नारी सुरक्षा पर निबंध Mahila suraksha essay in hindi

Mahila suraksha essay in hindi.

Mahila suraksha essay in hindi-दोस्तों आजकल हम चारो और देखते है की नारी पर अत्याचार काफी बढ चुके है इसलिए Nari suraksha की ओर हमें विशेषकर ध्यान देने की जरुरत है इसलिए हमने आज की पोस्ट लिखी है,आज की हमारी ये पोस्ट Mahila suraksha essay in hindi विशेष रूप से हम सभी के लिए है।

हम सब जानते है की आज की नारी सुरक्षित नहीं है,आज की नारी अगर घर से निकलती है तोह डर डरकर निकलती है,आखिर ऐसा क्यों? आज हम चारो तरफ देख रहे है की नारी कही पर भी सुरक्षित नहीं है,आखिर हमको ऐसा क्या करना चाहिए जिससे हमारे देश की नारी सुरक्षित हो जाए और हमारे देश एक नयी ऊचाइयो पर पहुच जाए.

Mahila suraksha essay in hindi

दोस्तों जैसे की मेने अपने पिछले article नारी पर अत्याचार में आप सभी को बताया था नारी अत्याचार के बारे में हमारी ये पोस्ट जरुर पढें-

  • नारी पर अत्याचार Nari Par Atyachar Essay in Hindi नारी सुरक्षा पर विशेष Mahila suraksha essay in hindi

आज हम विशेष रूप से नारी पर सुरक्षा के बारे में बात करेंगे,दोस्तोंआज की नारी बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है,चाहे वोह नारी ऑफिस में काम करने वाली हो,या घर में रहने वाली,या अपने पढाई के लिए घर से बहार रहने वाली नारी हो,मुझे कहते हुए भी लज्जा हो रही है की इनमे से कोई भी नारी सुरक्षित नहीं है,आखिर ऐसा क्यों?

आज हम देखे तोह ऑफिस में काम कर रहा बॉस नारी पर बुरी नजर डालता है,जो घर से बहार लडकिया पढाई के लिए रहती है,वोह भी सुरक्षित नहीं है,और तोह और हमारे घर में रहने वाली महिलाए तक सुरक्षित नहीं है,क्योकि कभी कभी तोह सुनने में आया है की रिश्तेदार ही नारी पर बुरी नजर डालते है,और कुछ लोग नारी पर अत्याचार करते है,उन्हें अपने चप्पल की जूती समझते है,और अपने आप को शेष्ठ समझते है,मेरा मानना है की ऐसे लोगो को माफ़ नहीं करना चाहिए बल्कि ऐसे लोगो को कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए.

आज हम देख रहे है की बहुत सी लडकिया जो हॉस्टल में रहती है,हॉस्टल में रहने वाले लडकियो पर कडा प्रबंध लगाते है,वोह हॉस्टल की लडकियों को शाम को बहार नहीं जाने देते या शाम को जल्दी घर पर आने के निर्देश देते है,लेकिन वही दूसरी और लडको के हॉस्टल में तोह ऐसे कोई ज्यादा कड़े प्रबंध नहीं होते।

हॉस्टल में जो होता है देखा जाए तोह सही होता है क्योकि वोह भी जानते है की नारी सुरक्षित नहीं है,अगर ये देर से वापिस आई या शाम को कही घूमने गयी तोह इसके साथ कुछ गलत हो सकता है,और ये सब हमारे ऊपर आ सकता है लेकिन जरा सोचिये की आखिर हॉस्टल वालो को ऐसा करने की जरुरत क्यों है क्योकि नारी बिलकुल भी सुरक्षित नहीं है.

ज्यादातर लोग नारी को अपने से नीचा मानते है,वोह उनकी नहीं सुनते और किसी इन्सान ने तोह ये तक कहावत बना दी की “जूती और नारी हमेशा पेरो में अच्छे लगते है” ये तोह बिलकुल ही बुरा हो रहा है हमारे देश की नारी के साथ,हां में मानता हु की कुछ नारिया गलत हो सकती है लेकिन सबको गलत समझना और ऐसी गन्दी कहावत बनाना बिलकुल भी सही नहीं है,ये नारी जाति के लिए बहुत गलत है.

आज नारी सुरक्षित नहीं है तोह कई कारण है जैसे की-लोगो की गलत मानसिकता, bollywood की दुनिया और विदेशी संस्कृति।

जैसे की हमने पहले ही आपको बताया की जहा पर भी नारिया जाती है,वहां के लोग उन्हें गन्दी नजर से देखते है,क्योकि लोगो की मानसिकता गन्दी हो चुकी है,उसे सुधारना बहुत जरुरी है,और दूसरा कारण ये भी है की bollywood वाले आजकल ऐसी ऐसी फिल्मे बना रहे है की लोगो की मानसिकता गन्दी होती जा रही है.

आप सोचिये की अगर आपके घर में भगवान की पूजा की जाती है,रामायण,गीता जैसे पुराण पढें जाते है तोह बहुत ज्यादा चांस होते है की आपभी अपने परिवार की तरह ही बनेंगे क्योकि जैसी संगत बैसी रंगत,यानी आप जो भी देखते हो उसका आप पर असर होता है,इसी तरह जब हमारी युवा पीड़ी दिन रात bollywood की गन्दी फिल्मे देखती है तोह उन पर बहुत ज्यादा गलत असर पड़ता है,और वोह अपनी मानसिक स्थिति को संभाल नहीं पाते,और बेचारी नारी के साथ कुछ गलत कर देते है.

इसके आलावा हम देखे तोह आज देश में विदेशी संस्कृति अपनाई जा रही है,देश की कुछ नारिया छोटे छोटे कपडे पहनने लगी है,इन सबको देखकर भी आजकल के लोगो की मानसिकता खराब हो जाती है,मेने देखा है की bollywood की कुछ हीरोइन तोह हद ही पार कर देती है,वोह किसी किसी शो में ऐसे कपडे पहनकर आती है,की उनके अन्दर के कपडे भी साफ़ साफ़ नजर आते है,अगर ऐसा होगा तोह सोचिये की कोई लड़का ये सब देखेगा तोह जाहिर सी बात है वोह कोई महात्मा तोह बनेगा नहीं,गलत काम करने वाला ही बनेगा.

मेने देखा है की आज कल के टीवी या अखबारों के प्रचार में अगर किसी भी product का प्रचार होता है तोह उसमे लड़की छोटे कपडे पहनकर जरुर आती है,में तोह समझ ही नहीं पाता की कंपनी product का प्रचार कर रही है या नारी के जिस्म का.दोस्तों हमें नारी की सुरक्षा करनी चाहिए ना की उसके जिस्म को दिखाकर उससे पैसे कमाना चाहिए.

दोस्तों मेने बहुत सी वेबसाइट या अखबारों में पढा है की ये छोटे कपडे कुछ भी मायने नहीं रखते,लेकिन में आपसे कहता हु की हर एक चीज से फर्ग पड़ता है,अगर आप नारी को सुरक्षित देखना चाहते है,तोह समझिये की नारी पर अत्याचार होने का कोई एक कारण नहीं है बल्कि बहुत से कारण है लेकिन में आपको बतादू की नारी अगर आज सुरक्षित नहीं है तोह उसका सबसे बड़ा कारण है लोगो की सोच,इसलिए लोगो को नारी को अपनी माँ बहन की नजर से देखना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए.

दोस्तों अगर हम अपने घरो की महिलाओं और लडकियों का आने वाले समय में सुरक्षित देखना चाहते है तोह हमें एक बदलाव लाने की जरुरत है,हमें नारी को सम्मान देना चाहिए और उसकी हमेशा रक्षा करनी चाहिए,उनको गलत नजरिये से ना देखते हुए अपनी माँ बहन के रूप में देखना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए की आज आप जो भी है,जहा पर भी है सिर्फ और सिर्फ नारी की वजह से ही है क्योकि अगर नारी ना होती तोह आप इस दुनिया में बिलकुल भी ना होते.

नारी हमारी घर की लाज है,हमारे देश की शान है,अगर हमने हमारी नारी को समय रहते सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में ना सोचा तोह हमारा देश विशाल अंधकारमय हो जाएगा,क्योकि नारी ही जननी है,नारी ही हमारे देश की सबकुछ है.

जब भी हम किसी नारी को रात में अकेला देखे तोह उसको सुरक्षित घर जाने दे,और अगर नारी के साथ कोई अत्याचार कर रहा हो तोह हमें उसकी सुरक्षा के लिए लड़ना चाहिए और ऐसे लोगो को सबक सिखाना चाहिए और साथ में ही पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए,जब उसके साथ कड़ी कार्यवाही होगी तभी उसकी अकल ठिकाने आएगी. क्योकि अगर हमारे देश में

इस तरह के अपराध होते है तोह उसका सबसे बड़ा कारण लोगो का ये समझना है की में नारी से श्रेष्ठ हु,में नारी के साथ कुछ भी कर सकता हु लेकिन में आपसे एक बात कह दू की नारी से श्रेष्ठ आप उस पर अत्याचार करने से नहीं बन सकते,इससे तोह आप पुरुष कहलाने के काविल भी नहीं बच पाओगे.हमारे देश की पुलिस को भी ऐसे लोगो के साथ कठोरता से पेश आना चाहिए,और ऐसे बुरे लोगो को सक्त से सक्त सजा देनी चाहिए,तभी ऐसे लोगो की अक्ल ठीकाने पर आएगी.

हमारा देश एक ऐसा देश है जहा पर प्राचीन काल से ही नारी को पूजा जाता है,उन्हें घर की लक्ष्मी समझा जाता है लेकिन आजकल ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है,आजकल के जमाने में कुछ पति अपनी पत्नी के साथ मारपीट करते है,मतलब ऐसे लोग नारी को कमजोर समझते है,उन्हें समझना चाहिए की नारी देवी का अवतार है,नारी घर की लक्ष्मी है,हमें उनकी इज्जत करना चाहिए और उनकी सुरक्षा करनी चाहिए ना की ऐसे अपराध.

  • नारी शक्ति पर निबंध Essay on nari shakti in hindi language

दोस्तों इस article Mahila suraksha essay in hindi को लिखने के पीछे हमारा उद्धेश्य सिर्फ लोगो में एक अच्छी सोच फेलाना है,अगर आप हमारी बात से सहमत नहीं है या आपको कुछ भी गलत लगे या कुछ कहना चाहे तोह कृपया हमें comments करे,अगर वोह बात गलत होगी तोह हम उसे इस पोस्ट महानगरों में महिलाओं की सुरक्षा निबंध में से हटा देंगे.

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hindi essay nari suraksha

kamlesh kushwah

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Sir muje nari surksha ke liye kuch karna hai to sir muje aapki sahayta ki jarurat hai aap thoda sajest kro ki mai shurwat kaise karu .. Ek grup banake muje ye kam krna hai hmari city me aysa kuch bhi mahila ok ke sath galt nhi honga ayasa grup karna hai sir plz help me.

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Bahut achchha laga ki aap nari suraksha ke liye kuchh karna chahte hai.aapko meri taraf se dhanyavad. Aap mujhe mere gmail par mail kare.my email id: [email protected]

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Very nice essay

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Very nice essay sir☺☺☺

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भारतीय नारी पर निबंध- Essay On Indian Women In Hindi

भारतीय नारी पर निबंध- Essay On Indian Women In Hindi : हमारे देश में महिलाओं की स्थिति, वुमेन सेफ्टी पर निबंध, भारत में महिलाओं की स्थिति व समाज में भूमिका पर निबंध भाषण को Class 1, Class 2, Class 3, Class 4, Class 5, Class 6, Class 7, Class 8, Class 9, Class 10 के स्टूडेंट्स के लिए भारतीय समाज में नारी की दशा पर निबंध भाषण या लेख लिखने को कहा जाता हैं.

वुमेन स्टेट्स इन इंडिया के लेख को 100, 200, 300, 400, 500 शब्दों में महिलाओं की स्थिति पर लेख, आर्टिकल के रूप में लिख सकते हैं.

प्राचीन भारत में नारी की स्थिति, वर्तमान में नारी की समाज में स्थिति  इत्यादि बिन्दुओं पर यह निबंध तैयार किया गया हैं.

भारतीय नारी पर निबंध Essay On Indian Women In Hindi

भारतीय नारी पर निबंध- Essay On Indian Women In Hindi

भारत देश में नारी को सम्मान देने की गौरवशाली परम्परा रही हैं. हमारी सांस्कृतिक धारणा हैं कि जिस परिवार में नारी के साथ अच्छा तथा सम्मानजनक व्यवहार होता हैं, उस पर देवता प्रसन्न रहते हैं.

वहां सुख शान्ति और सम्रद्धि होती हैं. अतः नारी को गृहलक्ष्मी कहा गया हैं जिस परिवार में नारी के साथ अच्छा व्यवहार नही होता हैं, वहां सुख शान्ति और सम्रद्धि का अभाव होता हैं तथा उस परिवार का विकास रुक जाता हैं.

सरस्वती के रूप में नारी समाज को शिक्षा प्रदान करती हैं. माता हर बालक की पहली शिक्षक हैं. वह बालकों में अच्छे गुणों का विकास करती हैं, नारी को शक्ति का प्रतीक माना गया हैं.

स्पष्ट हैं कि सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुसार भारतीय समाज में नारी का सम्मानजनक स्थान रहा हैं. नारी ने अपने त्याग, प्रेरणा, क्षमा, सहिष्णुता, प्रेम और ममता से परिवार, समाज और राष्ट्र को समुन्नत किया हैं.

