक्रिया के रूप में शुरू की गई, क्योंकि वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू करती हैं, धीरे-धीरे समाज की सबसे बुरी प्रथा बन गई है। जैसे बाल विवाह, बाल श्रम, जाति भेदभाव, लिंग असमानता, दहेज प्रणाली आदि भी बुरी सामाजिक प्रथाओं में से एक है जिसका समाज को समृद्ध करने के लिए उन्मूलन की जरूरत है। हालांकि दुर्भाग्य से सरकार और विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद यह बदनाम प्रथा अभी भी समाज का हिस्सा बनी हुई है।

दहेज प्रणाली अभी भी कायम क्यों है ?

सवाल यह है कि दहेज को एक दंडनीय अपराध घोषित करने के बाद और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रथा के असर के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग इसका पालन क्यों कर रहे हैं? यहां कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं कि दहेज व्यवस्था जनता के द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार क्यों हैं:

  • परंपरा के नाम पर

दुल्हन के परिवार की स्थिति का अनुमान दूल्हे और उसके परिवार को गहने, नकद, कपड़े, संपत्ति, फर्नीचर और अन्य परिसंपत्तियों के रूप में उपहार देने से लगाया जाता है। यह चलन दशकों से प्रचलित है। इसे देश के विभिन्न भागों में परंपरा का नाम दिया गया है और जब शादी जैसा अवसर होता है तो लोग इस परंपरा को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोग इस परंपरा का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं हालांकि यह अधिकांश मामलों में दुल्हन के परिवार के लिए बोझ साबित हुई है।

  • प्रतिष्ठा का प्रतीक

कुछ लोगों के लिए दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रतीक से अधिक है। लोगों का मानना है कि जो लोग बड़ी कार और अधिक से अधिक नकद राशि दूल्हे के परिवार को देते हैं इससे समाज में उनके परिवार की छवि अच्छी बनती है। इसलिए भले ही कई परिवार इन खर्चों को बर्दाश्त ना कर पाएं पर वे शानदार शादी का प्रबंध करते हैं और दूल्हे तथा उसके रिश्तेदारों को कई उपहार देते हैं। यह इन दिनों एक प्रतियोगिता जैसा हो गया है जहाँ हर कोई दूसरे को हराना चाहता है।

  • सख्त कानूनों का अभाव

हालांकि सरकार ने दहेज को दंडनीय अपराध बनाया है पर इससे संबंधित कानून को सख्ती से लागू नहीं किया गया है। विवाह के दौरान दिए गए उपहारों और दहेज के आदान-प्रदान पर कोई रोक नहीं है। ये खामियां मुख्य कारणों में से एक हैं क्यों यह बुरी प्रथा अभी भी मौजूद है।

इनके अलावा लैंगिक असमानता और निरक्षरता भी इस भयंकर सामाजिक प्रथा के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।

यह दुखदाई है कि भारत में लोगों द्वारा दहेज प्रणाली के दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के बाद भी यह जारी है। यह सही समय है कि देश में इस समस्या को खत्म करने के लिए हमें आवाज़ उठानी चाहिए।

दहेज़ प्रथा पर निबंध (500 शब्द)

प्राचीन काल से ही दहेज प्रणाली हमारे समाज के साथ-साथ विश्व के कई अन्य समाजों में भी प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है पर समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई।

दहेज सोसायटी के लिए एक अभिशाप है

दहेज दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे और उसके परिवार को नकद, संपत्ति और अन्य संपत्तियों के रूप में उपहार देने की प्रथा है जिसे वास्तव में महिलाओं, विशेष रूप से दुल्हनों, के लिए शाप कहा जा सकता है। दहेज ने महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों को जन्म दिया है। यहाँ विभिन्न समस्याओं पर एक नजर है जो इस प्रथा से दुल्हन और उसके परिवार के सदस्यों के लिए उत्पन्न होती है:

  • परिवार पर वित्तीय बोझ

हर लड़की के माता-पिता उसके जन्म के बाद से उसकी शादी के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। वे कई साल शादी के लिए बचत करते हैं क्योंकि शादी के मामले में सजावट से लेकर खानपान तक की पूरी जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है। इसके अलावा उन्हें दूल्हे, उसके परिवार और उसके रिश्तेदारों को भारी मात्रा में उपहार देने की आवश्यकता होती है। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से पैसे उधार लेते हैं जबकि अन्य इन मांगों को पूरा करने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं।

  • जीवन स्तर को कम करना

दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी की शादी पर इतना खर्च करते हैं कि वे अक्सर अपने जीवन स्तर को कम करते हैं। कई लोग बैंक ऋण के चक्कर में फंसकर अपना पूरा जीवन इसे चुकाने में खर्च कर देते हैं।

  • भ्रष्टाचार को सहारा देना

जिस व्यक्ति के घर में बेटी ने जन्म लिया है उसके पास दहेज देने और एक सभ्य विवाह समारोह का आयोजन करने से बचने का कोई विकल्प नहीं है। उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए पैसा जमा करना होता है और इसके लिए लोग कई भ्रष्ट तरीकों जैसे कि रिश्वत लेने, टैक्स चोरी करने या अनुचित साधनों के जरिए कुछ व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करना शुरू कर देते हैं।

  • लड़की के लिए भावनात्मक तनाव

सास-ससुर अक्सर उनकी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना उनके आसपास की अन्य दुल्हनों द्वारा लाए गए उपहारों से करते हैं और उन्हें नीचा महसूस कराते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं। लड़कियां अक्सर इस वजह से भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और मानसिक अवसाद से पीड़ित होती हैं।

  • शारीरिक शोषण

जहाँ कुछ ससुराल वालों ने अपनी बहू के साथ बदसलूकी करने की आदत बना रखी है और कभी भी उसे अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ते वहीँ कुछ ससुराल वाले अपनी बहू का शारीरिक शोषण करने में पीछे नहीं रहते। कई मामले दहेज की भारी मांग को पूरा करने में अपनी अक्षमता के कारण महिलाओं को मारने और जलाने के समय-समय पर उजागर होते रहते हैं।

  • कन्या भ्रूण हत्या

एक लड़की को हमेशा परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रणाली ही है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई दम्पतियों ने कन्या भ्रूण हत्या का विरोध भी किया है। भारत में नवजात कन्या को लावारिस छोड़ने के मामले भी सामान्य रूप से उजागर होते रहे हैं।

दहेज प्रथा की जोरदार निंदा की जाती है। सरकार ने दहेज को एक दंडनीय अपराध बनाते हुए कानून पारित किया है लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी इसका पालन किया जा रहा है जिससे लड़कियों और उनके परिवारों का जीना मुश्किल हो रहा है।

Essay on Dowry System

FAQs: Frequently Asked Questions on Dowry System (दहेज़ प्रथा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- शिक्षा का प्रसार एवं बच्चों की परवरिश में समरूपता के साथ-साथ उच्च कोटि के संस्कार का आचरण।

उत्तर- केरल

उत्तर- उत्तर प्रदेश में

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दहेज प्रथा पर निबंध 10 lines 100, 200, 250, 300, 500, 1000, शब्दों मे (Dowry System Essay in Hindi)

essay on hindi dahej

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज प्रथा भारतीय समाज में सबसे लंबे समय से चले आ रहे अन्यायों में से एक है जो विवाह से जुड़ा है। 21वीं सदी में सूक्ष्म और प्रत्यक्ष दोनों रूपों में यह प्रथा अब भी आम है, इसके खिलाफ बहुत सी बातें और कार्रवाई करने के बावजूद। यहाँ ‘दहेज प्रथा’ पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

दहेज प्रथा पर 10 लाइनें (10 Lines on Dowry System in Hindi)

  • 1) दहेज वह उपहार है जो दुल्हन को उसके पिता की ओर से उसके विवाह के समय दिया जाता है।
  • 2) दहेज प्रथा तब बन जाती है जब दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार से महंगे उपहार की मांग करता है।
  • 3) यह भारतीय समाज की उन बुराइयों में से एक है जिसने बहुत सारे परिवारों को बर्बाद कर दिया है।
  • 4) इसके बुरे प्रभावों के बावजूद, भारतीय समाज में दहेज प्रथा अभी भी प्रचलित है।
  • 5) शादी तय करते समय दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार पर दहेज के लिए दबाव बनाने लगता है।
  • 6) कई ऐसी शादियां भी रद्द कर दी गई हैं जहां दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार की भारी मांगों को पूरा करने में असमर्थ था।
  • 7) शादी के बाद स्थिति गंभीर हो जाती है जब उचित दहेज न लाने पर दुल्हन को प्रताड़ित, पीटा और प्रताड़ित किया जाता है।
  • 8) नियमित यातना और अपमान दुल्हन को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करता है या दूल्हे के परिवार द्वारा जबरन जला दिया जाता है।
  • 9) पुलिस का कहना है कि हर साल दुल्हन को जलाने की 2500 से अधिक रिपोर्ट और दहेज हत्या की 9000 रिपोर्ट प्राप्त होती है।
  • 10) दहेज हत्या को रोकने और दहेज प्रथा का पालन करने वालों को दंडित करने के लिए सरकार ने कड़े कानून बनाए हैं।

दहेज प्रथा पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay On Dowry System in Hindi)

भारत में दहेज प्रथा एक लंबे समय से चली आ रही प्रथा है और भारतीय संस्कृति में इसकी गहरी जड़ें हैं। यह दो परिवारों के बीच एक पूर्व-निर्धारित समझौता है और आमतौर पर शादी के समय तय किया जाता है। दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को विभिन्न उपहार और धन प्रदान करता है। इन उपहारों में आमतौर पर आभूषण, कपड़े और नकद शामिल होते हैं। यद्यपि यह प्रणाली व्यापक रूप से स्वीकृत है, इसके कई नकारात्मक प्रभाव हैं। सबसे गंभीर परिणाम यह है कि यह लैंगिक भेदभाव की ओर ले जाता है। कुछ मामलों में, दूल्हे के परिवार से दहेज की मांग इतनी अधिक हो सकती है कि दुल्हन के परिवार के लिए उन्हें पूरा करना असंभव हो जाता है। इससे दुल्हन के परिवार को सामाजिक भेदभाव और आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।

दहेज प्रथा पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा भारत में सदियों पुरानी प्रथा है, और यह आज भी मजबूत हो रही है। दहेज पैसे और/या संपत्ति का एक उपहार है जो एक दुल्हन का परिवार अपने दूल्हे के परिवार को उनकी शादी के दिन देता है। यह आमतौर पर दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन की देखभाल करने और उसे प्रदान करने के बदले में किया जाने वाला भुगतान होता है। यह प्रणाली आज भी भारत में बहुत अधिक प्रचलन में है, और इसे अक्सर सामाजिक स्थिति के संकेत के रूप में देखा जाता है।

दहेज प्रथा के नकारात्मक प्रभावों का उचित हिस्सा है। शुरुआत के लिए, अभ्यास एक गहरी जड़ वाली लैंगिक असमानता को प्रोत्साहित करता है। लड़कियों को अक्सर आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है और परिवारों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी बेटी की शादी के लिए मोटी रकम अदा करें। इससे संपन्न परिवारों में भी आर्थिक शोषण के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा, एक बड़ा दहेज देने का दबाव अक्सर परिवारों को कर्ज में डूब जाता है। ग्रामीण इलाकों में यह विशेष रूप से समस्याग्रस्त है, जहां कई लोग पहले से ही गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नतीजतन, कई लड़कियां शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं।

हालाँकि, भारत में मौजूदा दहेज प्रथा के खिलाफ लड़ने के लिए कई पहल की गई हैं। भारत सरकार ने दहेज की मांग को अवैध बना दिया है, और गैर-लाभकारी संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो।

दहेज प्रथा पर 250 शब्दों का निबंध (250 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज वह गतिविधि है जो विवाह के समय की जाती है जब दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को नकद, चल संपत्ति या अचल संपत्ति के रूप में धन हस्तांतरित करता है। दहेज प्रथा के अस्तित्व का पता लगाना कठिन है, लेकिन यह भारत में लंबे समय से अस्तित्व में है।

दहेज प्रथा दुल्हन के परिवार के सिर पर काले बादल ला देती है। युवा लड़कियों के पिता अपनी बेटी की शादी के दिन से डरते हैं और उस दिन के लिए पैसे बचाते हैं। भारत के उत्तरी भाग में, जातिवाद के साथ-साथ दहेज प्रथा काफी अधिक प्रचलित है। दहेज महिलाओं के लिए एक बुरे सपने के अलावा कुछ नहीं है। हर महिला बदसूरत दौर से गुजरती है, जहां उसे ऐसा महसूस कराया जाता है कि वह एक दायित्व है।

दहेज प्रथा के खिलाफ देश लगातार लड़ रहा है। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों ने आगे आकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाकर इस मुद्दे को उठाया है। नवविवाहितों की ओर मदद का हाथ बढ़ाने के खूबसूरत भाव ने एक बदसूरत मोड़ ले लिया है।

दहेज एक दंडनीय अपराध है, और जो कोई भी, किसी भी तरह से, सच्चाई का समर्थन करने या यहां तक ​​कि छिपाने की कोशिश करता है, उसे कानूनी परिणाम भुगतने होंगे। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज देने वाले और लेने वाले दोनों पक्षों को दंडित किया जाएगा।

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दहेज प्रथा पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रणाली, जिसमें दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को नकद और उपहार के रूप में उपहार देता है, समाज द्वारा काफी हद तक निंदा की जाती है, हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि इसके अपने फायदे हैं और लोग अभी भी इसका पालन कर रहे हैं क्योंकि यह करता है दुल्हन के लिए महत्व रखते हैं और उन्हें कुछ खास तरीकों से लाभ पहुंचाते हैं।

क्या दहेज प्रथा के कोई लाभ हैं?

इन दिनों कई जोड़े स्वतंत्र रूप से रहना पसंद करते हैं और ऐसा कहा जाता है कि दहेज जिसमें ज्यादातर नकद, फर्नीचर, कार और ऐसी अन्य संपत्तियां देना शामिल है, उनके लिए वित्तीय सहायता के रूप में कार्य करता है और उन्हें एक अच्छे नोट पर अपना नया जीवन शुरू करने में मदद करता है। जैसा कि दूल्हा और दुल्हन दोनों ने अभी अपना करियर शुरू किया है और आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं हैं कि वे इतने बड़े खर्च को एक साथ वहन नहीं कर सकते। लेकिन क्या इसकी वाजिब वजह है? अगर ऐसा है तो दोनों परिवारों को सारा बोझ दुल्हन के परिवार पर डालने के बजाय उन्हें निपटाने में निवेश करना चाहिए। इसके अलावा, यह अच्छा होना चाहिए अगर परिवार कर्ज में डूबे बिना या अपने स्वयं के जीवन स्तर को कम किए बिना नवविवाहितों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं।

कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि जो लड़कियां अच्छी नहीं दिखती हैं, वे बाद की वित्तीय मांगों को पूरा करके दूल्हा ढूंढ सकती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लड़कियों को एक बोझ के रूप में देखा जाता है और 20 साल की उम्र में उनकी शादी कर देना उनके माता-पिता की प्राथमिकता है जो इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। ऐसे मामलों में भारी दहेज देना काम करता है और यह कुप्रथा उन लोगों के लिए वरदान की तरह लगती है जो अपनी बेटियों के लिए दूल्हा ढूंढ (खरीद) पाते हैं। हालांकि, अब समय आ गया है कि ऐसी मानसिकता बदलनी चाहिए।

दहेज प्रथा के समर्थकों का यह भी कहना है कि दूल्हे और उसके परिवार को बड़ी मात्रा में उपहार देने से परिवार में दुल्हन की स्थिति बढ़ जाती है। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में इसने लड़कियों के खिलाफ काम किया है।

दहेज प्रथा के पैरोकार व्यवस्था का समर्थन करने के लिए विभिन्न अनुचित कारणों के साथ सामने आ सकते हैं लेकिन तथ्य यह है कि यह समग्र रूप से समाज के लिए अच्छे से अधिक नुकसान करता है।

दहेज प्रथा पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – दहेज प्रथा भारत में एक सदियों पुरानी प्रथा है जो दुल्हन के परिवार से दूल्हे के परिवार को संपत्ति और धन के हस्तांतरण को संदर्भित करती है। यह प्रणाली भारत और कुछ अन्य देशों में सबसे लोकप्रिय है। बड़े होकर हममें से अधिकांश लोगों ने इस प्रणाली को देखा या सुना है। दहेज प्रथा के कारण दुल्हन का परिवार पीड़ित है। कई बार दूल्हे पक्ष की दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर अचानक शादी तोड़ दी जाती है। इसके अलावा, यह प्रणाली दुल्हन के परिवार पर भी बहुत दबाव डालती है, खासकर दुल्हन के पिता पर। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे दूल्हे के परिवार को सभी उपहार और धन प्रदान करें। यह एक बड़ा वित्तीय बोझ हो सकता है और परिवार की वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकता है।

1961 का भारत सरकार अधिनियम इस घृणित सामाजिक प्रथा को समाप्त करने के सरकार के प्रयास के तहत व्यक्तियों को दहेज स्वीकार करने से रोकता है।

दहेज प्रथा का नकारात्मक प्रभाव

अन्याय | दुल्हन के परिवार के लिए दहेज एक महत्वपूर्ण वित्तीय बोझ है। इसलिए एक लड़की को परिवार पर एक संभावित बोझ और संभावित वित्तीय नाली के रूप में देखा जाता है। यह दृष्टिकोण कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या का रूप ले लेता है। लड़कियों को स्कूली शिक्षा के उन क्षेत्रों में अक्सर हाशिए पर रखा जाता है जहां परिवार के लड़कों को वरीयता दी जाती है। परिवार के सम्मान को बनाए रखने के नाम पर उन्हें कई सीमाओं के अधीन किया जाता है और घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया जाता है। आयु को अभी भी शुद्धता के माप के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण बाल विवाह की प्रथा जारी है। यह प्रथा इस तथ्य से समर्थित है कि दहेज की राशि लड़की की उम्र के साथ बढ़ती है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा | आम धारणा के विपरीत, दहेज हमेशा एकमुश्त भुगतान नहीं होता है। पति का परिवार, जो लड़की के परिवार को धन की अंतहीन आपूर्ति के रूप में देखता है, हमेशा माँग करता रहता है। आगे की मांगों को पूरा करने में लड़की के परिवार की अक्षमता का परिणाम अक्सर मौखिक दुर्व्यवहार, पारस्परिक हिंसा और यहां तक ​​कि घातक परिणाम भी होते हैं। महिलाएं लगातार शारीरिक और मनोवैज्ञानिक शोषण सहती हैं और इसलिए अवसाद का अनुभव करने और यहां तक ​​कि आत्महत्या का प्रयास करने का जोखिम भी अधिक होता है।

आर्थिक बोझ | दूल्हे के परिवार द्वारा की गई दहेज की मांग के कारण, भारतीय माता-पिता अक्सर एक लड़की की शादी को अच्छी खासी रकम के साथ जोड़ते हैं। परिवार अक्सर बड़ी मात्रा में कर्ज लेते हैं और घरों को गिरवी रख देते हैं, जो उनके आर्थिक स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाता है।

लैंगिक असमानता | लड़की से शादी करने के लिए दहेज देने की धारणा लिंगों के बीच असमानता की भावना को बढ़ाती है, पुरुषों को महिलाओं से ऊपर उठाती है। युवा लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया जाता है जबकि उनके भाइयों को स्कूल जाने की अनुमति दी जाती है। उन्हें अक्सर व्यवसाय करने से हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि उन्हें घरेलू कर्तव्यों के अलावा अन्य नौकरियों के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। अधिकांश समय, उनकी राय को चुप करा दिया जाता है, अनदेखा कर दिया जाता है या उनके साथ अनादर किया जाता है।

दहेज की अन्यायपूर्ण प्रथा का मुकाबला करने के लिए, एक राष्ट्र के रूप में भारत को अपनी वर्तमान मानसिकता में भारी बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्हें यह समझना चाहिए कि आज की दुनिया में महिलाएं किसी भी कार्य को करने में पूरी तरह से सक्षम हैं जो पुरुष करने में सक्षम हैं। महिलाओं को स्वयं इस धारणा को त्याग देना चाहिए कि वे पुरुषों के अधीन हैं और उनकी देखभाल के लिए उन पर निर्भर रहना चाहिए।

दहेज प्रथा पर 1000 शब्दों का निबंध (1000 Words Essay On Dowry System in Hindi)

दहेज प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi) – भारत में दहेज प्रथा काफी समय से चली आ रही है। यह वह पैसा है जो लड़के या उनके परिवार को शादी के समय दिया जाता है, संपत्ति भी दहेज में शामिल हो सकती है। प्राचीन काल में दहेज प्रथा की शुरुआत विवाह के दौरान दूल्हे को धन दिया जाता था ताकि वह अपनी दुल्हन की उचित देखभाल कर सके, इसका उपयोग परिवार के दोनों पक्षों के सम्मान के लिए किया जाता था। जैसे-जैसे समय बदलता है दहेज समाज में अभी भी बना हुआ है लेकिन समय के साथ इसका महत्व बदलता रहता है। 

आजकल दहेज प्रथा कुछ जातियों के लिए एक व्यवसाय की तरह होती जा रही है। दहेज प्रथा दुल्हन के परिवार के लिए बोझ बनती जा रही है। कई बार लड़के पक्ष की मांग पूरी न होने पर इस असफलता के फलस्वरूप अचानक विवाह रद्द कर दिया जाता है। अगर हम इसे अपने एशियाई देश में देखें तो वर पक्ष के लिए मुख्य रूप से भारत जैसे देशों में दहेज अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इस जघन्य सामाजिक प्रथा को समाप्त करने के लिए सरकार ने 1961 के अधिनियम के तहत लोगों को दहेज लेने से रोकने के लिए कानून बनाया है। 

वधु पक्ष द्वारा जो भी धन या संपत्ति दी जाए उसे स्वीकार कर लेना चाहिए लेकिन उसका कभी पालन नहीं हुआ। कई जगहों पर हमें पता चलता है कि वर पक्ष की ओर से ऐसा न करने पर लड़कियों को इस तरह से नुकसान पहुंचाया जाता है कि कई बार तो मौत भी हो जाती है। कुछ लोग दहेज को अपराध की तरह भी समझते हैं, यह अवैध है और वे दुल्हन के परिवार से कभी कुछ नहीं मांगते हैं। 

भारत में हर कोई महिलाओं के अधिकारों के लिए बोलता है और आगे बढ़ता है और कहता है ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ लेकिन एक लड़की अपने जीवन में सब कुछ हासिल करने के बाद भी; जहां वह अपने परिवार की देखभाल करने लगती है, लेकिन फिर भी वह दहेज की बेड़ियों से नहीं बच पाती है। कभी-कभी दहेज के कारण जो ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे के लोगों में प्रचलित है, वे अपनी बेटियों को पैदा होने के बाद या मां के गर्भ में जन्म से पहले ही मार देते हैं ताकि वे दहेज से बच सकें। चूंकि वे बड़े होने और उसे शिक्षित करने के बाद जानते हैं, फिर भी उन्हें उसकी शादी करने के लिए दहेज देने की जरूरत है। हालांकि, कोई यह समझने में विफल रहता है कि यह बेटी की गलती नहीं है जिसके लिए उसे गलत तरीके से दंडित किया जा रहा है बल्कि समाज की गलती है जो आजादी के इतने सालों बाद भी ऐसी प्रथाओं की अनुमति देती है। 

दहेज का इतिहास 

दहेज प्रथा ब्रिटिश काल और भारत में उपनिवेशीकरण से पहले की है। उन दिनों, दहेज को “पैसा” या “शुल्क” नहीं माना जाता था जिसे दुल्हन के माता-पिता को देना पड़ता था। दहेज के मूलभूत उद्देश्यों में से एक यह था कि यह पति और उसके परिवार द्वारा दुर्व्यवहार के खिलाफ पत्नी के लिए सुरक्षा के रूप में कार्य करता था। दहेज ने दूल्हा और दुल्हन को शादी के बाद एक साथ जीवन बनाने में मदद करने के लिए भी काम किया। 

हालांकि, जब ब्रिटिश शासन लागू हुआ, तो महिलाओं को किसी भी संपत्ति का मालिक बनने से रोक दिया गया था। महिलाओं को कोई अचल संपत्ति, जमीन या संपत्ति खरीदने की अनुमति नहीं थी। नतीजतन, पुरुषों ने दुल्हन को उसके माता-पिता द्वारा प्रदान किए गए सभी “उपहार” प्राप्त करना शुरू कर दिया। 

ब्रिटिश राज के दौरान, दहेज प्रथा को अनिवार्य कर दिया गया था जिसके कारण दुल्हन के परिवार पर आर्थिक रूप से अत्यधिक दबाव था। दहेज हिंसा एक प्रमुख पहलू बन गया है जिसे आज तक देखा जा सकता है। पति या उसका परिवार दुल्हन के परिवार से “उपहार” के रूप में पैसे निकालने के लिए एक तरीके के रूप में हिंसा का उपयोग करता है। यह प्रणाली महिलाओं को उनकी शादी के बाद अपने पति या ससुराल वालों पर निर्भर होने की ओर ले जाती है।

दहेज प्रथा के प्रभाव क्या हैं?

