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ग्रीन हाउस प्रभाव पर निबंध (Greenhouse Effect Essay in Hindi)

ग्रीन हाउस एक प्रकार के विकिरण जमाव है जिसके कारण पृथ्वी के वायुमंडल के निचले स्तर में तापमान की वृद्धि हो रही है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक ग्रीनहाउस प्रभाव की मौजूदगी आवश्यक है, जोकि प्राकृतिक रुप से वायुमंडल में उत्पन्न होता है। मानव द्वारा हानिकारक गैसो के उत्सर्जन से ग्रीन हाउस गैसो का प्रभाव वायुमंडल में तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होती जा रही है और इसी कारणवश पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है।

ग्रीन हाउस प्रभाव पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Greenhouse Effect in Hindi, Greenhouse Prabhav par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द).

ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी और महासागरों के तापमान में काफी वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसो द्वारा अवरक्त विकिरण अवशोषित और उत्सर्जित किए जाता है तथा विकरण को वायुमंडल में रोक कर रखा जाता है, जिससे उत्पन्न गर्मी द्वारा पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।

ग्रीन हाउस प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग

वायुमंडल में मौजूद मुख्य ग्रीन हाउस गैसो जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), जल वाष्प (H₂O), मीथेन (CH₄)), ओजोन (O₃), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) आदि द्वारा सबसे ज्यादे गर्मी उत्पन्न की जाती है। पृथ्वी के वायुमंडल का औसत तापमान लगभग 15⁰  सेल्सियस है (59 ⁰ फारेनहाइट) है, वही ग्रीनहाउस प्रभाव के बिना यह 18 डिग्री फारेनहाइट कम होता।

जीवाश्म ईंधन के दहन, कृषि, वनोन्मूल और अन्य मानवीय गतिविधियों जैसे कार्यो द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसें ही पिछले कुछ दशक में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ती समस्या का मुख्य कारण है। इसी कारण से ही बर्फ की चादरे और ग्लेशियर पिघलते जा रहे है, जिसके कारणवश महासागर के स्तर में वृद्धि हुई है। गर्म जलवायु के वजह से वर्षा और वाष्पीकरण की घटनाओं में बढ़ोत्तरी होती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम की स्थिति भी बदल गयी है, जिससे कुछ स्थान गर्म और कुछ स्थान नम होते जा रहे है।

इन कारणो से सूखा, बांढ़ और तूफान जैसी कई प्राकृतिक आपदाएं उत्पन्न होती है। जलवायु परिवर्तन प्रकृति और मानव जीवन को काफी बुरे तरीके से प्रभावित करता है और यदि ग्रीन हाउस गैसो का उत्सर्जन इसी प्रकार से बढ़ता रहा तो भविष्य में इसके परिणाम और ज्यादे भयावह होंगे। तटीय क्षेत्रो में ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम और भी ज्यादे विनाशकारी होंगे। जब बढ़ते तापमान के कारण ध्रुवी क्षेत्र पिघलने लगेंगे तब इससे समुद्र स्तर में भीषण वृद्धि हो जायेगी जिसके कारण तटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।

इस संसार में ऐसा कोई देश नही है जो ग्लोबल वार्मिंग के इस भीषण समस्या से प्रभावित ना हुआ हो। ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन के मात्रा में कमी लाकर ही ग्लोबल वार्मिंग जैसे इस भीषण समस्या को रोका जा सकता है। इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओ द्वारा वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को रोकने के लिए सामूहिक रुप से कड़े फैसले लेने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें नवकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और वनोन्मूलन की जगह और ज्यादे मात्रा में वृक्षारोपण करने की आवश्यकता है।

निबंध – 2 (400 शब्द)

वायुमंडल में जमा गैसो कारण पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी की घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव के रुप में जाना जाता है। वैसो तो ग्रीनहाउस गैसे प्राकृतिक रुप से वायुमंडल में मौजूद रहती है और पृथ्वी पे जीवन के लिए आवश्यक भी है। परन्तु, दुर्भाग्य से औद्योगिक क्रांति के कारण वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है। मानवीय गतिविधियों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग में कई गुना वृद्धि देखी गई है। जिससे इसने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं को बढ़ाने में अपना प्रमुख योगदान दिया है।

ग्रीन हाउस गैसो के प्रमुख कारण

ग्रीनहाउस प्रभाव के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार से हैः

प्राकृतिक कारणः

  • पृथ्वी पर प्राकृतिक रुप से मौजूद कुछ तत्वो के कारण कार्बन डाइआक्साइड जैसी समुद्र में पायी जाने वाली तथा मीथेन जोकि पेड़-पौधो के क्षय और प्राकृतिक रुप से आग लगने से उत्पन्न होती है और नाइट्रोजन आक्साइड जोकि कुछ मात्रा में भूमि और पानी में पाये जाने वाले ग्रीन हाउस गैसो का निर्माण होता है। केवल फ्लुओरीनटेड गैसो का निर्माण मानव द्वारा किया जाता है जोकि प्राकृतिक रुप से प्रकृति में मौजूद नही होती है।
  • जल वाष्प का भी ग्रीनहाउस प्रभाव में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। जल वाष्प द्वारा थर्मल ऊर्जा को अवशोषित कर लिया जाता है, ज्यादेतर जब हवा में अद्राता बढ़ जाती है। तो इसके कारण वायुमंडल में तापमान में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • जानवरो द्वारा वायुमंडल से आक्सीजन ग्रहण किया जाता है तथा कार्बन डाइआक्साइड और मीथेन गैस का उत्सर्जन किया जाता है। यह ग्रीनहाउस प्रभाव के प्राकृतिक कारको में से एक है।

मानव जनित कारण

  • तेल और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनो के दहन का भी ग्रीनहाउस प्रभावो में महत्वपूर्ण योगदान है। जलते हुए जीवाश्म ईंधन भी वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन करते है जिससे वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है। इसके अलावा गैस और कोयले के खदानो तथा तेल के कुएं खोदने से भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
  • वनोंमूलन एक दूसरा बड़ा कारण है जो ग्रीनहाउस प्रभाव को जन्म देता है। पेड़-पौधे भी पर्यावरण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा को कम करने और आक्सीजन प्रदान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
  • आप्राकृतिक रुप से बनी हुई नाइट्रोजन जोकि फसलो में उर्वरक के रुप में इस्तेमाल की जाती है। जिससे की वायुमंडल में नाइट्रोजन आक्साइड उत्सर्जित होती है, जिससे की ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है।
  • पूरे विश्वभर में वायुमंडल में बहुत ही भारी मात्रा में औद्योगिक गैसो का उत्सर्जन होता है। मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और फ्लोराइन गैस जैसी गैसे औद्योगिक गैसो की श्रेणी में आती है।
  • कृषि रुप से पालतु जीव जैसे की बकरी, सूअर, गाय आदि द्वारा भी ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में काफी योगदान दिया जाता है। जब इन पशुओ द्वारा अपना खाना पचाया जाता है तब इनके पेंट में मीथेन गैस बनती है जोकि इनके गोबर करने पर वायुमंडल में मिल जाती है। पालतू पशुओ के लिए अधिक संख्या में फार्म बनाने के लिए वनो के कटाई से भी ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है।

तो इस प्रकार से हम कह सकते है कि मानवीय गतिविधिया ही ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन का प्रमुख कारण है। ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन के द्वारा उत्पन्न इस ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का मानव जीवन और प्रकृति पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है और यदि अब इस संकट को रोकने के लिए ठोस कदम नही उठाये गये तो भविष्य में इसके परिणाम विनाशकारी सिद्ध होंगे।

Essay on Greenhouse Effect in Hindi

निबंध – 3 (500 शब्द)

ग्रीन हाउस गैसो द्वारा विकरण को बाहरी अंतरिक्ष में जाने से रोका जाता है, जिससे पृथ्वी के सतह के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगती है और इसी कारणवश ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। पृथ्वी विकिरण से संतुलन प्राप्त करती है और बाकी के विकिरण अंतरिक्ष में परावर्तित कर दिया जाता है, वह पृथ्वी को मनुष्यों के लिए रहने योग्य बनाता है। जिसका नासा द्वारा औसत तापमान 15⁰ सेल्सियस (59 डिग्री फारेनहाइट) बाताया गया है।

बिना इस संतुलन के हमारा ग्रह या तो ज्यादे ठंडा हो या फिर ज्यादे गर्म हो जायेगा। सूर्य के विकरण के द्वारा हमारे ग्रह का तापमान बढ़ता जा रहा है इसे ही ग्रीनहाउस प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

ग्रीनहाउस प्रभाव का जलवायु पर प्रभाव

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन से जलवायु पर नाटकीय रुप से प्रभाव पड़ता है। औद्योगिकरण के समय से वायुमंडल में कई प्रकार की ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन की मात्रा काफी बढ़ गई है। ग्रीनहाउस गैसे ज्यादेतर जीवाश्म ईंधनो के दहन से पैदा होती है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), जल वाष्प (H₂O), मीथेन (CH₄), ओजोन (O₃), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) आदि वह गैसे है जोकि ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती है।

