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पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi

Essay on Environment in Hindi

पर्यावरण, पर  हमारा जीवन पूरी तरह निर्भर है, क्योंकि एक स्वच्छ वातावारण से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। पर्यावरण, जीवन जीने के लिए उपयोगी वो सारी चीजें हमें उपहार के रुप में उपलब्ध करवाता है।

पर्यावरण से ही हमें शुद्ध जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन,प्राकृतिक वनस्पतियां आदि प्राप्त होती हैं। लेकिन इसके विपरीत आज लोग अपने स्वार्थ और चंद लालच के लिए जंगलों का दोहन कर रहे हैं, पेड़-पौधे की कटाई कर रहे हैं, साथ ही भौतिक सुख की प्राप्ति हुए प्राकृतिक संसाधनों का हनन कर  प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ा रहा है।

इसलिए पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं प्राकृतिक पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए हर साल दुनिया भर के लोग 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day के रूप में मनाते हैं। हमने कभी जाना हैं की इस दिवस को हम क्यों मनाते हैं। इस दिन का जश्न मनाने के पीछे का उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता पैदा करना है ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सकारात्मक कदम उठा सकें।

और साथ ही कई बार स्कूलों में छात्रों के पर्यावरण विषय पर निबंध ( Essay on Environment) लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको पर्यावरण पर अलग-अलग शब्द सीमा पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –

Environment essay

पर्यावरण पर निबंध – Environment Essay in Hindi

पर्यावरण, जिससे चारों तरफ से  संपूर्ण ब्रहाण्ड और जीव जगत घिरा हुआ है। अर्थात जो हमारे चारों ओर है वही पर्यावरण है। पर्यावरण पर मनुष्य ही नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतु, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि पूरी तरह निर्भर हैं।

पर्यावरण के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि पर्यावरण ही पृथ्वी पर एक मात्र जीवन के आस्तित्व का आधार है। पर्यावरण, हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए शुद्ध, जल, शुद्ध वायु, शुद्ध भोजन उपलब्ध करवाता है।

एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक स्वच्छ वातावरण बहुत जरूरी है लेकिन हमारे पर्यावरण मनुष्यों की कुछ लापरवाही के कारण दिन में गंदे हो रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे सभी को विशेष रूप से हमारे बच्चों के बारे में पता होना चाहिए।

“ पर्यावरण की रक्षा , दुनियाँ की सुरक्षा! ”

पर्यावरण न सिर्फ जीवन को विकसित और पोषित करने में मद्द करता है, बल्कि इसे नष्ट करने में भी मद्द करता है। पर्यावरण, जलवायु के संतुलन में मद्द करता है और मौसम चक्र को ठीक रखता है।

वहीं अगर सीधे तौर पर कहें मानव और पर्यावरण एक – दूसरे के पूरक हैं और दोनों एक-दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर हैं। वहीं अगर किसी प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों की वजह से पर्यावरण प्रभावित होता है तो, इसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है।

पर्यावरण प्रदूषण की वजह से जलवायु और मौसम चक्र में परिवर्तन, मानव जीवन को कई रुप में प्रभावित करता है और तो और यह परिवर्तन मानव जीवन के आस्तित्व पर भी गहरा खतरा पैदा करता है।

लेकिन फिर भी आजकल लोग भौतिक सुखों की प्राप्ति और विकास करने की चाह में पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे हैं। चंद लालच के चलते मनुष्य पेड़-पौधे काट रहा है, और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर कई ऐसी प्रतिक्रियाएं कर रहा है, जिसका बुरा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है।

वहीं अगर समय रहते पर्यावरण को बचाने के लिए कदम नहीं उठाए गए तो मानव जीवन का आस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर उचित कदम उठाने चाहिए। हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए और पेड़ों की कटाई पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए।

आधुनकि साधन जैसे वाहन आदि का इस्तेमाल सिर्फ जरूरत के समय ही इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं न सिर्फ पर्यावरण को दूषित कर रहा है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहा है। इसके अलावा उद्योगों, कारखानों से निकलने वाले अवसाद और दूषित पदार्थों के निस्तारण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए,ताकि प्रदूषण नहीं फैले।

वहीं अगर हम इन छोटी-छोटी बातों पर गौर करेंगे और पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने में अपना सहयोग करेंगे तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।

पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Sanrakshan Par Nibandh

प्रस्तावना

पर्यावरण, एक प्राकृतिक परिवेश है, जिससे हम चारों तरफ से घिरे हुए हैं और जो पृथ्वी पर मौजूद मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, प्राकृतिक वनस्पतियां को जीवन जीने में मद्द करता है। स्वच्छ पर्यावरण में ही  स्वस्थ व्यक्ति का विकास संभव है, अर्थात पर्यावरण का दैनिक जीवन से सीधा संबंध है।

हमारे शरीर के द्धारा की जाने वाली हर प्रतिक्रिया पर्यावरण से संबंधित है, पर्यावरण की वजह से हम सांस ले पाते हैं और शुद्ध जल -भोजन आदि ग्रहण कर पाते हैं, इसलिए हर किसी को पर्यावरण के  महत्व को समझना चाहिए।

पर्यावरण का अर्थ – Environment Meaning

पर्यावरण शब्द मुख्य रुप से दो शब्दों से मिलकर बना है, परि+आवरण। परि का अर्थ है चारो ओर और आवरण का मतलब है ढका हुआ अर्थात जो हमे चारों ओर से घेरे हुए है। ऐसा वातावरण जिससे हम चारों  तरफ से घिरे हुए हैं, पर्यावरण कहलाता है।

पर्यावरण का महत्व – Importance of Environment

पर्यावरण से ही हम है, हर किसी के जीवन के लिए पर्यावरण का बहुत महत्व है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवन, पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव-जंतु, प्राकृतिक वनस्पतियां, पेड़-पौड़े, मौसम, जलवायु सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित हैं। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है और जीवन के लिए आवश्यक  सभी वस्तुएं उपलब्ध करवाता है।

वहीं आज जहां विज्ञान से तकनीकी और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा मिला है और दुनिया में खूब विकास हुआ है, तो दूसरी तरफ यह बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं। आधुनिकीकरण, औद्योगीकरण और बढ़ती टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ा रहा है।

मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते पेड़-पौधे की कटाई कर रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। यही नहीं कुछ मानव निर्मित कारणों की वजह से वायुमंडल, जलमंडल आदि प्रभावित हो रहे हैं धरती का तापमान बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है, जो कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।

इसलिए पर्यावरण के महत्व को समझते हुए हम सभी को अपने पर्यावरण को बचाने में सहयोग करना चाहिए।

पर्यावरण और  जीवन – Environment And Life

पर्यावरण और मनुष्य एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भऱ है, पर्यावरण के बिना मनुष्य, अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो, लेकिन प्रकृति ने जो हमे उपलब्ध करवाया है, उसकी कोई तुलना नहीं है।

इसलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व हैं, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं।

पर्यावरण न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य का एक मां की तरह ख्याल रखता है,बल्कि हमें मानसिक रुप से सुख-शांति भी उपलब्ध करवाता है।

पर्यावरण, मानव जीवन का अभिन्न अंग है, अर्थात पर्यावरण से ही हम हैं। इसलिए हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

उपसंहार

पर्यावरण के प्रति हम  सभी को जागरूक होने की जरुरत हैं।  पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई पर सरकार द्धारा सख्त कानून बनाए जाना चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण को स्वच्छ रखना हम सभी को अपना कर्तव्य समझना चाहिए, क्योंकि स्वच्छ पर्यावरण में रहकर ही स्वस्थ मनुष्य का निर्माण हो सकता है और उसका विकास हो सकता है।

पर्यावरण पर निबंध – Paryavaran Par Nibandh

पर्यावरण हमें जीवन जीने के लिए सभी आवश्यक चीजें जैसे कि हवा, पानी, रोशनी, भूमि, अग्नि, पेड़-पौधे, प्राकृतिक वनस्पतियां आदि उपलब्ध करवाता है। हम पर्यावरण पर पूरी तरह निर्भर हैं। वहीं अगर हम अपने पर्यावरण को साफ-सुथरा रखेंगे तो हम स्वस्थ और सुखी जीवन का निर्वहन कर सकेंगे। इसिलए पर्यावरण को सरंक्षित करने एवं स्वच्छ रखने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए।

पर्यावरण, प्रौद्योगिकी, प्रगति और प्रदूषण – 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि विज्ञान की उन्नत तकनीक ने मनुष्य के जीवन को बेहद आसान बना दिया है, वहीं इससे न सिर्फ समय की बचत हुई है बल्कि मनुष्य ने काफी प्रगति भी की है, लेकिन विज्ञान ने कई ऐसी खोज की हैं, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है, और जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।