  • लैंगिक रूढ़िवादिता: दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को अक्सर देनदारियों के रूप में देखा जाता है। उन्हें अक्सर शिक्षा और अन्य सुविधाओं के मामले में अधीनता और दोयम दर्जे के व्यवहार के अधीन किया जाता है। 
  • महिलाओं के करियर को प्रभावित करना: श्रम में महिलाओं की कमी, और इस प्रकार उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, दहेज प्रथा के लिए बड़ा संदर्भ है। समाज के गरीब वर्ग अपनी बेटियों को दहेज के लिए पैसे बचाने में मदद करने के लिए बाहर काम करने के लिए भेजते हैं। जबकि अधिकांश मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी लड़कियों को स्कूल भेजते हैं, वे नौकरी के अवसरों को प्राथमिकता नहीं देते हैं। 
  • महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करना: आज का दहेज शक्तिशाली कनेक्शन और आकर्षक व्यावसायिक संभावनाओं तक पहुंच प्राप्त करने के लिए दुल्हन के परिवार द्वारा वित्तीय निवेश के बराबर है। नतीजतन, महिलाओं को वस्तुओं तक सीमित कर दिया जाता है। 
  • महिलाओं के खिलाफ अपराध: घरेलू हिंसा में दहेज की मांग से संबंधित हिंसा और हत्याएं शामिल हैं। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हिंसा, और उत्पीड़न को अनुपालन लागू करने या पीड़ित को दंडित करने के तरीके के रूप में घरेलू हिंसा के समान दहेज से संबंधित अपराधों में उपयोग किया जाता है।

दहेज की सामाजिक बुराई से कैसे निपटा जाए?

दहेज प्रथा एक सामाजिक वर्जना है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए। हर लड़की को अपने ससुराल जाने में गर्व होना चाहिए। भारत में, दहेज प्रथा 10 में से 5 परिवारों को प्रभावित करती है। हालाँकि सरकार ने कई नियम बनाए हैं, फिर भी हमारे समाज में दहेज प्रथा का अस्तित्व बना हुआ है। नतीजतन, हम सभी को इससे निपटने के लिए कार्रवाई शुरू करनी चाहिए। अपने घरों से शुरुआत करना पहला कदम है। घर में लड़के और लड़कियों दोनों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें समान अवसर दिए जाने चाहिए। उन दोनों को शिक्षित किया जाना चाहिए और पूरी तरह आत्मनिर्भर होने की आजादी दी जानी चाहिए। शिक्षा और स्वतंत्रता दो सबसे शक्तिशाली और मूल्यवान उपहार हैं जो माता-पिता अपनी बेटियों को दे सकते हैं। केवल शिक्षा ही उसे आर्थिक रूप से सुरक्षित और परिवार का एक मूल्यवान सदस्य, अपना सम्मान और उपयुक्त पारिवारिक स्थिति अर्जित करने की अनुमति देगी। नतीजतन, 

एक और चीज जो करने की जरूरत है वह है उपयुक्त कानूनी संशोधन करना। जनता के पूर्ण सहयोग के बिना कोई भी कानून लागू नहीं किया जा सकता है। एक कानून का अधिनियमन, निस्संदेह, व्यवहार का एक पैटर्न स्थापित करता है, सामाजिक विवेक को शामिल करता है, और समाज सुधारकों को इसे निरस्त करने के प्रयासों में सहायता करता है। व्यवस्था को आम लोगों को उनके दिमाग और दृष्टिकोण का विस्तार करने के लिए अधिक नैतिक मूल्य-आधारित शिक्षा देनी चाहिए। 

समाज को लैंगिक समानता के लिए प्रयास करना चाहिए। राज्यों को लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए पूरे जीवन चक्र – जन्म, प्रारंभिक बचपन, प्राथमिक शिक्षा, पोषण, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच आदि – में लिंग-विच्छेदित डेटा का मूल्यांकन करना चाहिए। कार्यस्थल पूर्वाग्रह को कम करने और सहायक कार्य संस्कृतियों को स्थापित करने के लिए चाइल्डकैअर का विस्तार करना और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। पुरुषों और महिलाओं के पास समान घरेलू काम और जिम्मेदारियां होनी चाहिए। 

अनुच्छेद दहेज प्रथा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

युवतियों के मन में दहेज को लेकर क्या प्रभाव है.

दहेज प्रथा एक गहरी जड़ वाली समस्या है और इसने युवा महिलाओं को मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से प्रभावित किया है। पैसे या किसी संपत्ति की मांग युवती को उसके माता-पिता के लिए एक दायित्व बनाती है। प्रभाव अब तक की रिपोर्ट या अधिकारियों की रिपोर्ट की तुलना में कहीं अधिक है। हर साल युवतियां दहेज प्रथा के लिए ससुराल वालों के हाथों प्रताड़ित होती हैं। देश के कई ग्रामीण हिस्सों में बच्चियों को अभिशाप माना जाता था। कुल मिलाकर, दहेज प्रथा के अस्तित्व के कारण युवा महिलाओं को बहुत नुकसान हुआ है।

दहेज प्रथा कब शुरू हुई थी?

दहेज प्रथा का मध्यकाल में पता लगाया जा सकता है। इसका मकसद शादी के बाद दुल्हन को स्वतंत्र बनाना और नवविवाहित जोड़े को नया जीवन शुरू करने में सहयोग देना था।

भारत में औसत दहेज कितना है?

दहेज की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है, मुख्य रूप से आर्थिक। इस प्रकार, कम आय वाले परिवार के लिए यह औसतन लगभग 3 लाख रुपये से शुरू हो सकता है।

दहेज प्रथा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में | Dahej Pratha Essay in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध: वैसे तो हमारे समाज में प्राचीन काल से अलग-अलग प्रकार की प्रथाएं चल रही है l समाज में कुछ प्रथा ऐसी हैं, जो समय के साथ-साथ खत्म हो चुकी हैं या जिन में बदलाव किया जा चुका है। लेकिन हमारे समझ में कुछ प्रथा ऐसी हैं, जो आज तक हमारे समाज में फैली हुई है। दहेज प्रथा इसी प्रथा में से एक है। दहेज प्रथा के कारण हर वर्ष हजारों लड़कियां अपनी जान गवा देती है।

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको दहेज प्रथा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में बताने वाले हैं। यदि आप भी दहेज प्रथा के बारे में निबंध लिखना चाहते हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए महत्वपूर्ण होगी। हमने इस पोस्ट के जरिए दहेज प्रथा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में लिखी है।

दहेज प्रथा पर निबंध 10 लाइन में

  • दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है जिसे दूर करना आवश्यक है।
  • दहेज प्रथा समाज के विकास में एक बहुत बड़ी बाधा है।
  • शादी के समय लड़के वाले लड़की पक्ष से धन या कीमती चीजों की मांग करते हैं इसे ही दहेज कहा जाता है।
  • दहेज प्रथा एक बहुत ही पुरानी प्रथा है जिसे दूर करने के लिए लोगों को जागरूक करना आवश्यक है।
  • दहेज प्रथा की वजह से अक्सर लड़की पक्ष को आर्थिक व मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  • दहेज़ की परंपरा कई बार बेटियों के साथ शारीरिक व मानसिक शोषण का कारण बनती है।
  • इस प्रथा के कारण बहुत सी बेटियां अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं।
  • दहेज प्रथा के कारण बहुत सी बेटियों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
  • हमारे देश में दहेज़ लेना और देना कानूनन अपराध है फिर भी यह समस्या खत्म नही हो रही है
  • समाज के हर वर्ग में इस प्रथा को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।

दहेज प्रथा पर निबंध 100 शब्दों में

हम सभी जानते ही हैं कि भारत में जब भी किसी लड़की की शादी होती है, तो लड़की पक्ष की ओर से लडके वालों को दहेज दिया जाता है। सामान्य शब्दों में दहेज का अर्थ यह होता है, जब लड़की वाले शादी में लड़के वालों को जेवर, कपड़े, घर का सामान, वहान, पैसे और अन्य चीजें देते हैं, उसे दहेज कहा जाता है।

दहेज के कारण लड़की पक्ष को आर्थिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दहेज की प्रथा पुराने समय से ही चल रही है और अब तक सदियों से चल रही दहेज प्रथा समाप्त नहीं हो रही है। दहेज प्रथा के कारण लड़कियों पर बहुत ज्यादा अत्याचार भी किए जाते हैं। जिसके मामले अक्सर समाचार पत्र या सोशल मीडिया के माध्यम से हम देखते ही रहते हैं।

दहेज प्रथा पर निबंध 150 शब्दों में

दहेज प्रथा भारत की सबसे पुरानी प्रथाओं में से एक है। दहेज प्रथा राजा-महाराजाओं के काल से ही भारत में चलती आ रही हैं। दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हर वर्ष हजारों महिलाएं दहेज प्रथा का शिकार होती हैं और महिलाओं को दहेज प्रथा के कारण शारीरिक और मानसिक रूप से भी परेशान किया जाता है।

कई महिलाएं ऐसी हैं, जो दहेज प्रथा के कारण अपनी जान गवा देती हैं। वैसे तो सरकार की ओर से दहेज प्रथा को रोकने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सभी प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिल पाई है। हमारे समाज में जब लड़की का जन्म होता है, उसी समय से माता-पिता को दहेज की फिक्र सताने लगती है। जो मध्यम वर्गीय परिवार हैं, उनमें दहेज के कारण लड़कियों को काफी ज्यादा परेशान किया जाता है।

दहेज प्रथा पर निबंध 250 शब्दों में

जिस प्रकार से समय बदल रहा है, महिलाओं की दशा में पहले के मुकाबले में सुधार आता जा रहा है। लेकिन कुछ बुराइयां ऐसी भी हैं, जो हमारे समाज में खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। हमारी समाज में दहेज प्रथा के कारण पढ़ी लिखी लड़कियों को भी प्रताड़ित किया जाता है। हर मां-बाप यह चाहता है कि उसे अच्छे ससुराल पर ले।

लेकिन जो मां बाप के द्वारा लड़की को पढ़ा लिखा कर शादी की जाए और दहेज देने के बाद भी लड़की को ससुराल में तंग किया जाए, तो उन मां-बाप पर क्या गुजरती होगी। आए दिन दहेज के लालची लोगों के द्वारा ससुराल में लड़कियों को काफी परेशान किया जाता है। मार पिटाई की जाती हैं और कुछ लोग तो इतने नीच होते हैं कि वह लड़की को जिंदा जला कर भी मार देते हैं।

हमारे समाज में दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए काफी आंदोलन भी किए गए हैं। लेकिन यह बुराई मिटने का नाम नहीं ले रही है। हमारे समाज में पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना चाहिए और दहेज के खिलाफ साथ मिलकर कोई कदम उठाना चाहिए ताकि महिलाओं की दुर्दशा ना हो।

दहेज प्रथा पर निबंध 500 शब्दों में

यदि आप दहेज प्रथा पर निबंध 500 शब्दों में लिखना चाहते हैं, तो आप हमारे द्वारा बताए जा रहे निबंध को पढ़कर अच्छे से अपनी भाषा में निबंध लिख सकते हैं या फिर हमारे द्वारा बताए गए निबंध को अच्छे से समझ कर, अपने स्कूल में खोज कॉलेज में एक्सप्लेन कर सकते हैं।

हमारे समाज में दहेज प्रथा आज से नहीं बल्कि सदियों से चल रही है। जब लड़की की शादी में लड़की के मां-बाप लड़के वालों को रूपये, घर का सामान, जेवर, कपड़े और अन्य कीमती सामान देते हैं, तो उसे दहेज प्रथा कहा जाता है। दहेज़ की वजह से वधु पक्ष पर आर्थिक और मानसिक दबाव बढ़ जाता है।

यह एक सामजिक कुरीति है जिसे दूर करने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। इसे रोकने के लिए कानून भी बनाये गये हैं और लोगों को इससे बचने के लिए जागरूक भी किया जा रहा है। इसके बावजूद भी यह समस्या पूरी तरह से खत्म नही हुई है।

दहेज प्रथा के नुकसान

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दहेज प्रथा के कारण लड़कियों को मानसिक और शारीरिक रूप से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चलिए हम आपको एक-एक करके सभी जानकारी विस्तार से देते हैं।

शारीरिक और मानसिक शोषण :

दहेज के लालची लोगों के द्वारा जब लड़की के घरवालों से अपना मनपसंद दहेज नहीं मिल पाता है, तो उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू किया जाता है। लड़की को मारा-पीटा जाता है और मानसिक रूप से भी परेशान किया जाता है।

हमारे समाज में दहेज प्रथा दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रही है। आए दिन दहेज से तंग आकर कई महिलाएं अपनी जान भी दे देते हैं ‌। सोशल मीडिया पर काफी खबरें सामने आती है, जिसमें महिला ससुराल वालों के द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार के कारण अपनी जान दे देते हैं। कुछ ससुराल पक्ष के लोग ऐसे होते हैं, जो महिलाओं को मार देते हैं।

लड़की पक्ष में तनाव:

जब ससुराल पक्ष की ओर से लड़की के घर वालों पर दहेज का दबाव बनाया जाता है, तो लड़की के घरवाले काफी ज्यादा तनाव में आ जाते हैं। कुछ परिवार बहुत ज्यादा करीब होते हैं इसीलिए वे लड़की की शादी में ज्यादा दहेज नहीं दे पाते हैं। दहेज के लालची लोग लड़की के घरवालों पर दया नहीं करते हैं और वह उन्हें दहेज देने के लिए दबाव बनाते रहते हैं। जिसके कारण लड़की पक्ष वाले काफी ज्यादा तनाव में आ जाते हैं और कोई गलत कदम उठा लेते हैं।

समाज के विकास में बाधा:

समाज में कई ऐसी मानसिकताएं और कुरीतियाँ होती हैं जिसकी वजह से समाज आगे नही बढ़ पाता। कुरीतियों की वजह से समाज का एक वर्ग पीछे रह जाता है और उनका विकास नही हो पाता। दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियाँ अक्सर महिलाओं और बेटियों के अधिकार का हनन करती हैं और उन्हें आगे बढ़ने से रोकती हैं। समाज के विकास में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी बराबर योगदान होता है। लेकिन यदि महिलाओं की स्वतंत्रता पर बाधा डाली जाए तो इससे समाज के विकास पर प्रभाव पड़ता है।

दहेज प्रथा पर निबंध

  • नारी शिक्षा पर निबंध
  • नारी सशक्तिकरण पर निबंध
  • क्रांतिकारी महिलाओं के नाम
  • शिक्षा पर निबंध

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखे गए दहेज प्रथा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में अच्छे से समझ आ गया।

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दहेज़ प्रथा पर हिंदी में निबंध (Essay on Dowry System in Hindi): 100 से 500 शब्दों में कक्षा 7 से 10 के लिए

Updated On: July 11, 2024 01:16 pm IST

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दहेज़ प्रथा पर निबंध हिंदी में (Essay on Dowry System in Hindi)

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दहेज़ प्रथा पर निबंध (Essay on dowry system in Hindi) 100 से 500 शब्दों में

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हिंदी में निबंध देखें

दहेज़ प्रथा पर निबंध 500 शब्दों में (Essay on dowry system in 500 Words in Hindi)

दहेज़ प्रथा पर निबंध हिंदी में (dahej pratha par nibandh)- प्रस्तावना, दहेज़ प्रथा का स्वरूप:, दहेज़ प्रथा के कारण:, दहेज़ प्रथा के प्रभाव:, दहेज़ प्रथा को रोकने के उपाय:.

  • इससे बदले में उसे आर्थिक रूप से मजबूत होने और परिवार में योगदान देने वाला सदस्य बनने में मदद मिलेगी, जिससे उसे परिवार में सम्मान और सही दर्जा मिलेगा।
  • इसलिए बेटियों को ठोस शिक्षा प्रदान करना और उसे अपनी पसंद का करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना सबसे अच्छा दहेज है जो कोई भी माता-पिता अपनी बेटी को दे सकते हैं।
  • केंद्र और राज्य सरकारों को लोक अदालतों, रेडियो प्रसारण, टेलीविजन और समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों के बीच 'निरंतर' आधार पर 'दहेज विरोधी साक्षरता' बढ़ाने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
  • दहेज प्रथा के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए युवा ही आशा की एकमात्र किरण हैं। उनके दिमाग को व्यापक बनाने और उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के लिए उन्हें नैतिक मूल्य आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए।
  • बच्चों की देखभाल और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करने, भर्ती में भेदभाव को कम करने और कार्यस्थल पर सकारात्मक माहौल बनाने की आवश्यकता है।
  • घर पर, पुरुषों को घरेलू काम और देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ महिलाओं के साथ साझा करनी चाहिए।

दहेज प्रथा का निष्कर्ष क्या है?

दहेज़ प्रथा पर निबंध 10 लाइन (essay on dowry in 10 lines in hindi).

  • दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है जो विवाह के समय विभिन्न आर्थिक और सामाजिक चीज़ों की मांग को दर्शाती है।
  • इस प्रथा में, विवाह के लिए विशेषकर लड़की के परिवार को अत्यधिक धन की मांग की जाती है।
  • यह एक अत्यंत अवार्धनीय परंपरागत चीज़ है, जिससे महसूस होता है कि बेटी को घर छोड़ने पर परिवार का अधिकार बनता है।
  • दहेज प्रथा ने समाज में स्त्रीओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है और उन्हें अधिकारहीन बनाया है।
  • इस प्रथा के चलते कई स्थानों पर लड़कियों को बचपन से ही आत्मविश्वास कम होता है और उनमे आत्मनिर्भरता की कमी होती है।
  • यह एक आर्थिक बोझ बनता है जो घरेलू संरचनाओं को भी प्रभावित करता है और समाज में आर्थिक असमानता बढ़ाता है।
  • दहेज प्रथा ने लड़कियों के लिए शादी को एक अवश्यकता बना दिया है, जिससे उनका व्यक्तिगत और पेशेवर विकास रुका है।
  • इस प्रथा का सीधा असर व्यक्ति के अधिकारों और स्वतंत्रता पर होता है, और यह समाज में बिगड़ते संबंधों का कारण बनता है।
  • दहेज प्रथा से निपटने के लिए समाज में जागरूकता, शिक्षा, और समानता के प्रति विचार को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • समाज को दहेज प्रथा के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाना चाहिए ताकि इस अवस्था को समाप्त करने की दिशा में प्रयास किया जा सके।

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सामाजिक संगठनें दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने, समाज में समानता को बढ़ाने, और सकारात्मक परिवर्तन के लिए काम करती हैं।

दहेज प्रथा से जुड़े समाचार और घटनाएं समय-समय पर मीडिया में आती रहती हैं, जो इसे बदलने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जागरूक कर सकती हैं। 

दहेज प्रथा को रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता, शिक्षा में समानता, सकारात्मक कानून, और समाज में समानता के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए।

दहेज प्रथा एक सामाजिक अनैतिकता है जिसमें विवाह के समय लड़की के परिवार से अधिक धन, सामाजिक स्थान, और आर्थिक चीज़ों की मांग की जाती है।

इस लेख में दहेज़ प्रथा पर विस्तार से निबंध लिखकर बताया गया है। इच्छुक छात्र यहां से दहेज़ प्रथा पर निबंध का नमूना देखकर खुद के लिए निबंध तैयार कर सकते हैं। 

दहेज प्रथा को रोकने के लिए समाज, सरकार, और व्यक्तिगत स्तर पर कई कदम उठाए जा सकते हैं। यहाँ कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं जो इस समस्या के समाधान में मदद कर सकते हैं:

  • शिक्षा का प्रचार-प्रसार
  • सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम
  • कड़ी से कड़ी कानूनी कदम
  • समाज में समानता का प्रचार-प्रसार
  • धार्मिक और सांस्कृतिक जागरूकता

दहेज प्रथा का मुख्य कारण समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता है। इस प्रथा के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक प्रतिष्ठाओं से संबंधित होते हैं। 

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दहेज प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay in Hindi

by Editor January 10, 2019, 3:06 PM 11 Comments

दहेज प्रथा पर हिन्दी निबंध | Dowry Essay in Hindi 

दहेज प्रथा केक सामाजिक बुराई है जो समय के साथ-साथ बढ़ी है। इस बुराई के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हम लेकर आए हैं दहेज प्रथा पर हिन्दी निबंध। 

दहेज प्रथा पर निबंध (150 शब्द)

दहेज का अर्थ है विवाह के समय लड़की के परिवार की तरफ से लड़के के परिवार को धन-संपत्ति आदि का देना। वास्तव में धन-संपत्ति की मांग लड़के के परिवार वाले सामने से करते हैं और लड़की के घर वालों को उनकी मांग के अनुसार धन-संपत्ति देनी पड़ती है।

दहेज प्रथा एक ऐसी कुरिवाज है जो सदियों से भारत जैसे देश में अपनी पकड़ बनाए हुई है। दहेज प्रथा के कारण ना जाने कितनी महिलाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण होता है, कई बार तो दहेज के कारण नव वधू की हत्या भी कर दी जाती है।

भारत में दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानून भी बनाया गया है लेकिन दुख की बात यह है की कानून बनने के बाद भी दहेज प्रथा की जड़ें और मजबूत हो गईं है।

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए समाज के लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है, तभी हम इस कुरीति को खतम कर सकते हैं।

दहेज प्रथा पर निबंध (250 शब्द)

दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। भारत और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज के नाम से जाना जाता है।

बहुत पहले विवाह के समय वधू का परिवार वर को इसलिए धन-संपत्ति देता था क्यूंकी उस समय लड़की को अपने पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था, इसलिए विवाह के समय ही एक पिता अपनी बेटी को उसका अधिकार दे देता था। लेकिन फिर धीरे-धीरे यह एक कुरिवाज में बादल गयी और अब तो वर पक्ष के लोग सामने से दहेज मांगते हैं और मजबूर होकर कन्या पक्ष को दहेज देना पड़ता है।

दहेज प्रथा के कारण ना जाने कितनी महिलाओं को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, माँ-बाप गरीब होने की वजह से अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाते और ना जाने कितनी शादी-शुदा ज़िंदगी दहेज के कारण तबाह हो जाती हैं। 

भारत जैसे देश में दहेज प्रथा की जड़ें बहुत मजबूत हैं। यहाँ तक की शिक्षित समाज भी इस कुप्रथा से अछूता नहीं है। हमारे समाज में दहेज प्रथा के बारे में सभी लोगों ने एक ऐसी सोच बना रखी है जिसमे दहेज देना कन्या पक्ष के लिए जरूरी बना दिया गया है। यदि कन्या पक्ष दहेज देने के इच्छुक नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में लड़की के विवाह में भी अड़चनें आ सकतीं है।

ऐसा नहीं की दहेज प्रथा को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है, कानून तो है लेकिन उसका अनुसरण कोई नहीं करना चाहता क्यूंकी जिस घर में बेटी है तो वहाँ बेटा भी है। मतलब की एक हाथ लड़की की शादी में दहेज देना पड़ता है तो दूसरे हाथ दहेज ले भी लिया जाता है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है।

दहेज प्रथा पर निबंध (400 शब्द)

दहेज अर्थात विवाह के समय दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे को धन-संपत्ति आदि का देना। पहले दहेज एक पिता अपनी बेटी को खुशी से देता था लेकिन आज वो एक सामाजिक बुराई बन गयी है और हमारे समाज में दहेज प्रथा की जड़ें बहुत मजबूत हो चुकीं हैं। 

दहेज जैसी कुप्रथा की वजह से बेटियों को पेट में ही मार दिया जाता है क्यूंकी बेटी का जन्म हुआ तो उसकी शादी में ढेर सारा धन देना पड़ेगा। समाज में लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें बोझ की तरह समझा जाता है। भारत के कई राज्यों में लड़कों कीअपेक्षा लड़कियों की संख्या में कमी आई है।

दहेज प्रथा की वजह से महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ा है। अकसर उन्हें लड़के के घर वालों द्वारा दहेज के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है और कई बार उन्हें आत्महत्या करने के लिए भी मजबूर कर दिया जाता है।

दहेज जैसी कुप्रथा को दूर करने के लिए भारत देश में कानून बनाया गया है जिसके तहत दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध है। इसके बावजूद भी दहेज प्रथा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

दहेज प्रथा के कई कारण है। समाज में पहले से ही इसकी रिवाज बना दी गयी है जिसे समाज के लोग एक परंपरा के रूप में मानते हैं। लड़के वाले दहेज लेने से समाज में उनका कद बढ़ाने की सोचते हैं। लालच इसकी सबसे बड़ी वजह है जिसमे वर पक्ष बड़ी बेशर्मी से ढेर सारा रुपया-पैसा कन्या पक्ष से मांगता है। हमारी सामाजिक संरचना इस प्रकार की है जिसमे महिला को पुरुषों से कम समझा जाता है और उन्हें सिर्फ एक वस्तु माना जाता है। यही सोच समाज में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार की बड़ी वजह है।

ऐसा नहीं है की कम पढे-लिखे लोग ही दहेज की मांग करते हैं बल्कि उसके विपरीत अधिक पढे-लिखे लोग भी दहेज की प्रथा को सही मानते हैं और विवाह में वो भी खूब दहेज की मांग करते हैं।

दहेज प्रथा को यदि हमें जड़ से खतम करना है तो सबसे पहले कड़े कानून बनाकर उनका सख्ती से अमल कराना चाहिए। समाज में लोगों को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है की बेटा हो या बेटी सभी समान है, बेटी हर काम कर सकती है और वो बेटों से कम नहीं है। लड़कियों को शिक्षित करना भी जरूरी है ताकि वो आगे चलकर आत्मनिर्भर बन सकें।

दहेज प्रथा को खतम करना है तो सबसे पहले महिलाओं को जागरूक बनना पड़ेगा और पुरुष प्रधान समाज को आईना दिखाने की जरूरत है। जो सोच सदियों से चली आ रही है उसमें बदलाव की जरूरत है।

दहेज प्रथा पर विस्तृत निबंध (1200 शब्द)

दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन अपराध क्यूँ ना हो लेकिन इसकी जड़ें अब इतनी मजबूत हो चुंकी हैं की 21वीं सदी में आने के बाद भी यह खतम नहीं हुई है। समय के साथ-साथ इस कुप्रथा का चलन और ज्यादा बढ़ा है। भारत जैसे देश में दहेज प्रथा अब भी मौजूद है।

दहेज का अर्थ

दहेज का मतलब है विवाह के समय कन्या के परिवार द्वारा वर को दी जाने वाली धन-संपत्ति। विवाह के समय लड़की के घर वाले लड़के को ढेर सारा पैसा, माल सामान आदि देते हैं जिसे दहेज के रूप में जाना जाता है। दहेज तब तक तो ठीक है जब लड़की का पिता अपनी खुशी से दे रहा हो लेकिन जब लड़के के घर वाले अधिक धन-संपत्ति मांग कर लें जिसे देने में कन्या का परिवार सक्षम ना हो तब दहेज का हमें भयानक चेहरा देखने को मिलता है। विवाह के दौरान लड़के के घर वाले कई बार ऐसी मांग कर देते हैं जिसे पूरा करने के लिए लड़की के घर वाले सक्षम नहीं होते, ऐसी हालत में कई बार शादी टूटने तक की नोबत आ जाती है। इसी को दहेज प्रथा कहते हैं।

भारत में दहेज प्रथा

भारत जैसे देश में दहेज प्रथा ने सदियों से अपनी जड़ें मजबूत कर रखीं हैं। आज भी आधुनिक समाज में दहेज लिया जाता है और समय के साथ-साथ यह कुरिवाज बढ़ी है।

पहले के समय में जब लड़की को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था तब एक पिता अपनी बेटी को उसके विवाह के समय ही धन-संपत्ति दे देता था। उस समय इसे एक अच्छी रिवाज माना जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इस रिवाज ने दहेज जैसी कुप्रथा को जन्म दिया।

अब ऐसा समय आया है की लड़के के घर वाले सामने से दहेज की मांग करते हैं भले ही लड़की का परिवार देने में सक्षम हो या ना हो। शादी तय करने से पहले ही दहेज की बात तय हो जाती है। शादी तभी की जाती है जब कन्या का पक्ष मांगा गया दहेज लड़के के घर वालों को दे देता है।

हमारा पढ़ा-लिखा समाज भी इससे अछूता नहीं है, बल्कि पढे लिखे लोग ही सबसे ज्यादा दहेज विवाह में लेते हैं।

दहेज प्रथा के कारण

दहेज जैसी कुप्रथा आज भी हमारे समाज में मौजूद है जिसके कई कारण है।

1. लालच: दहेज की मांग अक्सर लालच के वशीभूत होकर की जाती है। लड़का पढ़ा-लिखा है, अच्छी नौकरी करता है, घर अच्छा है आदि कारण देकर लड़की के घर वालों से दहेज की मांग की जाती है। बड़ी बेशर्मी के साथ लड़के के घर वाले अपनी मांगों को रखते हैं।

2. सामाजिक संरचना: दहेज प्रथा काफी हद तक भारतीय समाज की पुरुष प्रधान सोच का नतीजा है जहां पुरुषों को शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के पहलुओं में महिलाओं से बेहतर माना जाता है। ऐसी सामाजिक संरचना की पृष्ठभूमि के साथ, महिलाओं को अक्सर दूसरी श्रेणी का नागरिक माना जाता है जो केवल घरेलू भूमिकाओं को संभालने के लिए सही होती हैं। इस तरह की धारणाएँ अक्सर उन्हें पहले पिता द्वारा और फिर पति द्वारा आर्थिक दृष्टि से बोझ समझा जाता हैं। इस भावना को दहेज प्रथा द्वारा और अधिक जटिल बना दिया गया है।

3. महिलाओं की सामाजिक स्थिति – भारतीय समाज में महिलाओं की हीन सामाजिक स्थिति इतनी गहरी है, कि उन्हें मात्र वस्तुओं के रूप में स्वीकार किया जाता है, न केवल परिवार द्वारा, बल्कि महिलाओं द्वारा भी खुद को। जब विवाह को महिलाओं के लिए अंतिम उपलब्धि के रूप में देखा जाता है, तो दहेज जैसी कुप्रथा समाज में जड़ पकड़ लेती है।

4. निरक्षरता – शिक्षा का अभाव दहेज प्रथा की व्यापकता का एक अन्य कारण है। बड़ी संख्या में महिलाओं को जानबूझकर स्कूलों से दूर कर दिया जाता है। आज भी ऐसी सोच के लोग मौजूद हैं जो लड़की के अधिक पढ़-लिख जाने के खिलाफ होते हैं।

5. दिखावा करने का आग्रह – दहेज अक्सर हमारे देश में सामाजिक कद दिखाने के लिए एक साधन है। समाज में किसी के मूल्य को अक्सर इस बात से मापा जाता है कि वो बेटी की शादी में कितना खर्च कर रहा है या कोई कितना धन देता है। यह नजरिया दहेज की मांग के प्रचलन को काफी हद तक सही ठहराता है। बदले में लड़के का परिवार अपनी नई दुल्हन की दहेज की राशि के आधार पर अपना सामाजिक कद बढ़ाने के बारे में सोचता है।

दहेज प्रथा के दुष्प्रभाव

कन्या भ्रूण हत्या – गर्भ में ही बेटी को मार दिया जाता है जिसे कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इसका बड़ा कारण कहीं ना कहीं दहेज प्रथा ही है। बेटी हुई तो उसकी शादी कैसे होगी, दहेज कैसे देंगे यही सोच रखकर माँ-बाप गर्भ में ही बेटियों को मार देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में लड़कियों की संख्या में भी कमी दर्ज की जाती है।

लड़कियों के प्रति भेदभाव – लड़की बोझ होती है – समाज की यह सोच भी दहेज प्रथा के कारण है। लड़की को पढ़ाओ-लिखाओ उसका खर्च और उसके बाद उसकी शादी में ढेर सारा खर्च ऐसा सोच कर बचपन से ही लड़कों की तुलना में लड़की के साथ भेद भाव किया जाता है।

महिलाओं का शारीरिक और मानसिक शोषण – दहेज प्रथा के कारण हर साल हजारों शादी-शुदा महिलाएं आत्महत्या कर लेतीं हैं या लड़के के घर वालों द्वारा उन्हें मार दिया जाता है। हर रोज महिलाएं शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाएं सहन करतीं हैं।

आर्थिक बोझ – लड़की की शादी में ढेर सारा दहेज देना पड़ता है और शादी का खर्च अलग से उठाना पड़ता है, इस वजह से लड़की के घर वालों को अक्सर आर्थिक बदहाली का सामना करना पड़ता है। कई बार तो उन्हें उधार लेकर दहेज की मांग पूरी करनी पड़ती है।

दहेज प्रथा रोकने के उपाय 

दहेज जैसी कुप्रथा को दूर करना बहुत कठिन है क्यूंकी यह समाज के लोगों की सोच में इस तरह अपनी पकड़ मजबूत कर चुकी है जिसे बदलना मुश्किल है। फिर भी इसे रोकने के लिए हम निम्न कदम उठा सकते हैं। कडा कानून – दहेज प्रथा और उससे उपजी महिलाओं के खिलाफ अन्याय को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। दहेज निषेध अधिनियम 20 मई, 1961 को पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य समाज से इस बुरी प्रथा को समाप्त करना था। यह कानून न केवल दहेज को गैरकानूनी मानता है, बल्कि इसे देने या मांग करने पर दंड भी देता है।

सामाजिक जागरूकता – दहेज प्रथा की बुराइयों के खिलाफ एक व्यापक जागरूकता पैदा करना ही इस प्रथा को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहला कदम है। समाज के सभी तबके तक पहुंचने के लिए और दहेज के खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बारे में ज्ञान फैलाने के लिए सामाजिक जागरूकता जरूरी है।

महिलाओं की शिक्षा और आत्म-निर्भरता – जीवन में केवल अपने व्यवसाय को खोजने के लिए शिक्षा की आवश्यकता नहीं है। दहेज जैसी व्यापक सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए लड़कियों को शिक्षित करने पर जोर देना महत्वपूर्ण है। उनके अधिकारों का ज्ञान ही उन्हें दहेज प्रथा और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ बोलने में सक्षम करेगा। वे आत्म-निर्भरता के लिए भी प्रयास करने में सक्षम होंगी और शादी को उनके एकमात्र उद्देश्य के रूप में नहीं समझेंगी।

11 Comments

This is correct

Very, very amazing

Good thinking dowry system is bad

Dowry system is bad but at many place. People take money from girl parents. It is very bad think.

Super 👍👍👍😘😘😘

Very good thinking

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दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry system in Hindi

दहेज प्रथा पर निबंध (Essay on dowry system in Hindi): दहेज की समस्या आज भारतीय समाज के सामने सबसे बड़ी समस्या है. इसके सामाजिक प्रभाव बुरे, भयावह और दुखी के रूप में अशांत और अस्पष्ट हैं. कई लड़कियों के गरीब माता-पिता इसे अभिशाप के रूप में ले रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकारों के लिए दहेज एक बड़ी समस्या बन गयी है . भारतीय सामाजिक परंपरा में अपनी स्थिति मजबूत करने वाले दहेज को आज के संदर्भ में एक अपमानजनक प्रथा माना जाता है.

तो चलिए हमारे निबंध के ओर बढ़ते हैं जो है दहेज प्रथा पर निबंध . यह लेख में आप दहेज प्रथा के बारे में विस्तार रूप से जान पाएंगे.

दहेज प्रथा पर निबंध – Essay on dowry system in Hindi  

प्रस्तावना – दहेज का रूप और इतिहास – विदेश में दहेज – दहेज एक सामाजिक बीमारी है – दहेज फैलने का कारण – सुधार की जरूरत – दहेज को खत्म करने के लिए उठाए गए कदम – दहेज को खत्म कैसे करें – उपसंहार

प्रस्तावना     

ईश्वर की रचना का सबसे बड़ा सामाजिक प्राणी मनुष्य है. मनुष्य समाज में दो नस्लें हैं: एक पुरुष और दूसरी नारी. और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. प्रत्येक व्यक्ति का वैवाहिक जीवन जीने के लिए अधिकार है. वैवाहिक जीवन तभी सुखी होता है जब महिला और पुरुष स्नेह से बंधे होते हैं. दुनिया के अधिकांश देशों में, विशेषकर भारत में सार्वजनिक विवाह आम हैं. इसलिए लगभग हर किसी के जीवन में यह सामाजिक आवश्यकता है. माता-पिता विवाह की व्यवस्था तब करते हैं जब बेटा और बेटी उचित उम्र तक पहुँचते हैं. विवाह एक पवित्र सामाजिक कार्य है. यह काम हर जगह में कुछ सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार आयोजित किया जाता है. इन रीति-रिवाजों और परंपराओं के प्रभाव के तहत, शादी के दौरान दहेज का लेना और देना प्रचलित हो रही है. लेकिन दुख की बात है कि यह घिनौनी दहेज प्रथा भारतीय सामाजिक जीवन में एक गंभीर समस्या बन गई है.

दहेज का रूप और इतिहास

पौराणिक कथाओं और इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि यह प्रथा प्राचीन काल में प्रचलित थी. रामायण और महाभारत में दहेज देने की प्रथा के कई उदाहरण हैं. मध्य युग में राजाओं और रानियों ने अपनी बेटियों की शादी में दहेज के रूप में बहुत सारी संपत्ति देते थे. उस समय, वे दबाव में रह कर या मजबूर हो कर दहेज नहीं देते थे. जिस तरह उस समय के समाज और आज के समाज के बीच एक अंतर है, वैसे ही दहेज के बीच भी एक बड़ा अंतर है. आज के समाज दुल्हन की शैक्षिक योग्यता, रोजगार और प्रतिष्ठा को देख कर ही दहेज दिया जा रहा है.

dahej pratha par nibandh hindi

विदेश में दहेज  

भारत में दहेज महामारी की भूमिका निभा रहा है लेकिन पश्चिमी देशों में शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के आत्मनिर्भरता के कारण यह एक शब्दावली बन गई है. फिर भी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और क्वेटा जैसे देशों में यह दहेज बीमारी उस देश की सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय बन गई है.

दहेज एक सामाजिक बीमारी है

भारतीय समाज में दहेज को अब एक सामाजिक बीमारी माना जाता है. जिस तरह बीमारी शरीर के क्षय का कारण बनती है, उसी प्रकार दहेज धीरे-धीरे समाज को कमजोर और नष्ट कर रहा है. दहेज की कमी या दहेज की पसंद के कारण नवविवाहितों के जीवन में कई तूफान आते हैं. अखबारों में प्रतिदिन अनगिनत नवविवाहितों की मौत की खबरें प्रकाशित हो रही हैं. एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन भारत में महिलाओं के खिलाफ दहेज संबंधी हिंसा के बारे में सुनने में नहीं मिल रही है.

आज कल की शादी एक व्यापार बनके रह गया है. लड़की की उपस्थिति, गुण और योग्यता को दहेज से कम माना जा रहा है. दहेज में दूल्हे के महत्व और व्यक्तित्व को खरीदा जा रहा है. सामूहिक रूप से, दहेज ने भारतीय सार्वजनिक जीवन में अशांति का माहौल बनाया है. वास्तव में, दहेज आर्थिक और मानसिक कष्ट के कारण है. इसलिए भारतीय समाज में दहेज को एक बीमारी या दोष कहना अनुचित नहीं है.

दहेज फैलने का कारण

दहेज फैलने के कई कारण हैं. अब भारतीय धीरे-धीरे आध्यात्मिकता, नैतिकता और त्याग से दूर जा रहे हैं. आजकल बहुत ज्यादा भारतीय एक भौतिकवादी दुनिया में प्रवेश किया है, जहां धन के मूल्य पर जोर दिया जाता है. इस दृष्टिकोण से, दहेज के दावे बढ़ रहे हैं. दहेज संक्रामक रोगों के समान है. जो लोग अपनी बेटियों के लिए दहेज देते हैं, वे अपने बेटे के लिए दहेज की मांग करते हैं. इसको मानवता की कमी कहना उचित होगा. विलासिता के सामान के लाभों को दहेज से जोड़ा गया है. विशेष रूप से सुस्त सरकारी नियमों के कारण दहेज फैलता बढ़ रहा है.

सुधार की जरूरत  

दहेज भारतीयों के लिए अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं है. इसे और अधिक खतरनाक होने से पहले इसे मिटाने की आवश्यकता है. हालांकि इसके उन्मूलन के लिए लगातार प्रयास किया गया है, कोई कार्रवाई नहीं की गई है. जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. देश में लोकतांत्रिक शासन की प्रतिष्ठा है; लेकिन दहेज निश्चित रूप से हमारे देश के प्रतिष्ठा पर एक धब्बा है. साहसी व्यक्तियों, सुधारकों और प्रशासकों के संयुक्त प्रयासों से इसे टाला जा सकता है. आज के समाज में, दहेज के खिलाफ बोलना एक उचित और राष्ट्रीय चुनौती है.