ग्रीन हाउस गैसो में सबसे अधिक मात्रा CO₂ है और औद्योगिकरण शुरु होने से लेकर अबतक इसमें 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हो चुकी है। वैसे तो प्राकृतिक प्रक्रियाएं वायुमंडल में गैसों को अवशोषित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकती है, लेकिन इन गैसो के मात्रा में धीमें-धीमें हो रहे वृद्धि के कारण प्रकृति की इनकी अवशोषण की क्षमता कम होते जा रही है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और गैसों को अवशोषित करने की क्षमताओं के बीच असंतुलन ने वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में  तीव्रता से वृद्धि की है।

हमने काफी ज्यादे मात्रा में जीवाश्म ईंधन का दहन किया है और भारी मात्रा में पेड़ो की कटाई, पालतू पशुओ द्वारा भारी मात्रा में मीथेन के उत्पत्ति के कारण हमारा वायुमंडल जहरीली गैसो से प्रदूषित हो गया है। ग्रीनहाउस गैसे जोकि भारी मात्रा में विकरण का अवशोषण करती है वायुमंडल में उनकी ज्यादे मात्रा में उपस्थिति के कारण जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है और वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग वह सबसे बड़ी समस्या है जिसका सामना मानव जाति द्वारा किया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

  • वनो द्वारा ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण माने जाने वाले कार्बन डाइआक्साइड के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है। पेड़ो के कटने के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिसके कारणवश ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है।
  • जलवायु परिवर्तन जल प्रणाली को प्रभावित करता है जिसके कारण लगातार बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है। वायुमंडल में बढ़ते प्रदूषण और ग्रीन हाउस गैसो के बढ़ते स्तर के कारण विश्वभर के जल स्रोत प्रदूषित हो चुके है तथा जल के गुणवत्ता में भी कमी आ गई है। इसके कारण ग्लेशियर भी पिघलते जा रहे जिससे ताजे पानी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ गया है और इसके साथ ही बढ़ता हुआ महासागरीय अम्लीकरण महासागराय जीवो के लिए एक संकट बन गया है।
  • जलवायु परिवर्तन कई सारी प्रजातियो के लिए एस संकट बन गया है, इसके साथ ही यह कई सारी प्रजातियो के भी विलुप्त होने का भी कारण बन गया है। इसके साथ ही वह प्रजातिया जो के तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन वाले क्षेत्रो में निवास करती है उनके लिए खुद को इसके अनुरुप ढालना मुश्किल होता जा रहा है।
  • पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण जलवायु में भीषण रुप से परिवर्तन होने के आसार है।

पृथ्वी के वायुमंडल और जलवायु को पहले से ही जो नुकसान हो चुका है उसे बदला तो नही जा सकता। हम या तो खुद को जलवायु परिवर्तन के अनुरुप ढालकर बाढ़ और बढ़ते समुद्र स्तर जैसे प्रतिकूल परिणामों के साथ रह सकते हैं या फिर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करने वाली नीतियों को लागू करके ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करके इस पृथ्वी को और भी सुंदर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है।

निबंध – 4 (600 शब्द)

ग्रीनहाउस एक ग्लास की तरह है जोकि प्राकृतिक रुप से पृथ्वी की गर्मी को में ही रोकने के लिए बना हुआ है। इसी वजह से ठंडे दिनो में भी ग्रीनहाउस के कारण ही गर्मी बनी रहती है। ग्रीनहाउस के तरह ही पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा भी कुछ मात्रा में सूर्य ऊर्जा का अवशोषण किया जाता है और इसे पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलने से रोका जाता है। पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद वह अणु जो उष्मा को वायुमंडल से बाहर निकलने से रोकते है उन्हे ग्रीनहाउस कहा जाता है।

ग्रीनहाउस का प्रभाव उष्मा के अवशोषण में बहुत महत्वपूर्ण है और यह पृथ्वी के तापमान को गर्म और जीवन के अनुकूल बानाता है। ग्रीनहाउस प्रभाव की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह तेजी से बढ़ती जा ही है और ज्यादे मात्रा में उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसो के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। वैसे तो ग्रीन हाउस गैसो का निर्माण प्राकृतिक रुप से भी होता है, इसके साथ मानव गतिविधियों द्वारा भी इसका निर्माण होता है और मानवनिर्मित ग्रीन हाउस गैसो की मात्रा में दिन-प्रतिदिन हो रही वृद्धि से इसका संतुलन बिगड़ गया है। जिससे कई सारी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही है।

1.कार्बन डाइआक्साइड ( CO ₂ )

सभी ग्रीन हाउस गैसो में कार्बन डाइआक्साइड सबसे महत्वपूर्ण है और वायुमंडल में इसके मुख्य स्त्रोत भूमि को साफ करना, जीवाश्म ईंधन को जलाना और सीमेंट उत्पादन और अन्य कई प्राकृतिक स्त्रोत जैसे कि ज्वालामुखी, जीवों का श्वसन के लिए आक्सीजन का उपयोग जैविक वस्तुओं का क्षय और दहन आदि है। वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया की जाती है जोकि बहुत ही महत्वपूर्ण है। समुद्री जीवो द्वारा भी महासागरो में मिले कार्बन डाइआक्साइड का अवशोषण किया जाता है। लेकिन वनोन्मूलन और भारी मात्रा में पेड़ो के कटने और नए पेड़ ना लगाये जाने से भी पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

2.जल वाष्प (H ₂ O)

जल वाष्प हमारे ग्रह के वायुमंडल के सबसे शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसो में से एक है। पृथ्वी की गर्म होती जलवायु के कारण पृथ्वी के सतह पे मौजूद पानी के वाष्पीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है। जितने तेजी से वाष्पीकरण होता है, ग्रीन हाउस गैसो के संकेद्रण में उतने ही तेजी से वृद्धि होती जाती है।

3.मीथेन   (CH ₄ )

पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन काफी कम मात्रा उपस्थित है। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन भी कम अवधि के लिए वातावरण में रहता है। मीथेन के स्रोतों में ज्वालामुखी, आर्द्रभूमि, सीपेज वेंट्स, मीथेन ऑक्सीडाइजिंग बैक्टीरिया, पशुधन, प्राकृतिक गैसों और कोयले के जलने, लैंडफिलो में अपघटन, बायोमास का दहन आदि शामिल हैं। यह गैस मुख्य रुप से मिट्टी और वायुमंडल में उपस्थित रहती है है।

4. नाइट्रस ऑक्साइड ( N ₂ O ) और फ्लोरिनेटेड गैसें

औद्योगिक गतिविधियों के कारण उत्पादित ग्रीनहाउस गैसों में फ्लोरिनेटेड गैस और नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। इसमें से जो तीन मुख्य गैसे है वह हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCꜱ), सल्फर हेक्स फ्लोराकार्बन (SF₆) और पर्फ्यूरोकार्बन (PFCꜱ) है। फ्लोरिनेटेड गैसे प्राकृतिक रुप से उत्पन्न नही होती है यह मानव निर्मित है। यह ज्यादेतर औद्योगिक कार्यो जैसे मानवीय गतिविधियों द्वारा पैदा होती है। मिट्टी में मौजूद जीवाणु, पशुओ के मल-मूत्र प्रबंधन और कृषि में उर्वरको के उपयोग इसके मुख्य स्त्रोत है।

5.भूस्तरीय ओजोन ( O ₃ )

भूस्तरीय ओजोन वायुमंडल के सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैसो में से एक है। यह मुख्यतः वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होता है और इसका पृथ्वी के विकरण के संतुलन में बहुत भिन्न योगदान है। ओजोन पृथ्वी के उपरी और निचली दोनो वायुमंडलीय सतहो पर मौजूद होता है। ओजोन वायुमंडल में मौजूद एक बहुत ही हानिकारक वायु प्रदूषक है, यह तब उत्पन्न होता है जब वाहनो, पावर प्लाट, केमिकल प्लांट, औद्योगिक ब्वायलर्स, रीफाइनरीयो और अन्य दूसरे स्त्रोतो से निकलने वाले कण जब रासायनिक रुप से सूर्य के विकरण के साथ अभिक्रीया करते है।

जितना ज्यादे ग्रीन हाउस गैसो का उत्सर्जन होता है, वायुमंडल में इनका संकेद्रण उतना ही बड़ता जाता है। इनमें से हर एक गैसे अलग-अलग समय तक पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद रहती है, जैसे कि कुछ वर्षो से लेकर कुछ हजार वर्षो तक। इनमें से हर एक का प्रभाव भिन्न होता है कुछ दूसरो से ज्यादे प्रभावी होती है और पृथ्वी के तापमान को ज्यादे गर्म करती है।

इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण के कई पहलुओं में बदलाव आया है जैसे कि गर्म जलवायु, बढ़ता समुद्र स्तर, सूखा आदि। जो कि सदियों तक पृथ्वी के तापमान को प्रभावित करेगा और इसके साथ ही हमें भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यदि हम अभी भी इसके होने वाली क्षति की सीमा को नजरअंदाज करते रहेंगे तो भविष्य में इसके परिणाम और भी ज्यादे गंभीर हो सकते है। हमे अभी से ही इसके रोकथाम के प्रयास करने की आवश्यकता है और इसके लिए हमे ज्यादे से ज्यादे नवकरणीय ऊर्जा के संसाधनो के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है,फायदे,नुकसान निबंध | Greenhouse harmful effects and facts in hindi [विश्व मौसम विज्ञान दिवस World Meteorological Day 2024]

ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है व इसके फायदे व नुकसान निबंध Greenhouse harmful effects and facts in hindi

Table of Contents

ग्रीन हाउस प्रभाव पर निबंध

पृथ्वी पर मौजूद वातावरण ग्रीनहाउस की सतह के रूप में कार्य करता है. सूर्य की ओर से आने वाली प्रकाश किरणों का 31 प्रतिशत भाग पृथ्वी की सतह से पुनः परवर्तित होकर स्पेस में  चला जाता है और 20 प्रतिशत भाग वातावरण के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. सूर्य से आई ऊर्जा का बचा हुआ भाग, पृथ्वी पर मौजूद समुद्र और सतह पर मौजूद तथ्यों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. फिर इसे ऊष्मा (heat) में परिवर्तित किया जाता है जो पृथ्वी कि सतह और उपर मौजूद हवाओ को गर्म बनाये रखने में मदत करती है. पृथ्वी के वातावरण में मौजूद कुछ खास गैसें ग्रीनहाउस की सतह के रूप में कार्य करती है, और ऊष्मा को पृथ्वी पर बांधे रखती है.

ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है

ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक घटना है, जो पृथ्वी की सतह को गर्म बनाये रखने में मदद करती है और इसी कारण पृथ्वी पर जीवन संभव है. ग्रीनहाउस में सूर्य की ओर से आने वाली ऊर्जा प्रकाश किरणों के रूप में एक सतह को पार करके ग्रीनहाउस तक आती है. इस सूर्य की ओर से आने वाली ऊर्जा का कुछ भाग मिट्टी, पेड़ पौधों और ग्रीनहाउस के अन्य साधनों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. इस अवशोषित ऊर्जा का अधिक्तर भाग ऊष्मा(heat) में परिवर्तित हो जाता है, जो ग्रीनहाउस को गर्म बनाये रखता है. ग्रीनहाउस में  मौजूद सतह इस ऊष्मा को बांधे रखती है, और ग्रीनहाउस का तापमान निश्चित बनाये रखने में मदत करती है. 

ग्रीनहाउस में उपस्थित गैसें ऊष्मा को अवशोषित करती है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है, और अन्य ग्रहों की तुलना में पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता है. सबसे जरूरी ग्रीनहाउस गैस पानी से उत्पन्न वाष्प है और ग्रीनहाउस प्रभाव में यह बहुत अधिक उपयोगी है. अन्य गैसें जिसमें कार्बन डाई ऑक्साइड, मेंथेन और नाइट्रस ऑक्साइड आदि शामिल है, वो भी ग्रीनहाउस प्रभाव में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, हालाँकि इसके शामिल होने का प्रतिशत बहुत ही कम होता है.

अगर पृथ्वी पर ग्रीनहाउस प्रभाव नहीं होता तो, पृथ्वी अभी से कहीं ज्यादा ठंडी होती और पृथ्वी का तापमान 18 C होता. पृथ्वी पर जलवायु में गर्माहट बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्यूकी हमारी पृथ्वी के तीन चौथाई भाग पर पानी है और यह पानी बर्फ, तरल और वाष्प तीन रूपों में पृथ्वी पर मौजूद है. पृथ्वी पर मौजूद जल चक्र के कारण पानी एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होता रहता है, और हमें अपने जीवन को नियमित बनाये रखने के लिए पीने योग्य पानी मिलता है.  यह पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

ग्रीनहाउस गैसों के संदर्भ में जानकारी :

भाप (Water vapor) H2O 36-70%
कार्बनडाई ऑक्साइड  CO 9-26%
मेथेन  CH44-9%
नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous oxide)N2O3-7%
ओज़ोन   O3–     
Chlorofluorocarbons  CFCs –

ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि (Greenhouse effect increase):  

पिछले कुछ वर्षो से विश्व के तापमान में लगातार वृद्धि देखी जा रही है इसका मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि है. इन ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के मुख्य कारण मानव द्वारा निर्मित किए हुये है. मनुष्य ने अपनी सुख सुविधाओ के लिए पेड़ो और वनों को नष्ट करते जा रहा है. जीवाष्म इंधनों का अंधाधुन रूप से प्रयोग हो रहा है, इसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी का तापमान अब पहले से 11 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और कहा जा रहा है सन 2030 तक यह तापमान 5 डिग्री सेल्सियस और बढ़ जायेगा. इसके कई दुष्परिणाम भी हमें देखने मिल रहे है, जैसे रेगिस्तान में बाढ़ का आना, अतिवर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा कि कमी होना तथा ग्लेशियर पर मौजूद बर्फ भी पिघलने लगी है. और यदि आगे भी यह सब ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब पृथ्वी अपने विनाश की ओर अग्रसर होगी. कहा जाता है कि अगर पृथ्वी का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो कई जगह गर्म हवाओ के तूफान उठेंगे तो कही  समुद्र का जलस्तर भी बढ़ जायेगा और निचले हिस्से में मौजूद देश जलमग्न हो जायेंगें. पीने और सिचाई के लिए भी पानी मौजूद नहीं होगा, वन और पेड़ पोधे भी नष्ट होने लगेंगे. इसलिए आज जरूरत है कि हम बढ़ते हुये प्रदूषण को नियंत्रित करे और अपनी पृथ्वी के अस्तित्व को खोने से बचाये.    

 ग्रीनहाउस प्रभाव की प्रक्रिया (Greenhouse effect process in hindi):

नीचे कुछ स्टेप्स में हम ग्रीनहाउस प्रभाव को आपको समझाने कि कोशिश कर रहे है, जिससे आप इसे सरलता से समझ सकते है.

Greenhouse effect

पर्यावरण / जलवायु में परिवर्तन के कारण  (Greenhouse effect is caused ):

मौसम और जलवायु दोनों एक दूसरे से बहुत अलग है, मौसम में परिवर्तन आम बात और हम साल में तीन मौसम ठंड, गर्मी और बारिश का अनुभव भी करते है. इस मौसम में हुये परिवर्तन को हम आसानी से समझ लेते है परंतु जलवायु में परिवर्तन अत्यंत धीमा होता है और हम इस धीमी प्रक्रिया में हम सामंजस्य  भी आसानी से बैठा लेते है और इस परिवर्तन को समझ नहीं पाते. परंतु यह जलवायु में हुआ परिवर्तन पृथ्वी और इस पर उपस्थित जीवो के लिए अत्यंत खतरनाक है. जलवायु में परिवर्तन के कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही है. प्राक्रतिक कारणों पर तो हमारा कोई नियंत्रण नहीं है परंतु मानव द्वारा निर्मित कारणों को नियंत्रित करके हम पृथ्वी के अस्तित्व और भविष्य में होने वाली कठिनाइयों से खुद को बचा सकते है. इसके लिए हुमें जलवायु परिवर्तन के करणों पर गौर करना पड़ेगा .

जलवायु परिवर्तन के कारण :

  • प्राक्रतिक कारण :
  • महाद्वीपों का खिसकना
  • समुद्री तरंगे
  • धरती का घुमाव
  • मानवीय कारण : कई ऐसे मानवीय कारण है, जिसके फलस्वरूप पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप जलवायु में भी परिवर्तन हुये है और वो ग्लोबल वार्मिंग का बहुत बड़ा कारण है,
  • जीवाष्म इंधनों जैसे कोला, पेट्रोल, प्राक्रतिक गैसे आदि के प्रयोग से अधिक मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में मुक्त हो रही है.
  • वनों के लगातार कटाव से उनके द्वारा अवशोषित की जाने वाली कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर पर्यावरण में बढ़ रहा है.
  • औद्योगीकरण के चलते नवीन ग्रीनहाउस गैसे भी पर्यावरण में आवश्यकता से अधिक मात्रा में शामिल हो रही है जिससे तापमान लगातार बढ़ रहा है.
  • जल्द अपघटित न हो सकने वाले समान जैसे प्लास्टिक आदि के प्रयोग से.
  • खेती में उर्वरक कीटनाशको के छिड़काव से भी पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है.
  • घर बनाने और ओद्योगीकरन के लिए जमीन प्राप्त करने के उद्देश्य से पेड़ो की कटाई के चलते भी पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है.

यह सभी कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे पर्यावरण को प्रभावित करते है. हम सभी को इन सभी कारणों को नियंत्रित करने के लिए प्रयास करके अपने भविष्य को बचाने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए और अपने आगे वाली पीढ़ी को भी इस दिशा में शिक्षित करना चाहिए.  

जलवायु परिवर्तन में सुधार कैसे लाया जा सकता है

यदि जलवायु परिवर्तन होने से पृथ्वी पर अनेक तरह के बदलाव हो रहे हैं, अगर ग्रीनहाउस के प्रभाव में बदलाव आता है तो एक समय ऐसा आएगा की पृथ्वी पर मानव जीवन मुश्किल हो सकता है. जलवायु परिवर्तन में सुधार के लिए हमें यह प्रयास करने होंगे.