महिलाओं की स्थिति पर निबंध

प्राचीन कालीन भारतीय समाज और नारी- प्राचीन भारत में नारी की स्थिति सुखद थी. उस काल में महिलाएं सभी कार्यों में पुरुषों के समान बराबरी से भाग लेती थी. कोई कार्य लिंग के आधार पर बंटा हुआ नही था. स्त्री-पुरुष और बालक बालिकाओं का समान महत्व था.

उस काल में गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा आदि उच्च शिक्षित महिलाओं का उल्लेख मिलता हैं, जो पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ में भाग लेती थी. अनेक वैदिक ऋचाओं की रचना महिलाओं (ऋषिकाओं) द्वारा की गई.

महिलाएं राजकार्य एवं युद्धों में भाग लेती थी. राजतरंगिणी में उल्लेख हैं कि सुगंधा, दिददा और कोटा नामक महिलाओं ने बहुत समय तक कश्मीर में शासन किया था.

मध्यकाल में नारी की स्थिति

परवर्तीकाल में विशेषकर मध्यकाल में भारतीय नारी की पारम्परिक स्थिति में गिरावट आ गई थी. शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मामलों में बालक, बालिका के बिच अंतर किया जाने लगा.

बदली हुई परिस्थतियों में उसे शिक्षा से वंचित रहना पड़ा. उसे घरेलू कार्यों की जिम्मेदारियों तक सिमित कर घर की चारदीवारी में ही रहने को बाध्य किया गया.

बालविवाह, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा, दहेज प्रथा जैसी अनेक कुप्रथाओं से उन्हें पीड़ित होना पड़ा. उसकी पुरुष पर निर्भरता बढ़ती गई. अनेक सामाजिक मान्यताओं के प्रभाव से महिलाओं की स्थति कमजोर हो गई.

इस काल में दुर्गावती, अहिल्याबाई और 19 वीं शताब्दी में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी साहसी महिलाओं ने अपने राज्य का शासन संचालन करते हुए शत्रु से लोहा लिया. भक्तिमति मीराबाई ने जनमानस पर व्यापक प्रभाव डाला.

19 वीं शताब्दी के समाज सुधार और भारतीय नारी की दशा

19 वीं शताब्दी के समाज सुधारकों ने नारी की स्थिति के लिए अनेक प्रयास किए. राजा राममोहन राय ने सतीप्रथा के विरुद्ध कानूनी प्रतिबन्ध लगाया. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के समर्थन में जन जागृति पैदा की.

इनके संबंध में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने महिला शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किए. महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने भी नारी उत्थान के लिए कार्य किया.

आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने भी प्रमुखता से भाग लिया. 20 वीं शताब्दी में महिला आंदोलन ने जोर पकड़ा, जिसने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में एक बड़ी भूमिका निभाई. हालांकि इस क्षेत्र में अभी और अधिक प्रयासों की आवश्यकता हैं.

भारतीय नारी तब और अब पर निबंध | Bhartiya Nari Tab Aur Ab Essay In Hindi

प्रिय साथियों आपका स्वागत हैं, आज हम भारतीय नारी पर निबंध बता रहे हैं.  अब तक के इतिहास में नारी जीवन के त्रासदी भरे अंधकारमय युग व आधुनिक काल के स्वर्णकाल के बारें में तथ्यात्मक नारी तब और अब का निबंध यहाँ दिया गया हैं.

नारी की भूमिका

भारतीय संस्कृति की पावन परम्परा में नारी की सदैव से ही महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं. नारी प्रेम, दया, त्याग व श्रद्धा की प्रतिमूर्ति है और ये आदर्श मानव जीवन के उच्चतम आदर्श है.

किसी देश को अवनति अथवा उन्नति वहा के नारी समाज पर अवलम्बित होती हैं. जिस देश की नारी जागृत और शिक्षित होती है, वही देश संसार मे सबसे अधिक उन्नत माना जाता हैं.

भारतीय नारी का स्वरूप

भारतीय समाज में नारी का स्वरूप सम्माननीय रहा है, उसकी प्रतिष्ठा अर्धां गिनी के रूप में मान्य है। प्राचीन भारत मे सर्वत्र नारी का देवी रूप पूज्य था।

वैदिक काल मे नर-नारी के समान अधिकार एव समान आदर्श थे, परन्तु उत्तर-वैदिक काल मे नारी की सामाजिक स्थिति मे गिरावट आयी। मध्यकाल मे मुस्लिम जातियो के आगमन से भारतीय समाज मे कठोर प्रतिक्रिया हुई। उसके विषैले पूट नारी को ही पीने पड़े।

विधर्मियो की कुदृष्टि से कही कुल-मर्यादा को आच न लग जाए, अतः पर्दा प्रथा का जन्म हुआ; जौहर प्रथा, सती प्रथा का उद्भव हुआ। समाज में अनैतिकता, कुरीतियो, कुप्रथाओ और रूढ़ियों ने पैर जमा लिये। नारी की आजादी के सभी मार्ग बन्द किये गये हैं.।

वर्तमान युग में भारतीय नारी

उन्नीसवी शताब्दी मे ज्ञान-विज्ञान का प्रचार बढ़ा। भारतीय समाज सुधारको ने नारी की त्रासदी पर ध्यान दिया। उन्होने सबसे नारी की दशा में सुधार जरुरी बतलाया। स्त्री-शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ।

वर्तमान आधुनिक युग में हम नारी के दो रूप देखते हैं, एक तो वे नारियाँ हैं जो गाँवों में रहती हैं, अशिक्षित हैं व दूसरी शहरो में रहने वाली शिक्षित महिलाए है। गाँवों की नारियाँ शिक्षा के अभाव मे अभी भी सामाजिक कुरीतियो से ग्रस्त है।

शहरो की शिक्षित नारियों में मानसिक विकृति आ गयी है परिणाम स्वरूप तथाकथित शिक्षित नारी अपने अंगों के नग्न-प्रदर्शन को ही सभ्यता समझने लगी है पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण करने वाली आधुनिक नारी अपने प्राचीन रूप से बिल्कुल भिन्न हो गई है।

स्वतंत्र भारत में नारी की भूमिका

भारतीय नारी ने आजाद भारत में जो तरक्की की है, उससे देश का विकास हो रहा है अब  नारी पुरुष के समान राष्ट्रपति, मन्त्री, डॉक्टर, वकील, जज, शिक्षिका, प्रशासनिक अधिकारी आदि सभी पदों और सभी क्षेत्रों में नारियाँ आसानी से काम रही हैं।

सारे देश में नारी-शिक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। नारी सशक्तिकरण की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, फिर भी नारी को वैदिक काल में जो सम्मान और प्रतिष्ठा व्याप्त थी, वह आधुनिक शालीन नारी को अभी तक नही मिली है।

आजाद भारत की नारी नितान्त पूर्ण आजादी चाहती है, पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण कर वह मोडर्न बनना चाहती है। इस तरह के आचरण से भारतीय नारी के ट्रेडिशनल आदर्शों की कमी हो रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों की नारी अभी भी कुरीतियों से फंसी हुई हैं। पिछड़े वर्ग के लोगों में स्त्री का शोषण-उत्पीड़न लगातार चल रहा है। इन सब बुराइयों को दूर करने में नारी की भूमिका अहम है।

हमारे देश में प्राचीन काल में नारी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था. मगर काल के घूमते चक्र में मध्यकाल आते आते नारी का स्थान दासी के समान हो गया.

तथा आजादी के बाद भारत की नारी ने अपने प्राचीन पद को पुनः प्राप्त की तथा अपने गौरव व आदर्शों को प्रतिष्ठापित किया. मर्यादा की स्वरूप रही भारतीय नारी से मर्यादित आचरण की आशा की जाती हैं.

भारतीय नारी कल और आज पर निबंध – Bhartiya Nari Aaj Aur Kal Essay In Hindi

नर और नारी जीवन रुपी रथ के दो पहिये हैं. एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता. अतः दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए. भारतीय महापुरुषों ने इसीलिए नारी की महिला का बखान किया हैं.

मनु कहते हैं जहाँ नारी का सम्मान होता हैं. वहां सभी देवता निवास करते हैं. स्वार्थी और अहंकारी पुरुषों ने नारी को अबला और पुरुष  की आज्ञा कारिणी  मानकर उनकी गरिमा को गिरा दिया. उसे अशिक्षा और पर्दे की दीवारों में कैद करके एक दासी जैसा जीवन बीताने के  लिए  बाध्य कर दिया.

बीते कल की नारी

हमारे देश में प्राचीन समय में नारी को समाज में पूरा सम्मान प्राप्त था. वैदिक कालीन नारियाँ सुशिक्षित और स्वाभिमानी होती थीं. कोई भी धार्मिक कार्य पत्नी के बिना सफल नहीं माना जाता था. धर्म, दर्शन, युद्ध क्षेत्र आदि सभी क्षेत्रों में नारियाँ पुरुषों से पीछे नहीं थी.

विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारियों के आगमन के साथ ही भारतीय नारी का मान सम्मान घटता चला गया. वह अशिक्षा और पर्दे में कैद हो गई. उसके ऊपर तरह तरह के पहरे बिठा दिए गये. सैकड़ो वर्षों तक भारतीय नारी इस दुर्दशा को ढोती रही.

स्वतंत्र भारत की नारी ने स्वयं को पहचाना हैं. वह फिर से अपने पूर्व गौरव को पाने के लिए बैचेन हो उठी हैं. शिक्षा, व्यवस्था, विज्ञान, सैन्य सेवा, चिकित्सा, कला, राजनीति हर क्षेत्र में वह पुरुष के कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. वह सरपंच है, जिला अध्यक्ष है मेयर है, मुख्यमंत्री है, प्रधानमंत्री है, राष्ट्रपति है,

लेकिन अभी भी यह सौभाग्य नगर निवासिनी नारी के ही हिस्से में दिखाई देता हैं. उसकी ग्रामवासिनी करोड़ो बहनें अभी भी अशिक्षा उपेक्षा और पुरुष के अत्याचार झेलने को विवश हैं.

एक ओर नारी के सशक्तिकरण की, उसे संसद और विधान सभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बाते हो रही हैं. तो दूसरी ओर पुरुष वर्ग उसे नाना प्रकार के पाखंडों और प्रलोभनों से छलने में लगा हुआ हैं.

भविष्य की नारी

भारतीय नारी का भविष्य उज्ज्वल हैं. वह स्वावलम्बी बनना चाहती हैं. अपना  स्वतंत्र  व्यक्तित्व   बनाना चाहती हैं. सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहती हैं.

ये सारे सपने तभी पूरे होंगे जब वह भावुकता के बजाय विवेक से काम लेगी. स्वतंत्रता को स्वच्छन्दता नहीं बनाएगी. पुरुषों की बराबरी की अंधी दौड़ में न पड़कर अपना कार्य क्षेत्र स्वयं निर्धारित करेगी.

उपसंहार – पुरुष और नारी के संतुलित सहयोग में ही दोनों की भलाई हैं. दोनों एक दूसरे को आदर दे. एक दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करे.

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भारत में महिला सशक्तिकरण.

  • 14 Feb, 2023 | श्रुति गौतम

hindi essay nari suraksha

भारत अपने इतिहास और संस्कृति की वजह से पूरे विश्व में एक विशेष स्थान रखता है। हमारा यह देश सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य शक्ति आदि में विश्व के बेहतरीन देशों में शामिल है। वैसे तो आजादी के बाद देश की इन स्थितियों में सुधार की पहल हुई लेकिन हालिया समय में इस क्षेत्रों में पहल तेज हुई है। इसके लिए समाज के मानव संसाधन को लगातार बेहतर, मजबूत व सशक्त किया जा रहा है और समाज की आधी आबादी स्त्रियों की है, इस बाबत उनके लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि यदि किसी समाज की प्रगति के बारे में सही-सही जानना है तो उस समाज की स्त्रियों की स्थिति के बारे में जानो। कोई समाज कितना मजबूत हो सकता है, इसका अंदाजा इस बात से इसलिए लगाया जा सकता है क्योंकि स्त्रियाँ किसी भी समाज की आधी आबादी हैं। बिना इन्हें साथ लिए कोई भी समाज अपनी संपूर्णता में बेहतर नहीं कर सकता है। समाज की आदिम संरचना से सत्ता की लालसा ने शोषण को जन्म दिया है। स्त्रियों को दोयम दर्जे के रूप में देखने की कवायद इसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

आधी आबादी के रूप में महिलायें

भारत में विभिन्न संस्कृतियों का संगम है। स्त्री हर संस्कृति के केंद्र में होकर भी केंद्र से दूर है। सिमोन द बोउवार का कथन है, “स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है।” समाज अपनी आवश्यकता के अनुसार स्त्री को ढालता आया है। उसके सोचने से लेकर उसके जीवन जीने के ढंग को पुरुष अभी तक नियंत्रित करता आया है और आज भी करने की कोशिश करता रहता है। पितृसत्तात्मक समाज ने वह सब अपने अनुसार तय किया है। जब-जब सशक्तिकरण का सवाल उठता है तब-तब समाज ही कठघरे में खड़ा होता है । समाज में लगातार बदलावों के लिए संघर्ष चलता रहता है ।