दहेज को खत्म करने के लिए उठाए गए कदम:

भारत दहेज से मुक्ति के लिए संघर्ष का प्रतीक रहा है: लेकिन यह न तो खत्म हुआ, न ही यह सफल हुआ. केंद्रीय और राज्य स्तर पर, दहेज उन्मूलन के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं.

समाज को सही दिशा में निर्देशित करके दहेज के मुद्दे को दूर करने के लिए ‘दहेज प्रतिषेध अधिनियम(Dowry prohibition act)’ बनाया गया है. परिणामस्वरूप कई अपराधियों का जघन्य व्यवहार सामने आया है. दहेज प्रतिषेध अधिनियम(Dowry prohibition act) 1961 में पारित किया गया था. यह कानून के तहत, दहेज स्वीकृति और दहेज प्रदान करना को एक अपराध माना जाता है. यह कानून का उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माना दोनों के प्रावधान हैं. समय के साथ दहेज कानून बदल गया है. कई नए कानून बनाए गए हैं.

कई मामलों में, सुप्रीम कोर्ट की कठोर सजा ने जनता का ध्यान खींचा है; लेकिन केवल कानून के माध्यम से इस जघन्य प्रथा को मिटाना संभव नहीं है.

दहेज को खत्म कैसे करें

वास्तव में, दहेज को समाप्त किया जा सकता है. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, शिक्षा का प्रसार देश भर में आवश्यक है. यदि शिक्षा प्रणाली ग्रामीण लड़कियों और लड़कों के पास अच्छे से पहुँच पायेगा, तब जाकर दहेज हटाने में क्रांतिकारी बदलाव संभव होगा. दहेज को खत्म करने के लिए उचित जन जागरूकता और जनमत तैयार करने की जरूरत है. इसके लिए जन आंदोलन की भूमिका आवश्यक है. दहेज के खिलाफ प्रचार और प्रसार की आवश्यकता है. विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों इस संबंध में बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. दहेज प्रथा दूर करने में समाचार पत्रों, रेडियो और टेलीविजन को महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिए. दहेज उन्मूलन के लिए महिलाओं के आंदोलन और जागरूकता की बहुत आवश्यकता है.

जब तक दहेज प्रथा के खिलाफ जन-जागरूकता नहीं उठाई जाएगी, तब तक यह हमारे समाज का हानि करते रहेगा. दहेज की वजह से पारिवारिक जीवन में अशांति पैदा हो रही है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने दहेज प्रथा को देख कर एक बात बोले थे, “These social customs will carry India towards poverty.” अगर आज की युवा पीढ़ी इस प्रथा के दुष्प्रभावों का एहसास करके माता-पिता को दहेज रहित शादी के लिए सलाह देंगे तब जाकर इसे हल किया जा सकता है. यह विडंबना है कि मुट्ठी भर लोग ही इस समस्या के समाधान की उम्मीद कर रहे हैं. इसके लिए जन आंदोलन की आवश्यकता है.  

  • नारी शिक्षा पर निबंध
  • नशा मुक्ति पर निबंध
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध
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ये था हमारा लेख दहेज प्रथा पर निबंध(Essay on dowry system in Hindi). उम्मीद करता हूँ की आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा. और हम चाहते है की आप ये लेख को अपने facebook और whatsapp पे share करें, जिससे दहेज प्रथा के बारे में और ज्यादा जागरू

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दहेज प्रथा पर निबंध – कारण, उपाय, अधिनियम 1961 || Dahej Pratha

आज के आर्टिकल में हम दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढेंगे। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan) , दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay) , दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) के बारे में जानेंगे।

दहेज प्रथा पर निबंध – Dahej Pratha Par Nibandh

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Dahej Pratha

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दहेज शब्द अरबी भाषा ’जहेज’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है – भेंट या सौगात । धर्मशास्त्र में इसे ’दाय’ कहा गया है, जिसका आशय वैवाहिक उपहार है। भारतीय संस्कृत में प्राचीनकाल से अनेक शिष्टाचारों का प्रचलन रहा है। उस काल में विवाह-संस्कार को मंगल-भावनाओं का प्रतीक मानकर प्रेमपूर्वक दायाद, दाय या दहेज का प्रचलन था परन्तु कालान्तर में यह शिष्टाचार रूढ़ियों एवं प्रथाओं के रूप में सामाजिक ढाँचे में फैलने लगा। जो वर्तमान सामाजिक जीवन में एक अभिशाप-सी बन गया है।

दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है, जो एक बहुत तेजी के साथ पूरे समाज में फैलती जा रही है। दहेज का अर्थ है – वह सम्पत्ति जो विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ से वर को दी जाती है। वधू के परिवार द्वारा नकद या वस्तुओं और गहनों के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है।

विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को उपहार के रूप में जो भेंट दी जाती है, उसे ’दहेज’ कहते हैं। यह प्रथा अत्यंत प्राचीनकाल से चली आ रही है। आज यह बुराई का रूप धारण कर चुकी है। परंतु मूल रूप में यह बुराई नहीं है। दहेज का अर्थ है – विवाह के समय लङकी के परिवार की तरफ से लङके के परिवार को धन-सम्पत्ति आदि का देना। वास्तव में धन-सम्पत्ति की माँग लङके के परिवार वाले सामने से करते है और लङकी के घर वालों को उनकी माँग के अनुसार धन-सम्पत्ति देनी पङती है।

दहेज भारतीय समाज के लिए अभिशाप है। यह कुप्रथा घुन की तरह समाज को खोखला करती चली जा रही हैं। इसने नारी जीवन तथा सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करके रख दिया है। प्राचीन काल से ही दहेज प्रथा हमारे समाज में प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है।

लेकिन समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई। अब उपहार दूल्हा और उसके माता-पिता रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। शादियों में दिए जाने वाले सभी उपहार ’दहेज’ की श्रेणी में आते हैं। इस प्रथा में लिंग असमानता और सख्त कानूनों की कमी जैसे कई कारणों ने भी इसको जन्म दे दिया है।

दहेज प्रथा एक अभिशाप

प्राचीनकाल में कन्या-विवाह के अवसर पर पिता स्वेच्छा से अपनी सम्पत्ति का कुछ अंश उपहार रूप में देता था। उस समय यही शुभ-कामना रहती थी कि नव-वर-वधू अपना नया घर अच्छी तरह बसा सकें तथा उन्हें कोई असुविधा न रहे। परन्तु परवर्ती काल में कुछ लोग अपना बङप्पन जताने के लिए अधिक दहेज देने लगे।

ऐसी गलत परम्परा चलने से समाज में कन्या को भारस्वरूप माना जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी में दहेज प्रथा के कारण समाज में अनेक गलत परम्पराएँ चलीं, यथा – बहुविवाह, बालविवाह, कन्या को मन्दिर में चढ़ाना या देवदासी बनाना आदि। कुछ जातियों के लोग इसी कारण कन्या-जन्म को अशुभ मानते हैं।

’’सोच बदलो चरित्र बदलो,

दहेज प्रथा को दूर करो’’

दहेज प्रथा का इतिहास

भारत के सबसे बङे पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में माता-पिता द्वारा बेटियों को दहेज देने का उदाहरण मिलता है। इसके अलावा उत्तरवैदिक काल में भी दहेज प्रथा के कुछ उदाहरण मिलते है। लेकिन उस समय दहेज प्रथा का स्वरूप कुछ अलग था।

दहेज प्रथा के कारण

(1) धार्मिक विश्वास –.

हिन्दुओं के धार्मिक विश्वास ने दहेज प्रथा को प्रोत्साहन दिया है। हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता के अनुसार माता-पिता द्वारा अपनी कन्या को अधिक-से-अधिक सम्पत्ति, आभूषण और उपहार देना विवाह संस्कार से सम्बन्धित एक धार्मिक कृत्य है। यह विश्वास धार्मिक परम्परा से सम्बन्धित है।

(2) शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा –

वर्तमान समय में शिक्षा एवं व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का महत्त्व अधिक है इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित लङके के साथ करना चाहता है। जिसके लिए उसके काफी दहेज देना होता है क्योंकि ऐसे लङकों की समाज में कमी पायी जाती है।

(3) कुलीन विवाह का नियम –

कुलीन विवाह के नियम के कारण एक और कुलीन परिवारों के लङकों की मांग अत्यधिक मद जाती है और जीवन साथ के तनाव का क्षेत्र भी सीमित रह जाता है। इस स्थिति में वर-पक्ष को कन्या-पक्ष से अधिक दहेज प्राप्त करने का अवसर मिल जाता है।

(4) बाल-विवाह भारत में बाल –

विवाहों का अत्यधिक प्रचलन होने के कारण माता-पिता लङकी की योग्यता को नहीं जा पाते। इस स्थिति में दहेज में दी गयी राशि की लङकी की योग्यता बन जाती है।

(5) दुष्चक्र –

दहेज एक दुष्चक्र है जिन लोगों ने अपनी लङकियों के लिए दहेज दिया है, बाद में वही लोग अपने अवसर आने पर अपने लङकों के लिए दहेज प्राप्त करना चाहते है। इसी प्रकार से लङके के लिए दहेज प्राप्त करके वे अपनी लङकियों के लिए देने के लिए उसे सुरक्षित रखना चाहते हैं।

(6) पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था –

भारतीय समाज हमेशा से ही पुरुष-प्रधान समाज रहा है। इस समाज में सभी परम्पराओं तथा व्यवहारों का निर्धारण पुरुष के पक्ष में ही होता है। दहेज प्रथा के द्वारा स्त्रियों पर पुरुषों के प्रभुत्व को स्थापित करने का प्रयास किया गया है। कई लोगोें ने दहेज प्रथा का विरोध भी किया है लेकिन जब कभी इसका विरोध किया गया था तब उन्हें कालान्तर में अनेक असमर्थताओं का सामना करना पङा था। इसी कारण दहेज प्रथा की वास्तविक सुधार नहीं हो सका।

(7) सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक –

अधिकतर परिवार दहेज प्रथा को इसलिए प्रोत्साहन देते हैं क्योंकि वे यह सोचते है कि अगर हम अपनी लङकी को अधिक दहेज देंगे तो उनकी लङकी को अपने पति के संयुक्त परिवार में अधिक प्रतिष्ठा मिलेगी। कुलीन परिवार तो सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर सार्वजनिक रूप से दहेज की मांग करना अनुचित नहीं समझते।

(8) धन का महत्त्व –

वर्तमान में धन का महत्त्व बढ़ गया है और धन से ही व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का पता चलता है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है, उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। अधिक दहेज देने वाले व्यक्ति को भी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।

(9) माता-पिता का प्रभुत्व –

भारत में आज भी विवाह सम्बन्धों का निर्धारण करना माता-पिता का अथवा परिवार का दायित्व है, इसमें लङके और लङकी को कोई स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती। इस स्थिति में जीवन साथी के व्यक्तिगत गुणों की अपेक्षा उसके परिवार की दहेज की राशि को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

(10) प्रदर्शन एवं झूठी प्रतिष्ठा –

अपनी प्रतिष्ठा एवं शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते है ओर देते है।

(11) सामाजिक प्रथा –

दहेज का प्रचलन समाज में एक सामाजिक प्रथा के रूप में पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।

(12) अन्तर्विवाह –

अपनी ही जाति के अंदर विवाह करने के नियम ने भी दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया है, इसके कारण विवाह का क्षेत्र अत्यंत सीमित हो गया है। वर की सीमित संख्या की वजह से वर मूल्य बढ़ता गया है।

(13) विवाह की अनिवार्यता –

विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। शारीरिक रूप से कमजोर, असुन्दर व विकलांग कन्याओं के पिता अधिक दहेज देकर वर की तलाश करते है।

(14) संयुक्त परिवारों में स्त्रियों का शोषण –

स्मृति काल तक स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय हो गयी थी। संयुक्त परिवारों में नव वधुओं को सताया जाता था। इसी कारण कन्या पक्ष को ज्यादा धन देने लगे, जिससे परिवार में उसकी कन्या को अधिक सम्मान मिल सके।

दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम

वर्तमान समय में हमारे देश में दहेज-प्रथा अत्यन्त विकृत हो गई है। आजकल वर पक्ष वाले अधिक दहेज माँगते हैं। वे लङके के जन्म से लेकर पूरी पढ़ाई-लिखाई व विवाह का खर्चा माँगते हैं, साथ ही बहुमूल्य आभूषण एवं साज-सामान की माँग करते हैं। मनचाहा दहेज न मिलने से नववधू को तंग किया जाता है, उसे जलाकर मार दिया जाता है।

कई नव-वधुएँ आत्महत्या कर लेती हैं या दहेज के लोभी उसे घर से निकाल लेते हैं। इन बुराइयों के कारण आज दहेज-प्रथा समाज के लिए कलंक है। या तो कन्या को लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला-बाजारी आदि का सहारा लेना पङता है। नहीं तो उनकी बेटियाँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती है।

आज हम हर रोज समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि दहेज के लिए युवती रेल के नीचे कट कर मरी, किसी बहु को ससुराल वालों ने जिंदा जलाकर मार डाला, किसी बहन-बेटी ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या कर ली। ये सभी घिनौने परिणाम दहेज रूपी दैत्य के ही हैं।

दहेज प्रथा के बहुत से दुष्परिणाम हैं। जिन लङकियों को अधिक दहेज नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं होता, उन्हें कई प्रकार से तंग किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए बाध्य होकर कुछ लङकियाँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रुपया उधार लेना पङता है या अपनी जमीन व जेवरात, मकान आदि को गिरवीं रखना पङता है या बेचना पङता है। परिणामस्वरूप परिवार ऋणग्रस्त हो जाता है।

कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पङती है। बचत करने के चक्कर में परिवार का जीवन-स्तर गिर जाता है। दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरूप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पङता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पङता है। अपनी मर्जी का दहेज ना मिल पाने के कारण बहुत से लोग तलाक लेकर विवाह तक समाप्त कर देते हैं।

’’दहेज एक प्रथा नहीं व्यापार है

जो बेकसूर बेटी की जान है लेता

लालची लोगों का वो हथियार है’’

दहेज प्रथा, एक बुराई

प्राचीन समय में दहेज एक सभ्य तरीके से केवल बेटी को माता-पिता द्वारा प्रेमपूर्वक और सामथ्र्य के अनुसार उपहार स्वरूप दिया जाता था। भला उपहार देने में कैसी बुराई ? परन्तु आज दहेज प्रथा ने एक राक्षस का स्वरूप ले लिया है जो आए दिन बेटियों के अरमानों का गला घोंट रहा है।

dowry meaning in hindi

आज दहेज फैशन लालच और अभिमान को देखते हुए दिया और लिया जा रहा है। जितना योग्य दूल्हा होगा उसके माता-पिता द्वारा उतना ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता ही अधिक दहेज मांगा जाता है। यदि इस प्रकार से चलता रहा तो पढ़ी-लिखी व योग्य लङकियां धन की कमी के कारण एक योग्य जीवनसाथी से वंचित रह जायेगी।

दहेज-प्रथा में अपेक्षित सुधार

दहेज-प्रथा की बुराइयों को देखकर समय-समय पर समाज सुधारकों ने इस ओर ध्यान दिया है। भारत सरकार ने दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए दहेज प्रथा उन्मूलन का कानून बनाकर उसे सख्ती से लागू कर दिया है। अब दहेज देना व लेना कानूनन दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है। इस प्रकार दहेज प्रथा में सुधार लाने के लिए भारत सरकार ने जो कदम उठाये हैं, वे प्रशंसनीय है।

परन्तु नवयुवकों एवं नवयुवतियों में जागृति पैदा करने से इस कानून का सरलता से पालन हो सकता है। शिक्षा एवं संचार-प्रचार माध्यमों से जन-जागरण किया जा रहा है।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय

हालाँकि दहेज की बुराई को रोकने के लिए समाज में अनेक संस्थाएँ बनी हैं। युवकों को प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर भी करवाये गए हैं। परंतु समस्या ज्यों की त्यों है। इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। सरकार ने ’दहेज निषेध’ अधिनियम के अंतर्गत दहेज के दोषी के कङा दंड देने का विधान रखा है। परंतु आवश्यकता है – जन जागृति की।

जब तक युवा दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज-लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी। तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा। हमारे साहित्यकारों और कलाकारों को चाहिए कि वे युवकों के हृदय में दहेज के प्रति तिरस्कार जगाएँ।

स्त्री-शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाये ताकि वे पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनें और अपने प्रति होने वाले अत्याचारों का खुले रूप से विरोध कर सके। लङके व लङकियों को अपना जीवन-साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर अपने आप दहेज प्रथा समाप्त हो जायेगी। अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत से भी दहेज-प्रथा समाप्त हो सकेगी।

लङकों को स्वावलम्बी बनाया जाए और उन्हें दहेज ना लेने हेतु प्रेरित किया जाए। दहेज प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर कानूनों का निर्माण किया जाए एवं दहेज मांगने वालों को कङी-से-कङी सजा दी जाए। वर्तमान में ’दहेज निरोधक अधिनियम, 1961’ लागू है, परन्तु इसे संशोधित करने की आवश्यकता है।

हमारे समाज में प्रारम्भिक काल में दहेज का स्वरूप अत्यन्त उदात्त था, परन्तु कालान्तर में रूढ़ियों एवं लोभ-लालच के कारण यह सामाजिक अभिशाप बन गया। यद्यपि ’दहेज-प्रथा उन्मूलन’ कानून बनाकर सरकार ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के प्रयास किये हैं, परन्तु इसे जन-जागरण से ही समाप्त किया जा सकता है।

दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने हेतु सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। हम सभी को मिलकर अपनी सोच बदलनी होगी। लङकों को दहेज ना लेेने हेतु प्रेरित करना होगा और लङकियों को पढ़ा-लिखा कर सशक्त और काबिल बनाना होगा तभी दहेज प्रथा का समूल नाश हो पायेगा।

’’दहेज प्रथा का सब मिलकर करो बहिष्कार, समाज में आए समानता, फिर किसी को बेटी ना लगे इक भार।’’

’’दहेज की खातिर लङकी को मत जलाओ अगर वास्तव में मर्द हो तो कमाकर खिलाओ।।’’

’’कब तक नारी के अरमानों की चिता जलाई जाएगी कब तक नारी यूं दहेज की बलि चढ़ाई जाएगी।’’

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961

  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 20 मई 1961 को अधिनियमित हुआ था तथा 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ था।
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उद्देश्य – यह अधिनियम दहेज का देना या लेना प्रतिषिद्ध करने के लिए बनाया गया है।
  • इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ है।
  • इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत में है।
  • इस अधिनियम को राष्ट्रपति की स्वीकृति – 20 मई 1961 को मिली थी।
  • दहेज लेना एवं देना ’दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961’ के अंतर्गत अपराध है।

dahej pratha per nibandh

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धाराएं

  • धारा 1 – दहेज का संक्षिप्त नाम और विस्तार है।
  • धारा 2 – दहेज का अधिनियम की धारा 2 में पारिभाषित किया गया है। इस अधिनियम में दहेज से कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति अभिप्रेत है, जो विवाह के समय या उसके पूर्व या पश्चात् विवाह के एक पक्षकार द्वारा विवाह के दूसरे पक्षकार को दिया या लिया जाता है। इसके अंतर्गत विवाह के संबंध में या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिया गया हो या देने के लिए करार किया गया हो शामिल है, यह दहेज कहलाता है।
  • धारा 3 – दहेज देने या लेने के लिए शास्ति यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् दहेज देगा या लेगा अथवा दहेज देना या लेना दुष्ट प्रेरित करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि 5 वर्ष से कम ही नहीं होगी और जुर्माने से जो 15000 से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का इनमें से जो भी अधिक हो, दंडनीय होगा।
  • धारा 4 (क) – विज्ञापन पर निषेध – दहेज के विज्ञापन पर पाबंदी है ऐसा करने पर कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किंतु जो 5 वर्ष तक हो सकती है या जुर्माने से जो 15000 रु. तक होना दण्डनीय अपराध है।
  • धारा 5 – दहेज देने या लेने के लिए करार शून्य होता है।
  • धारा 6 – दहेज पत्नी या उसके उत्तराधिकारियों के फायदे के लिए होना।
  • धारा 7 – अपराधों संज्ञान – दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुसार अपराधियों का संज्ञान प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट ले सकेंगे।
  • धारा 8 – इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक अपराध अजमानती और अशमनिय होता है।
  • धारा 9 – नियम बनाने की शक्ति – केंद्र सरकार अधिनियम के संबंध में नियम बना सकती है केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया। प्रत्येक नियम यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष 30 दिन की अवधि के लिए रखा जायेगा।

आज के आर्टिकल में हमने दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढ़ा। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan), दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay), दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961)  के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। हम आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी…धन्यवाद

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दहेज़ प्रथा एक अभिशाप पर निबंध (Dahej Pratha Essay In Hindi)

दहेज़ प्रथा एक अभिशाप और सामाजिक कलंक पर निबंध (dahej pratha essay in hindi).