  • अपने आस-पास के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगायें.
  • इंधन से चलने वाले वाहनों का उपयोग कम करना होगा.
  • समुन्द्र एंव नदियों को साफ़ रखना होगा.
  • कारखानों से निकलने वाले कचरे को दुबारा उपयोग में लाना होगा.

विश्व मौसम विज्ञान दिवस World Meteorological Day 2024

विश्व मौसम विज्ञान दिवस हर साल 23 मार्च को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिवस की शुरूआत सन् 1950 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना के दौरान की गई। इस साल इस दिन को 73 साल पूरे हो जाएगे। आपको पता है कि, ये दिन क्यों मनाते हैं। इस दिन को मनाने के पीछे का मुख्य कारण है लोगों को मौसम विज्ञान और इसमें हो रहे बदलावों के बारे में लोगों को जागरूक कराना। क्योंकि पता नहीं कि, कब कौनसी आपदा आपके सामने आ जाए। जिससे आपको खुद बचना पड़ सके। जैसे- भूकंप, प्राकृतिक आपदा, चक्रवात आदि। इनसे सुरक्षित रखने के लिए आपको इस दिन कुछ खास बातें वैज्ञानिकों द्वारा बताई जाती हैं। जिसका आपको ध्यान रखना होता है। आपको बता दें कि, हर साल इस दिन को अलग-अलग थीम के अनुसार मनाया जाता है। जैसे साल 2022 में इसे ‘प्रारंभिक चेतावनी और प्रारंभिक कार्रवाई’ थीम के हिसाब से मनाया था। साल 2023 में इसे ‘पीढ़ियों तक मौसम, जलवायु और पानी का भविष्य’ थीम के अनुसार मनाया गया था. ऐसे ही इस साल भी इसकी थीम चुनी गई है। जिसका चुनाव मौसम विज्ञान विभाग में काम कर रहे लोगों द्वारा किया गया है। इस साल 2024 की थीम ‘On the Front Lines of #ClimateAction’ है.

Ans- ग्रीनहाउस प्रभाव पृथ्वी की सतह के तापमान स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है।

Ans- ग्रीनहाउस के चार नुकसान होते हैं।

Ans- ग्रीनहाउस के प्रभाव अच्छे होते हैं।

Ans- ग्रीनहाउस प्रभाव से अवशोषित गैस पुन विकसित होते हैं।

Ans- ग्रीनहाउस का अर्थ है बाग बगीचे और पार्क होता है।

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पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के बारे में पाँच अहम बातें

समुद्र -  वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों द्वारा समााहित अत्यधिक गर्मी को सोख़कर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कुछ टाल रहे हैं.

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किसी ग्रीनहाउस में सूर्य का प्रकाश दाख़िल होता है, और गर्मी वहीं ठहर जाती है. ग्रीनहाउस प्रभाव इसी तरह का परिदृश्य पृथ्वी के स्तर पर भी परिभाषित होता है, मगर किसी ग्रीनहाउस में लगे शीशे के बजाय, कुछ तरह की गैसें, वैश्विक तापमान को लगातार बढ़ा रही हैं.

1. ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

पृथ्वी की सतह, सौर ऊर्जी के लगभग आधे हिस्सा को जज़्ब कर लेती है, जबकि 23 प्रतिशत गर्मी वातावरण में समा जाती है, और बाक़ी गर्मी या तापमान, वापिस अन्तरिक्ष में लौटा दिया जाता है. प्राकृतिक प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करती हैं कि सूरज से पृथ्वी की तरफ़ आने वाली और वापिस जाने वाली उर्जा की मात्रा समान हो, जिससे पृथ्वी का तापमान स्थिर रह सके. 

मगर, मानव गतिविधियों के कारण कथाकथित ग्रीनहाउस गैसों (CHGs) का ज़्यादा उत्सर्जन हो रहा है. वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसों के उलट, ग्रीनहाउस गैसें, वातावरण में ही ठहर जाती हैं और पृथ्वी से दूर नहीं जातीं. परिणामस्वरूप ये ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर लौट आती है जहाँ ये जज़्ब हो जाती है.

चूँकि पृथ्वी में दाख़िल होने वाली ऊर्जा की मात्रा, वापिस लौटने वाली ऊर्जी की मात्रा से ज़्यादा होती है, इसलिये, पृथ्वी की सतह का तापमान तब तक बढ़ता है जब तक कि नया सन्तुलन हासिल नहीं होता.

दो महिलाएँ, सूखा से बुरी तरह प्रभावित ज़मीन में, अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिये, जल तलाश करते हुए.

2. बढ़ता तापमान चिन्ताजनक क्यों?

इस तापमान वृद्धि के जलवायु पर दीर्घकालीन और प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, और इससे बेशुमार प्राकृतिक प्रणालियाँ भी प्रभावित होती हैं. 

इन प्रभावों में चरम मौसम की आवृत्ति (बारम्बारता) और सघनता में बढ़ोत्तरी होना भी शामिल है जिनमें बाढ़ आना, सूखा पड़ना, जंगलों में भीषण आग लगना और तूफ़ान शामिल हैं. इनके कारण करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं और ख़रबों डॉलर का नुक़सान होता है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( UNEP ) की ऊर्जा व जलवायु शाखा के प्रमुख मार्क राडका का कहना है, “मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, इनसानों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को ख़तरे में डालते हैं. और मज़बूत व ठोस जलवायु कार्रवाई नहीं की गई तो, प्रभाव और भी ज़्यादा व्यापक व गम्भीर होंगे.”

ग्रीनहाउस गैसें का उत्सर्जन जलवायु संकट को समझने व इसका सामना करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है: यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की ताज़ातरीन रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कोविड-19 के कारण तापमान वृद्धि में मामूली गिरावट हुई है लेकिन, अगर देशों ने उत्सर्जन में कमी करने के लिये, कहीं ज़्यादा व्यापक प्रयास नहीं किये तो, वैश्विक तापमान में इस सदी के अन्त तक 2.7 डिग्री सेल्सियस की ख़तरनाक वृद्धि होने का अनुमान है.

रिपोर्ट में पाया गया है कि अगर इस सदी के अन्त तक, तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक आधा किये जाने की ज़रूरत है.

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक मन्दी के बावजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्तरों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो रही है.

3. मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कौन सी हैं?

पानी से बनने वाली भाप, कुल मिलाकर ग्रीनहाउस प्रभाव में सबसे बड़ा योगदान करने वाला तत्व है. अलबत्ता वातावरण में, लगभग सारा जल भाप, प्राकृतिक प्रक्रियाओं से आती है. कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं जिनके बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत है. 

कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) वातावरण में लगभग 1000 वर्षों तक बनी रहती है, मीथेन लगभग एक दशक तक, और नाइट्रस ऑक्साइड लगभग 120 वर्षों तक वातावरण में मौजूद रहती है.

4. मानव गतिविधि से किस तरह ये गैसें उत्पन्न हो रही हैं?

कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस, आज भी दुनिया के अनेक हिस्सों में ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं. इन जीवाश्म ईंधनों में कार्बन मुख्य तत्व है और, जब बिजली या ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जी प्रेषण, व गर्मी उत्पन्न करने के लिये इनमें से किसी भी तरह के जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है, तो उनसे कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होती है.

मानव गतिविधियों के कारण मीथेन गैस का जितना उत्सर्जन होता है, उसमें लगभग 55 हिस्से के लिये, तेल और गैस निकासी, कोयला खुदाई, और कूड़ा घर ज़िम्मेदार हैं. 

मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले मीथेन उत्सर्जन की लगभग 32 प्रतिशत मात्रा के लिये, गायों, भेड़ों और ऐसे अन्य मवेशियों को ज़िम्मेदार माना जाता है, जो अपने पेटों में भोजन की सिरका या ख़मीर प्रक्रिया करते हैं. 

खाद को गलाना या उसका अपघटन करना, और धान की खेती भी, मीथेन गैसे उत्सर्जन के अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं.

मानव गतिविधियों द्वारा निर्मित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन मुख्य रूप से कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के कारण होता है. भूमि और जल में मौजूद बैक्टीरिया, नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से नाइट्रस ऑक्साइड में तब्दील करते हैं, मगर उर्वरकों का प्रयोग करने के कारण इस प्रक्रिया में बढ़ोत्तरी होती है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण में और ज़्यादा नाइट्रोजन एकत्र हो जाती है.

पवन चक्कियाँ नवीनीकृत ऊर्जा का उत्पादन करती हैं और कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम करती हैं.

5. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

नवीनीकृत ऊर्जा का प्रयोग करने, कार्बन की क़ीमत निश्चित करना, और कोयला प्रयोग को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म करने, जैसे कुछ उपायों से, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है.  लम्बी अवधि के लिये मानव और पर्यावरण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिये, अन्ततः उत्सर्जन में कमी के लिये उच्च व मज़बूत लक्ष्य ज़रूरी हैं.