एक तरफ विज्ञान से प्रोद्यौगिकी का विकास हुआ, तो वहीं दूसरी तरफ उद्योंगों से निकलने वाला धुआं और दूषित पदार्थ कई तरह के प्रदूषण को जन्म दे रहा है और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर रहा है।

उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ सीधे प्राकृतिक जल स्त्रोत आदि में बहाए जा रहे हैं, जिससे जल प्रदूषण की समस्या पैदा हो रही है,इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले धुंए से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय – Paryavaran Sanrakshan Ke Upay

  • उद्योगों से निकलने वाला दूषित पदार्थ और धुएं का सही तरीके से निस्तारण करना चाहिए।
  • पर्यावरण की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  • ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना चाहिए।
  • पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए।
  • वाहनों का इस्तेमाल बेहद जरूरत के समय ही किया जाना चाहिए।
  • दूषित और जहरीले पदार्थों के निपटान के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
  • लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।

विश्व पर्यावरण दिवस – World Environment Day

लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से 5 जून से 16 जून के बीच विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है। इस मौके पर कई जगहों पर जागरूकता कार्यक्रमों का भी आय़ोजन किया जाता है।

पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है, अर्थात हम सभी को  मिलकर अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सुंदर बनाने में अपना सहयोग करना चाहिए।

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15 thoughts on “पर्यावरण पर निबंध | Environment Essay in Hindi”

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Nice sir bhote accha post h aapne to moj kar de h sir thank you sir app easi past karte rho ham logo ke liye

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Thank you sir aapne bahut accha post Kiya h mere liye bahut labhkaari h government job ki tayari ke liye

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bahut badhiya jaankari share kiye ho sir, Environment Essay.

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Thanks sir bhaut acha essay hai helpful hai aur needful bhi isme sari jankari di gye hai environment ke baare Mai and isse log inspire bhi hongee isko.pdkee……..

I love this essay…

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Thanks mujhe ye bahut kaam diya speech per

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पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (Paryavaran Sanrakshan Essay In Hindi)

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध (Paryavaran Sanrakshan Essay In Hindi)

पर्यावरण यानि ऐसा आवरण जो हमें चारों तरफ से ढंक कर रखता है, जो हमसे जुड़ा है और हम उससे जुड़े हैं और हम चाहें तो भी खुद को इससे अलग नहीं कर सकते हैं। प्रकृति और पर्यावरण एक दूसरे का अभिन्न हिस्सा हैं।

आज मानव नए नए आविष्कार कर रहा है और खूब तरक्की कर रहा है, परन्तु उसका हर्जाना भुगत रहा है ये पर्यावरण और इसमें रहने वाले अबोध जीव। आज सभी को पर्यावरण और प्रकृति का संरक्षण करने के लिए जागरूक होना पड़ेगा, अन्यथा पर्यावरण के साथ सारी मानव जाति का भी विनाश हो जाएगा।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय

यह बहुत बड़ी ओद्यौगिक दुर्घटना थी, जिसमें करीब 2,259 लोग वहीं मारे गए और 500,000 से ज्यादा व्यक्ति मिथाइल आइसोसाइनेट नामक गैस की चपेट में आ गए थे। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत पर्यावरण की सुरक्षा की ओर ध्यान देना, प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के बारे में सोचना और पर्यावरण में सुधार लाने हेतु कानून बनाना था।

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पर्यावरण का महत्व: एक स्वस्थ भविष्य की खोज। Paryavaran ka Mahatva Nibandh: The Search for a Healthy Future

पर्यावरण का महत्व: एक स्वस्थ भविष्य की खोज। Paryavaran ka Mahatva Nibandh: The Search for a Healthy Future

प्रकृति की संरक्षा और मानवीय विकास के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए पर्यावरण का महत्व (paryavaran ka mahatva) अपार है। पर्यावरण का महत्व पर यह निबंध (Paryavaran ka Mahatva Nibandh) पर्यावरण कि मानव जीवन में आवश्यकता को व्यापक रूप से वर्णित करता है और हमें प्रेरित करता है कि हमें इसकी संरक्षण के प्रति दृढ़ संकल्प होना चाहिए।

पर्यावरण के बारे में निबंध या पर्यावरण पर निबंध (paryavaran ke bare mein nibandh or essay on environment in hindi) पर्यावरण के महत्व को व्यापक रूप से वर्णित करता है और हमें प्रेरित करता है कि हमें पर्यावरण की संरक्षण के प्रति दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।

पर्यावरण के महत्व के इस निबंध में (paryavaran ka mahatva nibandh) हम इसके महत्व के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के प्रदूषण जैसे जल, वायु, ध्वनि, और प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में भी चर्चा करेंगे। इसे पढ़कर हमें पर्यावरण संरक्षण की महत्ता (paryaavaran sanrakshan kee mahatta or importance of environmental protection in hindi) समझ में आएगी और हम अपनी पृथ्वी की रक्षा के लिए एकजुट होंगे।

पर्यावरण का महत्व पर निबंध। Paryavaran ka Mahatva Nibandh or paryavaran essay in hindi

Table of Contents

पर्यावरण हमारे आस-पास की सभी चीजों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमारा पूरा जीवन इस पर निर्भर है। हमें सांस लेने के लिए हवा, पीने के लिए पानी, खाने के लिए भोजन और रहने के लिए जमीन यह सब इसी पर्यावरण से मिलते हैं। यहाँ तक कि वनस्पतियां, पेड़-पौधे, जानवर इत्यादि इस पर्यावरण का हिस्सा है। पर्यावरण जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें उन सभी चीज़ों को प्रदान करता है जो हमें सुरक्षित रहने और उन्नति करने के लिए चाहिए। 

पर्यावरण कई कारणों से महत्वपूर्ण है। यह हमें स्वच्छ हवा और पानी प्रदान करता है, मौसम को नियंत्रित करने में मदद करता है और जैव विविधता ( Jaiv Vividhata ) को संतुलित करता है। यह हमें खाद्य और अन्य संसाधनों  को भी प्रदान करता है।  साथ ही साथ यह सौंदर्य और प्रेरणा का स्रोत भी है। नीचे दिए गए कुछ बिंदुओं से हम पर्यावरण के महत्व को विस्तार पूर्वक समझेंगे:

वायु या हवा:

शायद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हमें हवा की आवश्यकता हमारे जन्म से लेकर अंतिम क्षणों तक होती है। हम आपके द्वारा सांस ली जाने वाली हवा जोकि ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और अन्य गैसों से मिलकर बनी होती है इस पर्यावरण से ही मिलती है। पर्यावरण हवा को साफ़ करने में मदद करता है और प्रदूषकों को हटाता है।

पानी या जल:

हमें पानी की जरूरत प्यास बुझाने, खाना पकाने और स्नान इत्यादि कार्यों में पड़ती है। पर्यावरण हमें नदियों, झीलों और अन्य जलस्रोतों  के माध्यम से हमें अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए पानी प्रदान करता है।

खाद्य सामग्री:

हम अपने भोजन या खाद्य को पौधों और जानवरों से प्राप्त करते हैं। पर्यावरण हमें पौधों के लिए ज़मीन, पानी और सूर्य की रोशनी प्रदान करता है। यह जानवरों के लिए आवास प्रदान करता है ताकि वे जीवित रह सकें और प्रजनन कर सकें।

हम अपनी रोजमर्रा की चीजों के लिए जैसे परिवहन, गर्मी और शीतलन या वातानुकूल (hot and cold or air conditioning)  इत्यादि के लिए ऊर्जा का उपयोग करते हैं। पर्यावरण हमें सौर और हवा ऊर्जा (Solar and wind power)  जैसे नवीनीकरणशील ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है। यह हमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे फोसिल या जीवाश्म ईंधन ( fossil fuel) से भी ऊर्जा प्रदान करता है।

हम पर्यावरण में समय बिताने का आनंद लेते हैं। पर्यावरण हमें ट्रेकिंग, साइकिल चलाने, तैराकी, मछली पकड़ने और अन्य बाहरी गतिविधियों के लिए अवसर प्रदान करता है।

पर्यावरणीय संरक्षण के महत्व को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम पर्यावरण को सही ढंग से देखें और समझें। हमें अपने आस-पास के पेड़-पौधों, जल, जन्तुओं और पृथ्वी की सुंदरता का महत्व समझना चाहिए।

पर्यावरण को खतरा:

प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन इत्यादि सभी पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे हैं। ये खतरे मानव स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचा रहे हैं, पारिस्थितिकी को बिगाड़ रहे हैं, और पृथ्वी को निवास के लिए  धीरे-धीरे कम  अनुकूल बना रहे हैं। 