दहेज़ प्रथा एक कुप्रथा है जो सदियों से चली आ रही है। यह कुप्रथा एक अभिशाप से कम नहीं है। दहेज़ प्रथा की वजह से ना जाने कितनी नयी दुल्हनों और महिलाओं ने अपनी जान गवाई है। दहेज़ यानी शादी के वक़्त या उससे पहले लड़की वालो की तरफ से दिए जाने वाले कीमती उपहार और नकद राशि, कार इत्यादि महंगी चीज़ें।

दहेज़ प्रथा इस प्रकार समाज में प्रचलित हो गयी है, कि लोग नहीं चाहते उनके घर पर बेटी पैदा हो। बेटी पैदा होने पर उन्हें दहेज़ के लिए पैसा जोड़ना पड़ेगा, इसलिए माता पिता लड़की के जन्म होने से पहले माँ की कोख में अपने बच्चे को मार देते है। यह एक निंदनीय अपराध है और लड़कियों के प्रति लोगो की गलत मानसिकता दर्शाता है।

आजकल लड़के वाले दहेज़ ना मिलने पर विवाह से ही मना कर देते है। आजकल के विवाहो में लड़के की आय जितनी अधिक होती है उसके अनुसार उसे उतना दहेज़ मिलता है। दहेज़ प्रथा गरीब, मध्यम वर्गीय और सभी वर्गों में प्रचलित हो गया है।

आज कल हर परिवार को सुन्दर, काबिल और सर्वगुण संपन्न लड़की चाहिए। अगर किसी लड़की में कोई कमियां हो जैसे सांवला रंग या किसी प्रकार की कोई समस्या होती है, तो उसका विवाह जल्द नहीं हो पाता है।

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Dahej Pratha- दहेज प्रथा एक अभिशाप निबंध

HP Jinjholiya

भारत देश विश्व मे यह बात तो बताता है कि महिलाएं देवी स्वरूप होती है परन्तु देश मे महिलाओं के खिलाफ काफी दुर्व्यवहार किये जाते है जिसमें असमानता, कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा और इसी में एक और प्रथा का नाम आता है वह है “दहेज प्रथा(Dahej Pratha)”

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) भारत मे लम्बें समय से चली आ रही एक ऐसी प्रथा हैं जिसमें विवाह के समय दुहले को पैसे, आभूषण, गहने, फनीर्चर, गाड़ी, इत्यादि संपत्ति देने की प्रक्रिया को दहेज प्रथा(Dahej Pratha) के नाम से जानना जाता है जिसका चलन दुनिया के कई देशों में है।

भारत इस विश्व का सबसे प्राचीन देश है जो आज के वक्त तरक्की के नए मुकाम लिख रहा है औऱ कहते हैं समय के साथ इंसान और देश दोनों बदलतें हैं यह बात सत्य है भारत देश और भारतीय दोनों काफी बदल गए हैं परन्तु अभी तक देहज प्रथा जैसी कुर्तियां जैसे कि तैसी हैं जिसमें ज्यादा बदलाव नही हुआ है।

हालत यह है कि आज के समय मे विवाह के समय दुहले को पैसे, आभूषण, गहने, फनीर्चर, गाड़ी, इत्यादि संपत्ति देने की प्रथा चल रही हैं औऱ बहुत बार यह सुन को भी मिलता है कि दुहले या दुहले के परिवार ने शादी के लिए कार, बाइक, आभूषण, नगद पैसे इत्यादि की मांग की है।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) समाज के लिए एक खतरनाक बीमारी की तरह हैं जिसका इलाज करने की आवश्यकता हैं क्योंकि यह कई बार कई ज़िंदगी बर्बाद कर देती है आज हम आपको देहज प्रथा पर अगल-अलग लम्बाई के निबंध प्रदान करने वाले हैं उम्मीद यह आपको पसंद आयगे।

  • 1 दहेज प्रथा(Dahej Pratha) पर निबंध 150 शब्दों में
  • 2.1 दहेज प्रथा के मुख्य कारण
  • 3.1 दहेज प्रथा के गुण
  • 3.2 दहेज प्रथा के अवगुण
  • 4.1 दहेज प्रथा का अर्थ
  • 4.2 कब रखा प्रथा ने कदम
  • 4.3 दहेज प्रथा(Dahej Pratha) हत्यारी
  • 5.1 परंपरा है जी!
  • 5.2 इज्जत का सवाल है
  • 5.3 कानून कहाँ है?
  • 5.4 धाराएं दहेज प्रथा के खिलाफ
  • 6.1 शिक्षा है जरूरी
  • 6.2 महिलाएं खुद पर निर्भर होना सीखें
  • 6.3 बचपन से समानता सिखाएं

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) पर निबंध 150 शब्दों में

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) हमारे समाज के लिए एक अभिशाप की तरह हैं जो स्त्रीयों के साथ समाज में भेदभाव उत्पन्न करती हैं यह बीमारी मूलरूप से लालच की देन हैं जिसके लिए बेटियों के परिवारों पर विवाह करने पर सम्पति के रूप में नगद औऱ अन्य रूप में पैसों की डिमांड की जाती है।

आज आधुनिक दौर में भी यह प्रथा चल रही हैं जिसे आज समाजिक रूप से मान्यता प्रदान कर दी गई है क्योंकि लगता है समाज ने इसे स्वीकार कर लिया है इसलिए बिना दहेज के देश भर में एका-दुका ही शादियां देखने को मिलती हैं।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) एक उपहार स्वरूप शरू हुई थीं जिसे अपनी मर्ज़ी और ख़ुसी अनुसार उपहारों को भेंट किया जाता हैं परन्तु आज स्थिति यह हो चुकी हैं कि इच्छा हो या न हों, आर्थिक स्थिति सही ही या न हों लेक़िन दहेज आमबात हो चुकी हैं और साथ ही जो दहेज जितना अधिक देता हैं उसका मान सम्मान समाज मे बढ़ता है यह मानसिकता समाज में बन चुकी हैं जिसके कारण दहेज प्रथा का चलन बढ़ता जा रहा हैं।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) पर निबंध 300 शब्दों के साथ

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) भारत में महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाली कई कुप्रथाओं में से एक है इस प्रथा में लड़की के परिवार के सदस्य अर्थात लड़की के माता-पिता उसकी शादी में उसके ससुराल वालों को धन लाभ देते हैं और दहेज देने की कोई सीमा नहीं होती हैं।

इसलिए कई मौकों पर लड़के के परिवार वाले इस बात का फायदा उठा लेते हैं और दुल्हन के परिवार वालों की आर्थिक स्थिति जानते हुए भी दहेज के लिए दबाव बनाते हैं कई बार दबाव इस कदर नई नवेली दुल्हन पर हावी हो जाता हैं कि उन्हें मौत को गले लगाना को विवश हो जाती है।

ऐसे नही है कि भारत सरकार द्वारा दहेज प्रथा के लिए कोई कानून नही बनाये गए हैं परंतु वह काननू सिर्फ़ किताबों के पन्नों तक ही सीमित हैं क्योंकि जमीनी स्तर पर इनका कोई लाभ होता दिखाई नहीं देता हैं या फिर सरकार कानून बनाकर भूल गयी है।

भारत की कई जगहों पर तो हालात यह है कि रिश्ते-नाते जुड़ने से पहले ही विवाह के लिए लड़के वाले अपनी डिमांड बता देते हैं औऱ जो उनकी डिमांड पूरी कर पाते है वह उनके साथ ही अपने लड़के के विवाह करते है हालांकि दहेज प्रथा(Dahej Pratha) को एक उपहार स्वरूप शरू किया गया था लेक़िन आज यह एक घातक बीमारी बन चुकी है जिसका शिकार कई परिवार होते हैं जिसे उनकी ज़िंदगी तहस-नहस हो जाती है।

दहेज प्रथा के मुख्य कारण

1. दहेज प्रथा(Dahej Pratha) को आज पंरपरा का रूप प्रदान कर दिया गया हैं

2. दहेज में अधिक से अधिक देने की प्रथा से समाज मे सम्मान बढ़ाता है यह मानसिकता पैदा हो गईं है।

3. दहेज प्रथा के लिए बनाये गए काननू का शक्ति से पालन नही किया जाता इसलिए यह चलन बढ़ता जा रहा है।

4. समाज मे अपनी प्रतिष्ठा बने के लिए कुछ लोग दहेज देते हैं

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) पर निबंध 500 शब्दों के साथ

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) भारत की धरती पर लगा ऐसा श्राप है जिससे भारत देश की छवि काफी धूमिल हो चुकी है क्योंकि माँ-बेटियों को देवी कहने वाला यह देश तब अपने चेहरे से पर्दा हटाने पर मजबूर हो जाता है जब बेटियों के विवाह में बेटियों के घर वाले दूल्हे के घर वालों को राशि अदा करते हैं जिससे बेटियों की शादी-विवाह नहीं बल्कि एक व्यापार लगता है।

दहेज प्रथा एक जिस्म में लगे दाग जैसा है जो धुलने के बावजूद मिटता नहीं रहा है भारत माँ के जिस्म पर लगा इस दाग को मिटाना यहाँ के नागरिकों की जिम्मेवारी है परन्तु मिटाने का कष्ट कौन करें? क्योंकि भारत में भिन्न-भिन्न सोच के लोग रहते हैं और कुछ इस प्रथा को सही मानते हैं तो कुछ गलत? इसलिए हमें यह जानना होगा कि क्या इस देहज प्रथा का कोई गुण भी हैं या सिर्फ अवगुणों ने ही इस पर राज किया हुआ है।

दहेज प्रथा के गुण

दुनिया में मौजूद हर शख्स हर परिस्थितियों को दो भिन्न-भिन्न नजरों से देखता है और समझता है। हम एक नजर से किसी प्रथा को गलत ठहरा सकते हैं परन्तु दूसरी नजर से समझेंगे तो शायद उसी प्रथा को बेहतर समझ सके। दहेज प्रथा भी कुछ ऐसा ही स्थान रखती है एक नजर से यह प्रथा गलत लगती है तो वहीं दूसरी नजर से बेहतर दिखती है।

आज के वक्त में कुछ नए जोड़ो के लिए दहेज प्रथा काफी लाभदायक सिद्ध हो रही है दरअसल आज के युग में अधिकांश युवा शादी के बाद अपनी नई ज़िन्दगी शरू करने में मदत मिलती है इसलिए दहेज प्रथा ऐसे जोड़ो के लिए अच्छा लाभ पहुंचाती है। दहेज में मिली हुई राशि या कोई वस्तु उन जोड़े को अपनी नई जिंदगी शुरू करने में मदद करती है।

दहेज प्रथा के अवगुण

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) की गिनती भारतीय समाज में उन प्रथाओं में गिनी जाती है जो खुद एक समस्या होने के बावजूद अनेक समस्याओं को आमंत्रित करती है जैसे कि दहेज प्रथा के कारण लड़की के परिवार वालों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। लड़की के परिवार वाले लड़की के जन्म से ही उसकी शादी के बारे में चिंतित हो जाते हैं। कुछ परिवार वाले तो सक्षम होते हैं खर्चा उठाने के लिए परन्तु जो परिवार वाले सक्षम नहीं होते हैं वह अपनी फूल सी परी को खुद से अलग कर देते हैं जिसे आप कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

कुल मिलाकर दहेज प्रथा(Dahej Pratha) के गुण और अवगुण दोनों मौजूद है परन्तु गुण सिर्फ एक ही है लेकिन अवगुण काफी अधिक है। दरअसल एक कहावत काफी मशहूर है “जब समस्या आती है तो एक नहीं आती बल्कि एक साथ दो या उससे अधिक आती है।” यह इस प्रथा पर भी लागू होती है और सच्चाई यही है कि दहेज प्रथा वाकई में एक गलत प्रथा है यह समाज में लड़का-लड़की में भेदभाव का मुख्य कारण बनता है। समाज में फैली हर कृतियों का अंत होना बेहद आवश्यक है ताकि भारत देश नई ऊंचाइयों को छूने में सक्षम बन सके।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) पर निबंध 1000 शब्दों के साथ

स्त्री यानी महिला दुनिया एवं देश की इज्जत है जिस देश में महिलाओं का आदर सम्मान किया जाता हो वह देश तरक्की के नए रास्ते ढूंढ ही लेता है और प्राचीन समय से भारत में स्त्रियों की उपाधि देवी के रूप में दी जाती है परन्तु दुर्भाग्य यह है कि इसी देश में कुछ माता-पिता भगवान से यह प्रार्थना करते हुए पाए जाते हैं कि उन्हें लड़की नहीं लड़का चाहिए।

लड़कियों पर समाज मे कई पाबंदी को बढ़ावा दिया जाता है एवं उन्हें बोझ समझा जाता है और कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, लड़का-लड़की में भेदभाव यह सब अत्याचार लड़कियों से किए जाते हैं इन्हीं अत्याचारों में एक प्रथा के नाम पर दहेज प्रथा भी चलाई जाती है।

दहेज प्रथा का अर्थ

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) भारतीय समाज में इस्तेमाल की जाने वाली एक ऐसी कुप्रथा है जिसके तहत वधु के माता-पिता वर के घरवालों को लाभ के रूप कई प्रकार की वस्तु प्रदान करते है यह लाभ धन या आभूषण या वाहन के रूप में दिए जाते हैं और वह प्रथा प्राचीन समय से चलती आ रही हैं वर्तमान स्थिति में भी यह काफ़ी फलफूल रही है।

कब रखा प्रथा ने कदम

भारत से जुड़े इतिहास की किताबें या इतिहासकारों से खोजने की कोशिश करेंगे तो भी इस प्रथा की शुरुआत असल में कौन से युग में हुई थी इसका पर्याप्त उत्तर तो शायद नहीं मिल पाए परन्तु भारत देश में हिन्दू धर्म के ग्रंथ महाभारत और रामायण में इसका उल्लेख मिल जाता है।

इन ग्रंथों के मुताबिक जब कंस की बहन देवकी जी की शादी वासुदेव जी से हुई तब देवकी जी की खुशी हेतु कंस ने देवकी जी के लिए काफी वस्तुएं और धन लाभ दिए ताकि उनकी बहन अपना नया जीवन बेहद खुशी से व्यतीत कर पाएं। इसके साथ रामायण में जब अयोध्या के राजा राम जी का विवाह देवी सीता से होने जा रहा था तब सीता माँ के पिता जनक ने राम जी को कई आभूषण भेंट किए।

लेकिन उस वक्त इस्तेमाल किए जाने वाली यह प्रथा एक सकारात्मक भूमिका निभाया करती थी लेकिन वक्त के साथ इस प्रथा ने अलग ही रूप धारण कर लिया अब इस प्रथा ने अपना मोड़ नकारात्मक की ओर मोड़ लिया है।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) हत्यारी

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) का आरंभ उपहार के लिए हुआ था लेकिन अब यह प्रथा कई हत्यारों के आरोप में घिरी हुई है अगर एक शोध के मुताबिक देखा जाए तो दहेज प्रथा से तंग आकर मौत के आंकड़े में काफी इजाफा हुआ है खासकर साल 2007 से साल 2011 तक।

और 2012 में तो उस शोध के मुताबिक भारत में 8,233 मामलें सामने आए जिसमे दहेज मौत की अहम वजह थी अर्थात प्रति घंटे एक महिला देश को अलविदा कह जाती है दहेज प्रथा से पीड़ित होकर।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) अभी तक क्यों चल रही है?

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है और इसके बारे में हर भारतीय जानता है और इसके दुष्परिणाम को भी जानते हैं लेकिन फिर भी यह प्रथा सालों से शादी में जरूरी रस्म के तौर पर इस्तेमाल में लाई जाती है। आखिर क्या कारण है कि इस प्रथा की नकारात्मक तस्वीरों को देखने के बावजूद इस प्रथा का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। जिनमें से कुछ कारण निम्मनलिखित हैं।

परंपरा है जी!

भारत मे हर प्रथा हर रस्म को निभाने का सबसे मुख्य कारण परंपरा है। हर विवाह समारोह में यह सुनने में जरूर आता है कि ‘हमारे पूर्वजों ने यह परंपरा बनाई है तो इसमें गलती नहीं होगी’ यही सोचते हुए ऐसी प्रथाओं का चलन आम रहता है। कई परंपरा दुनिया के सामने गलत साबित हो चुकी होती है लेकिन उसके बावजूद कोई इसके खिलाफ उंगली उठाने से परहेज करते हैं और परंपरा के आड़ में प्रथा को निभाने पर मजबूर हो जाते हैं।

इज्जत का सवाल है

हर इंसान को खुद की इज्जत बेहद प्यारी होती है। इंसान हर दिन एक मौके की तलाश में रहता है ताकि वह अपनी इज्जत समाज में बढ़ा सके लेकिन यही इज्जत बनाने की रेस में बने रहने के लिए लड़की के घरवाले भेंट में कार, फर्नीचर या अन्य महंगे सामानों को दहेज के रूप में भेंट कर देते हैं उनमें से अधिकांश सामान तो केवल समाज में इज्जत बनाने के लिए किए जाते हैं जबकि यह महंगे भेंट किए गए सामान कभी उन्होंने खुद के लिए भी नहीं खरीदे होते।

कानून कहाँ है?

भारत में हर दुष्ट कार्य करने वाले जेल में हो अगर भारत का कानून मजबूत हो हालांकि भारत सरकार ने कानून में कई संशोधन करते हुए सख्त कानून बनाए हैं जिससे दहेज प्रथा में अपराधियों को कड़ी सजा मिले लेकिन इन कानूनों को सख्ती से पालन नहीं किया जाता और साथ ही ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अधिकांश लोगों को कानून के बारे में ज्ञान नहीं जो जिसका मुख्य कारण भी है।

धाराएं दहेज प्रथा के खिलाफ

दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत जो परिवार दहेज लेने या दहेज देने का काम करता है तो वह 5 साल जेल और रुपए 15000 जुर्माना देने का हकदार है। यह प्रावधान हालांकि काफी पुरानी है पर कानून मौजूद है।

धारा 498-A दहेज उत्पीड़न को रोकने में कारगर है। इस धारा के अंतर्गत अगर वधु के पति या उसके रिश्तेदार अगर वधु से उसके आर्थिक स्थिति से महंगी वस्तु को मांगने की जिद करते हैं तो वे कानून के तहत 3 साल जेल और जुर्माने के हकदार हैं। धारा 406 भी कानून में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस धारा के तहत अगर वर के परिवार वाले वधु के परिवार वालों की तरफ से दिए गए दहेज को वधु को समर्पित नहीं करते तो उन्हें 3 साल की जेल या जुर्माना देना होगा।

दहेज प्रथा(Dahej Pratha) समस्या का समाधान

समाज में समस्या है तो उसके समाधान भी आपके आसपास ही मौजूद है बस आपको उसे अपनी आंखों से तलाशना है। दहेज प्रथा कोई नई प्रथा नहीं है यह काफी पुराने समय से भारत में इस्तेमाल में लाई जाती है। अब दहेज प्रथा की समाधान पर नजर डालिए जो निम्मनलिखित है

शिक्षा है जरूरी

शिक्षा में इस समाज में फैली हर बुराई का जवाब है। शिक्षित व्यक्ति बाकी व्यक्तियों से अधिक हर परिस्थितियों को अपने तरह से सोचने और समझने की ताकत रखता है। शिक्षित होने का सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि शिक्षित व्यक्ति दहेज प्रथा जैसी अन्य प्रथा का मूल रूप समझ सकता है।

महिलाएं खुद पर निर्भर होना सीखें

आज के वक्त की महिलाएं खुद पर निर्भर होना जानती हैं और उन्हें खुद पर निर्भर होना आना भी चाहिए। हर लड़की के परिवार को सबसे पहले लड़की की शिक्षा पर और उसके बाद लड़की को जॉब दिलाने में कोशिश करना चाहिए ताकि लडकिया खुद पर निर्भर हो सके और शादी के बाद भी जॉब करें।

बचपन से समानता सिखाएं

पुरुष और स्त्रियां एक ही हैं जो कार्य को पुरुष जितनी बेहतर तरीके से कर सकते हैं ठीक उतने ही बेहतर तरीके से महिलाएं भी कर सकती है। यह सब परिवार वालों को बचपन से समझाना चाहिए। क्योंकि जो बातें बचपन मे सिखाई जाती है वह बातें लंबे समय तक ध्यान में रहती है!