मार्क राडका का कहना है, “हमें ऐसी ठोस नीतियाँ लागू करनी होंगी जिनसे, बढ़े हुए उत्सर्जन पलट सकें. हम इसी रास्ते पर चलते हुए, बेहतर नतीजों की अपेक्षा नहीं कर सकते. कार्रवाई अभी करनी होगी.”

यूएन जलवायु सम्मेलन कॉप-26 के दौरान, योरोपीय संघ और अमेरिका ने वैश्विक मीथेन संकल्प शुरू किया था जिसके तहत 100 से ज़्यादा देश, वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन, कृषि और कूड़ा प्रबन्धन क्षेत्रों में, मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कमी करने के लक्ष्य पर काम करेंगे.

चुनौतियों के बावजूद, सकारात्मक रुख़ अपनाने और आशान्वित रहने का भी एक कारण मौजूद है. वर्ष 2010 से 2021 तक, ऐसी नीतियाँ बनाई और लागू की गई हैं जिनके ज़रिये वर्ष 2030 तक, वार्षिक उत्सर्जन में 11 गीगाटन की कमी लाने का लक्ष्य है.

सर्वसाधारण भी, जलवायु-सकारात्मक कार्रवाई में, अपना निजी योगदान करने की ख़ातिर विचारों के लिये, संयुक्त राष्ट्र के #ActNow अभियान का हिस्सा बन सकते हैं.

पर्यावरण पर कम प्रभाव डालने वाले विकल्प चुनकर, सभी लोग, समाधान व प्रभावकारी बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं. 

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Essay on Greenhouse Effect for Students and Children

500 words essay on greenhouse effect.

The past month, July of 2019, has been the hottest month in the records of human history. This means on a global scale, the average climate and temperatures are now seen a steady rise year-on-year. The culprits of this climate change phenomenon are mainly pollution , overpopulation and general disregard for the environment by the human race. However, we can specifically point to two phenomenons that contribute to the rising temperatures – global warming and the greenhouse effect. Let us see more about them in this essay on the greenhouse effect.

The earth’s surface is surrounded by an envelope of the air we call the atmosphere. Gasses in this atmosphere trap the infrared radiation of the sun which generates heat on the surface of the earth. In an ideal scenario, this effect causes the temperature on the earth to be around 15c. And without such a phenomenon life could not sustain on earth.

However, due to rapid industrialization and rising pollution, the emission of greenhouse gases has increased multifold over the last few centuries. This, in turn, causes more radiation to be trapped in the earth’s atmosphere. And as a consequence, the temperature on the surface of the planet steadily rises. This is what we refer to when we talk about the man-made greenhouse effect.

Essay on Greenhouse Effect

Causes of Greenhouse Effect

As we saw earlier in this essay on the greenhouse effect, the phenomenon itself is naturally occurring and an important one to sustain life on our planet. However, there is an anthropogenic part of this effect. This is caused due to the activities of man.

The most prominent among this is the burning of fossil fuels . Our industries, vehicles, factories, etc are overly reliant on fossil fuels for their energy and power. This has caused an immense increase in emissions of harmful greenhouse gasses such as carbon dioxide, carbon monoxide, sulfides, etc. This has multiplied the greenhouse effect and we have seen a steady rise in surface temperatures.

Other harmful activities such as deforestation, excessive urbanization, harmful agricultural practices, etc. have also led to the release of excess carbon dioxide and made the greenhouse effect more prominent. Another harmful element that causes harm to the environment is CFC (chlorofluorocarbon).

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Some Effects of Greenhouse Effect

Even after overwhelming proof, there are still people who deny the existence of climate change and its devastating pitfalls. However, there are so many effects and pieces of evidence of climate change it is now undeniable. The surface temperature of the planet has risen by 1c since the 19th century. This change is largely due to the increased emissions of carbon dioxide. The most harm has been seen in the past 35 years in particular.

The oceans and the seas have absorbed a lot of this increased heat. The surfaces of these oceans have seen a rise in temperatures of 0.4c. The ice sheets and glaciers are also rapidly shrinking. The rate at which the ice caps melt in Antartica has tripled in the last decade itself. These alarming statistics and facts are proof of the major disaster we face in the form of climate change.

600 Words Essay on Greenhouse Effect

A Greenhouse , as the term suggests, is a structure made of glass which is designed to trap heat inside. Thus, even on cold chilling winter days, there is warmth inside it. Similarly, Earth also traps energy from the Sun and prevents it from escaping back. The greenhouse gases or the molecules present in the atmosphere of the Earth trap the heat of the Sun. This is what we know as the Greenhouse effect.

greenhouse effect essay

Greenhouse Gases

These gases or molecules are naturally present in the atmosphere of the Earth. However, they are also released due to human activities. These gases play a vital role in trapping the heat of the Sun and thereby gradually warming the temperature of Earth. The Earth is habitable for humans due to the equilibrium of the energy it receives and the energy that it reflects back to space.

Global Warming and the Greenhouse Effect

The trapping and emission of radiation by the greenhouse gases present in the atmosphere is known as the Greenhouse effect. Without this process, Earth will either be very cold or very hot, which will make life impossible on Earth.

The greenhouse effect is a natural phenomenon. Due to wrong human activities such as clearing forests, burning fossil fuels, releasing industrial gas in the atmosphere, etc., the emission of greenhouse gases is increasing.

Thus, this has, in turn, resulted in global warming . We can see the effects due to these like extreme droughts, floods, hurricanes, landslides, rise in sea levels, etc. Global warming is adversely affecting our biodiversity, ecosystem and the life of the people. Also, the Himalayan glaciers are melting due to this.

There are broadly two causes of the greenhouse effect:

I. Natural Causes

  • Some components that are present on the Earth naturally produce greenhouse gases. For example, carbon dioxide is present in the oceans, decaying of plants due to forest fires and the manure of some animals produces methane , and nitrogen oxide is present in water and soil.
  • Water Vapour raises the temperature by absorbing energy when there is a rise in the humidity.
  • Humans and animals breathe oxygen and release carbon dioxide in the atmosphere.

II. Man-made Causes

  • Burning of fossil fuels such as oil and coal emits carbon dioxide in the atmosphere which causes an excessive greenhouse effect. Also, while digging a coal mine or an oil well, methane is released from the Earth, which pollutes it.
  • Trees with the help of the process of photosynthesis absorb the carbon dioxide and release oxygen. Due to deforestation the carbon dioxide level is continuously increasing. This is also a major cause of the increase in the greenhouse effect.
  • In order to get maximum yield, the farmers use artificial nitrogen in their fields. This releases nitrogen oxide in the atmosphere.
  • Industries release harmful gases in the atmosphere like methane, carbon dioxide , and fluorine gas. These also enhance global warming.

All the countries of the world are facing the ill effects of global warming. The Government and non-governmental organizations need to take appropriate and concrete measures to control the emission of toxic greenhouse gases. They need to promote the greater use of renewable energy and forestation. Also, it is the duty of every individual to protect the environment and not use such means that harm the atmosphere. It is the need of the hour to protect our environment else that day is not far away when life on Earth will also become difficult.

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ग्लोबल वार्मिंग का क्या प्रभाव पड़ता है जानिए इन निबंधों के द्वारा

green house effect essay in hindi

  • Updated on  
  • जून 6, 2023

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा है। धरती पर गर्मी खतरनाक गति से बढ़ रही है। इसके कारण शताब्दियों से जमे हिमखंड पिघल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग क्योंकि एक बहुत गंभीर समस्या है इसलिए इस पर निबंध कई SAT , UPSC जैसी कई शैक्षणिक और शैक्षिक परीक्षाओं का एक अभिन्न अंग हैं। निबंध  लिखने में सक्षम होना किसी भी भाषा में महारत हासिल करने का एक अभिन्न अंग है। यह अंग्रेजी दक्षता परीक्षाओं के साथ-साथ IELTS , TOEFL आदि का एक महत्वपूर्ण मूल्यांकनात्मक हिस्सा है। हम कह सकते हैं कि निबंध पूरी दुनिया के आकलन के लिए अपने विचारों को स्पष्ट और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने में एक व्यक्ति की मदद करते हैं। वे एक व्यक्ति की विश्लेषणात्मक सोच भी प्रस्तुत करते हैं और एक व्यक्ति को धाराप्रवाह अपनी राय व्यक्त करने में सक्षम बनाते हैं। इस ब्लॉग के जरिए आप ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखना सीखनें के साथ इस विकट समस्या को गहराई से समझ पाएंगे। तो आइए शुरू करते हैं essay on global warming in hindi, global warming essay in hindi या ग्लोबल वार्मिंग निबंध। 

This Blog Includes:

ग्लोबल वार्मिंग क्या होती है, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव, भूमंडलीय तापक्रम में वृद्धि क्या है, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध के सैम्पल्स, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध 100-150 शब्दों में, 250 शब्दों में ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध 500 शब्दों में , ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध यूपीएससी, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग निबंध, ग्लोबल वार्मिंग पर अनुच्छेद, निबंध लिखने की युक्तियाँ.