मातृसत्तात्मक समाज

भारत व समूचा विश्व पितृसत्तात्मक समाज के ढांचे में रहता आया है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं, तो उसका आशय यह नहीं है कि अब पितृसत्तात्मक समाज को बदल कर मातृसत्तात्मक समाज में बदल दिया जाए। भारत में पूर्वोत्तर की खासी व कुछ अन्य जनजातियों में मातृसत्तात्मक समाज की अवधारणा देखी जाती है जहाँ नारी की प्रधानता है। विश्व की कुछ जनजातियों जैसे चीन की मोसुओ, कोस्टा रिका की ब्रिब्रि जनजाति, न्यू गुयाना की नागोविसी जनजाति मातृसत्तात्मक है। यहाँ महिलायें ही राजनीति, अर्थव्यवस्था व सामाजिक क्रियाकलापों से जुड़े निर्णय लेती हैं। यदि समाज को स्वस्थ दिशा में आगे बढ़ना है तो समाज मातृ या पितृसत्तात्मक होने के बजाय इनसे निरपेक्ष हो तो एक बेहतर सामाजिक संरचना तैयार होगी और सही मायनों में पुरुष-स्त्री समान रूप से सशक्त होंगे।

महिला सशक्तिकरण का आधार- विश्व में नारी आंदोलन व भारत में इसका प्रभाव

विश्व में नारी आंदोलन की नींव 19वीं शताब्दी में ही रखी गई। पश्चिम के कई राष्ट्र उस दौर में इस आंदोलन में भागीदार बने। नारी आंदोलन जब सामने आए तब ही स्त्री सशक्तिकरण की एक अवधारणा दुनिया के समक्ष प्रमुखता से आई। इसलिए स्त्री सशक्तिकरण को समझने के लिए नारी आंदोलन को समझना भी अतिआवश्यक है। सरल शब्दों में कहें तो नारी आंदोलन की शुरुआत समाज द्वारा नारी को निम्नतर समझने से हुई। नारीवाद का महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि इस पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री को हीन दर्जा प्राप्त है। यह समाज ही उसके लिए जीवन जीने के नियम और स्वरूप को गठित करता है। स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व को नकार देता है। नारी आंदोलन किसी पुरुष का नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक विचार का विरोध करता है। यह आंदोलन मानता है कि स्त्री को भी पुरुष के बराबर सम्मान, अधिकार व अवसर मिले। नारी आंदोलन लैंगिक असमानता के स्थान पर इस अवधारणा को मानता है कि स्त्री भी एक मनुष्य है। मनुष्य होने के साथ-साथ वह दुनिया की आधी आबादी है। सृष्टि के निर्माण में उसका भी उतना ही सहयोग है जितना कि पुरुष का।

नारी आंदोलन का पहला चरण 19वीं सदी का उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के प्रारंभ होने का है। अमरीका के शहरी, उदारवादी और औद्योगिक माहौल में महिलाओं के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना इसका पहला उद्देश्य था। दूसरी लहर साठ के दशक से शुरू हुई मानी जाती है। इसमें यह पहचान की गयी कि कानून व वास्तविक असमानताएं दोनों आपस में जटिलतापूर्वक जुड़ी हुई हैं एवं इसे दूर किया जाना चाहिए। तीसरी लहर नब्बे के दशक से प्रारंभ होती है। यह द्वितीय लहर की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई। इसमें दूसरी लहर के द्वारा नारीत्व की दी हुई परिभाषा को चुनौती दी गई। वैश्विक रूप में जिस प्रकार नारीवाद को देखा जा रहा था, उसे गढ़ा जा रहा था, उसी क्रम में उसी के साथ भारत में भी महिलाओं की स्थितियों को लेकर लगातार समाज सुधार के व्यापक प्रयास हो रहे थे। लेकिन इसका स्वरूप वैसा नहीं था जैसा वह पश्चिम में रहा है। भारत में नवजागरण अर्थात उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से इसकी शुरुआत मानी जाती है जो 1915 के आस पास तक रहती है। यह उत्थान समाज सुधार व राष्ट्रीय आंदोलन के साथ जुड़कर आगे बढ़ रहा था। इसमें अंधविश्वासों के विरुद्ध आवाज, बाल विवाह, सती प्रथा व देवदासी प्रथा के खिलाफ आवाज आदि की बात उठाई गई। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा व सवित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई जैसे लोगों ने तत्कालीन समाज के अनुसार स्त्रियों की समस्याओं को दूर कर उनके लिए एक अनुकूल माहौल बनाकर व उनको सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया।

भारत में स्त्री को सशक्त करने की दिशा में नारी आंदोलनों का दूसरा दौर जो लगभग भारत में गांधी के आगमन के साथ आरंभ होता है वह 1915 से आरंभ हुआ माना जाता है। यह वो दौर था जब महिलाएं एक आह्वान पर सक्रिय रूप से भागीदारी कर रही थीं। यह वही दौर है जब 1917 में भारतीय महिला संघ की स्थापना हुई। इस समय गांधी व अम्बेडकर जी द्वारा महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में लाने का प्रयास सराहनीय रूप से देखा जाता है। महात्मा गांधी बड़े व्यावहारिक रूप से पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा उन्मूलन व विधवाओं की समस्याओं तथा छुआछूत के उन्मूलन की बात कर रहे थे। दूसरी ओर ऐसे ही कार्य डॉ. अंबेडकर कर रहे थे जहाँ उन्होंने मताधिकार दिलाना, लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना व समानता के अधिकार को दिलाने में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारत में इसका तीसरा चरण जो अभी तक देखा जा सकता है उसके प्रमुख बिंदु महिलाओं के सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक जीवन में समानता से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार भारत में महिला सशक्त होने की दिशा में नारीवादी आंदोलन ने एक मुख्य भूमिका निभाई है। वर्तमान समय में अनेक क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्त होने के तमाम पहलू व उसमें आने वाली चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं।

सशक्त होने का वास्तविक आशय

पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य की पंक्ति है कि “दिवस कमजोरों के मनाए जाते हैं, मजबूत लोगों के नहीं।“ सशक्त होने का आशय केवल घर से बाहर निकल कर नौकरी करना या पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलना भर नहीं है। सशक्त होने का आशय यहाँ पर उसके निर्णय ले सकने की क्षमता का आधार है कि वह अपने निर्णय स्वयं ले रही है या इसके लिए वह किसी और पर निर्भर है। इसी प्रकार आज आर्थिक रूप से सशक्त होने उसके लिए बहुत आवश्य है। यदि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है तो वह कभी भी सशक्त नहीं हो सकेगी, इसलिए यह एक और अन्य महत्वपूर्ण पहलू है।

भारत में महिलाओं को आज सभी क्षेत्रों में वैधानिक रूप से समान अधिकार प्राप्त है लेकिन समाज में उन्हें आज भी इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। सामाजिक रूप से आज भी हमारे समाज का मूल पितृसत्ता के रूप में मौजूद है। ग्रामीण क्षेत्रों में पितृसत्तात्मक ढांचा आज भी बहुत मजबूत है। समय-समय पर खाप पंचायतें या इसकी जैसी ही अन्य संस्थाएं महिलाओं के वस्त्र पहनने को लेकर मोरल पुलिसिंग के तमाम प्रावधान सुझाते रहते हैं। धर्म भी इसमें कई बार अपनी भूमिका अदा करता है। धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश को वर्जित करना इसके ताजातरीन परिणाम हैं। सबरीमाला या अन्य धर्म के स्थलों पर प्रवेश न करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। धर्म-जाति के गठजोड़, रूढ़ि व अंधविश्वास ने महिलाओं को और शोषित किया है।

राजनीति का क्षेत्र इतिहास से वर्तमान तक पुरुषों के एकाधिकार का क्षेत्र रहा है। कभी भी इस पर महिलाओं का एकाधिकार स्थापित नहीं हुआ। राजनीति घरेलू चारदिवारी से बाहर निकल समाज को संचालित करने वाली, दिशा देने का कार्य करती है। विश्व के हर कोने में पूरे समाज में राजनीतिक पदों पर पुरुषों को ही देखा गया। भारतीय समाज भी इससे अलग नहीं है। आदिम समय से चली आ रही पुरुष प्रधान परंपरा अभी भी सतत क़ायम है। वर्तमान समय में देश की लोकसभा के कुल 542 सांसदों में से केवल 78 महिला सांसद हैं, वहीं राज्यसभा में केवल 24 सांसद हैं। कुल 28 राज्यों में वर्तमान समय में केवल 1 महिला मुख्यमंत्री हैं। वर्तमान राष्ट्रपति केवल दूसरी महिला हैं जो इस पद को सुशोभित कर रही हैं। भारत में राष्ट्रपति से ज़्यादा व्यावहारिक पद प्रधानमंत्री का माना जाता रहा है, इस पद केवल एक महिला का आ पाना सब कुछ उजागर करता है।

महिलाओं का आर्थिक रूप से सशक्त होना उनके पूरे भविष्य को तय करता है। यदि हम अपने निर्णय स्वयं ले सकते हैं तो सही मायने में हम पूरी तरह से आजाद हैं। अनेक मसलों पर हमारा निर्णय निर्भरता की वजह से प्रभावित होता है। भारतीय सामाजिक संरचना में महिलायें काम करने के लिए बाहर नहीं जाया करती थीं, इसलिए कोई आर्थिक स्वतंत्रता उनके पास नहीं थी। पैसे के लिए वे अपने घर के पुरुषों यथा पिता, भाई, पति या पुत्र पर निर्भर रहा करती थीं। आज ये परिस्थितियाँ बदली हैं। महिलायें घरों से बाहर निकली हैं, पढ़ कर सभी क्षेत्रों में नौकरियां कर रही हैं। सरकारी व निजी क्षेत्र में वे समान वेतन पर काअम कर रही हैं लेकिन निजी क्षेत्रों में कई बार, कई जगहों पर उन्हें आज भी भेद-भाव का सामना करना पड़त है। एक लंबे समय तक भारतीय पुरुष व महिला क्रिकेट खिलाड़ियों की बीसीसीआई द्वारा दिए जाने वाली वार्षिक फीस में भेदभाव था, इसे अब 2022 में जाकर दूर किया गया । पूरे फिल्म उद्योग में पुरुष सितारों की फीस कि तुलना में महिलाओं की फीस काफी कम है। ऐसी असमानताएं निजी क्षेत्रों में आज बरकरार है जिसे दूर किए जाने की जरूरत है। फिल्म निर्देशन, उद्यमिता एवं कार्पोरेट के मुखिया जैसी जगहों पर इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ कर केवल पुरुषों का ही वर्चस्व है जो दर्शाता है कि पुरुष प्रधानता के लक्षण मौजूद हैं।

भारत मे महिलाओं के शिक्षा के प्रयास आधुनिक काल के शुरुआती दौर में ही हुए जिसका प्रसार अब लगातार देखने को मिलता है। आज के भारत में ग्रामीण क्षेत्रों की बच्चियाँ भी अब पढ़ने जाने लगी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत अवधारणाएं अभी भी बलवती हैं जिनके बावजूद निचली जाति की लड़कियां भी अब प्राथमिक विद्यालय की ओर रुख कर रही हैं जो कि एक सकारात्मक संकेत है लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा आज भी घरेलू काम-काज तक ही सीमित हैं। शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की स्थितियों में अंतर आज भी विद्यमान है। पूरे देश में महिलाओं की स्थिति को सशक्त करने में इस तरह के मौजूद अंतर को पाटना अभी बेहद जरूरी है।

वर्तमान समय में महिला अपनी बेहतरी की ओर बढ़ रही है परंतु हमेशा से स्त्री की स्थिति इतनी निम्नतर नहीं थी। वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल को देखें तो स्त्री ने सम्माननीय जीवन पहले भी जिया है। एक सशक्त जीवन की गवाह वह पहले भी रह चुकी है।

उत्तरवैदिक काल से स्त्री की स्थिति में एकाएक बदलाव नहीं हुए। स्त्री पर अनगिनत अंकुश लगाए जाने लगे। मध्यकाल तक आते-आते स्त्री की स्थिति दयनीय हो चुकी थी। हालांकि भारतीय इतिहास में भक्ति आंदोलन के समय में महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हुआ लेकिन लगातार हो रहे आक्रमणों के बीच महिलाओं को पुनः घरों में कैद किया गया। किसी भी आक्रमण में सर्वाधिक शोषित महिलायें ही रहीं। बाद में एक हरम में कई रानियों को रखने का रिवाज सामान्य हो गया। भोग की वस्तु के रूप में तब्दील हो चुकी स्त्री

दशा को सुधार करने की कोशिश फिर आधुनिक काल में ही शुरू हुई। एक लंबे प्रयास व आंदोलनों से गुजरते हुए महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए खुद लड़कर अपने लिए अनेक नए अवसरों का रास्ता खोला। अभी सामाजिक-आर्थिक-राजनीति और सांस्कृतिक रूप से कई जगहों पर इनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना बाकी है, जो इस सभ्य समाज में उनका हक़ है। महिलाओं के लिए संभावनाओं का बड़ा द्वार अभी भी उनके इंतजार में है जो लगातार उनके सशक्त होते रहने से ही खुल सकेगा।

असिस्टेंट प्रोफेसर (वी आई पी एस) दिल्ली

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स्त्री शिक्षा का महत्व क्या है?