पर्यावरण हमारा घर है। इसे संरक्षित करना ना केवल हमारी जिम्मेदारी है  बल्कि पर्यावरण का संरक्षण जीवन के लिए अनिवार्य है। हमें पर्यावरण में संतुलन बनाए रखना चाहिए ताकि हमारी पीढ़ियाँ भी एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य का आनंद ले सकें।

हमें अपने आपको और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए अभी से ठोस और उचित कदम उठाने पड़ेंगे। 

पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए हमें निम्नलिखित कार्रवाई लेनी चाहिए:

 पेड़ लगाएँ:

हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। पेड़ हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं।

 बिजली की बचत करें:

हमें विद्युत ऊर्जा की बचत करनी चाहिए। बिजली की बचत के लिए हमें अपनी बत्ती और उपकरणों को बंद करना चाहिए जब हम उनका उपयोग नहीं कर रहे होते हैं।

 जल संरक्षण करें:

हमें पानी की बचत करनी चाहिए। हमें स्नान के समय पानी का उपयोग कम करना चाहिए और लीक टैप और पाइपों  की तुरंत मरम्मत करनी चाहिए।

 प्रदूषण कम करें:

हमें वाहनों के प्रदूषण को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना चाहिए। हमें इंजन की सर्विसिंग समय-समय पर करानी चाहिए ताकि यह अच्छी तरह से काम कर सके और प्रदूषण को कम कर सके।  

समुद्री जीवन की संरक्षा करें:

हमें समुद्री जीवन की संरक्षा करनी चाहिए ताकि वे हमारे पर्यावरण के साथ संतुलन बनाए रख सकें।

  रीसाइकल करें:

हमें कचरे को रीसाइकल करना चाहिए। हम इस्तेमाल की गई सामग्री को पुनर्चक्रण करके उसका उपयोग कर सकते हैं और भूमि को कचरे (waste landfill) से बचा सकते हैं।

संक्षेप में पर्यावरण की संरक्षण के लिए हम अपनी खपत को कम करके, रीसाइकलिंग और कम्पोस्टिंग करके, कम ऊर्जा का उपयोग करके,  सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करके, पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों  और व्यवसायों का समर्थन करके कर सकते हैं। हम पर्यावरणीय क्रांति और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय होकर और दूसरों को जोड़कर इस क्षेत्र में बेहतर प्रयास कर सकते हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें उदारवादी सोचने की आवश्यकता है। हमें अपने आस-पास की प्रकृति के साथ संघर्ष करने की बजाय उसकी सहायता करनी चाहिए। हमें प्राकृतिक संसाधनों का समय पर उपयोग करना चाहिए और उन्हें संरक्षित रखना चाहिए। हमें उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का उपयोग करना चाहिए और विकास को सतत रखने की आवश्यकता है, लेकिन हमें इसे पर्यावरण के नुकसान के बिना करना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें एकजुट होकर काम करना चाहिए। हमें अपनी सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाने के लिए उचित दबाव डालना चाहिए और इसे पूरे देश में लागू करना चाहिए। हमें इसके लिए विभिन्न अभियानों का आयोजन करना चाहिए और लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना चाहिए।

 इस प्रकार, हमें पर्यावरण का महत्व (paryavaran ka mahatva) समझने और इसकी रक्षा करने के लिए कठोर कानून बनाने, जागरूकता फैलाने, और अपनी आदतों को बदलने की आवश्यकता है। हमारा पर्यावरण (hamara paryavaran) हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए आश्रय है और  हम पर इसे संरक्षित रखने की जिम्मेदारी है। हमें अपनी छोटी-छोटी कार्रवाइयों  और प्रयासों से शुरूआत करनी चाहिए और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपना योगदान देना चाहिए। 

पर्यावरण का महत्व पर निबंध का निष्कर्ष। Conclusion of Paryavaran ka mahatva par nibandh: 

पर्यावरण हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है। हमारा पर्यावरण हमें ऊर्जा, शुद्ध वायु, पानी, खाद्य और अन्य जीवन संसाधनों की प्रदान करता है। हमें पर्यावरण की सुरक्षा करने की जरूरत है ताकि हम इन संसाधनों का उचित उपयोग कर सकें और इसे अपने आनंद के लिए बनाए रख सकें। पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें अपनी आदतों को बदलने, संयुक्त कार्रवाई करने और उदारवादी सोचने की आवश्यकता है। इस प्रकार, हम सभी मिलकर पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं और स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की गारंटी कर सकते हैं।

Essay No. 2: पर्यावरण पर निबंध। Paryavaran Essay in Hindi or Essay on environment in hindi: 

पर्यावरण हमारे जीवन की रक्षक है, जिसकी महत्ता को हमें समझना चाहिए। पर्यावरण पर निबंध (paryavaran ke upar nibandh or paryavaran essay in hindi ) के माध्यम से हम पर्यावरण के महत्व (paryavaran ka mahatva) पर गहराई से विचार करेंगे और इसके विभिन्न पहलुओं को जानेंगे। प्रदूषण, जल, वायु, ध्वनि, और प्लास्टिक प्रदूषण जैसे मुद्दों पर भी विचार किया जाएगा। इसे पढ़कर हमें यह अनुभव होगा कि हमारा प्रत्येक कदम पर्यावरण संरक्षण के लिए कितना महत्वपूर्ण है और हमें अपने भूमि की देखभाल करने के लिए सक्रिय होना चाहिए।

पर्यावरण हमारे चारों तरफ विद्यमान है और हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पर्यावरण में हमारे वायुमंडल, धरती, पानी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और अन्य जीव-जंतु आदि शामिल हैं। हमारे पर्यावरण में न केवल स्वच्छ वायु, नदियों और झीलों का पानी, बल्कि वनस्पति और जानवरों की अपार संपदा भी शामिल है। पर्यावरण हमें जीने के लिए सभी आवश्यक संसाधन प्रदान करता है।

पर्यावरण का महत्व पर निबंध।। Paryavaran Essay in Hindi or Essay on environment in hindi or paryavaran ka nibandh: 

पर्यावरण का महत्व समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं को समझना चाहिए। पहला महत्वपूर्ण पहलू है पर्यावरण का जल के संरक्षण । पानी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारी प्यास बुझाने के लिए जरूरी है, हमारे खाने में इसका उपयोग होता है और इसे साफ रखना हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। पानी की गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जैसे जलसंकट, जलाशयों की प्रदूषण और जल संपदा की कमी जिसके लिएहमें जागरूक  होने की आवश्यकता है। हमें पानी का सही उपयोग करना चाहिए और इसकी बचत भी करनी चाहिए।

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है वायुमंडल के संरक्षण का । हमारे पर्यावरण में स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वायु का होना बहुत आवश्यक है। वायुमंडल में विषाणुओं, धूल, धुंध और अन्य प्रदूषक पदार्थों के जलने से प्रदूषण होता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाबद्ध ढंग से जीना चाहिए, जैसे प्रदूषण करने वाले पदार्थों का उपयोग कम करना, गैर-प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग कम करना और वैश्विक तापमान में कमी करने के लिए सही कदम उठाना।

पेड़-पौधों का संरक्षण भी पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं। वे हमें ताजी हवा, ऑक्सीजन, शांति और सौंदर्य प्रदान करते हैं। हमें वृक्षारोपण करना चाहिए और पेड़ों का संरक्षण करना चाहिए। हमें वन्य जीवों की संरक्षा करनी चाहिए और अपने आस-पास के प्राकृतिक माहौल की देखभाल करनी चाहिए।

पर्यावरण का संरक्षण करने के अलावा, हमें प्रदूषण को कम करने के लिए भी कदम उठाने चाहिए। जल, हवा और भूमि प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए हमें गैर-प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग कम करना चाहिए। हमें सभी प्रदूषण योग्य औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए उचित कानूनों का पालन करना चाहिए।

इसके अलावा, हमें अपने स्वास्थ्य और सुख-शांति के लिए पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए। हमें स्वस्थ भोजन खाना चाहिए और प्राकृतिक उपचार का उपयोग करना चाहिए। हमें ध्यान देना चाहिए कि हम अपनी आदतों को बदलकर, विचार करके और सही निर्णय लेकर पर्यावरण की सुरक्षा कर सकते हैं।

इस प्रकार, पर्यावरण का महत्व हमारे जीवन में अन्यों चीजों से कहीं ज्यादा है। हमें पर्यावरण के साथ संतुष्ट और संतुलित रहकर इसकी देखभाल करनी चाहिए। हमारा पर्यावरण हमें जीने के लिए सभी संसाधन प्रदान करता है और हमें इसके लिए आभारी होना चाहिए। हमें सावधान रहकर अपने पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए, ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित और स्वस्थ जीवन बिता सकें।