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों (मीथेन, कार्बन डाय ऑक्साइड, ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन) के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़े हुए समुद्र के वाटर लेवल के फलस्वरूप इनका डेवलपमेंट, डिस्ट्रीब्यूशन एवं इनके द्वारा निर्मित विभिन्न टोपोग्राफिकल स्ट्रक्चर प्रभावित हो सकती हैं। इसी प्रकार बहुत सी वनस्पतियों तथा जीवों का पलायन धीरे-धीरे ध्रुवीय प्रदेशों या उच्च पर्वतीय प्रदेशों की तरफ हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग पिछली शताब्दी में पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में असामान्य रूप से तेजी से वृद्धि है, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने वाले लोगों द्वारा जारी ग्रीनहाउस गैसों के कारण। ग्रीनहाउस गैसों में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और क्लोरोफ्लोरोकार्बन शामिल हैं। हर गुजरते साल के साथ मौसम की भविष्यवाणी अधिक जटिल होती जा रही है, मौसम अधिक अप्रभेद्य होते जा रहे हैं और सामान्य तापमान गर्म होता जा रहा है। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से तूफान, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन सभी परिवर्तनों के पीछे का पर्यवेक्षक ग्लोबल वार्मिंग है। नाम काफी आत्म-व्याख्यात्मक है; इसका अर्थ है पृथ्वी के तापमान में वृद्धि।

पृथ्वी को गर्मी से बचाएं क्योंकि आप इससे अपनी रक्षा करते हैं!

global warming essay in hindi

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखते समय ग्लोबल वार्मिंग और पॉइंटर को ध्यान में रखने के विचार से परिचित होने के बाद, global warming essay in hindi के सैंपल के लिए आगे पढ़ते हैं। 

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि और पिछली कुछ शताब्दियों से हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी चीज है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और वैश्विक स्तर पर इस स्थिति से निपटने के लिए कदम उठाने होंगे। पिछले कुछ वर्षों से औसत तापमान में लगातार 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। भविष्य में पृथ्वी को होने वाले नुकसान को रोकने का सबसे अच्छा तरीका, अधिक वनों को काटने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और वनीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अपने घरों और कार्यालयों के पास पेड़ लगाकर शुरुआत करें, आयोजनों में भाग लें, पेड़ लगाने का महत्व सिखाएं। नुकसान को पूर्ववत करना असंभव है लेकिन आगे के नुकसान को रोकना संभव है।

लंबे समय से, यह देखा गया है कि पृथ्वी का बढ़ता तापमान वन्य जीवन, जानवरों, मनुष्यों और पृथ्वी पर हर जीवित जीव को प्रभावित करता था। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई देशों ने पानी की कमी, बाढ़, कटाव शुरू कर दिया है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए इंसानों को छोड़कर किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। बिजली संयंत्रों से निकलने वाली गैसों, परिवहन, वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी और अन्य प्रदूषकों जैसी गैसों में वृद्धि हुई है। मुख्य सवाल यह है कि हम वर्तमान स्थिति को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। इसकी शुरुआत प्रत्येक व्यक्ति के छोटे-छोटे कदमों से होती है।

खरीदारी के सभी उद्देश्यों के लिए टिकाऊ सामग्री से बने कपड़े के थैलों का उपयोग करना शुरू करें, उच्च वाट की रोशनी का उपयोग करने के बजाय ऊर्जा कुशल बल्बों का उपयोग करें, बिजली बंद करें, पानी बर्बाद न करें, वनों की कटाई को समाप्त करें और अधिक पेड़ लगाने को प्रोत्साहित करें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। पृथ्वी को बचाने के लिए एक व्यक्ति जो भी छोटा-मोटा काम करता है, वह बड़ी या छोटी मात्रा में योगदान देगा।

यह महत्वपूर्ण है कि हम सीखें कि 1% प्रयास बिना किसी प्रयास के बेहतर है। प्रकृति की देखभाल करने और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बोलने का संकल्प लें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। 

इस ग्रह को दर्द होता है, उसे गर्मी से मत दुखाओ।

ग्लोबल वार्मिंग भविष्यवाणी नहीं है, यह हो रहा है। इसे नकारने वाला या इससे अनजान व्यक्ति सबसे सरल शब्दों में उलझा हुआ है। क्या हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरा ग्रह है? दुर्भाग्य से, हमें केवल यह एक ऐसा ग्रह प्रदान किया गया है जो जीवन को बनाए रख सकता है फिर भी वर्षों से हमने अपनी दुर्दशा से आंखें मूंद ली हैं। ग्लोबल वार्मिंग एक अमूर्त अवधारणा नहीं है, बल्कि एक वैश्विक घटना है जो इस समय भी इतनी धीमी गति से घटित हो रही है।

ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो हर मिनट हो रही है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की समग्र जलवायु में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। वातावरण में सौर विकिरण को फंसाने वाली ग्रीनहाउस गैसों द्वारा लाया गया, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के पूरे मानचित्र को बदल सकता है, क्षेत्रों को विस्थापित कर सकता है, कई देशों में बाढ़ ला सकता है और कई जीवन रूपों को नष्ट कर सकता है। चरम मौसम ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष परिणाम है लेकिन यह संपूर्ण परिणाम नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग के लगभग असीमित प्रभाव हैं जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक हैं।

दुनिया भर में समुद्र का स्तर प्रति वर्ष 0.12 इंच बढ़ रहा है। ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ की टोपियों के पिघलने के कारण हो रहा है। इससे कई तराई क्षेत्रों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ गई है और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचा है। आर्कटिक ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। वायु की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और समुद्री जल की अम्लता भी बढ़ गई है जिससे समुद्री जीवों को गंभीर नुकसान हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, जिसका जीवन और संपत्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

जब तक मानव जाति ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करती है, ग्लोबल वार्मिंग में तेजी जारी रहेगी। परिणाम बहुत छोटे पैमाने पर महसूस किए जाते हैं जो निकट भविष्य में और भीषण हो जाएंगे। दिन बचाने की ताकत इंसानों के हाथ में है, जरूरत है दिन को जब्त करने की। ऊर्जा की खपत को व्यक्तिगत आधार पर कम किया जाना चाहिए। ऊर्जा स्रोतों की बर्बादी को कम करने के लिए ईंधन कुशल कारों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे वायु की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता कम होगी। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी बुराई है जिसे एक साथ लड़ने पर ही हराया जा सकता है।

पहले से कहीं ज्यादा देर हो चुकी है। अगर हम सब आज कदम उठाते हैं, तो कल हमारा भविष्य बहुत उज्जवल होगा। ग्लोबल वार्मिंग हमारे अस्तित्व का अभिशाप है और इससे लड़ने के लिए दुनिया भर में विभिन्न नीतियां सामने आई हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। वास्तविक अंतर तब आता है जब हम इससे लड़ने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर काम करते हैं। एक अपरिवर्तनीय गलती बनने से पहले इसके आयात को समझना अब महत्वपूर्ण है। ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और हम में से प्रत्येक इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना कि अगले।  

ग्लोबल वार्मिंग निबंध

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में हमेशा हर जगह सुना जाता है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि यह वास्तव में क्या है? सबसे खराब बुराई, ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो जीवन को अधिक घातक रूप से प्रभावित कर सकती है। ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य विभिन्न मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से है। ग्रह धीरे-धीरे गर्म हो रहा है और उस पर जीवन रूपों के अस्तित्व को खतरा है। अथक अध्ययन और शोध किए जाने के बावजूद, अधिकांश आबादी के लिए ग्लोबल वार्मिंग विज्ञान की एक अमूर्त अवधारणा है। यह वह अवधारणा है जो वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग को एक वास्तविक वास्तविकता बनाने में परिणत हुई है, न कि किताबों में शामिल एक कॉन्सेप्ट।

ग्लोबल वार्मिंग केवल एक कारण से नहीं होती है जिस पर अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसे कई कारक हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनते हैं, जिनमें से अधिकांश व्यक्ति के दैनिक अस्तित्व का हिस्सा हैं। खाना पकाने, वाहनों में और अन्य पारंपरिक उपयोगों के लिए ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी कई अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से ग्लोबल वार्मिंग भी होती है क्योंकि कम ग्रीन कवर के परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति बढ़ जाती है जो एक ग्रीनहाउस गैस है। 

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान खोजना तत्काल महत्व का है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जिससे एकजुट होकर लड़ना होगा। ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों को दूर करने की दिशा में अधिक से अधिक पेड़ लगाना पहला कदम हो सकता है। हरित आवरण बढ़ने से कार्बन चक्र को विनियमित किया जा सकेगा। गैर-नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग से अक्षय ऊर्जा जैसे पवन या सौर ऊर्जा में बदलाव होना चाहिए जो कम प्रदूषण का कारण बनता है और जिससे ग्लोबल वार्मिंग के त्वरण में बाधा उत्पन्न होती है। व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा की जरूरतों को कम करना और किसी भी रूप में ऊर्जा बर्बाद न करना ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उठाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