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  • Updated on  
  • नवम्बर 21, 2022

स्त्री शिक्षा का महत्व

प्राचीन काल से कई शासकों, योद्धा अर्थात पुरुष प्रधान समाज के कारण स्त्री शिक्षा का महत्व नहीं था किन्तु एक शताब्दी पहले राजा राममोहन रॉय और ईश्वरचंद विद्यासागर ने नारी शिक्षा का प्रचलन किया। इन्हें कई विरोध एवं हिंसा का सामना करना पड़ा परन्तु लोगों में स्त्री शिक्षा के महत्व को लेकर परिवर्तन आया। जैसे जैसे समय बढ़ता चला गया और नारी शिक्षा में बदलाव और विकास होने लगा। जिस प्रकार पुरुष को इस देश के प्रगति, विकास एवं उन्नति के लिए विद्या मिल रही है तो नारी भी इस देश की नागरिक है और उसे भी शिक्षा प्राप्ति का पूरा हक़ है। जब दोनों को संविधान में समान अधिकार मिला है तो शिक्षा के क्षेत्र में भी समान अधिकार हो। तो आइये पढ़तें हैं कि स्त्री शिक्षा का महत्व प्राचीनकाल से वर्तमान तक कैसा उतार-चढ़ाव रहा है।

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स्त्री शिक्षा का अर्थ, स्त्री शिक्षा का स्वरुप , स्त्री शिक्षा का महत्व, स्त्री शिक्षा का समाज पर प्रभाव, स्त्री शिक्षा के प्रति जागरूकता , स्त्री शिक्षा की आवश्यकता , स्त्री शिक्षा के महत्व पर कविता , सिखने सिखाने की क्रिया को शिक्षा कहते है। शिक्षा के ज़रिए मनुष्य के ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि करके उसके अनुवांशिक गुणों को निखारा जा सकता है और उसके व्यवहार को अर्जित किया जा सकता है। शिक्षा व्यक्ति की बुद्धि, बल और विवेक को उत्कृष्ट बनाती है वहीं एक अशिक्षित व्यक्ति जानवर के समान है।प्राचीन काल में स्त्रियों को केवल घर और विवाहित जीवन गुजारने की सलाह दी जाती थी परन्तु समाज के विकास के साथ-साथ नारी शिक्षा को भी अलग आकर और पद प्राप्त हुआ है। पुरुषप्रधान समाज से ही स्त्री अपने काम का लोहा मनवा रही हैं। कहते हैं कि एक अशिक्षित नारी गृहस्थी की भी देखभाल अच्छे से नहीं कर सकती है।  .

एक कहावत है कि ‘एक पुरुष को शिक्षित करके हम सिर्फ एक ही व्यक्ति को शिक्षित कर सकते हैं लेकिन एक नारी को शिक्षित करके हम पूरे देश को शिक्षित कर सकते हैं’। किसी देश और समाज की तो छोड़िये हम अपने परिवार के उन्नति की कल्पना भी स्त्री शिक्षा के बिना नहीं कर सकते हैं। किसी भी लोकतंत्र की यह नींव है कि स्त्री और पुरुष को बराबर शिक्षा प्राप्त करने का हक़ हो। एक पढ़ी लिखी स्त्री ही समाज में ख़ुशी और शांति ला सकती है। कहते हैं कि बच्चे इस देश का भविष्य हैं और एक नारी ही माँ के रूप में उसके पहले शिक्षा का श्रोत है। इसी कारणवस एक स्त्री का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है। एक शिक्षित नारी ना केवल अपने गृह का बल्कि पूरे समाज को सही दिशा प्रदान करती है। हर एक स्त्री को अपनी इच्छानुसार शिक्षा ग्रहण करने का हक़ है और उस क्षेत्र में कार्य कर सकें जिनमे वह कुशल हैं। स्त्री शिक्षा का महत्व विभ्भिन तरीके से समाज के काम आता है जैसे कि –

स्त्री शिक्षा का महत्व

  • समाज के विकास और देश के आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए नारी का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।       
  • स्त्री शिक्षा का बहिष्कार देश के हित के खिलाफ होगा। 
  • सर्व शिक्षा अभियान
  • इंदिरा महिला योजना
  • बालिका समृधि योजना
  • राष्ट्रीय महिला कोष
  • महिला समृधि योजना
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
  •  कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984
  • महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986
  • सती निषेध अधिनियम 1987
  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005

आज के युग में ऐसे लाखों उदहारण हैं जिनमें महिलाओं ने अपने काम और गौरव का लोहा मनवाया है – रानी लक्ष्मीभाई ,एनी बेसेंट,मदर टेरेसा,लता मंगेशकर,कल्पना चावला,पीवी सिंधु , आदि।

यह भी पढ़ें : महिला सशक्तिकरण पर निबंध

पुरुष और स्त्री इस समाज के एक सिक्के के दो पहलु हैं तो फिर शिक्षा भी एक समान प्राप्त होनी चाहिए। जिस तरह पुरुष का शैक्षिक जीवन इस समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है उसी प्रकार नारी शिक्षा भी देश के हित के लिए आवश्यक है। किसी भी तरह की नकारात्मक सोच इस समाज के विकास का रोड़ा बन सकती है। आज के इस युग में स्त्री पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर रही हैं। हर एक क्षेत्र में नारी आज कुशल है, वह घर की देखभाल के साथ साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अडिग है। 

शिक्षा के बिना संस्कार का कोई स्थान नहीं है और एक शिक्षित माँ ही संस्कार का उपचार है। संस्कृत में एक उक्ति प्रसिद्ध है-“नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ती मातृ समोगुरु” इसका मतलब है की इस दुनिया में विद्या के समान कोई क्षेत्र नही है और माता के समान कोइ गुरु नही है| देखा जाए तो कई जमाने से नारी के प्रति हमारा देश बढ़ा ही श्रद्धापूर्ण और सम्मानजनक रहा है परन्तु समय काल से शोषण नारी को क्षति पहुंचाता रहा है।स्त्री शिक्षा के महत्व ने ऐसी लड़ाइयों पर विजय पाई है। आजकल समाज के ये दोनों पहलु स्त्री शिक्षा के महत्व को समझकर एक विकसित देश की नींव दे रहे है।   

यह भी ज़रूर पढ़ें : निबंध लेखन

एक स्त्री शिक्षित होती है तो वह अपनी शिक्षा का उपयोग समाज और परिवार के हित के लिए करती है। एक शिक्षित स्त्री के कारण देश कि आर्थिक स्थिति और घरेलु उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। एक शिक्षित नारी घरेलु हिंसा और अन्य अत्याचारों से सक्षमता से निजाद पा सकती है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि स्त्री शिक्षा का प्रभाव परिवार,समाज और देश के हर क्षेत्र में अहम योगदान देता है। देश के हर उच्च पद पर आज महिलाओं ने महत्वपूर्ण फ़र्ज़ निभाया है।  

अभी भी इस समाज में स्त्री को शिक्षा का समान दर्ज़ा दिलाने की जागरूकता है। कहीं न कहीं आज भी कुछ घरों में भेदभाव की प्रचलन है जिसके चलते सिर्फ लड़कों को ही शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति होती है। इस देश में महिला सशक्तिकरण को और मजबूत करने की ज़रूरत है। जब महिलाएं अपने अधिकारों से परिचित होंगी तभी वह सही कदम उठा पाएंगी। कई सामाजिक एवं राजनितिक संगठन और संस्थानों को स्त्री शिक्षा के महत्व के लिए इस समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है।    

एक स्त्री शिक्षा के बिना एक विकसित समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्त्री शिक्षा की आवश्यकता इस समाज और देश को कुछ यूँ है –

  • स्त्री शिक्षा से बौद्धिक विकास प्राप्त होगा जिससे समाज के व्यवहार में सरसता आएगी। 
  • मानसिक और नैतिक शक्ति के विकास में महिलाएं पुरूषों का सम्पूर्ण योगदान दे रही हैं। 
  • एक शिक्षित नारी गृहस्थ-जीवन में शांति और खुशहाली का स्रोत होती है।
  • स्त्री शिक्षा हमारे संस्कृति के ऊर्जा और विकास का संचार है। 
  • जब कभी नए समाज की स्थापना की जाती है तो शिक्षित महिलाएं एक बेहतर अकार और व्यवस्था प्रदान करती हैं।    

स्त्री शिक्षा का महत्व

नारी तेरे रूप अनेक, सभी युगों और कालों में है तेरी शक्ति का उल्लेख । ना पुरुषों के जैसी तू है ना पुरुषों से तू कम है।। स्नेह,प्रेम करुणा का सागर शक्ति और ममता का गागर । तुझमें सिमटे कितने गम है।। गर कथा तेरी रोचक है तो तेरी व्यथा से आंखे नम है। मिट-मिट हर बार संवरती है।। खुद की ही साख बचाने को हर बार तू खुद से लड़ती है। आंखों में जितनी शर्म लिए हर कार्य में उतनी ही दृढ़ता।। नारी का सम्मान करो ना आंकों उनकी क्षमता। खासतौर पर पुरुषों को क्यों बार बार कहना पड़ता।। हे नारी तुझे ना बतलाया कोई तुझको ना सिखलाया। पुरुषों को तूने जो मान दिया हालात कभी भी कैसे हों।। तुम पुरुषों का सम्मान करो नारी का धर्म बताकर ये । नारी का कर्म भी मान लिया औरत सृष्टि की जननी है ।। श्रृष्टि की तू ही निर्माता हर रूप में देखा है तुझको । हर युग की कथनी करनी है युगों युगों से नारी को ।। बलिदान बताकर रखा है तू कोमल है कमजोर नहीं । पर तेरा ही तुझ पर जोर नहीं तू अबला और नादान नहीं ।। कोई दबी हुई पहचान नहीं है तेरी अपनी अमिटछाप । अब कभी ना करना तू विलाप चुना है वर्ष का एक दिन ।। नारी को सम्मान दिलाने का अभियान चलाकर रखा है । बैनर और भाषण एक दिन का जलसा और तोहफा एक दिन का ।। हम शोर मचाकर बता रहे हम भीड़ जमाकर जता रहे । ये नारी तेरा एक दिन का सम्मान बचाकर रखा है ।। मैं नारी हूं है गर्व मुझे ना चाहिए कोई पर्व मुझे । संकल्प करो कुछ ऐसा कि अब सम्मान मिले हर नारी को, बंदिश और जुल्म से मुक्त हो वो अपनी वो खुद अधिकारी हो।। -प्रतिभा तिवारी  

भारत का बाकी देशों  से पीछे होने का कारण महिलाओं को शिक्षा न मिलना ही है। प्राचीनकाल से स्त्रियों पर अत्याचार और पाबंधियाँ बढ़ती रही हैं जिसका मुख्य कारण स्त्री शिक्षा को महत्व ना देना ही है।  

नारी शिक्षा परिवार में विनम्रता और सहनशीलता प्रदान करती है बल्कि समाज और देश में सामाजिक और आर्थिक मजबूती को सही दिशा देती है। सरकार को महिलाओं के विकास के लिए बेहतर विद्यालय और विश्वविद्यालयों का निर्माण कराना चाहिए ताकि स्त्री शिक्षा को मजबूती मिल सके। 

भारत में महिलाओं की स्थिति समय के हिसाब से बदलती रही है जिसमें अनेक उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं। वैदिक युग में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था परन्तु तमाम अत्याचारों के कारण वे उससे वंछित रहती थी। परन्तु इस आधुनिक युग में स्त्री शिक्षा के महत्व को सही दिशा मिली है जिससे वह कई अत्याचारों से छुटकारा पा चुकी हैं। 

इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 जैसे आदि कदम सरकार द्वारा उठाए गए हैं। 

उम्मीद है कि स्त्री शिक्षा का महत्व आपको समझ आया होगा तथा आपकी परीक्षाओं में आप स्त्री शिक्षा के महत्व पर निबंध इस ब्लॉग की सहायता से ज़रूर लिख पाएंगे। यदि आप इसी तरह के ब्लॉग पढ़ने के लिए  Leverage Edu  की वेब साइट पर बनें रहें।

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध – Women empowerment essay in Hindi

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Women Empowerment Essay in Hindi – Important Topics for All Classes 5th to 12th – हिंदी में महिला सशक्तिकरण पर निबंध

Essay on Women Empowerment in Hindi

  • Essay on Women Empowerment in Hindi is Important for 5,6,7,8,9,10,11 and 12th Class.
  • इस लेख में हम महिला सशक्तिकरण का अर्थ, भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, महिला सशक्तिकरण के लाभ पर चर्चा करेंगे। “

महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम ‘सशक्तिकरण’से क्या समझते है । ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस योग्यता से है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके।

‘महिला सशक्तिकरण’ के इस लेख में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं, जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।

आशा करते हैं कि यह लेख आपको समाज में महिलाओं की स्थिति और अधिकारों से अवगत करवाने में सक्षम होगा और महिला सशक्तिकरण के विषय में आपकी जानकारी को और अधिक विस्तृत करेगा।

  • महिला सशक्तिकरण का अर्थ
  • भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता
  • भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ
  • भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
  • संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम
  • महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका
  • महिला सशक्तिकरण के लाभ
  • Frequently Asked Questions

प्रस्तावना (introduction) आज के आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक विशेष चर्चा का विषय है। हमारे आदि – ग्रंथों में नारी के महत्त्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।

लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा कर सकती हैं।

राष्ट्र के विकास में महिलाओं का महत्त्व और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की जरुरत है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे – दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।

अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है। जहाँ महिलाएँ अपने परिवार के साथ ही बाहरी समाज के भी बुरे बर्ताव से पीड़ित है। भारत में अनपढ़ो की संख्या में महिलाएँ सबसे अव्वल है। नारी सशक्तिकरण का असली अर्थ तब समझ में आयेगा जब भारत में उन्हें अच्छी शिक्षा दी जाएगी और उन्हें इस काबिल बनाया जाएगा कि वो हर क्षेत्र में स्वतंत्र होकर फैसले कर सकें।