इस प्रकार, हमारा पर्यावरण हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमें इसकी देखभाल करनी चाहिए। हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्ष करना चाहिए और इसे हर संभव तरीके से सुरक्षित रखना चाहिए। हमारे छोटे कदम भी पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। हमें पर्यावरण पर केवल बातें नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसे समझना और इसकी देखभाल करना चाहिए। हमारे छोटे कदम बड़े परिवर्तन लाने में सहायता करेंगे और हमें एक स्वस्थ, सुरक्षित और सुखी पर्यावरण में जीने की संभावना प्रदान करेंगे।

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paryavaran essay in hindi for class 8

बृजेश कुमार स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और समुदाय (Occupational Health, Safety, Environment and Community) से जुड़े विषयों पर लेख लिखते हैं और चाय के पल के संस्थापक भी हैं।वह स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और सामुदायिक मामलों (Health, Safety, Environment and Community matters) के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम (Portsmouth University, United Kingdom) से व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण प्रबंधन में मास्टर डिग्री (Master's degree in Occupational Health, Safety & Environmental Management ) हासिल की है। चाय के पल के माध्यम से इनका लक्ष्य स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण और समुदाय से संबंधित ब्लॉग बनाना है जो लोगों को सरल और आनंददायक तरीके से स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण के बारे में जानकारी देता हो।

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Nibandh

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रुपरेखा : परिचय - पर्यावरण का अर्थ - प्राणियों का बेघर होना - पर्यावरण प्रदूषित - पर्यावरण प्रदूषित के अनेक उदाहरण - पर्यावरण की सुरक्षा कैसे होगी - विश्व पर्यावरण दिवस - उपसंहार।

पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष का संपूर्ण योग है। जो हमारे रोज के जीवन में सीधा संबंध रखता है तथा उसे प्रभावित करता है। वर्तमान में वैज्ञानिक प्रगति के परिणामस्वरूप मिलों, कारखानों तथा वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि पर्यावरण की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती बढ़ती जा रही है। मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं अर्थार्त हमारी जलवायु में परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे शरीर पर दिखने लगता है। जैसे ठंड ज्यादा लगती है तो हमें सर्दी हो जाती है। लेकिन गर्मी ज्यादा पडती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं। पर्यावरण प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढने से पृथ्वी को नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों के कारन अपने पर्यावरण को नष्ट की और ढकेल रहा है।

पर्यावरण का अर्थ बड़ा सरल है। जो हमारे चारों ओर के वातावरण और उसमें निहित तत्वों और उसमें रहने वाले प्राणियों से है। हमारे चारों ओर उपस्थित वायु, भूमि, जल, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि सभी पर्यावरण का हिस्सा है। जिस तरह से हम अपने पर्यावरण से प्रभावित होते हैं उसी तरह से हमारा पर्यावरण हमारे द्वारा किए गए कृत्यों से प्रभावित होता है। जैसे लकड़ी के लिए काटे गए पेड़ों से जंगल समाप्त हो रहे हैं और जंगलों के समाप्त होने का असर जंगल में रहने वाले प्राणियों के जीवन पर पड़ रहा है। यही कारन है आज कई जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त हो गई है और बहुत सी जातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज के समय में शेर अथवा चीतों के द्वारा गाँव में घुसने और वहाँ पर रहने वाले मनुष्यों को हानि पहुँचाने की बात सामने आ रही है।

इसके चलते आज कई प्राणियों बेघर हो रहे है क्योंकि हमने इन प्राणियों से इनका घर छीन लिया है। यही कारन है अब ये प्राणी गाँवो और शहरों की तरफ जाने के लिए मजबूर हो गए हैं। तथा अपने जीवन यापन के लिए मनुष्यों को हानि पहुँचाने लगे हैं। पर्यावरण का अर्थ केवल हमारे आस-पास के वातावरण से नहीं है बल्कि हमारा सामाजिक और व्यवहारिक वातावरण को शामिल करता है। मानव के आस-पास उपस्थित सोश्ल, कल्चरल, एकोनोमिकल, बायोलॉजिकल और फिजिकल आदि सभी तत्व जो मानव को प्रभावित करते हैं वे सभी वातावरण में शामिल होते हैं। जो पर्यावरण को प्रभाव करता है।

पर्यावरण प्रदूषण के बहुत से कारन है जिससे हमारा पर्यावरण अधिकतर पर प्रभावित होता है। मानव द्वारा निर्मित फैक्ट्री से निकलने वाले अवशेष हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और पर्यावरण को हानि पहुँचता है। लेकिन यह भी संभव नहीं है कि इस विकास की दौड़ में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अपने विकास को नजर अंदाज कर दें। लेकिन हम कुछ बातों को ध्यान में रखकर अपने पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकते हैं। जैसे कारखानों की चिमनियाँ नीची लगी होती हैं जिसकी वजह से उनसे निकलने वाला धुआं हमारे चारों ओर वातावरण में फैल जाता है और पर्यावरण को दूषित कर देता है। मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों से बाहर निकलने वाले धुएं तथा विषैली गैसों ने पर्यावरण की समस्या को उत्पन्न कर दिया है। बसों, करों, ट्रकों, टंपुओं से इतना अधिक धुआं और विषैली गैसी निकलती है जिससे प्रदूषण की समस्या और अधिक गंभीर होती जा रही है । आज के समय में घर में इतने सदस्य नहीं होते हैं जितने उनके वाहन होते हैं। आज के दौर में घर का छोटा बच्चा भी साइकिल की जगह, गाड़ी पर जाना पसंद करता है।

बहती नदियों के पानी में सीवर की गंदगी इस तरह से मिल जाती है जिससे मनुष्यों और पशुओं के पीने का पानी गंदा हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप दोनों निर्बलता, बीमारी तथा गंभीर रोगों के शिकार बन जाते हैं। बड़े-बड़े नगरों में झोंपड़ियों के निवासियों ने इस समस्या को बहुत अधिक गंभीर कर दिया है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। मनुष्य द्वारा अपनी सुविधाओं के लिए पर्यावरण को नजर अंदाज करना एक आम बात हो गई है। मनुष्य बिना सोचे समझे पेड़ों को काटते जा रहा है लेकिन वह यह नहीं सोचता कि जीवन जीने के लिए वायु हमें इन्हीं पेड़ों से प्राप्त होती है। बढती हुई आबादी हमारे पर्यावरण के प्रदूषण का एक बहुत ही प्रमुख कारण है। जिस देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है उस देश में रहने और खाने की समस्या भी बढती जा रही है। मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को महत्व नहीं देता है लेकिन वह भूल जाता है कि बिना पर्यावरण के उसकी सुख-सुविधाएँ कुछ समय के लिए ही हैं।

हम जिस पर्यावरण में रहते हैं वह बहुत तेजी से दूषित होता जा रहा है। हमें आवश्यकता है कि हम अपने पर्यावरण की देखरेख और संरक्षण ठीक तरीके से करें। हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। हमारे पूर्वजों ने विभिन्न जीवों को देवी-देवताओं की सवारी मानकर और विभिन्न वृक्षों में देवी देवताओं का निवास मानकर उनका संरक्षण किया है। पर्यावरण संरक्षण मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों को सुधारने की एक प्रक्रिया होती है। जिसके उद्देश्य उन क्रियाकलापों का प्रबंधन होता है जिनकी वजह से पर्यावरण को हानि होती है। तथा मानव की जीवन शैली को पर्यावरण की प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप आचरणपरक बनाते है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता बनी रह सके। कारखानों से निकलने वाले धुएं और पदार्थों का उचित प्रकार से निस्तारण किया जाना चाहिए। सभी मिलों, कारखानों तथा व्यवसायिक इलाकों में अभिलंब प्रदूषण नियंत्रण के लिए संयत्र लगाए जाने चाहिएँ। प्रदूषण और गंदगी की समस्या का निदान बहुत अधिक आवश्यक है ताकि हमारे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके।

कई संयंत्रों के द्वारा धुएं और विषैली गैसों को सीधे आकाश में ही निष्काषित किया जाना चाहिए। बड़े नगरों में बसों, कारों, ट्रकों, स्कूटरों के रखरखाव की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और उनकी नियमित रूप से चेकिंग होना चाहिए। शांतिपूर्ण जीवन के लिए शोरगुल वाली ध्वनि को सीमित और नियंत्रित किया जाना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। विषैले और खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के निपटने के लिए सख्त कानूनों का प्रावधान होना चाहिए। कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम प्रयोग करना चाहिए। वन प्रबंधन से वनों के क्षेत्रों में विकास करनी चाहिए। विकास योजनाओं को आरंभ करने से पहले पर्यावरण पर उनके प्रभाव का आंकलन करना चाहिए। मनुष्य को अपने प्रयासों से पर्यावरण की समस्या अधिकतर से घट सकती है।