हम जिस शालीनता की गहरी नींद में चले गए हैं, उससे हमें जगाने के लिए चेतावनी की घंटी बज रही है। मनुष्य प्रकृति के खिलाफ लड़ सकता है और अब समय आ गया है कि हम इसे स्वीकार करें। हमारी सभी वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी आविष्कारों के साथ, ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों से लड़ना असंभव है। हमें यह याद रखना होगा कि हमें अपने पूर्वजों से पृथ्वी विरासत में नहीं मिली है, बल्कि इसे अपनी आने वाली पीढ़ी से उधार लेते हैं और जीवन के अस्तित्व के लिए उन्हें एक स्वस्थ ग्रह देने की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है। 

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और दुनिया भर में प्रमुख चिंता के दो मुद्दे हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी, और अन्य प्रदूषक जैसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जिससे जलवायु परिवर्तन होता है। पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में ब्लैक होल बनने लगे हैं। मानवीय गतिविधियों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को जन्म दिया है। ग्लोबल वार्मिंग में औद्योगिक कचरे और धुएं का प्रमुख योगदान है। प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारणों में से एक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और आर्कटिक में पर्वतीय हिमनद सिकुड़ रहे हैं और जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहे हैं। पवन और सौर जैसे ऊर्जा स्रोतों के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग से स्विच करना। कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदते समय ऊर्जा बचत वाले सितारों के साथ सर्वोत्तम गुणवत्ता खरीदें। पानी बर्बाद न करें और अपने समुदाय में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें। 

एक शब्द जिसका आज हम आम तौर पर सामना करते हैं, वह है ग्लोबल वार्मिंग। शब्द के साथ हमारा परिचय हमारी पाठ्यपुस्तकों और उन नकारात्मक परिणामों तक सीमित है जिनके बारे में हम पढ़ते हैं। लेकिन क्या ग्लोबल वार्मिंग वास्तव में एक सैद्धांतिक अवधारणा से कहीं अधिक है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण गर्मी के फंसने के कारण पृथ्वी के धीरे-धीरे गर्म होने की घटना को संदर्भित करता है। ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख परिणाम यह है कि इससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी जिससे ध्रुवीय बर्फ की टोपियों का पिघलना, चरम जलवायु और इस तरह सामान्य कामकाज में व्यवधान जैसे गंभीर नकारात्मक प्रभाव होंगे। इसके खतरे केवल कुछ पहलुओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि सर्वव्यापी हैं और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के कई कारण हैं, कुछ प्रमुख कारण दूसरों की तुलना में अधिक योगदान करते हैं। ये कारक इसकी दर को तेज करते हैं:

  • मनुष्यों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक जलने से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाता है।
  • वनों की कटाई मानवीय जरूरतों के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है।
  • सतत कृषि और पशुपालन भी मीथेन को पढ़कर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जो एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है।
  • रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे विभिन्न रसायनों के परिणामस्वरूप भी काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग होती है।

एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए ऐसे कौशल की आवश्यकता होती है जो बहुत कम लोगों के पास हो और उससे भी कम लोग जानते हों कि इसे कैसे लागू किया जाए। एक निबंध लिखते समय एक कठिन काम हो सकता है जो कई बार परेशान करने वाला हो सकता है, एक सफल निबंध का मसौदा तैयार करने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है। इनमें निबंध की संरचना पर ध्यान केंद्रित करना, इसकी अच्छी तरह से योजना बनाना और महत्वपूर्ण विवरणों पर जोर देना शामिल है। नीचे कुछ संकेत दिए गए हैं जो आपको बेहतर संरचना और अधिक विचारशील निबंध लिखने में मदद कर सकते हैं जो आपके पाठकों तक पहुंचेंगे:

  • निरंतरता और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए निबंध की रूपरेखा तैयार करें और निबंध की संरचना में कोई व्यवधान न हो।
  • एक थीसिस स्टेटमेंट पर निर्णय लें जो आपके निबंध का आधार बनेगी। यह आपके निबंध का बिंदु होगा और पाठकों को आपके विवाद को समझने में मदद करेगा।
  • परिचय की संरचना, एक विस्तृत निकाय और उसके बाद निष्कर्ष का पालन करें ताकि पाठक बिना किसी असंगति के निबंध को एक विशेष तरीके से समझ सकें।
  • निबंध को व्यावहारिक और पढ़ने के लिए आकर्षक बनाने के लिए अपनी शुरुआत को आकर्षक बनाएं और अपने निष्कर्ष में समाधान शामिल करें।
  • इसे प्रकाशित करने से पहले इसे फिर से पढ़ें और निबंध को और अधिक व्यक्तिगत और पाठकों के लिए अद्वितीय और दिलचस्प बनाने के लिए उसमें अपनी प्रतिभा जोड़ें।  

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को  वैश्विक  तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है ।

ग्लोबल वार्मिंग  या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. विज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा. इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे  हैं  और रेगिस्तान पसरते जा रहे  हैं .

वर्ल्ड मिटियोरॉलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से सबसे ज़्यादा है. इन गैसों से ही  ग्लोबल वार्मिंग  होती है.

हमें उम्मीद है कि इस ब्लॉग से आपको ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। इसी और अन्य तरह के ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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ग्रीन हाउस प्रभाव पर निबंध – Essay on Greenhouse Effect in Hindi

green house effect essay in hindi

ग्रीनहाउस प्रभाव आधुनिक समय की एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती है जो हमारे ग्रह को भारी जोखिम में डाल रही है। यह प्रभाव धरती पर तापमान में वृद्धि का कारण बनता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, समुद्री स्तर में वृद्धि, और जलवायु अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं। इस विस्तृत निबंध में, हम ग्रीनहाउस प्रभाव के कारणों, इसके प्रभावों और इसे कम करने के प्रयासों की विस्तृत विवेचना करेंगे।

Table of Contents

ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

ग्रीनहाउस प्रभाव वह प्रक्रिया है जिसके तहत पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करके उसे ऊष्मा में बदलता है और फिर कुछ मात्रा में ऊष्मा को वापस अंतरिक्ष में भेजता है। लेकिन मनुष्यों द्वारा उत्पन्न गैसों के कारण इस ऊष्मा का एक बड़ा हिस्सा वायुमंडल में ही रह जाता है और पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।

ग्रीनहाउस गैसें

विभिन्न ग्रीनहाउस गैसें (Greenhouse Gases) हैं:

  • कार्बन डाईऑक्साइड (CO2)
  • मेथेन (CH4)
  • नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)
  • वाटर वेपर (H2O)
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)

ये गैसें सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित करती हैं और उसे वापस पृथ्वी की सतह पर भेजती हैं, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।

ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण

  • जीवाश्म ईंधनों का दहन: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक दहन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करता है, जो ग्रीनहाउस प्रभाव का मुख्य कारण है।
  • वनों की कटाई: जंगलों की अंधाधुंध कटाई से कार्बन डाईऑक्साइड की लेवल में वृद्धि होती है क्योंकि पेड़ कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • औद्योगिकीकरण: भारी उद्योग और कारखानों द्वारा उत्सर्जित गैसें भी ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान करती हैं।
  • कृषि गतिविधियाँ: चावल की खेती, मवेशियों की गड़बड़ी आदि मेथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं।

ग्रीनहाउस प्रभाव के परिणाम

ग्रीनहाउस प्रभाव के परिणाम अत्यंत गंभीर हो सकते हैं और वे हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य, और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

जलवायु परिवर्तन

ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण धरती के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन होता है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप हमें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे:

  • ग्लेशियरों का पिघलना
  • समुद्री स्तर में वृद्धि
  • अत्यधिक तापमान में वृद्धि
  • असमान बारिश के पैटर्न्स
  • अत्यधिक बाढ़ और सूखा

प्राकृतिक आपदाएं

ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ सकती है, जैसे तापमान में वृद्धि, हारिकेन, साइकलोन आदि।

वन्यजीवों पर प्रभाव

तापमान में वृद्धि से वन्यजीवों की प्रजातियाँ भी प्रभावित हो सकती हैं। जलीय और स्थलीय दोनों ही प्रजातियाँ इसके प्रभाव से संकुचित हो सकती हैं।

स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे

ग्रीनहाउस प्रभाव से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है, जैसे:

  • गर्मी के स्वास्थ्य समस्याएँ
  • जलवायु-जनित रोगों का बढ़ना
  • खाद्य और जल की गुणवत्ता में गिरावट

ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करने के उपाय

ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करने के लिए हमें कुछ ठोस और सामूहिक प्रयास करने होंगे। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं:

नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग

हमें जीवाश्म ईंधनों के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जल ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना चाहिए। इससे कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी।

रिसाइकिलिंग और पुनर्प्रयोग

हमें अपने दैनिक जीवन में रिसाइकिलिंग और पुनर्प्रयोग की आदत डालनी चाहिए, जिससे कचरे का उत्पादन कम हो और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो सके।

वाहनों का कम उपयोग

जहाँ तक संभव हो, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना चाहिए और कार पूलिंग का सहारा लेना चाहिए। यह वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करेगा।

वनों की सुरक्षा

हमें वनों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए और वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। वृक्ष कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और वायुमंडल को शुद्ध रखते हैं।

शैक्षिक और जागरूकता कार्यक्रम

हमें स्कूलों, कॉलेजों, और समुदायों में ग्रीनहाउस प्रभाव और जलवायु परिवर्तन के बारे में शैक्षिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियानों का आयोजन करना चाहिए।

ग्रीनहाउस प्रभाव एक गंभीर वैश्विक चुनौती है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक है कि हम सब मिलकर ठोस कदम उठाएँ और अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखें। नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, रिसाइकिलिंग, वृक्षारोपण, और जागरूकता कार्यक्रम जैसे उपाय अपनाकर हम ग्रीनहाउस प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

इस प्रकार, हम सभी एक संयुक्त प्रयास करके इस चुनौती से निपट सकते हैं और धरती को सुरक्षित और हरित बना सकते हैं।

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greenhouse effect on Earth

  • What does Earth look like?
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  • Where was science invented?
  • How does global warming work?
  • Where does global warming occur in the atmosphere?