महिला सशक्तिकरण का अर्थ – Meaning of women empowerment

स्त्री को सृजन की शक्ति माना जाता है अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व माना गया है। इस सृजन की शक्ति को विकसित-परिष्कृति कर उसे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समानता का सु-अवसर प्रदान करना ही नारी सशक्तिकरण का आशय है। दूसरे शब्दों में – महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और तरक्की प्राप्त कर सके। यह वह तरीका है, जिसके द्वारा महिलाएँ भी पुरुषों की तरह अपनी हर आकंक्षाओं को पूरा कर सके। आसान शब्दों में महिला सशक्तिकरण को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाओं में उस शक्ति का प्रवाह होता है, जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती हैं और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती हैं। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तिकरण है।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता – The need for women empowerment in India

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। प्राचीन काल के अपेक्षा मध्य काल में भारतीय महिलाओं के सम्मान स्तर में काफी कमी आयी। जितना सम्मान उन्हें प्राचीन काल में दिया जाता था, मध्य काल में वह सम्मान घटने लगा था। (i) आधुनिक युग में कई भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं, फिर भी सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है। (ii) शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं। भारत में पुरुषों की शिक्षा दर 81.3 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 60.6 प्रतिशत ही है। (iii) भारत के शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के अपेक्षा अधिक रोजगारशील है, आकड़ो के अनुसार भारत के शहरों में साफ्टवेयर इंडस्ट्री में लगभग 30 प्रतिशत महिलाएँ कार्य करती है, वही ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 90 फीसदी महिलाएँ मुख्यतः कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में दैनिक मजदूरी करती है। (iv) भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता का एक और मुख्य कारण भुगतान में असमानता भी है। एक अध्ययन में सामने आया है कि समान अनुभव और योग्यता के बावजूद भी भारत में महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा 20 प्रतिशत कम भुगतान दिया जाता है।

(v) हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसे हम तभी बरकरार रख सकते है, जब हम लैंगिग असमानता को दूर कर पाए और महिलाओं के लिए भी पुरुषों के तरह समान शिक्षा, तरक्की और भुगतान सुनिश्चित कर सके। (vi) भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा देश विकसित हो पायेगा। (vii) महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। (viii) भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियों को पूजने की परंपरा है लेकिन आज केवल यह एक ढोंग मात्र रह गया है। (ix) पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। (x) पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किए गए हैं। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। (xi) आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। (xii) महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ (hurdles in implementation of women empowerment in India)

भारतीय समाज एक ऐसा समाज है, जिसमें कई तरह के रिवाज, मान्यताएँ और परम्पराएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ पुरानी मान्यताएँ और परम्पराएँ ऐसी भी हैं जो भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए बाधा सिद्ध होती हैं। उन्हीं बाधाओं में से कुछ निम्नलिखित हैं –

(i) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। (ii) पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के वातावरण में रहने के कारण महिलाएँ खुद को पुरुषों से कम समझने लगती हैं और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती हैं। (iii) कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। (iv) समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए समस्याएँ उत्पन्न होती है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़नों में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

(v) भारत में अभी भी कार्यस्थलों में महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कम ही माना जाता है। (vi) भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादा दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है। (vii) समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है। (viii) महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएँ भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएँ है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के बराबर हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। (ix) भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियाँ जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती हैं। (x) हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गए प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती हैं। (xi) भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं। (xii) कामकाजी महिलाएँ भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें। (xiii) कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात, भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे, जब तक हम कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को मिटा नहीं पाएँगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका – Role of the government in implementation of women empowerment in India भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएँ चलाई जाती हैं। इनमें से कई सारी योजनाएँ रोजगार, कृषि और स्वास्थ्य जैसी चीजों से सम्बंधित होती हैं। इन योजनाओं का गठन भारतीय महिलाओं के परिस्थिति को देखते हुए किया गया है ताकि समाज में उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनमें से कुछ मुख्य योजनाएँ मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, जननी सुरक्षा योजना (मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए चलायी जाने वाली योजना) आदि हैं। महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्नलिखित योजनाएँ इस आशा के साथ चलाई जा रही है कि एक दिन भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की ही तरह प्रत्येक अवसर का लाभ प्राप्त होगा-

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना –

यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और कन्या शिक्षा को ध्यान में रखकर बनायी गयी है। इसके अंतर्गत लड़कियों के बेहतरी के लिए योजना बनाकर और उन्हें आर्थिक सहायता देकर उनके परिवार में फैली भ्रांति लड़की एक बोझ है की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

2) महिला हेल्पलाइन योजना –

इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को 24 घंटे इमरजेंसी सहायता सेवा प्रदान की जाती है, महिलाएँ अपने विरुद्ध होने वाली किसी तरह की भी हिंसा या अपराध की शिकायत इस योजना के तहत निर्धारित नंबर पर कर सकती हैं। इस योजना के तरत पूरे देश भर में 181 नंबर को डायल करके महिलाएँ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं।

3) उज्जवला योजना –

यह योजना महिलाओं को तस्करी और यौन शोषण से बचाने के लिए शुरू की गई है। इसके साथ ही इसके अंतर्गत उनके पुनर्वास और कल्याण के लिए भी कार्य किया जाता है।

4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप) –

स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को निखारने का कार्य किया जाता है ताकि उन्हें भी रोजगार मिल सके या फिर वह स्वंय का रोजगार शुरु कर सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे क्षेत्रों के कार्य जैसे कि कृषि, बागवानी, हथकरघा, सिलाई और मछली पालन आदि के विषयों में महिलाओं को शिक्षित किया जाता है।

5) महिला शक्ति केंद्र –

यह योजना समुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसके अंतर्गत छात्रों और पेशेवर व्यक्तियों जैसे सामुदायिक स्वयंसेवक ग्रामीण महिलाओं को उनके अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते है।

6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण –

2009 में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पंचायती राज संस्थानों में 50 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा की, सरकार के इस कार्य के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक स्तर को सुधारने का प्रयास किया गया। जिसके द्वारा बिहार, झारखंड, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के साथ ही दूसरे अन्य प्रदेशों में भी भारी मात्रा में महिलाएँ ग्राम पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।

संसद द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए पास किए कुछ अधिनियम (Laws made by the Parliament favouring women empowerment) कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा भी कुछ अधिनियम पास किए गए हैं। वे अधिनियम निम्नलिखित हैं – (i) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 (ii) दहेज रोक अधिनियम 1961 (iii) एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976 (iv) मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987 (v) लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994 (vi) बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006 (vii) कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013

महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका – (Role of women in the nation’s progress) बदलते समय के साथ आधुनिक युग की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग है तथा स्वयं अपना निर्णय लेती हैं। अब वह चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के लिए विशेष महत्वपूर्ण कार्य करती है। महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। इसी वजह से राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। ऐसी ही एक मिसाल बनी सहारनपुर की अतिया साबरी। अतिया पहली ऐसी मुस्लिम महिला हैं, जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया।

तेजाब पीड़ितों के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली वर्षा जवलगेकर के भी कदम रोकने की नाकाम कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने इंसाफ की लड़ाई लड़ना नहीं छोड़ा। हमारे देश में ऐसे कई उदहारण है जो महिला सशक्तिकरण का पर्याय बन रही है।

आज देश में नारी शक्ति को सभी दृष्टि से सशक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है। आज देश की महिलाएँ जागरूक हो चुकी हैं। आज की महिला ने उस सोच को बदल दिया है कि वह घर और परिवार की ही जिम्मदारी को बेहतर निभा सकती है।

आज की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। फिर चाहे काम मजदूरी का हो या अंतरिक्ष में जाने का। महिलाएँ अपनी योग्यता हर क्षेत्र में साबित कर रही हैं।

महिला सशक्तिकरण के लाभ – Advantages of women empowerment महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण के बिना वह सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा नहीं ले सकती। बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद नहीं ले सकती। स्त्री सशक्तिकरण के अभाव में वह इस योग्य नहीं बन सकती कि स्वयं अपनी निजी स्वतंत्रता और अपने फैसलों पर आधिकार पा सके। महिला सशक्तिकरण के कारण महिलाओं की जिंदगी में बहुत से बदलाव हुए। (i) महिलाओं ने हर कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया है। (ii) महिलाएँ अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद कर रही हैं। (iii) महिलाएँ अपने हक के लिए लड़ने लगी हैं और धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। (iv) पुरुष भी अब महिलाओं को समझने लगे हैं, उनके हक भी उन्हें दे रहें हैं। (v) पुरुष अब महिलाओं के फैसलों की इज्जत करने लगे हैं। कहा भी जाता है कि – हक माँगने से नही मिलता छीनना पड़ता है और औरतों ने अपने हक अपनी काबिलियत से और एक जुट होकर मर्दों से हासिल कर लिए हैं।

महिला अधिकारों और समानता का अवसर पाने में महिला सशक्तिकरण ही अहम भूमिका निभा सकती है। क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण महिलाओं को सिर्फ गुजारे-भत्ते के लिए ही तैयार नहीं करती, बल्कि उन्हें अपने अंदर नारी चेतना को जगाने और सामाजिक अत्याचारों से मुक्ति पाने का माहौल भी तैयारी करती है।

उपसंहार (conclusion)

जिस तरह से भारत आज दुनिया के सबसे तेज आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो समाज की पितृसत्तामक और पुरुष युक्त व्यवस्था है। यह बहुत आवश्यक है कि हम महिलाओं के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाए।

भले ही आज के समाज में कई भारतीय महिलाएँ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, वकील आदि बन चुकी हो, लेकिन फिर भी काफी सारी महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। उन्हें शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्य और सामाजिक आजादी में अभी भी और सहयोग की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण का यह कार्य काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति उसके महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर ही निर्भर करती है।

महिला सशक्तिकरण महिलाओं को वह मजबूती प्रदान करता है, जो उन्हें उनके हक के लिए लड़ने में मदद करता है। हम सभी को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए, उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। इक्कीसवीं सदी नारी जीवन में सुखद सम्भावनाओं की सदी है। महिलाएँ अब हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जाग्रत और सक्रीय हो चुकी है। किसी ने बहुत अच्छी बात कही है “नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी, तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पाएगी । ” वर्तमान में नारी ने रुढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है। लोगों की सोच बदल रही है, फिर भी इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है। Top

महिला अधिकारिता पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इन सवालों के जवाब देने से आपको महिला सशक्तिकरण पर अपने निबंध में शामिल करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु मिलेंगे।

प्रश्न 1- महिला सशक्तिकरण वास्तव में क्या है? A- महिला सशक्तिकरण महिलाओं को अपने निर्णय लेने और अपने स्वयं के जीवन का निर्माण करने का अधिकार और संसाधन देने की प्रक्रिया है, साथ ही लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं की संभावनाओं और स्वायत्तता को सीमित करने वाली बाधाओं को दूर करने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 2- महिला सशक्तिकरण का क्या महत्व है? बी- दीर्घकालीन विकास हासिल करने और बुनियादी अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है। जो महिलाएं सशक्त हैं, वे समाज में भाग लेने, अर्थव्यवस्था में योगदान देने और अपने समुदायों की भलाई में सुधार करने में अधिक सक्षम हैं।

प्रश्न 3- महिलाओं को अधिक शक्ति कैसे दी जा सकती है? शिक्षा, आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और कानूनी सहारा, सरकार में प्रतिनिधित्व, और बदलते सामाजिक और सांस्कृतिक विचार सभी महिलाओं को सशक्त बनाने में सहायता कर सकते हैं।

प्रश्न 4- महिला सशक्तिकरण के क्या लाभ हैं? A- महिला सशक्तीकरण के कई फायदे हैं, जिनमें अधिक आर्थिक अवसर और वित्तीय स्वतंत्रता, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण, अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की शक्ति, और मजबूत समुदाय और समाज शामिल हैं।

प्रश्न 5- महिला सशक्तिकरण के लिए क्या चुनौतियाँ हैं? सांस्कृतिक और सामाजिक विचार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, आर्थिक असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच, और अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सभी महिला सशक्तिकरण के लिए बाधाएं हैं।

प्रश्न 6- महिला सशक्तिकरण में शिक्षा की क्या भूमिका है? A – शिक्षा महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि यह महिलाओं को ज्ञान और कौशल से लैस करती है जिसकी उन्हें समाज और कार्यस्थल में भाग लेने के साथ-साथ सूचित जीवन निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 7- आर्थिक सशक्तिकरण का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है? A- महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण से बहुत लाभ होता है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक रूप से अधिक सुरक्षित बनने और अपने स्वयं के जीवन पर अधिक नियंत्रण रखने के लिए सशक्त बनाता है। यह महिलाओं की संभावनाओं और स्वायत्तता को सीमित करने वाली बाधाओं को दूर करने में भी योगदान देता है।

प्रश्न 8- महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कैसे संबोधित किया जा सकता है? A- कानूनी सुरक्षा और न्याय तक पहुंच, शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की पहल, और बदलती सामाजिक और सांस्कृतिक मानसिकता जो हिंसा को बढ़ावा देती है, सभी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ लड़ाई का समर्थन कर सकती हैं।

प्रश्न 9- महिला सशक्तिकरण में सरकारें क्या भूमिका निभाती हैं? A- सरकारें लैंगिक समानता, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच और महिलाओं के लिए सामाजिक आर्थिक अवसरों को प्रोत्साहित करने के लिए कानून और कार्यक्रम बनाकर महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