जो कारखाने स्थापित हो चुके हैं उन्हें तो दूसरे स्थान पर स्थापित नहीं किया जा सकता है लेकिन सरकार को उन कारखानों को प्रतिवर्ष जांच करना चाहिए। ताकि कारखानों द्वारा किया गया प्रदूषण शहर की जनता को प्रभावित न करे। जितना हो सके वाहनों का कम प्रयोग करना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करके भी इस समस्या को कम किया जा सकता है। हमारे वैज्ञानिकों द्वारा धुएं को काबू करने के लिए खोज जारी है । जंगलों की कटाई पर सख्त सजा देना चाहिए तथा नए पेड़ लगाने को प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए।

विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून से 16 जून के बीच मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हर जगह पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। तथा पर्यावरण से संबंधित बहुत से कार्य किए जाते हैं जिसमें 5 जून का विशेष महत्व होता है। आज के समय में मनुष्य को अपने स्तर पर पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए प्रयास करना चाहिए।

पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त होना किसी भी एक समूह की कोशिश की बात नहीं है। इस समस्या पर कोई भी नियम या कानून लागू करके काबू नहीं पाया जा सकता। अगर प्रत्येक मनुष्य इसके दुष्प्रभाव के बारे में सोचे और आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचे तो शायद इस समस्या गंभीरता से लेके उसका निवारण के बारे में सोचना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम 'जैव-विविधता' ( 'Celebrate Biodiversity' ) है। इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय यानी विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र बहाली" ("Ecosystem Restoration") है।

कई राज्य सरकारों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाये है। केंद्रीय सरकार के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक मंत्रालय का उद्घाटन किया है। इस समस्या के समाधान के लिए जन साधारण का सहयोग बहुत ही सहायक एवं उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विकास की कमी और विकास प्रक्रियाओं से भी पर्यावरण की समस्या उत्पन्न होती हैं। हर साल सरकार को नए नियम बनाना चाहिए जिससे पर्यावरण की रक्षा बड़े ही गंभीरता के साथ करना चाहिए। ताकि आने वाले पीढ़ी को पर्यावरण से हानि नहीं पहुंचना चाहिए तथा पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए।

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Paryavaran Pradushan “पर्यावरण प्रदूषण” Hindi Essay 400 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

पर्यावरण प्रदूषण, paryavaran pradushan.

बहुत-से विज्ञानियों का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध से पहले वायु शुद्ध थी। इस युद्ध के बाद पर्यावरण प्रदूषित होने लगा। लेकिन सचाई यह है कि पर्यावरण दूषित होना द्वितीय युद्ध से पहले ही आरम्भ हो गया था। यह कभी से – होना शुरू हुआ हो पर इसके लिए साफ तौर पर ‘हम’ ही ज़िम्मेदार हैं। लकड़ी, कोयला जलाने के प्रचलन से पर्यावरण दूषित होना शुरू हुआ। इससे बचने के लिए चिमनी का आविष्कार हुआ। बाद में, पता चला कि सल्फर डाइ-ऑक्साइड गैस पर्यावरण प्रदूषित कर रही है। अब तो पूरे देश खासतौर पर नगरों व महानगरों का पर्यावरण दूषित हो रहा है। वायु प्रदूषण का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। इससे अस्थमा, एम्फीसीमा, इसोफेगस जैसे रोग हो रहे हैं। इस वातावरण में हर जीव प्रभावित हो रहा – है। पर्यावरण का प्रभाव वनस्पति, पेड़-पौधे पर पड़ रहा है। इस कारण पौधे सूखने और मुरझाने लगते हैं। कार्बन डॉआक्साइड के कारण बर्फ कम पड़ रही है। गर्मी की मात्रा बढ़ गई है। वायु शुद्ध रखने से पर्यावरण शुद्ध हो सकता है। शरीर में साँस न जाए तो व्यक्ति कुछ पल ही जीवित रह सकता है। शरीर में जल न जाए तो लोग दस-बीस या तीस दिन भी जिंदा रह सकते – हैं। वस्तुतः शरीर में वसा पिघल कर भोजन की आपूर्ति करता है। औद्योगिक क्रान्ति ने जल प्रदूषित कर दिया है। छोटे-बड़े कुटीर उद्योगों ने जल पीने लायक नहीं छोड़ा है। इस कारण व्यक्तिं नाना बीमारियों से ग्रसित है। जल प्रदूषित न हो, इसके लिए बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है और भी ज़रूरत है। अंधाधुंध औद्योगीकरण पर नियंत्रण से जल प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। पर्यावरण को दूषित करने वाला ध्वनिप्रदूषण भी है। यह हमें असमय बहरा बना रहा है। कानफोड़ गाड़ियों पर नियंत्रण कर ध्वनिप्रदूषण से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त असमय और गैरजरूरी लाउडस्पीकर बजाने पर नियंत्रण से भी यह समस्या सुलझाई जा सकती है। ध्वनिप्रदूषण का सबसे बड़ा नुकसान दिल और दिमाग को होता है। लगातार शोर सनने से श्रवण शक्ति निर्बल होती है और हृदयाघात के ख़तरे बढ़ते हैं। ईधन से प्राप्त ऊर्जा हमारे जीवन का आधार है। इसके लिए सघन वन काटे जा रहे हैं। यह काम पर्यावरण बिगाड़ रहा है। अगर पेड़ काटे जा रहे हैं तो उतनी तेजी से लगाए भी तो जाने चाहिए। अधिक वन वर्षा करते हैं और पर्यावरण शुद्ध रखने में सहायक हैं। अगर हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाना होगा। अगर इस ओर तेज़ी से कदम नहीं उठाया गया तो ऐसा दिन आ सकता है जब व्यक्ति व्यक्ति के लिए तरसेगा।

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पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 100, 200, 300, 500 और 1000 शब्दों में | Essay on Pollution in Hindi

आज हम पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध लेकर आये हैं। यह प्रदूषण पर निबंध बहुत ही सरल शब्दों में लिखा गया है। अक्सर स्कूल, कॉलेज में विद्यार्थियों को प्रश्न पूछे जाते हैं: पर्यावरण प्रदूषण के बारे में हिंदी में लिखिए, Write essay on pollution in Hindi, पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 200 शब्द में लिखिए आदि। निचे दिए गये निबंध को हमने 100, 200, 300 शब्द, 500 words और 1000 शब्दों में लिखा है जिसे class 5,6,8, या क्लास 10, class 12 आदि का कोई भी विद्यार्थी लिख सकता है।

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 100 शब्दों में

प्रकृति में फैलने वाली गंदगियाँ ही प्रदूषण का कारण बनती हैं। जब ये गंदगियाँ और अशुद्धियाँ पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं तो उसे ही पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। हमारे पर्यावरण में अलग-अलग तरह से प्रदूषण हो सकते हैं जैसे: वायु, जल, ध्वनी, मृदा प्रदूषण आदि।

प्रदूषण से हवा, पानी, मौसम चक्र और जलवायु खराब होते हैं जिससे हमारे स्वास्थ्य को बहुत नुकसान होता है और हम रोगों के शिकार हो जाते हैं। प्रदूषण फैलने के कई कारण हैं जैसे: पेड़ों की कटाई, औद्योगीकरण, रसायनों का प्रयोग आदि।

ज्यादातर हम इंसानों की वजह से ही पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण रोकना हम इंसानों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। इसके लिए हमें लोगों को जागरूक करना होगा ताकि हम ऐसी कोई भी गतिविधि न करें जिससे प्रदूषण फैले और प्रकृति को नुकसान हो।

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 200 शब्दों में

आज के समय में मनुष्य आधुनिकता की ओर लगातार बढ़ रहा है और इसी होड़ में हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। मानव अपनी सुख-सुविधाओं को पूरा करने के लिए लगातार ऐसी गतिविधियाँ कर रहा है जिससे पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है। प्रदूषण प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रही हैं और इससे भविष्य में भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

प्रदूषण के प्रकार

प्रदूषण कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे:

वायु प्रदूषण:  वातावरण में उपस्थित वायु को दूषित करना वायु प्रदूषण कहलाता है। जहरीली गैस और धुआं हवा में मिल जाती है और वायु प्रदूषण को जन्म देती है। प्रदूषित वातावरण में सांस लेने से गंभीर बीमारियाँ होती हैं।

जल प्रदूषण:  जल में गंदगियाँ फैलाने जल प्रदूषण होता है। कल-कारखानों से निकली गंदगियाँ जल स्त्रोत में बहा दिए जाते हैं परिणामस्वरूप पानी उपयोग के लिए हानिकारक हो जाता है।