तो दोस्तों हमने आपको  दहेज प्रथा(Dahej Pratha) के बारे में अलग-अलग लंबाई के निबंध लिखे हैं  अगर आपको हमारे यह निबंध पसंद आते हैं तो आप अपनी आवश्यकता के अनुसार इनका इस्तेमाल कर सकते हैं और साथ ही कुछ उलटफेर करके भी आप इन सोशल मीडिया निबंध का इस्तेमाल कर सकते हैं

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दहेज़ प्रथा पर निबंध - Dahej Pratha Essay in Hindi - Dahej Pratha Par Nibandh - Essay on Dahej Pratha in Hindi Language

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रुपरेखा : प्रस्तावना - दहेज-प्रथा का इतिहास - दहेज प्रथा कानून - दहेज निषेध अधिनियम, 1961 - घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 - दहेज प्रथा का निवारण - उपसंहार।

भारत में शादियों हमेशा से एक खर्चीली एवं कष्टकर सामाजिक रोति मानी जाती रही है। इसमें आकर्षक सजावट, शानदार भोज, प्रकाश-व्यवस्था, बहुमूल्य उपहार आदि कीमती वस्तु शामिल रहते हैं। दूल्हे का परिवार बहुत खुश रहता है। वे दुल्हन और लाखो रुपए के उपहार के साथ घर जाते हैं। वे अपने पीछे दुल्हन के चिंतित परिवार को छोड़ जाते हैं। यही आधुनिक भारतीय शादी है। शादियों में दिए जाने वाले सभी उपहार ‘दहेज' की श्रेणी में आते है। और, इस प्रकार यह दहेज प्रथा कई पीढ़ियों से चली आ रही है।

पहले के समय में माता-पिता अपनी पुत्रियों की शादी में जरूरी घरेलू चीजें दिया करते थे। कई परिवार कुछ सोना और चाँदी भी देते थे। यह उसके भविष्य को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से किया जाता था। यह सब उनके अपने स्तर के अनुसार किया जाता था। परंतु धीरे-धीरे यह एक रिवाज हो गया। अब दूल्हे का परिवार जो माँगता है, उसे दुल्हन के परिवार को देना पड़ता है चाहे उनको उसके लिए किसी से कर्जा लेना पड़ जाये या अपना घर गिरवी रखना पद जाए। उन्हें किसी भी हाल में उसकी व्यवस्था करनी पड़ती है। उन्हें इसके लिए उधार धन या कर्ज का सहारा लेने पर मजबूर कर देते हैं।

दहेज प्रणाली भारतीय समाज में सबसे क्रूरता सामाजिक प्रणालियों में से एक है। इसने कई तरह के मुद्दों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, लड़की को लावारिस छोड़ना, लड़की के परिवार में वित्तीय समस्याएं, पैसे कमाने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करना, बहू का भावनात्मक और शारीरिक शोषण आदि सामाजिक पाप को जन्म दिया है। इस समस्या को रोकने के लिए सरकार ने दहेज को दंडनीय अधिनियम बनाते हुए कानून बनाए हैं।

यहां इन कानूनों पर विस्तृत रूप से नज़र डालिए और इसकी गंभीरता को समझिये :

दहेज की बढ़ती समस्या को देख तथा दहेज के खिलाफ रोकथाम करने के लिए यह अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से दहेज देने और लेने की निगरानी करने के लिए एक कानूनी व्यवस्था लागू की गई थी। इस अधिनियम के अनुसार दहेज लेन-देन की स्थिति में जुर्माना लगाया जा सकता है। सजा में कम से कम 5 वर्ष का कारावास और 20,000 रुपये तक का न्यूनतम जुर्माना या दहेज की राशि के आधार पर शामिल है। दहेज की मांग दंडनीय है। दहेज की कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मांग करने पर भी 6 महीने का कारावास और 15,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

देश में बढ़ती घरेलु हिंसा को देखते हुए तथा महिला सुरक्षा पर ध्यान के लिए यह अधिनियम बनाया गया है। देश में कई परिवार ऐसे है जहाँ महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार होती है। महिलाओं के साथ अपने ससुराल वालों की दहेज की मांग को पूरा करने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है। इस तरह के दुरुपयोग के खिलाफ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए इस कानून को लागू किया गया है। यह महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है और घरेलु हिंसा के खिलाफ लड़ना सिखाता है। शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक और यौन सहित सभी प्रकार के दुरुपयोग इस कानून के तहत दंडनीय हैं।

सरकार द्वारा बनाए गए सख्त कानूनों के बावजूद दहेज प्रणाली की अभी भी समाज में एक मजबूत पकड़ है और आये दिन कई महिलाएं इसका शिकार हो रहे है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए देश के हर व्यक्ति को अपना सोच बदलना होगा। हर व्यक्ति को इसके खिलाफ लड़ने के लिए महिला को जागरूक करना होगा।

दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए तथा इसके खिलाफ लोगों के अंदर जागरूकता लाने के लिए यहां कुछ समाधान दिए गए हैं जिसे सभी गंभीरता से पढ़े और उसपे अमल करे :

दहेज-प्रथा, जाति भेदभाव और बाल श्रम जैसे सामाजिक प्रथाओं के लिए शिक्षा का अभाव मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक है। देश में शिक्षा के कमी के होने के कारण आज देश में दहेज प्रथा जैसे क्रूरता सामाजिक प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है। लोगों को ऐसे विश्वास प्रणालियों से छुटकारा पाने के लिए तार्किक और उचित सोच को बढ़ावा देने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए जिससे ऐसे प्रथा समाप्त हो सके।

अपनी बेटियों के लिए एक अच्छी तरह से स्थापित दूल्हे की तलाश में और बेटी की शादी में अपनी सारी बचत का निवेश करने के बजाए लोगों को अपनी बेटी की शिक्षा पर पैसा खर्च करना चाहिए और उसे स्वयं खुद पर निर्भर करना चाहिए। अगर कोई महिला शादी से पहले काम करती है और उसे आगे भी काम करने की इच्छा है तो उसे अपने विवाह के बाद भी काम करना जारी रखना चाहिए और ससुराल वालों के व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के प्रति झुकने की बजाए अपने कार्य पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहिए। महिलाओं को अपने अधिकारों, और वे किस तरह खुद को दुरुपयोग से बचाने के लिए इनका उपयोग कर सकती हैं, से अवगत कराया जाना चाहिए।

हमारे समाज में मूल रूप से मौजूद लिंग असमानता दहेज प्रणाली के मुख्य कारणों में से एक है। बच्चों को बाल उम्र से ही लैंगिक समानता के बारे में सिखाना चाहिए। बहुत कम उम्र से बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि दोनों, पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकार हैं और कोई भी एक-दूसरे से बेहतर या कम नहीं हैं। युवाओं को दहेज-प्रथा को समाप्त करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्हें अपने माता-पिता से यह कहना चाहिए कि वे दहेज स्वीकार नहीं करें।

अभिभावकों को समझना चाहिए कि दहेज के लिए धन बचाने के बजाय उन्हें अपनी लड़कियों को शिक्षित करने के लिए खर्च करना चाहिए। माता-पिता को उन्हें वित्तीय रूप से स्वावलंबी बनाना चाहिए। दहेज मांगना या दहेज देना, दोनों ही भारत में गैर कानूनी और दंडनीय अपराध है। इसलिए ऐसे किसी भी मामले के विरुद्ध शिकायत की जानी चाहिए। युवाओं को दहेज-प्रथा को समाप्त करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्हें अपने माता-पिता से यह कहना चाहिए कि वे दहेज स्वीकार नहीं करें। क्योकि, शादी आपसी संबंध होती है। दोनों परिवारों को मिलकर साझा खर्च करना चाहिए। तभी सुखद विवाह और सुरती समाज हो पाएँगे तथा देश से दहेज प्रथा हमेशा के लिए समाप्त हो पाएंगे।

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भारत में दहेज प्रथा

  • 05 Jul 2021
  • सामान्य अध्ययन-I
  • महिलाओं की भूमिका
  • भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ

यह एडिटोरियल दिनांक 02/07/2021 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख “Breaking the chain” पर आधारित है। यह भारत में दहेज से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से संबंधित है।

दहेज एक सामाजिक बुराई है जिसके कारण समाज में महिलाओं के प्रति अकल्पनीय यातनाएँ और अपराध उत्पन्न हुए हैं तथा भारतीय वैवाहिक व्यवस्था प्रदूषित हुई है। दहेज शादी के समय दुल्हन के ससुराल वालों को लड़की के परिवार द्वारा नकद या वस्तु के रूप में किया जाने वाला भुगतान है।

आज सरकार न केवल दहेज प्रथा को मिटाने के लिये बल्कि बालिकाओं की स्थिति के उत्थान के लिये कई कानून ( दहेज निषेध अधिनियम 1961 ) और योजनाओं द्वारा सुधार हेतु प्रयासरत है।

हालाँकि इस समस्या की सामाजिक प्रकृति के कारण यह कानून हमारे समाज में वांछित परिणाम देने में विफल रहा है।

इस समस्या से छुटकारा पाने में लोगों की सामाजिक और नैतिक चेतना को प्रभावी बनाना, महिलाओं को शिक्षा तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना एवं दहेज प्रथा के खिलाफ कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना मददगार हो सकता है।

दहेज प्रथा का प्रभाव

  • लैंगिक भेदभाव: दहेज प्रथा के कारण कई बार यह देखा गया है कि महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है तथा उन्हें शिक्षा या अन्य सुविधाओं के संबंध में दोयम दर्जे की सुविधाएँ दी जाती हैं।
  • समाज के गरीब तबके प्रायः दहेज में मदद के लिये अपनी बेटियों को काम पर भेजते हैं ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें।
  • मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी बेटियों को नियमित रूप से स्कूल तो भेजते हैं लेकिन कॅरियर विकल्पों पर ज़ोर नहीं देते।
  • कई महिलाएँ अविवाहित रह जाती हैं: देश में लड़कियों की एक बेशुमार संख्या शिक्षित और पेशेवर रूप से सक्षम होने के बावजूद अविवाहित रह जाती है क्योंकि उनके माता-पिता विवाह पूर्व दहेज की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।
  • यह महिलाओं को केवल वाणिज्य के लेख (articles of commerce) के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध: कुछ मामलों में दहेज प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को जन्म देती है, इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल है।

आगे की राह 

  • निःसंदेह किसी कानून का निर्माण व्यवहार का एक पैटर्न निर्धारित करता है, सामाजिक विवेक को सक्रिय करता है और अपराधों को समाप्त करने में समाज सुधारकों के प्रयासों को सहायता प्रदान करता है।
  • हालाँकि दहेज जैसी सामाजिक बुराई तब तक मिट नहीं सकती जब तक कि लोग कानून के साथ सहयोग न करें।
  • यह बदले में उसे आर्थिक रूप से मज़बूत होने और परिवार में योगदान देने वाले एक सदस्य बनने में मदद करेगा, जिससे परिवार में सम्मान के साथ  उसकी स्थिति भी सुदृढ़ होगी।
  • इसलिये बेटियों को अच्छी शिक्षा प्रदान करना और उन्हें अपनी पसंद का कॅरियर बनाने के लिये प्रोत्साहित करना सबसे अच्छा दहेज है जो कोई भी माता-पिता अपनी बेटी को दे सकते हैं।
  •  केंद्र और राज्य सरकारों को लोक अदालतों, रेडियो प्रसारणों, टेलीविज़न और समाचार पत्रों के माध्यम से 'निरंतर' लोगों के बीच 'दहेज-विरोधी साक्षरता' को बढ़ाने के लिये प्रभावी कदम उठाया जाना चाहिये।
  •  दहेज प्रथा के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये युवा आशा की एकमात्र किरण हैं। उन्हें जागरूक करने और उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने के लिये उन्हें नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिये।
  •  लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये राज्यों को  जन्म, प्रारंभिक बचपन, शिक्षा, पोषण, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच आदि से संबंधित डेटा देखना चाहिये और उसके अनुसार रणनीति बनानी चाहिये।
  • बाल संरक्षण और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन का विस्तार करने, काम में भेदभाव को कम करने और कार्यस्थल के अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता है।
  • घर पर पुरुषों को घरेलू काम और देखभाल की ज़िम्मेदारियों को साझा करना चाहिये।

 निष्कर्ष

दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। इसलिये दहेज प्रथा की बुराइयों के प्रति समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह से जगाने की ज़रूरत है ताकि समाज में दहेज की मांग करने वालों की प्रतिष्ठा कम हो जाए।

 दृष्टि मेन्स प्रश्न:  दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि अनैतिक भी है। अतः दहेज प्रथा के दुष्परिणामों के प्रति सामाजिक चेतना जगाने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।

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Hindi Essay on “Dahej Pratha ” , ” दहेज-प्रथा : एक गंभीर समस्या ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

दहेज-प्रथा : एक गंभीर समस्या

Dahej Pratha Ek Gambhir Samasya

निबंध नंबर – 01

दहेज का बदलता स्वरूप –  भारतीय नारी का जीवन जिन समस्याओं का नाम सुनते ही कॉप उठता है – उनमें सबसे प्रमुख है – दहेज | प्ररंभ में दहेज़ कन्या के पिता दुवरा स्वेच्छा-से  अपनी बेटी को दिया जाता था | विवाह के समय बेटी को प्रोमोपहार देना अच्छी परंपरा थी | आज भी इसे प्रेम-उपहार देने में कोई बुराई नहीं है |

            दुर्भाग्य से आज दहेज-प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है | आज दहेज प्रेमवश देने की वास्तु नहीं, अधिकार पूर्वक लेने की वास्तु बनता जा रहा है | आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से जबरदस्ती पैसा, वस्त्र और वस्तुएँ माँगते हैं | यह माँग एक बुराई है |

            दहेज के दुष्परिणाम – दहेज़ के दुष्परिणाम अनेक हैं | दहेज़ के आभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती है | दूसरी और, अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतम वारों को खरीद लेती हैं | दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाना |

            गरीब माता-पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं | वे बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं | यहाँ तक कि रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चुकते |

            दहेज का राक्षसी रूप हमारे सामने तब आता है, जब उसके लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है | कभी-कभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे या तो घर छोड़कर मायके चली जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं | कई दुष्ट वर तो स्व्यं अपने हाथों से नववधू को जला डालते है |

            समाधान के उपाय – दहेज की बुराई को दूर करने के सचे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं | अतः वे विवाह की कमान अपने हाथों में लें | वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्व दें | विवाह ‘प्रेम’ के आधार पर करें, दहेज़ के आधार पर नहीं | कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है |

            लड़की का आत्मनिर्भर बनना – लड़कियों का आत्मनिर्भर बनना भी दहेज रोकने का एक अच्छा उपाय है | लडकियाँ केवल घरेलू कार्य में ही व्यस्त न रहें, बल्कि आजीविका कमाएँ ; नौकरी या व्यवसाय करें | इससे भी दहेज की माँग में कमी आयगी |

            कानून के प्रति जागरूकता – दहेज की लड़ाई में कानून भी सहायक हो सकता है | जब से ‘दहेज निषेद विधेयक’ बना है, तब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कम आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कमी आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब युवक-युवतियाँ स्वयं जाग्रत हों |

निबंध नंबर – 02 

दहेज-प्रथा (दहेज समस्या)

Dahej Pratha (Dahej Samasya)

दहेज से तात्पर्य उस धन, सम्पत्ति व अन्य पदार्थो से है जो विवाह में कन्या पक्ष की और से वर पक्ष को दिए जाते है | यह विवाह से पूर्व ही तय कर लिया जाता है | और कन्या पक्ष वाले कन्या के भविष्य को सुखी बनाने के लिए यह सब वर पक्ष को दे दिया करते है | प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति में विवाह को एक आध्यात्मिक कर्म , दो आत्माओ का मिलन, पवित्र संस्कार तथा धर्म –समाज का आवश्यक अंग माना जाता था | उस समय दहेज नाम से किसी भी पदार्थ का लेन-देन नही होता था | बाद में इस प्रथा का प्रचलन केवल राजा –महाराजाओं , धनी वर्गो व् ऊचे कुलो में प्रांरम्भ हुआ | परन्तु वर्तमान काल में तो यह प्रथा प्राय प्रत्येक परिवार में ही प्रारम्भ हो गई है |

दहेज प्रथा आज के मशीनी युग में एक दानव का रूप धारण कर चुकी है | यह ऐसा काला साँप है जिसका डसा पानी नही मांगता | इस प्रथा के कारण विवाह एक व्यापर प्रणाली बन गया है | यह देहज प्रथा हिन्दू समाज के मस्तक पर एक कलंक है इसने कितने ही घरो को बर्बाद कर दिया है | अनेक कुमारियो को अल्पायु में ही घुट-घुट कर मरने पर विवश कर दिया है | इसके कारण समाज में अनैतिकता को बढ़ावा मिला है तथा पारिवारिक संघर्ष बढ़े है | इस प्रथा के कारण समाज में बाल-विवाह, बेमेल-विवाह तथा विवाह –विच्छेद जैसी अनेको कुरीतियों में जन्म ले लिया है |

देहज की समस्या आजकल बड़ी तेजी से बढती जा रही है | धन की लालसा बढ़ने के कारण वर पक्ष के लोग विवाह में मिले दहेज से संतुष्ट नही होते है | परिणामस्वरूप वधुओ को जिन्दा जला कर मार दिया जाता है | इसके कारण बहुत से परिवार तो लडकी के जन्म को अभिशाप मानने लगे है | यह समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है | धीरे-धीरे सारा समाज इसकी चपेट में आता जा रहा है |

इस सामजिक कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए हमे भरसक प्रयत्न करना चाहिए | इसके लिए हमारी सरकार द्वारा अनेको प्रयत्न किए गए है जैसे ‘हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम’ पारित करना | इसमें कन्याओ को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार मिलने की व्यवस्था है | दहेज प्रथा को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया तथा इसकी रोकथाम के लिए ‘दहेज निषेध अधिनियम’ पारित किया गया | इन सब का बहुत प्रभाव नही पीडीए है | इसके उपरान्त विवाह योग्य आयु की सीमा बढाई गई है | आवश्यकता इस बात की है की उस का कठोरता से पालन कराया जाए | लडकियों को उच्च शिक्षा दी जाए , युवा वर्ग के लिए अन्तर्जातीय सके | अंत: हम सब को मिलकर इस प्रथा को जब से ही समाप्त कर देना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर सकता है |

निबंध नंबर – 03 

दहेज प्रथा : एक कुप्रथा

Dahej Pratha ek Kupratha

तीन वर्णों से मिकर बना ‘दहेज’ शब्द अपने आप में इतना भयानग, डरावना बन जाएगा कभी ऐसा इस प्रथा को प्रारंभ करने वालों ने सोचा तक न होगा। दहेह प्रभा हमारे देश में प्राचीनकाल से चली आ रही है। परंपराएं, प्रथांए, अथवा रीतिरिवाज मानव सभ्यता, संस्कृति का अंग है। कोई भी परंपरा अथवा प्रथा आरंभ में किसी न किसी उद्देश्य को लेकर जन्म लेती है, उसमें कोई न कोई पवित्र भाव अथवा भावना निहित रहती है पर जब उसके साथ स्वार्थ, लोभ अथवा कोई अन्य सामाजिक दोष जुड़ जाता है तो वही अपना मूल रूप खोकर बुराई बन जाती है। इसी प्रकार की एक सामाहिक परंपरा है-दहेज प्रथा।

प्रारंभ में विवाह के समय पिता द्वारा अपनी कन्या को कुद घरेलु उपयोग की वस्तुंए दी जाती थी ताकि नव दंपति को अपने प्रारंभिक गृहस्थ जीवन में कोई कष्ट न हो। कन्या का अपने पिता के घर से खाली हाथ जाना अपशकुन माना जाता था। उस समय दहेज अपनी सामथ्र्यनुसार स्वेच्दा से दिया जाता था।

जैसे-जैसे समय बदलता गया, जीवन और समाज में सामंती प्रथांए आती गई। यह प्रथा भी रूढ़ होकर एक प्रकार की अनिवार्यता बन गई और आज वह प्रथा भारत की एक भयंकर सामाजिक बुराई बन गई। आज वह पिता द्वारा अपनी कन्या को प्रेम वश देने की वस्तु नहीं वरन अधिकारपूर्वक लेने की वस्तु बन गई है।

आज पूरे भारत के सामाजिक जीवन को दहेज के दानव से अस्त-व्यस्त कर रख है। आए दिन समाचार पत्रों में दहेज के कारण होने वाली हत्याओं और आत्महत्याओं के दिल दहलाने वाले समाचार पढऩे को मिलते हैं। दहेज की मांग पूरी न होने के कारण अनेक नवविवाहिताओं को ससुराल वालों की मानसिक तथा शारीरिक कष्ट सहने पड़ते हैं।

दहेज के अभाव में योज्य कन्यांए अयोज्य वरों को सौंप दी जाती हैं तो दूसरी ओर अयोज्य कन्याओं के पिता धन की ताकत से योज्य वरों को खरीद लेते हैं। वन तो एक प्रकार खरीद-फरोख्त की वस्तु बनकर रहा गया है जिसके पास धन है प्रतिष्ठा है पद है वह अपनी कन्या के लिए योज्य से योज्य वर पा सकता है।

दहेज प्रथा के कारण आज परिवार में लडक़ी के जन्म पर दुख मनाया जाता है और पुत्र के जन्म पर बेहद खुशी। भारतीय समाज में जिस दिन से किसी परिवार में लडक़ी का जन्म हो जाता है तो उसके माता-पिता को उसी दिन से उसके विवाह की चिंता होने लगती है तथा वे अपना पेट काटकर अपनी बेटी को दहेज देने के लिए धना जोडऩे लगते हैं। यहां तक अनुचित तरीके से भी धन प्राप्त करने का प्रयास करने लगते हैं।

आश्चर्य तो तब होता है जब कोई पिता अपने पुत्र के विवाह पर दहेज की मांग करता है परंतु जब वही अपनी पुत्री का विवाह करता है, तो दहेज विरोधी बन जाता है।

दहेज एक ऐसी बुराई है जिसने न जाने कितने परिवारों को नष्ट किया है न जाने कितनी नववधुओं को आत्महत्या करने पर विवश किया है और कितनी युवतियों को दांपत्य जीवन के सुख से वंचित किया है।

सरकार ने दहेज विरोधी कानून भी बना रखा है, पर उसमें अनेक कमियां हैं जिनका लाभ उठाकर दहेज के लोभी अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं और कानून के शिकंजे से साफ बच जाते हैं।

दहेज प्रथा की बुराई को केवल कानून द्वारा रोक पाना संभव नहीं है। इस बुराई को दूर करने के लिए युवा-पीढ़ी को सामने आना होगा तथा दहेज न लेने-देने का प्रण करना चाहिए। साथ ही लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा तथा कन्या को शिक्षित व अपने पैरों पर खड़ी होगी तभी वह दहेज की मांग का विरोध करने में सक्षम होगी।

हर्ष का विषय है कि देश के युवा वर्ग में इस समस्या के प्रति अरुचित का भाव जागृत हुआ है।आज के शिक्षित युवक युवतियां अपने जीवन साथी के लिए चयन में भागीदार हो रहे हैं तथा दहेज का विरोध करने के लिए प्रेम-विवाह भी होने लगे हैं।

दहेज की प्रथा के लिए दीपक है जिसे जन जागरण द्वारा हल किया जा सकता है। समाचार पत्र, दूरदर्शन, चलचित्र आदिइस प्रकार के जनजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

निबंध नंबर – 04

दहेज प्रथा: एक अभिशाप

Dahej Pratha Ek Abhishap

प्रातःकाल जब हम समाचार-पत्र खोलते हैं तो प्रतिदिन यह समाचार पढ़ने को मिलता है कि आज दहेज के कारण युवती को प्रताड़ित किया तो कभी उसे घर से निकाल दिया या फिर उसे जला कर मार डाला। दहेज प्रथा हमारे देश और समाज के लिए अभिशाप बन गई है। यह प्रथा समाज में सदियों से विदय्मान है। सामाजिक अथवा प्रशासनिक स्तर पर समय-समय पर इसे रोकने के लिए निरंतर प्रयास भी होते रहे हैं परंतु फिर भी इस कुप्रथा को दूर नहीं किया जा सका है। अतः कहीं न कहीं इस कुत्सित प्रथा के पीछे पुरूषों का अहंय लोभ एंव लालच काम कर रहा है।