प्रश्न 10- समुदाय महिलाओं को सशक्त बनाने में कैसे मदद कर सकते हैं? A- समुदाय लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करके, शैक्षिक अवसरों और संसाधनों को बढ़ावा देकर, और महिलाओं की स्वायत्तता और क्षमता में बाधा डालने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवहारों से निपटकर महिलाओं का समर्थन और सशक्तिकरण कर सकते हैं। Top Recommended Read –

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hindi essay nari suraksha

नारी शिक्षा पर निबंध – Nari Shiksha Essay

Nari Shiksha Essay in Hindi

आज महिलाओं की शिक्षा और सुरक्षा का खास ध्यान दिया जा रहा है। वहीं आज महिलाओं की साक्षरता दर भी पिछले सालों की तुलना में काफी सुधर गई है, जहां पहले महिलाओं को घर की रसोई तक ही सीमित रखा जाता था, और उनको शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाहर नहीं जाने दिया जाता था।

वहीं अब महिलाओं को शिक्षित करने के लिए हमारे समाज के लोगों की सोच विकसित हो रही है, और महिलाओं की शिक्षा अब एक राजनीतिक और सामाजिक मुख्य मुद्दा बन चुका है।

महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में कदम उठाना महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा देना है। लोगों को नारी शिक्षा के लिए जागरूक करने और इसके महत्व को समझऩे के लिए आजकल स्कूलों में नारी शिक्षा पर निबंध भी लिखवाए जाते हैं।

इसी कड़ी में आज हम आपको नारी शिक्षा से संबंधित अलग-अलग शब्द सीमा के निबंध अपने इस लेख में उपलब्ध करवाएं, जिनका आप अपनी जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल कर सकते हैं –

नारी शिक्षा पर निबंध – Nari Shiksha Essay

Nari Shiksha Essay

नारी शिक्षा पर निबंध नंबर 1 (550 शब्द)- Eassy on Women Education (550 Word)

महिलाओं को शिक्षित करने से न सिर्फ एक सभ्य परिवार का निर्माण होता है बल्कि एक सभ्य समाज का भी निर्माण होता है, और देश के विकास को गति मिलती है, इसलिए किसी ने कहा है कि –

”अगर एक आदमी को शिक्षित किया जाता हैं तब एक आदमी ही शिक्षित होता है लेकिन जब एक औरत को शिक्षित किया जाता है तब पीढ़ी शिक्षित होती है”

महिलाएं यानि की आधी आबादी का शिक्षित होना बेहद जरूरी है, तभी हमारा देश पूरी तरह से विकसित देश हो सकेगा। भारतीय समाज के आर्थिक सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए हर किसी को महिलाओं की शिक्षा पर महत्व देना चाहिए।

महिला शिक्षा का महत्व – Importance of Nari Shiksha

वैसे तो सभी के लिए शिक्षा का सामान रुप से महत्व है, लेकिन महिलाओं की शिक्षा, कई मायनों में बेहद महत्व रखती हैं, इसलिए महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरूरी है।

  • शिक्षित महिला एक मां के रुप में न सिर्फ अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देती है, बल्कि एक शिक्षित महिला समाज के विकास में और राष्ट्र की उन्नति में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • शिक्षा से महिलाओं के अंदर बढ़ता है आत्मविश्वास और आत्मसम्मान
  • महिलाओं को शिक्षित करने से न सिर्फ उनका आत्मसम्मान बढ़ता है, बल्कि उनमें आत्मनिर्भर बनने का भाव भी पैदा होता है, जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • शिक्षा के माध्यम से ही महिलाओं को अपने सामर्थ्य को समझने का मौका मिलता है और वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर खुद को बेहतर साबित कर सकती है।
  • इसके साथ ही वे पुरुष प्रधान देश में भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती हैं।

शिक्षा से महिला सशक्तिकरण को मिलता है बढ़ावा – Women Empowerment

शिक्षा से ही आज महिलाओं को स्थिति मजबूत हुई है, जिससे महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला है।

एक शिक्षित महिला अपनी जिंदगी से जुड़े फैसले खुद करने में सक्षम होती हैं, अर्थात एक शिक्षित महिला किसी भी तरह से पुरुषों पर निर्भर नहीं रहती हैं और अपने जिंदगी से जुड़े अहम फैसले खुद करती है।

शिक्षा से महिलाओं को आर्थिक रुप से मिलती है मजबूती

एक शिक्षित महलिाओं के लिए आज हर क्षेत्र में नौकरी की अपार संभावनाएं हैं, जहां वह नौकरी कर न सिर्फ पैसा कमा सकती हैं, बल्कि एक पुरुष की तरह अपने परिवार का खर्चा भी उठा सकती हैं।

महिलाओं के शिक्षित होने से घरेलू हिंसा के मामलों में भी कमी आयी है।

शिक्षित महिलाओं से परिवार को मिलती है मजबूती

एक शिक्षित महिला न सिर्फ अपने परिवार को सही तरीके से चलाती है बल्कि अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देती है और उनके आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशक्त करती है जिससे परिवार की उन्नति होती है, वहीं कामकाजी महिला से आर्थिक रुप से भी परिवार मजबूत बनता है।

शिक्षित महिलाएं समाज के विकास में निभाती हैं महत्वपूर्ण भूमिका

एक शिक्षित महिला समाज के हर पहलू पर बारीकी से ध्यान देती है। इसके साथ ही सामाजिक स्थिरता से जुड़ी परेशानियों को ढूढंने में भी मदत करती हैं, जिससे समाज के विकास को बढ़ावा मिलता है।

वहीं महिलाओं के शिक्षित होने से माता-शिशु मृत्यु दर में भी कमी आई है और जीवन रक्षा दर, सामुदायिक उत्पादकता और स्कूली शिक्षा में बढ़ोतरी हुई है।

राष्ट्र की उन्नति के लिए भी महिलाओं की शिक्षा है बेहद जरूरी

शिक्षित महिलाएं आज इंजीनियरिंग,मेडिकल, टीचिंग, पर्यटन, मनोरंजन समेत तमाम क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं और आर्थिक रुप से मजबूत बन रही हैं। इसके साथ ही पुरुषों के बराबर ही किसी कंपनी के विकास में समान रुप से अपना सहयोग दे रही हैं, जिससे राष्ट्र की उन्नति हो रही है और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही हैं। इसलिए महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरूरी है।

अगले पेज पर और भी नारी शिक्षा पर निबंध…..

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नारी शक्ति पर निबंध- Essay on Nari Shakti in Hindi Language

In this article, we are providing information about Nari Shakti in Hindi- A Short Essay on Nari Shakti in Hindi Language. नारी शक्ति पर निबंध, Nari Shakti Par Nibandh in 300 words.

जरूर पढ़े – Women Empowerment Essay in Hindi

नारी शक्ति पर निबंध- Essay on Nari Shakti in Hindi Language

Essay on Nari Shakti in Hindi

( Essay-1 ) Nari Shakti Essay in Hindi

नारी समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। नारी के अंदर सहनशीलता, धैर्य, प्रेम, ममता और मधुर वाणी जैसे बहुत से गुण विद्यमान है जो कि नारी की असली शक्ति है। यदि कोई नारी कुछ करने का निश्यचय कर ले तो वह उस कार्य को करे बिना पीछे नहीं हटती है और वह बहुत से क्षेत्रों में पुरूषों से बेहतरीन कर अपनी शक्ति का परिचय देती है।

प्राचीन काल से ही हमारे समाज में झाँसी की रानी, कल्पना चावला और इंदिरा गाँधी जैसी बहुत सी महिलाएँ रही है जिन्होंने समय समय पर नारी शक्ति का परिचय दिया है और समाज को बताया है कि नारी अबला नहीं सबला है। आधुनिक युग में भी महिलाओं ने अपने अधिकारों के बारे में जाना है और अपने जीवन से जुड़े निर्णय स्वयं लेने लगी है। आज भी महिला कोमल और मधुर ही है लेकिन उसने अपने अंदर की नारी शक्ति को जागृत किया है और अन्याय का विरोध करना शुरू किया है।

आज के युग में नारी भले ही जागरूक हो गई है और उसने अपनी शक्ति को पहचाना है लेकिन वह आज भी सुरक्षित नहीं है। आज भी नारी को कमजोर और निस्सहाय ही समझा जाता है। पुरूषों को नारी का सम्मान करना चाहिए और उन पर इतना भी अत्याचार मत करो की उनकी सहनशीलता खत्म हो जाए और वो शक्ति का रूप ले ले क्योंकि जब जब नारी का सब्र टूटा है तब तब प्रलय आई है। नारी देवीय रूप है इसलिए नारी शक्ति सब पर भारी है। नारी से ही यह दुनिया सारी है।

हम सब को नारी शक्ति को प्रणाम करना चाहिए और आगे में उनकी मदद करनी चाहिए क्योंकि यदि देश की नारी विकसित होगी तो हर घर, हर गली और पूरा देश विकसित होगा।

10 lines on My Mother in Hindi

( Essay-2 ) Nari Shakti Par Nibandh in 500 words| नारी शक्ति पर 500 शब्दों में निबंध

प्रस्तावना यह बात तो हम सभी जानते ही हैं कि नारी शक्ति का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है। पहले समय की बात कुछ और थी, जब नारी को कमजोर समझा जाता था। लेकिन आज 20वीं सदी की नारी बहुत तरक्की कर रही है। आज की महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं।

हर क्षेत्र में लहरा रही है परचम। अगर हमें समाज को बदलना होगा, तो समाज का शिक्षित होना जरूरी है। महिलाओं की दशा को सुधारने के लिए सरकार के द्वारा शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण पहलू के रूप में माना गया है। महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में काफी अच्छी परफॉर्मेंस कर रही है। स्कूल कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात आज की नारियां अच्छी जगह पर जॉब कर रही है। प्राइवेट सेक्टर के साथ-साथ सरकारी विभाग में भी महिलाएं नौकरी कर रही है। जब महिलाएं पढ़ लिख रही हैं, तो उनकी स्थिति में भी सुधार हो गया है। काफी विभाग ऐसे हैं, जहां पर नौकरी पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है। लेकिन महिलाएं अपनी मेहनत और बलबूते पर वहां भी नौकरियां पा चुकी हैं।

महिलाएं किसी से कम नहीं है। पहले जमाना कुछ और था, जब महिलाओं को पुरुषों से कमजोर समझा जाता था। कहा जाता था कि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है, महिलाएं काफी बदल गई हैं। पहले जहां महिलाएं पुरुषों पर निर्भर होती थी, आज महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हैं। पढ़ लिखकर अच्छे महकमे में नौकरियां कर रही है और अच्छा पैसा कमा रही हैं। देखा जाए तो महिलाएं आज के समय में पुरुषों से किसी भी काम में पीछे नहीं है। जो काम पुरुष कर सकते हैं, वह काम महिलाएं भी कर रही हैं।

महिलाएं अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। पहले जमाने में महिलाओं पर अत्याचार होता रहता था और महिलाएं अत्याचार सहती रहती थी। लेकिन आज के समय में महिलाएं शोषण के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं। अगर महिलाओं को कोई भी समस्या है या कोई भी महिलाओं का शोषण करता है, तो महिलाएं उसके खिलाफ आवाज भी उठाती हैं। जैसे-जैसे समय बदला है, महिलाओं की स्थिति में भी सुधार हुआ है।

महिलाएं अपने फैसले खुद ले रही हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज के समय में महिलाएं अपनी निजी जिंदगी और प्रोफेसनल जिंदगी से जुड़े हर निर्णय खुद ले रही है। पहले समय में परिवार और पति के द्वारा उन पर अत्याचार किया जाता था। फैसले थोप दिए जाते थे, जिन्हें महिलाओं को मानना ही पड़ता था। लेकिन आज की महिला बिल्कुल बदल चुकी हैं। महिलाएं अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर निर्णय लेना सीख चुकी हैं और वह समाज में भागीदारी भी कर रही है। बहुत महिलाएं ऐसी हैं, जो समाज के लिए काफी अच्छे-अच्छे काम भी कर रही हैं और समाज के लिए मिसाल बन रही है।

# Nari Shakti Essay in Hindi

Essay on Women in Indian society in Hindi

Essay on Women Education in Hindi

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6 thoughts on “नारी शक्ति पर निबंध- Essay on Nari Shakti in Hindi Language”

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I love it. It is very very very nice essay

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Hi I like the essay

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Very good ??