भूमि/मृदा प्रदूषण:  खेती में खतरनाक रसायनों का लगातार उपयोग, प्लास्टिक और अजैविक कचरे से मिट्टी या भूमि प्रदूषण होता है। इन सभी की वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है।

प्रदूषण रोकने के उपाय

  • पेड़ कटाई पर लगाम लगानी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। 
  • कल-कारखानों से निकलने वाले हानिकारक अपशिष्टों को नष्ट करना चाहिए। 
  • हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। 
  • रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करके जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए
  • पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की जगह विद्युत से चलने वाले वाहनों को प्राथिमिकता देनी चाहिए। 
  • निजी वाहनों के बजाए ज्यादा-से-ज्यादा सार्वजानिक परिवहनों का उपयोग करना चाहिए।  

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध – 300 शब्द

विज्ञान के क्षेत्र में आज हम बहुत ही तेजी से तरक्की कर रहे हैं, आधुनिक विज्ञान ने जहाँ हमारी जीवनशैली को सुविधाओं से युक्त बना दिया है वहीं इससे हमें पर्यावरण प्रदूषण जैसा भयानक अभिशाप भी मिला है। आज पेड़ों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, खतरनाक रसायनो के उपयोग ने प्रकृति में असंतुलन पैदा कर दिया है। समय रहते इस ओर यदि ध्यान न दिया गया तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण

  • जनसँख्या वृद्धि: पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण हम इंसान है जो अपनी सुविधाओं के लिए प्रदूषण फैलाते रहते हैं। मनुष्य की बढती जनसंख्या और उनके जीवनयापन, सुख-सुविधाओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन पर्यावरण प्रदूषण को कई गुना बढ़ा रहा है।
  • औद्योगीकरण:  बड़े उद्योग, कल-कारखाने अपशिष्ट पदार्थों को पानी में और हवा में जहरीली गैस छोड़ते हैं। पर्यावरण प्रदूषण के लिए औद्योगीकरण एक बहुत बड़ा कारण है।
  • आधुनिकीकरण:  आधुनिक सुख-सुविधाओं ने हमें अँधा बना दिया है हम अप्राकृतिक चीजों का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। मोटर-वाहन, एसी, फ्रिज, प्लास्टिक, केमिकल युक्त पदार्थ आदि के उपयोग से लगातार प्रदूषण फ़ैल रहा है।
  • रसायनों का प्रयोग: अधिक मुनाफा कमाने के लालच में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग बढ़ रहा है जिससे मिट्टी प्रदूषित होकर अनउपजाऊ हो रही है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण का परिणाम बेहद खतरनाक है इससे लगातार वातावरण का तापमान बढ़ रहा है, जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं, मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण की वजह से हम इंसानों के सेहत पर भी असर पड़ रहा है अलग-अलग प्रकार के रोग पैदा हो रहे हैं। प्रदूषण से मनुष्य, पशु-पक्षी और प्रकृति को बहुत नुकसान हो रहा है।

पर्यावरण प्रदूषण निबंध – 500 शब्द (Essay on Pollution in Hindi)

आज के समय में प्रदूषण एक गंभीर विषय है। प्रदूषण से प्रकृति को भारी नुकसान हो रहा है इसका रोकथाम बहुत ही जरुरी है। कई बार हमें यह प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नही देते उदाहरण के लिए, आप हवा में मौजूद प्राकृतिक गैसों (ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड) को देखने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, हालांकि वे अभी भी मौजूद हैं। धीरे-धीरे वातावरण में प्रदूषक जो हवा को मार रहे हैं और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को बढ़ा रहे हैं, वे मनुष्यों और पूरी धरती के लिए बहुत ही घातक हैं। प्रदूषण रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाने की जरूरत है अन्यथा इसके भयानक दुष्परिणाम हो सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण के कारक

प्रदूषण एक धीमा जहर है जो हमारे पर्यावरण और हमारे जीवन को दिन-ब-दिन नष्ट करता रहता है, इसे मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है: वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण।

वायु प्रदूषण वाहनों, कारखानों से निकलने वाले धुएं, उड़ती धूल आदि के कारण होता है।

ध्वनि प्रदूषण वाहनों के हॉर्न, मशीनों के चलने और अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाली वस्तुओं के कारण होता है।

जल प्रदूषण कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ और प्लास्टिक के कचरे और अन्य चीजों को नदियों और तालाबों में डालने से होता है।

प्रदूषण के रोकथाम के उपाय

  • वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अधिक मात्रा में पेड़-पौधे लगाने चाहिए, साथ ही जहां पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही हो, वहां इन्हें रोका जाना चाहिए। वायु प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग व्यवसायों को नई तकनीक अपनानी चाहिए जिससे प्रदूषण कम हो।
  • जल प्रदूषण को कम करने के लिए हमें स्वच्छता पर अधिक ध्यान देना होगा। हम नदियों और तालाबों में कचरा फेंकते हैं, जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार फैक्ट्रियां बंद होनी चाहिए।
  • ध्वनि प्रदूषण ज्यादातर मनुष्य द्वारा ही किया जाता है, इसलिए यदि हम स्वयं हॉर्न का उपयोग बंद कर दें और यदि हम नियमित रूप से मशीनों की देखभाल करते हैं, तो वे कोई ध्वनि उत्पन्न नहीं करेंगे और ध्वनि प्रदूषण में कमी आएगी।
  • वाहनों और मशीनों का रखरखाव बहुत महत्वपूर्ण है यदि उनका रखरखाव नहीं किया जाता है, तो वे बहुत अधिक ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • यदि हम एक ही कार्यालय में जाते हैं तो हम सार्वजनिक वाहनों का उपयोग कर सकते हैं या कार साझा करने से ईंधन की बचत होगी और वायु प्रदूषण कम होगा।
  • हमें प्लास्टिक का उपयोग बंद करना है, सरकार भी प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा रही है, लेकिन प्लास्टिक का उपयोग तब तक बढ़ता रहेगा जब तक हम जागरूक नहीं हो जाते।

जिस तरह से हमारी धरती पर प्रदूषण बढ़ रहा है, आने वाले कुछ सालों में यह विनाश का रूप ले लेगा, अगर जल्द ही प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ सख्त नियम नहीं बनाए गए तो हमारी धरती का पूरा पर्यावरण खराब हो जाएगा और हमारा जीवन बर्बाद हो जाएगा।

अगर हमें प्रदूषण कम करना है तो सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा और लोगों को प्रदूषण से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करना होगा। अगर हमें प्रदूषण कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे और लोगों को भी पेड़ लगाने के प्रति जागरूक करना होगा तभी हम एक अच्छे भविष्य की कामना कर सकते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध 1000 शब्दों में

जहां एक ओर आज मानव प्रगति कर रहा है और संसार काफी आधुनिक हो गया है। वहीं दूसरी ओर लगातार पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। यह पृथ्वी और पर्यावरण हम सबके लिए बहुत ज्यादा कीमती है इसलिए हम सब का यह कर्तव्य हो जाता है कि हम इनकी रक्षा करें।

तो ऐसे में सवाल यह है कि आखिर पर्यावरण प्रदूषण क्यों होता है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें अपने आसपास होने वाली गतिविधियों को देखना होगा। इस तरह से हम पर्यावरण प्रदूषण को अच्छे से समझ सकते हैं और प्रकृति की रक्षा भी कर सकते हैं। अगर आप इसके बारे में सारी जानकारी जानना चाहते हैं तो पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध के इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें। इस पोस्ट में हम आपको सारी जरूरी बातों की जानकारी देंगे।

पर्यावरण प्रदूषण क्या होता है ?