प्रारंभ में पिता अपनी पुत्री के विवाह के समय उपहार स्वरूप घर-गृहस्थी से जुड़ी अनेक वस्तुएँ सहर्ष देता था। इसमें वर पक्ष की ओर से कोई बाध्यता नहीं होती थी। धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलता चला गया और आधुनिक समय में यह एक व्यवसाय का रूप ले चुका है। विवाह से पूर्व ही वर पक्ष के लोग दहेज के रूप में वधू पक्ष से अनेक माँगें रखते हैं जिनके पूरा न होने के आश्वासन के पश्चात् ही वे विवाह के लिए तैयार होते हैं। किसी कारणवश यदि वधू का पिता वर पक्ष की आकांक्षाओं पर खरा नही उतरता तो वधू को उसका दंड आजीवन भोगना पड़ता है। कहीं-कहीं तो लोग इस सीमा तक अमानवीयता पर आ जाते है कि इसे देखकर मानव सभ्यता कलंकित हो उठती है।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम हो सबसे अधिक उन लड़कियों को भोगना पड़ता है जो निर्धन परिवार की होती हैं। पिता वर पक्ष की माँगों को पूरा करने के लिए सेठ, साहूकारों से कर्ज ले लेता है जिसके बोझ तले वह जीवन पर्यंत दबा रहता है। कुछ लोगांे की तो पैतृक संपत्ति भी बिक जाती है। ऐसा नहीं है कि उच्च घरों के लोग इससे अछूत रहे हैं। उधर मनचाहा दहेज न मिलने पर नवयुवतियाँ प्रताड़ित की जाती हैं ताकि पुनः वापस जाकर वे अपने पिता से वांछित दहेज ला सकें। कभी-कभी यह प्रताड़ना बर्बरता का रूप लेती है जब नवविवाहिता को लोग जलाकर मार देते हैं अथवा उसकी हत्या कर देते हैं तथा उसे आत्महत्या का नाम देकर अपने कृत्यों पर परदा डाल देते हैं। कहीं-कहीं तो ऐसी स्थिति बन गई है कि दहेज के भय से अल्ट्रासाउडं द्वारा पता लगाकर लोग कन्याओं को जन्म से पूर्व ही मार देते हैं।

प्रशासनिक स्तर पर दहेज प्रथा को रोकने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। कानून की दृष्टि मे दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है। इसका पालन न करने वालो को कारावास तथा आर्थि जुर्माना भी वहन करना पड़ सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व एंव इसके पश्चात् भी समय-समय पर अनके समाज सुधारकों व समाज सेवी संस्थाओं ने इसके विरोध में आवाज उठाई है परंतु इतने प्रयासों के बाद भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिल सकी है।

दहेज प्रथा की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह केवल सरकार या किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा नहीं रोकी जा सकती अपितु सामूहिक प्रयासों से ही हम इस बुराई को नष्ट कर सकते हैं। विशेष तौर पर युवा वर्ग का योगदान इसमें अपेक्षित है। युवाओं को इसके दुष्परिणामों के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक होना पड़ेगा तथा अपने परिवार व समाज को भी इसके लिए जागरूक करना होगा। इसके अतिरिक्त हमें हर उस व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर बहिष्कृत करना होगा जो दहेज प्रथा का समर्थन करता है। निस्संदेह ऐसे प्रयासों से आशा की किरण जागेगी और पुनः हम दहेज प्रथा विहीन समाज को निर्माण कर सकेंगे। युवक-युवतियों को इस मामले में सर्वाधिक सजगता दिखानी होगी।

निबंध नंबर :- 05

दहेज प्रथा: एक सामाजिक अपराध Dahej Pratha – Ek Samajik Apradh

प्रस्तावना- हमारे देश में दहेज प्रथा एक सामाजिक अपराध माना जाता है। इस प्रथा के कारण विवाह एक व्यापार प्रणाली बन गया है। यह दहेज प्रथा हिन्दु समाज के मस्तक पर एक कंलक है। वैसे अब इस कुप्रथा के शिकार आम भारतीय धर्मोंे के लोग भी होने लगे हैं। आज के भौतिकवादी युग मंे दहेज की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष से अधिक से अधिक दहेज देने की आज होड़ लग चुकी हैं। यदि कन्या पक्ष इतना दहेज देने में असमर्थ रहते हैं तो वर पक्ष द्वारा लड़की पर अत्याचार किया जाता है। उसे यातनाएं दी जाती हैं तथा अपमानित किया जाता है। और तो और उसे जिन्दा जलाने का भी प्रयत्न किया जाता है। या वधू स्वयं तिरस्कृत और ताने सुनते हुए आत्महत्या कर बैठती है। इस प्रथा के कारण बहुत से परिवार लड़की के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं। यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इसके जन्मदाता हम खुद और हमारा समाज है जो सामाजिक स्तर ऊंख उठाने के ध्येय से दहेज देते हैं और उसमें अपनी शान समझते हैं। समय रहते इस कुप्रथा का निदान आवश्यक है, अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएं नष्ट हो जाएंगी और मानव मूल्य समाप्त हो जायेगा।

दहेज प्रथा का अर्थ सामान्यतः दहेज प्रथा का अर्थ उस सम्पति तथा वस्तुओं से है जिन्हें विवाह के समय कन्यापक्ष की ओर से वरपक्ष को दिया जाता है। मूलतः इसमंे स्वेच्छा की भावना निहित है लेकिन फिर भी आज दुनिया वालों में दहेज का अर्थ बिल्कुल अलग हो गया है। आज इसे एक आवश्यक नियम के रूप में लिया जाने लगा है। जिसकी गरीब या मध्यम वर्ग के लोग वरपक्ष की मनमर्जी के बिना पूर्ति नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप आरम्भ से ही कलह जन्म लेती है। आज के समय में दहेज प्रथा का अर्थ उस सम्पति अथवा मूल्याकंन वस्तुओं को माना जाने जगा है जिन्हंे विवाह की एक शर्त के रूप में कन्यापक्ष द्वारा वर पक्ष को विवाह से पूर्व या बाद में अवश्य देना पड़ता है। वास्तव मंे इसे दहेज की अपेक्षा इसे वर मूल्य कहना कहीं अधिक उचित है।

दहेज प्रथा के विस्तार के कारण दहेज प्रथा के विस्तार के अनेक कारण है- (1) धन के प्रति आकर्षण- वर्तमान समय में वरपक्ष का धन के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है। वरपक्ष हमेशा अच्छे एवं ऊंचे घराने की लड़कियों को ही देखते है जिससे उन्हें अधिक से अधिक धन प्राप्त हो सकें। ऊंचे घराने की लड़कियों को व्यावहार लाने में वे अपनी शान बढ़ाना और आर्थिक स्तर ऊंचा उठाना चाहते हैं। (2) जीवन साथी चुनने की सीमित क्षेत्र- हमारा देश में अलग-अलग धर्मों व जातियों के लोग निवास करते है। सामान्यतः प्रत्येक मां-बाप अपनी लड़की का विवाह अपने ही धर्म एवं जाति से सम्बन्धित लड़के से ही करना चाहते हैं। इन परिस्थितियों मंे उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है। परिणामस्वरूप वरपक्ष की ओर से दहेज की मांग आरम्भ हो जाती है, जिसकी पूर्ति वधू पक्ष की ओर से करने की मजबूरी आ जाती है। (3) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा-वर्तमान समय में शिक्षा प्रणाली मंहगी है। प्रत्येक मां-बाप अपने बच्चे को उच्च शिक्षा प्राप्त कराने का प्रयत्न करते हैं। लड़के के विवाह के अवसर पर वे इस धन की पूर्ति कन्यापक्ष को करना चाहते हैं। इससे दहेज के लेन-देन की प्रवृति बढ़ती है। (4) विवाह की अनिवार्यता- हिन्दु धर्म में कन्या का विवाह करना सबसे बड़ा पुण्य का काम कहलाता है जबकि कन्या का विवाह न होना पाप माना जाता है। प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियां असुन्दर एवं विकलांग होती है, जिनका विवाह बहुत कठिनाई से होता है। ऐसी स्थिति में लड़की के माता-पिता अच्छा धन देकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। दहेज प्रथा के दुष्परिणाम दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को धनलोभी एवं स्वार्थी बना दिया है। इससे समाज में अनेक भयानक विकृतियां उत्पन्न हुई हैं- (1) बेमेल विवाह- दहेज प्रथा के कारण गरीब माता-पिता अपनी बेटी का विवाह किसी भी लड़के के साथ कर देते हैं। क्योंकि उनके पास इतना धन नहीं होता कि वे अपनी बेटी का विवाह किसी उच्च या अच्छे परिवार से कर सकें। (2) कन्याओं का दुःखद जीवन- यदि वरपक्ष की मांगानुसार दहेज न देने अथवा उसमें किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण वधू को ससुराल में अपमानित किया जाता है। उसकी बेइज्जती की जाती है तथा अनेक प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं जिस कारण या तो वरपक्ष द्वारा ही स्त्रियों को जलाकर मार दिया जाता है या स्त्रिंया स्वयं आत्महत्या करके अपना जीवन समाप्त कर देती हैं।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय (1) दहेज प्रथा को रोकने के लिए बने हुए कानून का सख्ती से पालन कराया जाना चाहिये। (2) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोतसाहन देना होगा। इससे युवतियों को योग्य वर खोजने में सरला रहेगी। (3) लड़कियों को उच्च शिक्षा देना आवश्यक है। (4) लड़कियों को अपना जीवन साथी स्वंय चुनने का अधिकार होना चाहिये। उपसंहार- इस प्रथा के विरूद्व स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिये। इस प्रकार के उपायों द्वारा दहेज प्रथा जैसी सामाजिक अपराध की समाप्ति संभव है। जब तक समाज में जाग्रति नहीं होगी, तब तक दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति कठिन है। राजनेताओं, समाज-सुधारकों तथा युवक-युवतियों को इसके लिए आगे आना चाहिये। हर्ष की बात है कि अब इस ओर युवतियो की जागरूकता बढ़ रही है। अक्सर समाचार-पत्रों तथा मीडिया की खबरों में दहेज-लोभी वर को, वधू द्वारा खरी-खोटी सुनाकर बारात वापस करा दिये जाने का समाचार प्रकाश मंे आ रहा है। इससे अन्य युवतियों में जागरूकता बढ़ेगी।

निबंध नंबर :- 06

दहेज: एक सामाजिक कुप्रथा

Dahej : Ek Samajik Kupratha

                हमारे समाज में अनेक कुप्रथाएं व्याप्त हैं। वर्तमान मंे जिस कुप्रथा ने हमारे समाज को अत्यधिक कलंकित किया है वह है आज की दहेज-प्रथा। दहेज शब्द अरबी भाषा के ’जहेज’शब्द का परिवर्तित रूप है। ’जहेज’ का अर्थ होता है-’भेंट या सौगात’। भेंट के यह भाव होता है कि काम हो जाने पर स्वेच्छा से अपने परिजन या कुटुम्ब को कुछ अर्पित करना। लेकिन, आज दहेज-प्रथा की व्याख्या है-कन्यापक्ष की ओर से वरप़क्ष को मुंहमांगा दाम देना। इससे स्पष्ट होता है कि विवाह के पूर्व सशर्त आवश्यक देन को आज का ’दहेज’ एवं विवाह के बाद स्वेच्छा से विदाई के समय की देन को ’भेंट’ कहते हैं।

                प्राचीनकाल में भेंट की प्रथा थी न कि आज की दहेज-प्रथा। हमारे धार्मिक एवं ऐतिहासिक ग्रन्थ इसके साक्षी हैं। पार्वती विवाह के बाद विदाई के समय उनके पिता, हिमवान द्वारा अनेक सामग्रियां भेंट के रूप में दी गई थीं। उदाहरण-

                                दासी दास तुरग रथ नागा।                                 धेनु बसन मनि वस्तु बिभागा।।                 इसी प्रकार, सीताजी की विदाइ्र के समय राजा जनक के अपरिमित भेंट दी थी-                                                 कनक बसन मनि भरि भरि जाना।                                                                 महिषी धेनु वस्तु विधि माना।।

                वर्तमान समाज में दहेज का रूप अत्यन्त विकृत हो गया है। दहेज एक व्यापार का रूप ले चुका है। स्थिति ऐसी उत्पन्न हो गई है कि जिस पिता के पास धन का अभाव है, उसकी पुत्री का विवाह असंभव प्रतीत होने लगता है। दहेज पिता के लिए सबसे बड़ा दण्ड साबित हो रहा है। लड़के का पिता अपने लड़के का मोल-भाव वस्तु के क्रय-विक्रय के जैसा करता है। वर्तमान समय में हर प्रकार के लड़के का मोल निश्चित है। उपभोक्ता सामग्री की भांति तय कीमत पर कोई भी लड़का  खरीद सकता है। कुछ ऐसे भी लाचार पिता हैं जिन्हें दहेज के अभाव में अनमेल विवाह कबूल करना पड़ता है। ऐसा मालूम पड़ता है कि लड़की शादी में इन्हीं कटिनाइयों को देखकर महाकवि कालिदास ने ’अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में लिखा है-’कन्यापितृत्वं-खलु नाम कष्टम्। अर्थात कन्या का पिता होना ही कष्टकारक है।

                विवाह के बाद भी दहेज रूपी राक्षस वधू का पीछा नहीं छोड़ता। लोभी और अकर्मण्य दामाद बार-बार वधू को अपने पीहर से धन लाने के लिए प्रताड़ित करता है। वधुएं इससे ऊबकर आत्महत्या तक करने पर विवश हो जाती हैं। आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। इस सामाजिक व्यवस्था में जामाता को ’दशम ग्रह’ माना जाता है जो बिल्कुल सही और स्वाभाविक है। कहा भी गया है- ’जामाता दशमो ग्रहः।’

                प्रश्न यह उठता है कि दहेज-प्रथा को मूल कारण क्या हैं? अशिक्षा दहेज-प्रथा का मूल कारण है। सभी बच्चे-बच्चियों को पढ़ाना-लिखाना होगा। रेडियों, दूरदर्शन, समाचार पत्र एवं स्वयंसेवी संगठनों के सहारे दहेज-प्रथा के कुप्रभावों का समाज में प्रचार करना होगा। लेखक एवं कवियों को भी इस प्रथा के विरूद्ध आग उगलनी पड़ेगी, जैसे-प्रेमचन्द ने अपने उपन्यास ’निर्मला’ में दहेज प्रथा पर चोट की है। सरकार द्वारा इसे रोकने हेतु कानून भी बनाए गए हैं। दहेज विरोधी कानून के अनुसार-’जो भी दहेज लेगा या देगा, उसे न्यूनतम पांच वर्ष की कैद एवं 5000 रूप्ये जुर्माने की सजा दी जाएगी।’ लेकिन, ये कानून कारगर नहीं हो पा रहे हैं। ये कागजी फूल की भांति सिर्फ कार्यालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसका कारण यह है कि समाज के शक्तिशाली लोग, नेता एवं बड़े-बड़े पदाधिकारी एक ओर तो खुले मंच पर दहेज-प्रथा की भत्र्सना करते हुए यह नारा लगाते हैं-’दहेज लेना अपराध है’-तो दूसरी ओर वे ही लोग अधिक दहेज देेकर समाज में अपना बड़प्पन दिखाते हैं। मानो कह रहे हैं-’दहेज लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’ जनमत तैयार कर ऐसे लोगों का पर्दाफाश करना चाहिए। युवकां एवं युवतियों को इस संघर्ष में आगे आना चाहिए और विवाह के पूर्व प्रत्येक युवक को यह संकल्प करना चाहिए-’दुल्हन ही दहेज है।’

निबंध नंबर :- 07

दहेज की समस्या

Dahej ki Samasya 

भारतीय संस्कृति में विवाह को एक आध्यात्मिक कर्म, आत्माओं का मिलन, पवित्र संस्कार और और धर्म-समाज का आवश्यक अग माना गया है। ऐसा भी भारतीय एवं पाश्चात्य नो सभ्यता-संस्कृतियों में माना और कहा जाता है कि Marriages are arranged heaven अर्थात् दो व्यक्तियों (स्त्री-पुरुष) का पारस्परिक विवाह-सम्बन्ध पहले से ही निश्चित एवं निर्धारित रहा करता है। ईश्वर की सृष्टि रचना करते समय किन जोडों को विवाह-संस्कार द्वारा जोड़ना है, ऐसा निर्धारित कर देता है। अब का समाज शास्त्र और समाज-शास्त्री विवाह को एक सामाजिक संस्था और सभी-पुरुष के विवाह के नाम पर मिलन को एक सामाजिक बन्धन एवं सामाजिक समझौता मानता है, ताकि जीवन-समाज में यौनाचार-सम्बन्धी अनुशासन और वंश-परम्परा का रक्त शुद्ध बना रह सके।

हमारे विचार में पहले-पहल जब विवाह नामक संस्था का आरम्भ हुआ होगा, तो मूल भावना वहाँ भी यौनाचार की अराजकता मिटाकर, सम्बन्धों को स्वस्थ स्वरूप देने और जीवन-समाज को एक अनुशासन देने की रही होगी; क्यों कि तब का जीवन अपने सयमित, पवित्र एवं आदर्श हुआ करता था; इस कारण विवाह-कार्य का सम्बन्ध धर्म, अधर्म एवं लोक-परलोक से भी जोड दिया गया होगा, ताकि इन के डर से विवाहित जोडे और भी अधिक अनशासन में नियम में रह सकें। परन्तु विवाह के साथ दान-दक्षिणा और लेन-देन की प्रथा यानि दहेज-प्रथा कैसे जड़ गई. इस सबका कहीं न तो स्पष्ट उल्लेख ही मिलता है और न ही कोई प्रत्यक्ष कारण ही दिखाई देता है। हम एक तरह से सहज-सार्थक अनमान कर सकते हैं कि क्यों कि विवाहित जोड़े को एक नए जीवन में प्रवश करना होता है एक घर बसाना होता है तो ऐसा करते समय उन्हें किसी तरह का आर्थिक असुविधा एवं सामाजिक दुविधा न रहे. इस कारण बिरादरी और बारात के रूप में एक साँझापन स्थापित कर सबके सामने कन्यादान वर-पक्ष और रिश्ते-नाता या बिरादरी वालों की तरफ से इच्छानसार अपनी तथा सभी की सुविधाओं का ध्यान रखत हुए कुछ उपहार देने का प्रचलन हुआ होगा। इसी ने आगे चल कर जहज (मूल फार शब्द, दहेज नहीं) का स्वरूप धारण कर लिया होगा। इस प्रकार सदाशय प्रकार वाली एक अच्छी प्रथा आज किस सीमा तक प्रदूषण और सामाजिक लानत, क समस्या बन चुकी है, यह किसी से छिपा नहीं।

हमें लगता है, बाद में राजा-महाराजाओं और धनी वर्गों ने अपना बड़प्पन जना के लिए बढ़-चढ़ कर उपहार देना और उनका खुला प्रदर्शन करना भी आरम्भ कर दिया होगा, सो यह प्रदर्शन की प्रवृत्ति भी बढ़ कर एक अच्छी प्रथा को लानत बनाने में सहारा हुई। ऐसा हमारा स्पष्ट मानना है। फिर भी जहाँ तक हमें याद है, औरों से सुना और समझा है, देश के स्वतंत्र होने से पहले दहेज देने या कम देने के नाम पर वह सब घटित होता दिखाई या सुनाई नहीं दिया करता था, जो सब आज घट रहा है। साहित्यकारों-कवियों ने भी मध्यकालीन एवं परवर्ती रचनाओं में विवाह के अवसर दान-दहेज देने का बड़ा ही रोचक, व्यापक और बढ़-चढ कर वर्णन किया है, पर कहीं भी किसी ने दहेज के कारण होने वाली हत्याओं की निर्ममता का वर्णन नहीं किया। बीसवीं शती के दूसरे-तीसरे देशक में रची गईं कुछ रचनाओं में इस प्रकार के संकेत मिलने लगते हैं कि कम दहेज के कारण किसी विवाहिता को कुछ उत्पीडन व्यवहार सहन करते हुए जीना पड़ा या दासियों का-सा जीवन बिताना पड़ा; पर किसी पर पैट्रोल अथवा मिट्टी का तेल डालकर उसे जीवित जला दिया गया, ऐसा भी कहीं नहीं मिलता।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से परिस्थितियों में आमल चल परिवर्तन आ गया है। धर्म, समाज, राजनीति आदि किसी भी क्षेत्र में किसी भी तरह का आदर्श नहीं रह गया। सभी क्षेत्रो को नेतृवर्ग भ्रष्टाचार मे आकण्ठ डूब चुका है। धन ही माता-पिता, धर्म, समाज, नीति-नैतिकता, देवता और भगवान् बन चुका है। सो आज हम जो दहेजजन्य हत्याओं के ब्योरों से समाचारपत्रों को भरा हुआ पाते हैं, उसका मूल कारण धन की यह कभी भी समाप्त न होने वाली भूख ही है। कन्यापक्ष से धन ही नकद या उपकरणों के रूप में अधिक-से-अधिक कैश लेने की इच्छा और दबाव ही दहेज-हत्याओं के मूल में विद्यमान है। आज मानवता या मानवीय आदर्शों का कोई मूल्य एवं महत्त्व नहीं रह गया, बल्कि एक प्रकार का व्यापार, वर पक्ष के लिए यह भूल कर एक लाभ कमाने वाले सौदा बन गया है कि उनके अपने घर में भी विवाह योग्य कन्याएँ हैं। कई बार तो उन्हीं कन्याओं के विवाह निपटाने के लिए भी अधिक-से-अधिक दहेज की माँग की जाती है। माँग पूरी न होने पर अपनी कन्या की खातिर दूसरे घर से आई कन्या को बलि का बकरा बना दिया जाता है। ऐसा करने में अक्सर नारियों का हाथ ही प्रमुख रहता है। इस प्रकार आज दहेज के नाम पर नारी ही नारी की शत्रु प्रमाणित हो रही है।

प्रश्न उठता है कि आखिर इस घिनौनी प्रथा से छुटकारे का उपाय क्या है ? उपाय के स्व में सब से पहली आवश्यकता तो सामाजिक मूल्यों और मानसिकता को पूरी तरह बदलने की है। फिर यवा वर्ग को-विशेषकर यवा परुषों को दहेज लेकर विवाह करने। से कदम इन्कार कर देने की जरूरत है। बड़े-बूढ़े लाख चाहते रहें, यदि युवा वर्ग सत्याग्रही बनकर अपने दहेज-विरोधी निर्णय पर अड़ा रहेगा, तभी इस कुप्रथा का अन्त संभव हो पाएगा, अन्य कतई कोई भी उपाय इस सामाजिक कोढ़ से छुटकारा पा सकने का नहीं है ।

निबंध नंबर :- 08

दहेज – प्रथा : एक गंभीर समस्या

Dahej pratha – ek gambhir samasay.