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Nari Shakti Sacha Mein Sabpar Bhari Ha

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mahila suraksha par nibandh

नारी सुरक्षा पर निबंध

नारी सुरक्षा पर निबंध

#निबंध : नारी सुरक्षा/ महिला सुरक्षा (1000 words)Nari suraksha par nibandh प्रस्तावना: भारत में महिलाओ

नारी शक्ति पर निबंध (Nari Shakti Essay In Hindi)

नारी शक्ति पर निबंध (Nari Shakti Essay In Hindi Language)

नारी में सहनशीलता, प्रेम, धैर्य और ममता जैसे गुण मौजूद है। किसी भी समाज की कल्पना नारी के बिना नहीं की जा सकती है। जब कोई नारी कोई भी चीज़ करने की ठान लेती है, तो वह कर दिखाती है।

वह बच्चो की शिक्षक बन जाती है और उन्हें पढ़ाती है और अपने घरेलू  नुस्खों से परिवार के सदस्यों का इलाज़ भी करती है। वह बिना शर्त रखे सभी काम करती है और अपनों को खुश रखती है। वह औरो के जिन्दगी में ख़ुशी लाने के लिए बलिदान भी करती है।

जब जब महिलाओं पर अत्याचार बढ़ जाता है, तो वह काली माँ जैसा रूप धारण कर लेती है और अपराधियों का सर्वनाश कर देती है। जो लोग महिलाओं का सम्मान नहीं करते है और उन्हें कमज़ोर समझते है, वह नारी शक्ति के प्रभावशाली शक्ति से परिचित नहीं होते है।

पहले के ज़माने में लोग नारी को घर के कामो में संलग्न कर देते थे। घर वाले सोचते थे की लड़कियां पढ़ लिखकर क्या करेगी, आगे जाकर उन्हें शादी करनी है और घर संभालना है। उस ज़माने में लड़कियों के सोच को अहमियत नहीं दी जाती थी।

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कामकाजी नारी के समक्ष चुनौती

Kamkaji Nari ke samaksh Chunoutiya 

एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर ‘नारी’। आज नारी केवल दो-दो मात्राओं का ही बोझ वहन नहीं कर रही वह (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); जीवन में घर और बाहर दोहरी भूमिका निभा रही है।

महात्मा गांधी ने कहा था- “यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो वह स्वयं तक सीमित रहता है पर यदि एक नारी शिक्षित होती है तो वह पूरे परिवार को शिक्षित करती है।” आज नारी पढ़ी-लिखी है और नौकरी करके आर्थिक रूप से घर की समृधि में सहायता कर रही है। विश्व में आधी जनसंख्या पुरुषों की है और आधी नारियों की। अत: कोई भी समाज या देश पुरुषों की आधी जनसंख्या को काम देकर विकास के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता। जिस प्रकार गाड़ी के दो पहिए उसे तेज गति से आगे बढ़ाते हैं उसी प्रकार किसी भी देश की उन्नति तभी संभव है जब नारी और पुरुष दोनों कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करें। आज भारतीय नारी ने इस आवश्यकता को पहचान लिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। वह घर की चारदीवारी से निकलकर धनार्जन करना निकल पड़ी है क्योंकि यह उसकी मानसिक एवं आर्थिक आवश्यकता थी। पुरुष पर निर्भर नारी उसके शोषण का शिकार थी। अतः नारी को स्वावलंबी बनने के लिए नौकरी का सहारा लेना पड़ा। नौकरी करने निकली नारी जब बाहरी दुनिया के संपर्क में रहती है तो उसके विचारों में, चिंतन में, रहन-सहन में परिवर्तन आता है। अनेक सूचनाओं द्वारा ज्ञानाजि करने से उसका आत्म-विश्वास बढ़ता है। ऐसे में एकाकी परिवारों के बच्चों को कामकाजी माताओं के स्नेह सेवा रहना पड़ता है। किंतु इसके भी अच्छे परिणाम निकले हैं, बच्चों में आत्म-निर्भरता की भावना शीघ्र विकसित हो है। नारी नौकरी करे यह समय की माँग है। घर से बाहर निकली नारी पुरुष के आर्थिक स्तर को सुधारने में मदद। है। अतः परुष को भी घर के कामों में उसका हाथ बंटाना चाहिए। तभी जीवन सुखमय होगा और देश तथा समा। उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होंगे।

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पर्यावरण की सुरक्षा | paryvaran ki suraksha hindi essay.

Paryvaran Ki Suraksha Hindi Essay

icse question -  पर्यावरण है तो मानव है’ विषय को आधार बनाकर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आप क्या-क्या प्रयास कर रहे हैं ? विस्तार से लिखिए।

100 Words - 150 Words 

पर्यावरण सुरक्षा विश्वास का विषय है जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करता है । यह मानव और सभी प्राणियों के जीवन के लिए आवश्यक है । प्रदूषण , वनों का कटाव , जलवायु परिवर्तन , और विकास के लिए अनुशासनहीनता पर्यावरण को खतरे में डालते हैं । हमें अपने उच्च जीवन शैली को संतुलित करने और प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने की आवश्यकता है ।  

पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें संबंधित विषयों पर शिक्षा , संगठन , और कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता है । वन्यजीवन की संरक्षण , बिजली और पानी के सही उपयोग , और विकासी योजनाओं की पर्याप्त पर्यावरणीय प्रतिबद्धता हमारे लिए आवश्यक हैं । हम सभी को इस बड़े परिवर्तन में अपना योगदान देना होगा और सुरक्षित पर्यावरण का आनंद उठाने के लिए एकजुट होना होगा ।  

200 Words - 250 Words

पर्यावरण सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों, जीवजंतुओं, और मानव समृद्धि की रक्षा करता है। पर्यावरण हमारे जीवन के लिए अनमोल है और उसकी रक्षा हमारा कर्तव्य है। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली, विकास, और औद्योगिकी के कारण पर्यावरण को कई तरीकों से नुकसान पहुंचा रहा है।  

वन्यजीवन का नष्ट होना, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, और जमीन का अतिक्रमण कुछ मुख्य पर्यावरण समस्याएं हैं। इन समस्याओं का समाधान न केवल सरकारी तंत्रों द्वारा बल्कि हर व्यक्ति के सहयोग से किया जा सकता है।  

पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें अपने उत्पादन और उपभोग के तरीकों में सुधार करने की आवश्यकता है। हमें बचाते और पुनर्चक्रण की अधिक प्रवृत्ति करनी चाहिए। विद्युत् ऊर्जा और पेयजल के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए और अनावश्यक उपभोग से बचना चाहिए। वन्यजीवन को संरक्षित करने और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने का ध्यान रखना भी जरूरी है।  

वैश्विक स्तर पर, हमें संगठित रूप से सहयोग करके पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। विभिन्न देशों को आपसी समझदारी से परस्पर सहायता करनी चाहिए।  

इस प्रकार, हम सभी को साथ मिलकर पर्यावरण सुरक्षा के लिए संघर्ष करना होगा। हमारे छोटे-छोटे कदम भी बड़े परिवर्तन का हिस्सा बन सकते हैं और एक स्वच्छ और हरित पर्यावरण के निर्माण में सहायक साबित हो सकते हैं।  

पर्यावरण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसका हमारे स्वास्थ्य, समृद्धि, और समस्त प्राकृतिक जीवन के साथ सीधा संबंध होता है। यह हमें ऊर्जा, खान-पान, और विभिन्न अन्य जीवन जरूरियतों के रूप में सबकुछ प्रदान करता है। यहां तक कि प्राचीन समय से ही मनुष्य ने पर्यावरण की संरक्षण की जिम्मेदारी को समझा और विभिन्न तरीकों से इसे सुरक्षित रखने का प्रयास किया है। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली, विकास, और तकनीकी प्रगति के साथ, मानव ने पर्यावरण को अधिक भयंकर रूप में प्रभावित किया है और इससे उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। इसलिए, पर्यावरण की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी है जिसका समाधान हमें जल्द से जल्द ढूंढना होगा।  

प्राकृतिक आपदाएं, जैसे भूकंप, बाढ़, तूफ़ान, और जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चिंता का विषय हैं। इनके प्रभाव से लाखों लोग घातक रूप से प्रभावित होते हैं और अपनी जान गंवा देते हैं। भूकंपों के कारण भूमि के तहस-नहस हो जाने से इमारतें ढह जाती हैं, बाढ़ और तूफ़ान से फ़सलों का नुकसान होता है और जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर घटते जा रहे हैं और समुद्र तटों के स्तर में बढ़ोतरी हो रही है। ये सभी पर्यावरण के खिलाफ असर के उदाहरण हैं जिनसे हमें समझना चाहिए कि हमें पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की ज़रूरत है।  

प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है जो पर्यावरण को हानि पहुंचाती है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण जैसे रूपों में अपना प्रभाव दिखाता है। वायु प्रदूषण के कारण वायुमंडल की गर्मी बढ़ जाती है जिससे जलवायु परिवर्तन होता है और मौसम की परिवर्तनशीलता बढ़ती है।

जल प्रदूषण के कारण जल की गुणवत्ता खराब होती है और इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण बड़े शहरों में अधिक होता है जो हमारे कानों को भी प्रभावित करता है। इससे सभी प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, जैसे कि वृक्षारोपण, पानी के संचयन, और जलवायु नियंत्रण। वनों की कटाई और वृक्षारोपण की कमी से हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के संतुलन में बदलाव होता है और जलवायु को प्रभावित करने के लिए उसके नियंत्रण को भी खतरा पड़ता है।  

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकारों, संगठनों, और व्यक्तियों के सहयोग की ज़रूरत है। सरकारों को सख्त नियमों और कानूनों के रूप में पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने चाहिए और इनके पालन का प्रतिबंधी तरीके से सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही, संगठनों को अपने कामकाज में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए, उन्हें सुस्ताई नहीं करनी चाहिए और पर्यावरण के साथ जिम्मेदारी उठानी चाहिए।  

व्यक्तियों को भी पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए और उन्हें अपने स्तर पर छोटे-मोटे कदम उठाने की ज़रूरत है। वृक्षारोपण, वन्यजीवन का समर्थन, और जल संचयन जैसे छोटे-मोटे कदम हमारे पर्यावरण की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।  

इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करना भी आवश्यक है। लोगों को पर्यावरण की समस्याओं के बारे में शिक्षित करना चाहिए और उन्हें इससे जुड़े समाधानों के बारे में बताना चाहिए। शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फैलाने से लोग स्वयं भी सक्रिय रूप से पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान करते हैं और दूसरों को भी जागरूक करते हैं।  

समाप्ति में, पर्यावरण की सुरक्षा हम सभी की ज़िम्मेदारी है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाएं और आने वाले पीढ़ियों को एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण छोड़ें। हमें अपने आसपास के पर्यावरण का ध्यान रखना होगा, संवेदनशीलता से समझना होगा और उसे सुरकषित रखने के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से समर्थ उपाय अपनाने होंगे।

हमें पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का एक मूल्यांकन बनाना होगा और इसे व्यक्तिगत, परिवारिक, सामाजिक, और राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता देनी होगी।  

सरकारों को विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी को गहराई से समझना होगा। पर्यावरण के संरक्षण के लिए सशक्त नीतियों और क़ानूनों को बनाएंगे और उन्हें नियमित रूप से जांचने और पालन करने का सुनिश्चित करेंगे। इसके साथ ही, संगठनों को अपने उत्पादन और प्रोसेस को पर्यावरण के साथ समन्वयित करने के लिए उत्साहित करना होगा। पर्यावरण के साथ संरक्षण करने वाले संगठनों को इन्सेंटिव और प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए ताकि वे इस मामले में और सक्रिय बन सकें।  

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सड़क सुरक्षा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में | Road Safety Essay in Hindi

आज के इस आर्टिकल में हम आपको सड़क सुरक्षा पर निबंध 100 से 500 शब्दों में बताएंगे। आजकल लोग जब भी वाहन चलाते हैं तो उस समय वो कई बार सड़क सुरक्षा को अनदेखा कर देते हैं। इसकी वजह से सड़क दुर्घटना होने का खतरा बढ़ जाता है। आज के इस पोस्ट में हम आपके साथ सड़क सुरक्षा पर निबंध साझा कर रहे हैं। यह निबंध ऐसे छात्रों के भी बहुत काम आएगा जिनको किसी डिबेट या परीक्षा में सड़क सुरक्षा के बारे में बताना होता है। अगर आप भी सड़क सुरक्षा पर निबंध ढूंढ रहे हैं तो हमारे आज के इस लेख को पूरा पढ़ें और जानें क्या है सड़क सुरक्षा। 

सड़क सुरक्षा पर निबंध

सड़क सुरक्षा पर निबंध 100 शब्दों में 

सड़क सुरक्षा के माध्यम से बहुत से हादसों की रोकथाम की जा सकती है। ‌सड़क पर केवल वाहन ही नहीं चलते हैं बल्कि बहुत से लोग पैदल भी चलते हैं। ‌ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि सभी लोग पूरी तरह से सुरक्षित रह कर सड़क का इस्तेमाल कर सकें। ‌जो लोग गाड़ी चलाते हैं उन्हें दूसरों की सुरक्षा का पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिए जिससे कि कोई दुर्घटना ना हो। अगर सड़क सुरक्षा का ध्यान ना रखा जाए तो उसकी वजह से हादसे बहुत ज्यादा होने लगेंगे। ‌इसलिए एक जिम्मेदार नागरिक होते हुए सभी लोगों को चाहिए कि खुद भी सड़क के नियमों का पालन करें और दूसरे लोगों को भी जागरूक करें। इसलिए सड़क दुर्घटना से बचने के लिए अपनी सीट बेल्ट जरूर पहनें, तेज गाड़ी ना चलाएं, सड़क पर दूसरे वाहनों से आगे निकलने की कोशिश ना करें। 

सड़क सुरक्षा पर निबंध 150 शब्दों में 

आए दिन सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण है लोगों द्वारा सड़क नियमों का पालन न करना। ज्यादातर लोग जब अपनी कार, मोटरसाइकिल या स्कूटर पर होते हैं तो वे सड़क सुरक्षा की ओर ध्यान नहीं देते। लेकिन इसके अलावा जो लोग सड़क पर पैदल चलते हैं वो भी पूरी तरह से सड़क पर चलने के नियमों का पालन नहीं करते हैं। लोगों के यातायात के नियमों अनुसरण ना करने की वजह से, अब सड़क हादसे बहुत ही आम होते जा रहे हैं। ‌ऐसे ही हालात रहे तो एक दिन सड़क पर वाहन चलाना बहुत ज्यादा असुरक्षित हो जाएगा। 