Brown layer of Los Angeles smog; photo taken on November 10, 2016.(California, environment, smog)

greenhouse effect

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  • UCAR Center for Science Education - The Greenhouse Effect
  • University of California Museum of Paleontology - Understanding Global Change - Greenhouse effect
  • British Geological Survey - The greenhouse effect
  • National Geographic - Education - Greenhouse Effect
  • Natural Resources Defense Council - Greenhouse Effect
  • Library of Economics and Liberty - Greenhouse Effect
  • greenhouse effect - Children's Encyclopedia (Ages 8-11)
  • greenhouse effect - Student Encyclopedia (Ages 11 and up)

greenhouse effect on Earth

greenhouse effect , a warming of Earth ’s surface and troposphere (the lowest layer of the atmosphere ) caused by the presence of water vapour, carbon dioxide , methane , and certain other gases in the air. Of those gases, known as greenhouse gases , water vapour has the largest effect.

The origins of the term greenhouse effect are unclear. French mathematician Joseph Fourier is sometimes given credit as the first person to coin the term greenhouse effect based on his conclusion in 1824 that Earth’s atmosphere functioned similarly to a “hotbox”—that is, a heliothermometer (an insulated wooden box whose lid was made of transparent glass) developed by Swiss physicist Horace Bénédict de Saussure , which prevented cool air from mixing with warm air. Fourier, however, neither used the term greenhouse effect nor credited atmospheric gases with keeping Earth warm. Swedish physicist and physical chemist Svante Arrhenius is credited with the origins of the term in 1896, with the publication of the first plausible climate model that explained how gases in Earth’s atmosphere trap heat . Arrhenius first refers to this “hot-house theory” of the atmosphere—which would be known later as the greenhouse effect—in his work Worlds in the Making (1903).

What's the problem with an early spring?

The atmosphere allows most of the visible light from the Sun to pass through and reach Earth’s surface. As Earth’s surface is heated by sunlight , it radiates part of this energy back toward space as infrared radiation . This radiation, unlike visible light, tends to be absorbed by the greenhouse gases in the atmosphere, raising its temperature. The heated atmosphere in turn radiates infrared radiation back toward Earth’s surface. (Despite its name, the greenhouse effect is different from the warming in a greenhouse , where panes of glass transmit visible sunlight but hold heat inside the building by trapping warmed air.)

Without the heating caused by the greenhouse effect, Earth’s average surface temperature would be only about −18 °C (0 °F). On Venus the very high concentration of carbon dioxide in the atmosphere causes an extreme greenhouse effect resulting in surface temperatures as high as 450 °C (840 °F).

Study the effects of increasing concentrations of carbon dioxide on Earth's atmosphere and plant life

Although the greenhouse effect is a naturally occurring phenomenon, it is possible that the effect could be intensified by the emission of greenhouse gases into the atmosphere as the result of human activity. From the beginning of the Industrial Revolution through the end of the 20th century, the amount of carbon dioxide in the atmosphere increased by roughly 30 percent and the amount of methane more than doubled. A number of scientists have predicted that human-related increases in atmospheric carbon dioxide and other greenhouse gases could lead by the end of the 21st century to an increase in the global average temperature of 3–4 °C (5.4–7.2 °F) relative to the 1986–2005 average. This global warming could alter Earth’s climates and thereby produce new patterns and extremes of drought and rainfall and possibly disrupt food production in certain regions.

Illustration of a question mark that links to the Climate Kids Big Questions menu.

What Is the Greenhouse Effect?

Watch this video to learn about the greenhouse effect! Click here to download this video (1920x1080, 105 MB, video/mp4). Click here to download this video about the greenhouse effect in Spanish (1920x1080, 154 MB, video/mp4).

How does the greenhouse effect work?

As you might expect from the name, the greenhouse effect works … like a greenhouse! A greenhouse is a building with glass walls and a glass roof. Greenhouses are used to grow plants, such as tomatoes and tropical flowers.

A greenhouse stays warm inside, even during the winter. In the daytime, sunlight shines into the greenhouse and warms the plants and air inside. At nighttime, it's colder outside, but the greenhouse stays pretty warm inside. That's because the glass walls of the greenhouse trap the Sun's heat.

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A greenhouse captures heat from the Sun during the day. Its glass walls trap the Sun's heat, which keeps plants inside the greenhouse warm — even on cold nights. Credit: NASA/JPL-Caltech

The greenhouse effect works much the same way on Earth. Gases in the atmosphere, such as carbon dioxide , trap heat similar to the glass roof of a greenhouse. These heat-trapping gases are called greenhouse gases .

During the day, the Sun shines through the atmosphere. Earth's surface warms up in the sunlight. At night, Earth's surface cools, releasing heat back into the air. But some of the heat is trapped by the greenhouse gases in the atmosphere. That's what keeps our Earth a warm and cozy 58 degrees Fahrenheit (14 degrees Celsius), on average.

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Earth's atmosphere traps some of the Sun's heat, preventing it from escaping back into space at night. Credit: NASA/JPL-Caltech

How are humans impacting the greenhouse effect?

Human activities are changing Earth's natural greenhouse effect. Burning fossil fuels like coal and oil puts more carbon dioxide into our atmosphere.

NASA has observed increases in the amount of carbon dioxide and some other greenhouse gases in our atmosphere. Too much of these greenhouse gases can cause Earth's atmosphere to trap more and more heat. This causes Earth to warm up.

What reduces the greenhouse effect on Earth?

Just like a glass greenhouse, Earth's greenhouse is also full of plants! Plants can help to balance the greenhouse effect on Earth. All plants — from giant trees to tiny phytoplankton in the ocean — take in carbon dioxide and give off oxygen.

The ocean also absorbs a lot of excess carbon dioxide in the air. Unfortunately, the increased carbon dioxide in the ocean changes the water, making it more acidic. This is called ocean acidification .

More acidic water can be harmful to many ocean creatures, such as certain shellfish and coral. Warming oceans — from too many greenhouse gases in the atmosphere — can also be harmful to these organisms. Warmer waters are a main cause of coral bleaching .

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This photograph shows a bleached brain coral. A main cause of coral bleaching is warming oceans. Ocean acidification also stresses coral reef communities. Credit: NOAA

Illustration of a video game controller.

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ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा और उपाय

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कंक्रीट का जंगल? जो पानी की बरबादी करते हैं, उनसे मैं यही पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने बिना पानी के जीने की कोई कला सीख ली है, तो हमें भी बताए, ताकि भावी पीढ़ी बिना पानी के जीना सीख सके। नहीं तो तालाब के स्थान पर मॉल बनाना क्या उचित है? आज हो यही रहा है। पानी को बरबाद करने वालों यह समझ लो कि यही पानी तुम्हें बरबाद करके रहेगा। एक बूँद पानी याने एक बूँद खून, यही समझ लो। पानी आपने बरबाद किया, खून आपके परिवार वालों का बहेगा। क्या अपनी ऑंखों का इतना सक्षम बना लोगे कि अपने ही परिवार के किस प्रिय सदस्य का खून बेकार बहता देख पाओगे? अगर नहीं, तो आज से ही नहीं, बल्कि अभी से पानी की एक-एक बूँद को सहेजना शुरू कर दो। अगर ऐसा नहीं किया, तो मारे जाओगे। वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त ( परेशान, इन प्राब्लम) है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह ( हारिबल, डार्कनेस, ) हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या। क्या है ग्लोबल वार्मिंग? जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) ।

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क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह? ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है। इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :

और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे। मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे। शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा। ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें? ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे : 1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा। 2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं। 3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है। 4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो। भोपालवासी डॉ. महेश परिमल का छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. अकादमिक कैरियर है। पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 700 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन का लम्बे लेखन का अनुभव है। पानी उनके संवेदना का गहरा पक्ष रहा है। डॉ. महेश परिमल वर्तमान में भास्कर ग्रुप में अंशकालीन समीक्षक के रूप में कार्यरत् हैं। उनका संपर्क: डॉ. महेश परिमल, 403, भवानी परिसर, इंद्रपुरी भेल, भोपाल. 462022. ईमेल - [email protected]

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