विचार – बिंदु -• दहेज एक कुप्रथा • दहेज के दुष्परिणाम • समाधान • लड़की का आत्मनिर्भर बनना • कानून के प्रति जागरूकता।

दहेज – एक कुप्रथा – दुर्भाग्य से आज दहेज-प्रथा एक बराई का रूप धारण करती जा रही है। आज दहेज प्रेमवश देने की वस्तु नहीं, अधिकार- पूर्वक लेने की वस्तु बनता जा रहा है। आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से जबरदस्ती पैसा, वस्त्र और वस्तुएँ माँगते हैं। यह माँग एक बुराई है।

दहेज के दुष्परिणाम – दहेज के दुष्परिणाम अनेक हैं। दहेज के अभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं। दूसरी ओर, अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतुम वरों को खरीद लेती हैं। दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाता। गरीब माता-पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं। वे बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं। यहाँ तक कि रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चूकते।

दहेज का राक्षसी रूप हमारे सामने तब आता है, जब उसके लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है। कभी-कभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे या तो घर छोड़कर मायके चली जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं। कई दुष्ट वर तो स्वयं अपने हाथों से नववधू को जला डालते हैं।

समाधान – दहेज की बुराई को दूर करने के सच्चे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं। अतः वे विवाह की कमान अपने हाथों में लें। वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्त्व दें। विवाह ‘प्रेम’ के आधार पर करें, दहेज के आधार पर नहीं। कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है।

लड़की का आत्मनिर्भर बनना – लड़कियों का आत्मनिर्भर बनना भी दहेज रोकने का एक अच्छा उपाय है। लड़कियाँ केवल घरेलू कार्य में ही व्यस्त न रहें, बल्कि आजीविका कमाएँ ; नौकरी या व्यवसाय करें। इससे भी दहेज की माँग में कमी आएगी।

कानून के प्रति जागरूकता – दहेज की लड़ाई में कानून भी सहायक हो सकता है। जब से ‘दहेज निषेध विधेयक’ बना है, तब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कमी आई है। परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब युवक-युवतियाँ स्वयं जाग्रत हों।

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Hindi Essay on “Dahej Pratha ek Abhishap ”, “दहेज प्रथा एक अभिशाप”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

दहेज प्रथा एक अभिशाप

Dahej Pratha ek Abhishap 

निबंध नंबर : 01

जो लोग अपने पुत्र की शादी में दहेज पूरा न मिलने के कारण वधू पर अत्याचार करते हैं-वे इन्सान या मानव नहीं, शैतान हैं। हमारे गौरवशाली भारतदेश के लिए दहेज की कुप्रथा एक रीति या परम्परा नहीं बल्कि अभिशाप बन चुका है। शिष्ट मानव समाज की दहेज अशिष्ट प्रथा है।

दहेज के अभिशाप का एक पहलू वधू को शारीरिक तथा मानसिक प्रकार की यातनाएँ देना है। वधू के साथ जब दहेज कम आता है तो ससुराल पक्ष के लोग छोटी-छोटी बात को लेकर घर में कलह पैदा करते हैं, बहू के माता-पिता को ताने देते हैं। दहेज पाने की इच्छा में नव बहू को उसके पति से बोलने नहीं दिया जाता। उसे काफी मारा व पीटा जाता है। वधू अपनी ससुराल से रोती सिसकती हुई एक अंधकारमय भविष्य लेकर मायके में लौटती है। बाद में उसके मायके वालों पर भी झूठा मुकदमा चलाया जाता है।

दहेज की समस्या के कारण हमारे समाज में बालक के जन्म को शुभ का प्रतीक माना जाता है जबकि बालिका के जन्म को अशुभ और विपत्ति का सूचक माना जाता है। जब किसी के घर पुत्र पैदा होता है तो उस घर में खूब बधाइयाँ गाई जाती हैं तथा मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं और जब पुत्री पैदा होती है तो घर के अन्दर मातम सा छा जाता है। पुत्री पैदा होने की खबर सुनते ही माता-पिता इस कदर चिन्ताग्रस्त एवं गम्भीर हो जाते हैं मानो उन्होंने साक्षात् काल या यमराज के आने की खबर सुन ली हो।

विष्णुशर्मा पंचतन्त्र में लिखते हैं –

“ पत्रीति जाता महतोति चिन्ता , कस्मै प्रदेयेति महान वितर्कः ।।

दत्त्वा सुख प्राप्स्यति वा न वेति , कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम् ॥”

अर्थात् पुत्री उत्पन्न हुई—यह बड़ी चिन्ता है। यह किसको दी जाएगी और देने के बाद भी यह सुख पाएगी या नहीं यह बड़ा वितर्क रहता है? कन्या का पिता होना निश्चय ही कष्टपूर्ण होता है।

दहेज के अभिशाप के दूरगामी परिणाम बच्चियों के माता-पिता के मस्तिष्क पर पड़ते हैं। चूंकि लड़की की शादी करके, दान दहेज देकर उसे विदा करना ३- यह सोचकर कुछ माता-पिता अपनी कन्या की बचपन से ही परवरिश करने में लापरवाही बरतते हैं। वे लड़कों को तो खाने-पीने के लिए दूध, दही, मक्खन, बिस्कट, मिठाई, मेवा, फल इत्यादि अधिक चीजें देते हैं लेकिन लड़कियों को इन चीजों का बहुत थोड़ा भाग देते हैं जिससे लड़कियों के मन में हीनता की भावना पैदा हो जाती है।

पुत्र चाहे कैसा भी कपूत या बिगड़ा हुआ क्यों न हो लेकिन माँ-बाप उसको लेकर कभी दुःखी नहीं होते। वे पुत्र की कमी-कमजोरियों और शैतानियों को नजर अंदाज कर जाते हैं जबकि पुत्री के कुशल, योग्य एवं होशियार होते हुए भी उन्हें घर में उचित सम्मान नहीं देते। पुत्र चाहे दिनभर आवारा लड़कों के साथ बाहर घूमता रहे, लेकिन माता उसे जरा भी डाँटती फटकारती नहीं है लेकिन पुत्री के जरा-सा बाहर निकल जाने पर उसकी जान की दुश्मन बन जाती है। पुत्री की हर चाल-चलन पर बड़ी गहराई से निगाह रखी जाती है। उसके हर कदम को शक की निगाह से देखा जाता है। माँ-बाप के लिए पुत्र स्नेह का पात्र होता है। जबकि पुत्री, इनके कोप या गुस्से को सहने वाली होती है। पुत्र को योग्य न होते हुए भी माँ-बाप का असीम प्यार दुलार तथा लाड़ मिलता है जबकि पुत्री को अपने माता-पिता तथा बड़े भाइयों से ताड़ना, तिरस्कार, अवहेलना और अपेक्षा भरा अभिशप्त जीवन ही मिलता है।

दहेज न मिलने पर वधू को जली-कटी सुनाना, बद्दुआ देना, झूठे अभियोग लगाना, मिथ्या दोषारोपण करना, कलहपूर्ण वातावरण बनाना, जीवन को प्रतिकूल पास्थितियों का निर्माण करना तथा वधू को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना पहज प्रथा का अभिशाप है। दहेज के अभिशाप के कारण ससुराल पक्ष के लोग वधू की जमकर पिटाई करते हैं, उसका अंग भंग कर देते हैं, उसे जिन्दा जला देते है या अन्य किसी तरीके से उसे मौत के मुँह में धकेलने तथा पिता के घर जीवन जीने को विवश कर देते हैं।

लड़की के माता-पिता कर्जा लेकर वरपक्षवालों की दहेज की माँग को पूरा करते हैं। वे अपनी चल अचल सम्पत्ति को बेचकर और गहनों को गिरवी रखकर दहेज चकाते हैं और सारी जिन्दगी उस कर्ज को पटाने में तिल-तिलकर अपनी जिन्दगी को कर्मरूपी नर्क में झोंक देते हैं।

दहेज के अभिशाप के कारण सृष्टि को जन्म देने वाली नारी का अपमान होता है, उसे तिल-तिलकर नर्क की अग्नि में जलना पड़ता है या फिर जीते जी दहेज की बलिवेदी पर चढ़ जाना पड़ता है। दहेज के अभिशाप से वर और वधू दोनों के घर बिगड़ते हैं और दोनों ही पक्ष के लोग कलंकित होते हैं।

निबंध नंबर : 02

Dahej Pratha ek Abhishap

भूमिका- जीवन और गृहस्थ रूपी रथ के दो चक्कर हैं, और दोनों यथा शक्ति भार वहन करते हैं। इन दोनों के संतुलन में जीवन का सौन्दर्य और सुःख छिपा हुआ है। अतः प्रत्येक दृष्टि से नारी जीवन संघर्ष में, जीवन यात्रा में, सहयात्री में, सहचरी है। दहेज शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘सौगात’। संस्कृत ‘दायज’ शब्द मिलता है जिसका अर्थ है उपहार पर दान मेक्सरे डिलने दहेज को स्पष्ट करते हुए लिखा है- साधारणतया दहेज वह सम्पत्ति है जो एक व्यक्ति विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष से प्राप्त करता है।

प्राचीन काल में भी लोग अपनी पुत्री को दान दिया करते थे ताकि उनकी कन्या अपना गृहस्थ जीवन आरम्भ करते समय किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना न करें। वर्तमान युग में दहेज अभिशाप बन गया है जो कन्या के जन्म लेते ही माता-पिता को पीड़ित करता है।

दहेज का अर्थ व इसका आरम्भ- दहेज का अर्थ है, विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं। हमारे समाज में विवाह के साथ लड़की को माता-पिता का घर छोड़ कर पति के घर जाना होता है। इस अवसर पर अपनी पुत्री के प्रति स्नेह प्रकट करने के लिए कन्या पक्ष के लोग लड़की-लडके तथा उनके सम्बन्धियों को यथाशक्ति भेंट दिया करते हैं। यह प्रथा कब आरम्भ हुई- इसके प्रति कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन आधुनिक युग में इस प्रथा ने। विकराल रूप धारण कर लिया है।

आधुनिक युग में दहेज एक अभिशाप- कन्या का जन्म पुरुष प्रधान समाज में केवल दु:ख का कारण माना जाता रहा है। उसके जन्म से ही उसे ‘पराया धन’ कहा जाता है। लडके के जन्म को शुभ माना जाता है आर लड़का के जन्म को अशुभ। कालीदास ने ‘अभिज्ञान शकन्तलम’ में लिखा है कि कन्या का पिता होना कष्टकारक हाता हा कन्या का पराइ वस्तु कहा है। वह धरोहर है जिसे पिता पणिग्रहण करके सौंप देता है। जिस प्रकार बैंक अपने पास जमा का गइ राशि का ब्याज सहित चकाता है, उसी प्रकार पिता भी धरोहर (कन्या) को सद (दहेज) सहित लाटाता  है।

विकृत रूप- दहेज आज फैशन और प्रतिष्ठा का रूप ले रहा है तथा भयानक दानव बनकर मासूम निर्दोष लडकियों को निगल रहा है। प्रतिदिन पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में दहेज में पर्याप्त रूप से धन न मिलने पर या अधिक माँग पूरी न होने पर सास, ससुर, ननद और देवर तथा पति द्वारा लड़की पर होने वाले कर अत्याचारों का वर्णन मिलता है। स्टोव का फटना, आग लगना, गैस सिलण्डर से जलना ये घनाएं केवल नव विवाहिताओं के साथ ही होती हैं। दहेज की कलह के कारण लड़की का जीवन नरक बन जाता है और तलाक की स्थिति उत्पन्न हो जाती  है।

दहेज प्रथा रोकने के उपाय- इस प्रथा को रोने के लिए केन्द्रीय सरकार ने सन् 1961 में दहेज निरोधक अधिनियम बनाया तथा सन् 1985 को इसी प्रकार का नियम बनाया गया। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार का दहेज विवाह में नहीं देगा। यदि कोई व्यक्ति किसी भी रूप में दहेज देता हुआ पकड़ा गया तो उसे कैद एवं जुर्माने की सजा भी हो सकती है।

नवयुवक आगे आएं- दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए स्वयं नवयुवकों को आगे आना चाहिए। नवयुवक अपने माता-पिता, सम्बन्धियों और अपने इधर-उधर के लोगों मेंयह धारणा व्याप्त करे कि शादी होगी तो बिना दहेज के होगी। नवयुवकों को चाहिए कि वे दहेज लोभियों का डटकर विरोध करें।

उपसंहार- दहेज कुप्रथा किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र तथा इतिहास और संस्कृति के लिए ही कलंक है। देश के प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह इस कार्य में सहयोग दें ताकि इससे देश पर लगा कलंक का टीका धोया जा सके। अब समय आ गया है कि हम इस कुरीति को समूल उखाड़ फेंकें।

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दहेज प्रथा: एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Dowry System : A Curse in Hindi

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दहेज प्रथा: एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Dowry System : A Curse in Hindi!

प्रात: काल जब हम समाचार-पत्र खोलते हैं तो प्रतिदिन यह समाचार पढ़ने को मिलता है कि आज दहेज के कारण युवती को प्रताड़ित किया तो कभी उसे घर से निकाल दिया या फिर उसे जलाकर मार डाला । दहेज प्रथा हमारे देश और समाज के लिए अभिशाप बन गई है ।

यह प्रथा समाज में सदियों से विद्‌यमान है । सामाजिक अथवा प्रशासनिक स्तर पर समय-समय पर इसे रोकने के लिए निरंतर प्रयास भी होते रहे हैं परंतु फिर भी इस कुप्रथा को दूर नहीं किया जा सका है । अत: कहीं न कहीं इस कुत्सित प्रथा के पीछे पुरुषों का अहं; लोभ एवं लालच काम कर रहा है ।

प्रारंभ में पिता अपनी पुत्री के विवाह के समय उपहार स्वरूप घर-गृहस्थी से जुड़ी अनेक वस्तुएँ सहर्ष देता था । इसमें वर पक्ष की ओर से कोई बाध्यता नहीं होती थी । धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलता चला गया और आधुनिक समय में यह एक व्यवसाय का रूप ले चुका है ।

विवाह से पूर्व ही वर पक्ष के लोग दहेज के रूप में वधू पक्ष से अनेक माँगे रखते हैं जिनके पूरा होने के आश्वासन के पश्चात् ही वे विवाह के लिए तैयार होते हैं । किसी कारणवश यदि वधू का पिता वर पक्ष की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वधू को उसका दंड आजीवन भोगना पड़ता है । कहीं-कहीं तो लोग इस सीमा तक अमानवीयता पर आ जाते हैं कि इसे देखकर मानव सभ्यता कलंकित हो उठती है ।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम को सबसे अधिक उन लड़कियों को भोगना पड़ता है जो निर्धन परिवार की होती हैं । पिता वर पक्ष की माँगों को पूरा करने के लिए सेठ, साहूकारों से कर्ज ले लेता है जिसके बोझ तले वह जीवन पर्यत दबा रहता है ।

कुछ लोगों की तो पैतृक संपत्ति भी बिक जाती है । ऐसा नहीं है कि उच्च घरों के लोग इससे अछूत रहे हैं । उधर मनचाहा दहेज न मिलने पर नवयुवतियाँ प्रताड़ित की जाती हैं ताकि पुन: वापस जाकर वे अपने पिता से वांछित दहेज ला सकें ।

कभी-कभी यह प्रताड़ना बर्बरता का रूप लेती है जब नवविवाहिता को लोग जलाकर मार देते हैं अथवा उसकी हत्या कर देते हैं तथा उसे आत्महत्या का नाम देकर अपने कृत्यों पर परदा डाल देते हैं । कहीं-कहीं तो ऐसी स्थिति बन गई है कि दहेज के भय से ‘अल्ट्रासाउंड’ द्‌वारा पता लगाकर लोग कन्याओं को जन्म से पूर्व ही मार देते हैं ।

प्रशासनिक स्तर पर दहेज प्रथा को रोकने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं । कानून की दृष्टि में दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है । इसका पालन न करने वाले को कारावास तथा आर्थिक जुर्माना भी वहन करना पड़ सकता है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व एवं इसके पश्चात् भी समय-समय पर अनेक समाज सुधारकों व समाज सेवी संस्थाओं ने इसके विरोध में आवाज उठाई है परंतु इतने प्रयासों के बाद भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिल सकी है ।

दहेज प्रथा की जड़ें बहुत गहरी हैं । यह केवल सरकार या किसी व्यक्ति विशेष के द्‌वारा नहीं रोकी जा सकती अपितु सामूहिक प्रयासों से ही हम इस बुराई को नष्ट कर सकते हैं । विशेष तौर पर युवा वर्ग का योगदान इसमें अपेक्षित है । युवाओं को इसके दुष्परिणामों के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक होना पड़ेगा तथा अपने परिवार व समाज को भी इसके लिए जागरूक करना होगा ।

इसके अतिरिक्त हमें हर उस व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर बहिष्कृत करना होगा जो दहेज प्रथा का समर्थन करता है । निस्संदेह ऐसे प्रयासों से आशा की किरण जागेगी और पुन: हम दहेज प्रथा विहीन समाज का निर्माण कर सकेंगे । युवक-युवतियों को इस मामले में सर्वाधिक सजगता दिखानी होगी ।

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  8. दहेज प्रथा पर निबंध

    दहेज प्रथा पर हिन्दी निबंध | Dowry Essay in Hindi दहेज प्रथा केक सामाजिक बुराई है जो समय के साथ-साथ बढ़ी है। इस बुराई के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हम लेकर आए हैं ...

  9. दहेज प्रथा पर निबंध

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  10. दहेज प्रथा पर निबंध

    August 4, 2020 by admin. दहेज प्रथा पर निबंध(Essay on dowry system in Hindi): दहेज की समस्या आज भारतीय समाज के सामने सबसे बड़ी समस्या है. इसके सामाजिक प्रभाव बुरे ...

  11. दहेज प्रथा पर अनुच्छेद

    Article shared by: दहेज प्रथा पर अनुच्छेद | Paragraph on Dowry System in Hindi! 'दहेज प्रथा समाज के लिए अभिशाप बन गया है' यह एक सामाजिक कलंक है । सामान्य दहेज उसे कहते ...

  12. दहेज प्रथा पर निबंध

    आज के आर्टिकल में हम दहेज प्रथा (Dahej Pratha) पर निबंध को पढेंगे। दहेज प्रथा के कारण (Dahej Pratha ke Karan), दहेज रोकने के उपाय (Dahej Pratha Rokne ke Upay), दहेज निषेध अधिनियम 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) के ...

  13. दहेज प्रथा

    दहेज प्रथा. दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। [1] दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं ...

  14. दहेज प्रथा पर निबंध

    Article shared by: दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry System in Hindi! भारत में दहेज एक पुरानी प्रथा है । मनुस्मृति मे ऐसा उल्लेख आता है कि माता-कन्या के विवाह के ...

  15. दहेज़ प्रथा एक अभिशाप पर निबंध (Dahej Pratha Essay In Hindi)

    दहेज़ प्रथा एक अभिशाप और सामाजिक कलंक पर निबंध (Dahej Pratha Essay In Hindi) प्रस्तावना. दहेज़ प्रथा एक कुप्रथा है जो सदियों से चली आ रही है। यह कुप्रथा ...

  16. Dahej Pratha- दहेज प्रथा एक अभिशाप निबंध » NewsMeto

    1. दहेज प्रथा (Dahej Pratha) को आज पंरपरा का रूप प्रदान कर दिया गया हैं. 2. दहेज में अधिक से अधिक देने की प्रथा से समाज मे सम्मान बढ़ाता है यह ...

  17. दहेज प्रथा

    By BYJU'S Exam Prep. Updated on: September 25th, 2023. दहेज प्रथा (Dowry System) एक गंभीर सामाजिक बुराई है जिसके कारण समाज में महिलाओं के प्रति यातनाएँ और अपराध उत्पन्न हुए ...

  18. Dahej Pratha Essay in Hindi

    दहेज़ प्रथा पर निबंध - Dahej Pratha Essay in Hindi - Dahej Pratha Par Nibandh - Essay on Dahej Pratha in Hindi Language. ADVERTISEMENT. रुपरेखा : प्रस्तावना - दहेज-प्रथा का इतिहास - दहेज प्रथा कानून - दहेज ...

  19. भारत में दहेज प्रथा

    दहेज प्रथा का प्रभाव. लैंगिक भेदभाव: दहेज प्रथा के कारण कई बार यह देखा गया है कि महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और ...

  20. Hindi Essay on "Dahej Pratha " , " दहेज-प्रथा : एक गंभीर समस्या

    दहेज-प्रथा : एक गंभीर समस्या . Dahej Pratha Ek Gambhir Samasya . निबंध नंबर - 01. दहेज का बदलता स्वरूप - भारतीय नारी का जीवन जिन समस्याओं का नाम सुनते ही कॉप उठता है - उनमें सबसे ...

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  22. दहेज प्रथा: एक अभिशाप पर निबंध

    दहेज प्रथा: एक अभिशाप पर निबंध | Essay on Dowry System : A Curse in Hindi! प्रात: काल जब हम समाचार-पत्र खोलते हैं तो प्रतिदिन यह समाचार पढ़ने को मिलता है कि आज दहेज के कारण युवती को ...

  23. निबंध : दहेज़ प्रथा पर निबंध

    #PointPrism_Study_CentreWelcome To PointPrism Study CentreFriends, In this video we will see how to write Essay on Dowry System in Hindi.दोस्तों, इस वीडियो म...