कोई भी व्यक्ति जब सड़क का प्रयोग करे तो उसे चाहिए कि वह हमेशा अपनी गाड़ी को बाएं तरफ करके चलाए।‌‌ इसके साथ साथ इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि जब चालक अपनी गाड़ी को घुमाए या मोड़े तो उस समय स्पीड बहुत कम रखे।‌ जो लोग दोपहिया वाहन चलाते हैं उन्हें हमेशा एक अच्छी क्वालिटी वाला हेलमेट पहनना चाहिए। इसके साथ ही साथ वाहन चालक को स्कूल, अस्पताल और कॉलोनियों में हमेशा अपने वाहन की गति को धीमा रखना चाहिए। 

सड़क सुरक्षा पर निबंध 250 शब्दों में 

हर व्यक्ति को सड़क सुरक्षा का पूरा पूरा ध्यान रखना चाहिए चाहे वह वाहन का प्रयोग करता हो या ना करता हो। मार्गदर्शन की कमी की वजह से आज सड़क हादसों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है। इसलिए बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी यातायात के नियमों के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है। कई बार मां-बाप अपने अपरिपक्व बच्चों को दुपहिया वाहन चलाने के लिए दे देते हैं। इसकी वजह से बहुत सी बार बच्चों को गंभीर चोटें लग जाती हैं क्योंकि उन्हें सड़क सुरक्षा के रूल्स के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं होता। 

सड़क दुर्घटना के मुख्य कारण 

बढ़ती हुई सड़क दुर्घटना के मुख्य कारण निम्नलिखित इस प्रकार से हैं –

  • लोगों में यातायात के नियमों को लेकर जागरूकता नहीं है।
  • अपरिपक्व बच्चों द्वारा वाहन चलाना।
  • अधिक गति से वाहन को चलाना।
  • सभी आवश्यक और महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को अनदेखा करना।
  • यातायात और सड़क सुरक्षा के नियमों पर बिल्कुल ध्यान ना देना। 

सड़क सुरक्षा से जुड़ी हुई कुछ मुख्य सावधानियां 

सड़क सुरक्षा से जुड़ी हुई कुछ मुख्य सावधानियां निम्नलिखित इस तरह से हैं –

  • अगर आप सड़क पर पैदल चल रहे हैं तो हमेशा फुटपाथ का उपयोग करें। अगर कहीं पर फुटपाथ ना हो तो ऐसे में हमेशा सड़क के बाएं तरफ ही चलें।
  • सड़क पर वाहन चलाते समय कभी भी जल्दबाजी से काम ना लें और ना ही सिग्नल तोड़ कर रास्ता पार करने की कोशिश करें।
  • जो भी ट्रैफिक सिग्नल और नियम बने हुए हैं उनकी पूरी जानकारी रखने के साथ-साथ उनका हमेशा पालन करें।
  • कभी भी चलती हुई बस से ना उतरें और ना ही चढ़ें। 

सड़क सुरक्षा पर निबंध 500 शब्दों में 

सड़क सुरक्षा आज के समय में एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में आम जनता को, विशेषकर छोटी उम्र के लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। हर व्यक्ति को सड़क यातायात के नियमों के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए ताकि वह सड़क दुर्घटना से बचे रहें। हर कोई अब जल्दी में रहता है क्योंकि उनको अपने घर, ऑफिस या फिर बाजार में पहुंचने की बहुत जल्दी लगी रहती है, जल्दी पहुंचने के चक्कर में लोग गाड़ी बहुत तेजी के साथ चलाते हैं जिसके कारण उनके साथ सड़क दुर्घटना हो जाती है। ‌

सड़क सुरक्षा के आवश्यक नियम 

सड़क का इस्तेमाल करते समय सड़क सुरक्षा के निम्नलिखित नियमों का पालन करना जरूरी है –

  • हमेशा सड़क पार करने के लिए फुटपाथ का इस्तेमाल करना चाहिए। 
  • अगर आप किसी वाहन में हैं तो अगर रोड पर भीड़ है तो वहां पर हॉर्न का इस्तेमाल करें जिससे कि सड़क पर चल रहे लोगों के साथ कोई दुर्घटना ना हों।
  • सड़क पार करते समय कभी भी दौड़ना नहीं चाहिए।
  • अगर आप चार पहिया वाहन का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपको अपने वाहन की गति को ज्यादा अधिक नहीं रखना चाहिए। 
  • हमेशा सीट बेल्ट बांधकर अपनी कार चलाएं।
  • जो लोग बाइक या फिर स्कूटर चलाते हैं उन्हें बिना हेलमेट के सड़क पर नहीं आना चाहिए।
  • अपने वाहन में शीशा अवश्य लगवाएं ताकि आपको इस बात के बारे में पता रहे कि आपके आगे और पीछे कौन सा वाहन है। 

सड़क सुरक्षा के लिए संकेत 

बहुत से लोग सड़क सुरक्षा के संकेतों की तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते जो कि बहुत गलत है। कई बार जब सड़क सुरक्षा के संकेतों को अनदेखा किया जाता है तो उसकी वजह से भी दुर्घटना हो जाती है। हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि सड़क सुरक्षा के लिए जो संकेत बनाए गए हैं जैसे कि रेड लाइट, येलो लाइट और ग्रीन लाइट, इनका पालन करें। इसलिए जब सड़क पर ट्रैफिक रहता है तो उसे रोकने के लिए रेड लाइट जलती है। ‌ठीक इसी तरह से जब ग्रीन लाइट जलती है तो उसका मतलब होता है कि अभी आपको थोड़ी देर और प्रतीक्षा करनी है। फिर जब येलो लाइट जलती है तो उसका यह संकेत होता है कि अब आप अपने वाहन के साथ सड़क पर आगे जा सकते  बस आपको इन संकेतों का ध्यान रखना है।

सड़क पर दुर्घटना से बचने के तरीके

अगर आप सड़क पर चल रहे हैं या अपना वाहन चला रहे हैं तो ऐसे में आपके साथ सड़क दुर्घटना हो सकती है। पर अगर आप चाहें तो ऐसे बहुत से उपाय हैं जिनकी मदद से आप अपना बचाव कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर जब आप सड़क पर हों तो अपने सिर पर हेलमेट का इस्तेमाल जरूर करें। हेलमेट लगाने का यह फायदा होता है कि अगर आप का एक्सीडेंट हो जाए तो आपके सिर में गंभीर चोट नहीं लगेंगी। ‌इसके अलावा सरकार ने यातायात के जो भी नियम बनाए हैं उनका आपको हर हाल में पालन करना चाहिए। आपकी जान से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं है इसलिए सड़क सुरक्षा के लिए जरूरी रूल्स का ध्यान रखें, जिससे कि आपका अमूल्य जीवन किसी भी दुर्घटना का शिकार ना हो सके। 

  • जनसंख्या वृद्धि पर निबंध
  • वृक्षारोपण पर निबंध
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध

दोस्तों यह था हमारा आर्टिकल जिसमें हमने आपको सड़क सुरक्षा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में बताया। हमें पूरी उम्मीद है कि आपके लिए हमारा सड़क सुरक्षा पर निबंध काफी उपयोगी साबित होगा जिसका उपयोग आप परीक्षा में या फिर किसी डिबेट में कर सकते हैं। यदि आपको जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने उन दोस्तों के साथ भी शेयर करें जो सड़क सुरक्षा पर निबंध 100, 150, 250, 500 शब्दों में ढूंढ रहें हैं।

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सड़क सुरक्षा पर निबंध (Road Safety Essay in Hindi)

सड़क सुरक्षा

यहाँ हमने छात्रों के लिए सड़क सुरक्षा पर बहुत ही आसान भाषा में जानकारी युक्त निबंध दिए हैं जो अलग अलग शब्द सीमा में लिखा गया है। जैसे – छोटे बच्चों के लिए सड़क सुरक्षा पर 100 – 200 शब्दों में निबंध और बड़े बच्चों के लिए सड़क सुरक्षा पर 250 – 350 शब्दों में निबंध। आप अपने आवश्यकता और क्लास के अनुसार कोई भी निबंध चुन सकते हैं।

रोड सेफ्टी पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Road Safety par nibandh

यातायात के सभी नियमों का पालन करते हुए सड़क पर सुरक्षित रूप से वाहनों को चलाना ही सड़क सुरक्षा है। चार पहिया वाहन चलाते समय ड्राइवर को सीट बेल्ट जरूर पहनना चाहिए और स्पीड लिमिट को ध्यान में रखते हुए ही ड्राइव करना चाहिए। बाइक या स्कूटी वाहन चालकों को हेलमेट जरूर पहनना चाहिए और स्पीड लिमिट का भी ध्यान रखना चाहिए। पैदल चलने वाले और साइकिल इस्तेमाल करने वाले लोगों को सड़क किनारे बनी फुटपाथ पर ही चलना चाहिए। जब रेड लाइट हो जाये और सभी वाहन रुक जाये तभी पैदल यात्री को जेब्रा क्रासिंग से रोड क्रॉस करना चाहिए।

रोड पर वाटर बॉटल्स और कचरा भी नहीं फेकना चाहिए क्योकि इससे भी रोड एक्सीडेंट होते हैं। पैदल चालकों को रोड पर हमेशा अपने बायीं ओर से ही चलना चाहिए। रोड पर वाहन चालकों को ये बात ध्यान रखनी चाहिए कि भीड़ वाली जगह पर गाड़ी हमेशा धीमी गति से चलाना चाहिए। कभी भी अल्कोहल पीकर ड्राइविंग नहीं करनी चाहिए और ड्राइविंग करते समय मोबाइल पर बात नहीं करनी चाहिए। ट्रैफिक सिग्नल का पालन जरूर करना चाहिए और उसका मतलब भी जानना चाहिए जैसे रेड लाइट वाहनों के रुकने का संकेत होता है, येलो लाइट संकेत देता है कि आप तैयार रहें और ग्रीन लाइट चलने का संकेत देता है।

सड़क सुरक्षा पर निबंध (300 – 400 शब्द) – Sadak suraksha par Nibandh

सड़क सुरक्षा आज के समय में उतना ही जरुरी हो गया है जितना खुद को किसी बीमारी से बचाने के लिए स्वस्थ रहना। रोड सेफ्टी हर देश के हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। सड़क सुरक्षा का अर्थ है सड़क पर चलते हुए नियमों और दिशा-निर्देशों का पालन करना ताकि दुर्घटनाओं को रोका जा सके और जीवन को सुरक्षित बनाया जा सके। लेकिन इस बढ़ती आबादी, बढ़ते यातायात, बढ़ती गाड़ियों की संख्या, बढ़ती लापरवाही, बढ़ता मानसिक टेंशन और सड़क पर गाड़ियों की तेज गति के कारण सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे आये दिन भारी संख्या में हर रोज लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।

सड़क दुर्घटना के मुख्य कारण

सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में तेज गति से चलती गाड़ियां, शराब पीकर गाड़ी चलाना, गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग, बिना नियम का पालन किये जल्दीबाजी में ओवरटेक करना और यातायात नियमों का उल्लंघन प्रमुख हैं। इन कारणों से न केवल वाहन चालकों की बल्कि पैदल यात्रियों की जान भी खतरे में पड़ जाती है। सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करके इन दुर्घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।

वाहन चालकों के लिए सड़क सुरक्षा के नियम

सड़क सुरक्षा के अंतर्गत अनेक उपाय हैं जिन्हें अपनाकर हम सुरक्षित यात्रा कर सकते हैं। सबसे पहले, वाहन चालकों को हमेशा सीट बेल्ट पहननी चाहिए और मोटरसाइकिल चालकों को हेलमेट का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा, गाड़ी चलाते समय या चलाने से पहले शराब का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए और मोबाइल फोन का उपयोग भी बिल्कुल नहीं करना चाहिए। तेज गति से वाहन चलाना भी खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए गति सीमा का पालन करना भी आवश्यक है।

पैदल यात्रियों के लिए सड़क सुरक्षा के नियम

पैदल यात्रियों को भी कुछ नियम का पालन जरूर करना चाहिए जैसे कि, सड़क पार करते समय हमेशा जेब्रा क्रॉसिंग का उपयोग करें और ट्रैफिक सिग्नल का भी पालन करें। रात में सड़क पर चलते समय चमकीले कपड़े पहनें ताकि वाहन चालक आपको आसानी से देख सकें। माता पिता को अपने बच्चों को भी सड़क सुरक्षा के बारे में जागरूक करना चाहिए और उन्हें सुरक्षित तरीके से सड़क पार करने की जानकारी देनी चाहिए।

सड़क सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

सरकार द्वारा सड़क सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं जैसे यातायात पुलिस की तैनाती, सीसीटीवी कैमरों का उपयोग, सड़कों पर साइन बोर्ड्स और गाड़ियों के लिए गति नियंत्रण बोर्ड इत्यादि। इसके साथ ही, समय समय पर स्कूलों और कॉलेजों में भी छात्रों के लिए सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।

सड़क सुरक्षा मुहीम एक सामूहिक जिम्मेदारी है जो कि केवल सरकार और पुलिस का काम नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करे। हमें समझना होगा कि हमारी छोटी सी लापरवाही किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। इसलिए, सड़क पर यात्रा करते समय हमेशा सतर्क रहें और सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करें। इस प्रकार, हम न केवल अपने जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि दूसरों के जीवन को भी बचा सकते हैं।

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