सबसे पहले हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि पर्यावरण प्रदूषण का मतलब होता है जब मनुष्य द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों से दूषित चीजें पर्यावरण में जाकर मिल जाती हैं। इसकी वजह से हर व्यक्ति की दिनचर्या काफी हद तक प्रभावित होती है और उसे उसके कार्य करने में बाधा होती है।

लेकिन पर्यावरण प्रदूषण को फैलाने के जिम्मेदार मनुष्य ही होते हैं जो कि हर दिन ऐसे बहुत सारे काम करते हैं जिससे कि प्रदूषक तत्व वातावरण में फैल जाते हैं। इस प्रकार से प्रदूषण की वजह से अनेकों बीमारियां भी जन्म लेने लगती हैं और हर व्यक्ति का जीवन इससे काफी अधिक प्रभावित होता है। इसलिए जरूरी है कि समय रहते प्रदूषण को रोकने का काम किया जाए जिससे कि सभी स्वस्थ जीवन जी सकें। 

पर्यावरण प्रदूषण फैलने के मुख्य कारण 

प्रकृति ने मनुष्य को बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन दिए हैं लेकिन अपने स्वार्थी स्वभाव के कारण वह उन्हें नष्ट करते जा रहे हैं। कोई भी व्यक्ति इस बात को नहीं समझना चाहता कि अगर यह पूरा पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया तो ऐसे में भविष्य में जो पीढ़ियां आएंगीं उनके स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से बुरा प्रभाव पड़ेगा।

इस प्रकार से एक दिन ऐसा भी आ जाएगा जब इस संसार में जीवित रहने के लिए पृथ्वी पर कोई भी प्राकृतिक संसाधन नहीं रहेगा। इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि पर्यावरण प्रदूषण के जो भी मुख्य कारण हैं उन्हें जानकर उन्हें दूर करने की कोशिश की जाए। पर्यावरण प्रदूषण के कुछ सबसे प्रमुख कारण इस प्रकार से हैं – 

  • लोगों द्वारा वाहन का बहुत ज्यादा प्रयोग करने से
  • हर जगह औद्योगिक गतिविधियों में तीव्रता होने से
  • जनसंख्या के बढ़ने की वजह से
  • कल-कारखानों और कृषि अपशिष्टों के कारण से
  • शहरीकरण और औद्योगीकरण में तेजी की वजह से
  • हद से ज्यादा वैज्ञानिक साधनों का इस्तेमाल करने से
  • पेड़ों को अंधाधुंध काटने से और घनी आबादी वाले इलाकों में हरियाली ना होने की वजह से
  • सड़कों और बांधों का निर्माण करने से
  • खनिज पदार्थों के अत्यधिक दोहन की वजह से 

पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार 

वैसे तो पर्यावरण प्रदूषण के बहुत सारे प्रकार हैं जिनकी वजह से हमारा वातावरण काफी अधिक नकारात्मक हो गया है। लेकिन इसके जो मुख्य प्रकार हैं उनके बारे में जानकारी इस तरह से है – 

वायु प्रदूषण 

हर व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए स्वच्छ वायु की आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं पृथ्वी पर जितने भी पेड़ पौधे और जानवर हैं उनके लिए भी हवा बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन सांस लेने के लिए बहुत जरूरी होती है। लेकिन लोग अब अपनी भौतिक जरूरतों की पूर्ति करने के लिए वायुमंडल में मौजूद सभी गैसों के बैलेंस को खत्म करने में लगे हुए हैं। विशेषतौर से शहरों की हवा तो बहुत ही ज्यादा जहरीली और घुटन वाली होती जा रही है। वायु प्रदूषण के पीछे सबसे प्रमुख घटक है वाहनों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों का धुआं, जीवाश्म ईंधन को जलाना इत्यादि।

जल प्रदूषण 

वैसे तो हर कोई कहता है कि जल हमारा जीवन है लेकिन फिर भी आज मानव उसे प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। हर कोई जानता है कि पानी के बिना कोई भी जीव जिंदा रहने की सोच भी नहीं सकता फिर चाहे वह मनुष्य हो, पशु पक्षी हो या फिर पेड़ पौधे। जितने भी पानी के प्राकृतिक सोर्स हैं उनमें प्रदूषक तत्व जैसे खनिज, अपशिष्ट पदार्थ, गैस, कचरा आदि मिल जाते हैं। ऐसे में जल पीने योग्य नहीं रह जाता क्योंकि उसमें गंदगी की वजह से वायरस पैदा हो जाते हैं। ऐसे में अगर कोई भी दूषित जल को पी लेता है तो वह उसके लिए काफी हानिकारक होता है। 

ध्वनि प्रदूषण 

ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण को प्रदूषित करने में काफी हद तक जिम्मेदार है। हद से ज्यादा शोर किसी को भी पसंद नहीं होता लेकिन कई बार बहुत से लोग अपने मनोरंजन के लिए इस बात की परवाह नहीं करते कि कोई दूसरा व्यक्ति इससे परेशान हो सकता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि हद से ज्यादा तेज आवाज व्यक्ति की सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे बहुत ज्यादा कम कर देता है। इतना ही नहीं एक समय ऐसा भी आता है जब व्यक्ति की सुनने की शक्ति पूरी तरह से खत्म हो जाती है। शोर की वजह से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर तो कोई बुरा असर नहीं होता लेकिन तेज आवाज सहन कर पाना अत्यधिक मुश्किल होता है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से इंसान किसी भी काम पर फोकस नहीं कर पाता और बहुत से कामों में उसे असफलता का मुंह देखना पड़ता है। 

पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उपाय 

जिस प्रकार से पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने का कार्य मनुष्य कर रहे हैं तो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए भी इंसान को ही आगे आना होगा। यह हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए प्रयास किए जाएं। पर्यावरण प्रदूषण इस समस्या को कम करने के कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं जैसे कि – 

  • पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोक देना चाहिए। इसके अलावा अपने आसपास वृक्ष जरूर लगाएं ‌
  • पर्यावरण प्रदूषण को लेकर युवाओं में जागरूकता फैलानी चाहिए। 
  • अपने आसपास गंदगी और कूड़े के ढेर को इकट्ठा ना होने दें। 
  • पेट्रोलियम के साथ-साथ कोयला जैसे उत्पादों का भी इस्तेमाल कम से कम करें। 
  • कारखाने शहर से दूर बनाएं जाने चाहिएं जिससे कि उनमें से निकलने वाला धुआं वायु में घुल कर लोगों में बीमारी ना फैला सके।
  • यातायात के लिए ऐसे वाहनों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कम धुआं छोड़ते हों।
  • नदियों में कचरा ना फेंके। 
  • जितना ज्यादा हो सके कपड़े और जूट के बने हुए थेलों का इस्तेमाल करें और प्लास्टिक बैगों को ना कहें। 

निष्कर्ष 

पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध के इस लेख में हमने आपको बताया कि पर्यावरण प्रदूषण क्या होता है और इससे जुड़ी दूसरी जरूरी बातें भी बताईं। इसमें कोई शक नहीं कि लोगों में जागरूकता फैला कर हम अपने पर्यावरण को काफी हद तक स्वच्छ बना सकते हैं। इसके लिए केवल एक व्यक्ति को नहीं बल्कि हर इंसान को प्रयास करना होगा। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई सारी बातों की जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। 

प्रदूषण पर निबंध :

  • गंदगी मुक्त मेरा गांव पर निबंध
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हमें उम्मीद है की प्रदूषण पर लिखा गया यह निबंध (Essay on Pollution in Hindi) आपके काम आएगा। आपको यह निबंध कैसा लगा हमें कमेंट करके जरुर बताएं।

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पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Save Environment Essay in Hindi)

पर्यावरण का संबंध उन जीवित और गैर जीवित चीजो से है, जो कि  हमारे आस-पास मौजूद है, और जिनका होना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत वायु, जल, मिट्टी, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि आते है। हालांकि एक शहर, कस्बे या गांव में रहते हुए हम देखते है कि हमारे आस-पास का वातावरण और स्थान वास्तव में एक प्राकृतिक स्थान जैसे कि रेगिस्तान, जंगल, या फिर एक नदी आदि थे, जिन्हे हम मनुष्यों ने अपने उपयोग के लिए इमारतो, सड़को या कारखानो में तब्दील कर दिया है।

पर्यावरण बचाओ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Save Environment in Hindi, Paryavaran Bachao par Nibandh Hindi mein)

पर्यावरण संरक्षण पर निबंध– 1 (250 – 300 शब्द).

पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है, परि + आवरण जिसका अर्थ है- बाहरी आवरण। बिना घर के जिस प्रकार हम सुरक्षित नहीं होते उसी प्रकार बिना पर्यावरण की सुरक्षा हमारा कोई अस्तित्व नहीं। पर्यावरण सभी जीवों को जीने के लिए उचित स्थिति प्रदान करती है।

पर्यावरण संरक्षण का महत्व

हमारे द्वारा श्वसन के लिए वायु का इस्तेमाल किया जाता है, पीने तथा अन्य दैनिक कार्यो के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है सिर्फ इतना ही नही जो भोजन हम खाते है वह भी कई प्रकार के पेड़-पौधो, पशु-पक्षीओं और सब्जियो, दूध, अंडो आदि से प्राप्त होता है। आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए इन संसाधनो की सुरक्षा बहुत ही जरुरी हो गई है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय

इस लक्ष्य की प्राप्ति सिर्फ सतत विकास के द्वारा ही संभव है। इसके अलावा उद्योग ईकाईयों द्वारा तरल और ठोस सह-उत्पाद जो कि कचरे के रुप में फेक दिए जाते है इनके भी नियंत्रण की आवश्यकता है, क्योंकि इनके कारण प्रदूषण बढ़ता है। जिससे की कैसंर और पेट तथा आंत से जुड़ी कई बीमारियां उत्पन्न होती हैं।

यह तभी संभव है जब हम सरकार के ऊपर निर्भरता छोड़कर व्यक्तिगत रुप से इस समस्या के समाधान के लिए जरुरी कदम उठायें। पर्यावरण की देखभाल करना हमारे लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा जीवन की सुरक्षा है।

इसे यूट्यूब पर देखें: पर्यावरण संरक्षण पर निबंध

निबंध – 2 (400 शब्द)

समय के शुरुआत से ही पर्यावरण ने हमारी वनस्पतिओं और प्राणी समूहो से संबंध स्थापित करने में मदद की है, जिससे की हमारा जीवन सुनिश्चित हुआ हैं। प्रकृति ने हमें कई सारे भेंट प्रदान किये है जैसे कि पानी, सूर्य का प्रकाश, वायु, जीव-जन्तु और जीवाश्म ईँधन आदि जिससे इन चीजो ने हमारे ग्रह को रहने योग्य बनाया है।

पर्यावरण का संरक्षण और बचाव कैसे सुनिश्चित करें

क्योंकि यह संसाधन काफी ज्यादे मात्रा उपलब्ध है, इसलिए बढ़ती जनसंख्या के कारण धनी और संभ्रांत वर्ग के विलासतापूर्ण इच्छाओं को पूरा करने के लिए इनका काफी ज्यादे मात्रा में तथा बहुत ही तेजी के साथ उपभोग किया जा रहा है। इसलिए हर प्रकार से इनका संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। यहां कुछ रास्ते बताएं गये है जिनके द्वारा इन प्राकृतिक संसाधनो के अत्यधिक उपयोग पर काबू पाया जा सकता है और इन्हे संरक्षित किया जा सकता है।

  • खनिज और ऊर्जा संसाधनः विभिन्न प्रकार के खनिज तत्वो जिनसे कि उर्जा उत्पन्न कि जाती है इसके अंतर्गत कोयला, तेल और विभिन्न प्रकार के जीवाश्म ईंधन आते हैं। जिनका उपयोग मुख्यतः बिजली उत्पादन केंद्रो और वाहनो में किया जाता है, जो कि वायु प्रदूषण में अपना मुख्य योगदान देते है। इसके अलावा वायु जनित बिमारियों के रोकथाम के लिए नवकरणीय ऊर्जा के संसाधनो जैसे कि हवा और ज्वारीय ऊर्जा को बढ़वा देने की आवश्यकता है।
  • वन संसाधनः वनो द्वारा मृदा अपरदन को रोकने और सूखे के प्रभाव को कम करने के साथ ही जल स्तर को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया जाता है। इसके साथ ही इनके द्वारा वातावरण की परिस्थितियों को काबू में रखने के साथ ही जीवो के लिए कार्बन डाइआक्साइड के स्तर को भी नियंत्रित किया जाता है, जिससे की पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बना रहता है। इसलिए यह काफी महत्वपूर्ण है कि हम वन संरक्षण और इसके विस्तार पर ध्यान दे, जो कि बिना लकड़ी के बने उत्पादो के खरीद को बढ़ावा देकर और राज्य सरकारो द्वारा वृक्षारोपण तथा वन संरक्षण को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
  • जल संसाधनः इसके साथ ही जलीय पारिस्थितिक तंत्र का भी लोगो द्वारा दैनिक कार्यो जैसे कि पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, कपड़े धोने के लिए आदि के लिए उपयोग किया जाता है। वैसे तो वाष्पीकरण और वर्षा के द्वारा जल चक्र का संतुलन बना रहता है परन्तु मनुष्यों द्वारा ताजे पानी को बहुत ज्यादे मात्रा में इस्तेमाल और बर्बाद किया जा रहा है। इसके साथ ही यह काफी तेजी से प्रदूषित भी होते जा रहा है। इसलिए भविष्य में होने वाले पानी के संकट को देखते हुए इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लेने की आवश्यकता है। जिसके लिए हमे बड़ी परियोजनाओं के जगह पानी के छोटे-छोटे जलाशय निर्माण, ड्रिप सिचाई विधी को बढ़ावा देना, लीकेज को रोकना, नगरीय कचरे के पुनरावृत्ति और सफाई जैसे कार्यो को करने की आवश्यकता है।
  • खाद्य संसाधनः हरित क्रांति के दौरान कई सारे तकनीको द्वारा फसलो के उत्पादन को बढ़ाकर भूखमरी के समस्या पर काबू पाया गया था, लेकिन वास्तव में इससे मिट्टी के गुणवत्ता पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसलिए हमें खाद्य उत्पादन के लिए सतत उपायो को अपनाने की आवश्यकता है। जिसके अंतर्गत गैर-जैविक उर्वरकों और कीटनाशको के उपयोग के जगह अन्य विकल्पो को अपनाने तथा कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में उपजने वाले फसलो को अपनाने की आवश्यकता है।

इस प्रकार से हम कह सकते है सिर्फ एक व्यक्ति के रुप में लिए गये हमारे व्यक्तिगत फैसलो के साथ सतत विकास और सही प्रबंधन के द्वारा ही हम अपने इस बहूमुल्य पर्यावरण की रक्षा कर सकते है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

“कीसी भी पीढ़ी का इस पृथ्वी पर एकाधिकार नही है, हम सभी यहा जीवन व्यय के लिए है – जिसकी कीमत भी हमें चुकानी होती है” मारग्रेट थेचर का यह कथन हमारा प्रकृति के साथ हमारे अस्थायी संबंधो को दर्शाता है। पृथ्वी के द्वारा हमारे जीवन को आसान बनाने और इस ग्रह को रहने लायक बनाने के लिए प्रदान किये गए तमाम तोहफे के जैसे कि हवा, सूर्य का प्रकाश, पानी, जीव-जन्तु और खनिज आदि के बावजूद भी, हम अपने स्वार्थ के लिए हम इन संसाधनो का दोहन करने से बाज नही आ रहे है।

पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाने की जरुरत

हमारे बढती आबादी स्तर के वर्तमान जरुरतो को पूरा करने के लिए हम बिना सोचे-समझे अंधाधुंध रुप से अपने प्राकृतिक संसाधनो का उपभोग करते जा रहे है। हम अपने भविष्य के पीढ़ी के लिए भी कोई चिंता नही कर रहे है। इस प्रकार से आज के समय में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि हमें अपने नवकरणीय और गैर नवकरणीय संसाधनो के संरक्षण के और अपनी इस पृथ्वी के सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

पर्यावरण पर प्रदूषण के प्रभाव

  • वायु प्रदूषणः यातायात तंत्र के निर्माण और बड़े स्तर पर पेट्रोल तथा डीजल के उपयोग के कारण प्रदूषण के स्तर में काफी तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे कई तरह के अनचाहे और गैस वाले वायु में मौजूद हानिकारक कणो की मात्रा में भी काफी वृद्धि हुई है। इस बढ़े हुए कार्बन मोनो-आक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, सल्फर आक्साइड, हाइड्रोकार्बन और लेड की मात्रा से सूर्य की पराबैंगनी किरणो से हमारी रक्षा करने वाला हमारा ओजोन की परत खत्म होने लगी है। जिसके कारण तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गयी है, जिसे सामान्यतः ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जाना जाता है।
  • जल प्रदूषणः मनुष्यों और पशुओं के अपशिष्ट, उद्योगो से निकलने वाले जल में घुलनशील गैरजैविक रसायन जैसे कि मर्करी और लेड तथा पानी में जैविक रसायनो के बहाव जैसे कि डिटर्जेंट और तेल जो कि  ताजे पानी के तालाबो और नदियों में मिल जाते है पानी को दूषित कर देते है और यह पानी हमारे पीने योग्य नही रह जाता है। इन्ही कारणों से जलीय जीवन भी काफी बुरे तरीके से प्रभावित हो गया है, इसके साथ ही फसलो के पैदावार में कमी और पीने का पानी मनुष्यों तथा जानवरों के लिए अब और सुरक्षित नही रह गया है।
  • भूमि प्रदूषणः ज्यादे मात्रा में उर्वरको और कीटनाशको जैसे कि डीडीटी के छिड़काव और फसलो की पैदावार बढ़ाने के लिए उस पानी का उपयोग जिसमें नमक की मात्रा अधिक हो, इस तरह के उपाय भूमि को बेकार कर देते है। इस तरह के प्रदूषण को भूमि प्रदूषण के नाम से जाना जाता है और इसी के कारण मृदा अपरदन में भी वृद्धि हुई है जिसके लिए निर्माण और वनोन्मूलन आदि जैसे कारण मुख्य रुप से जिम्मेदार है।
  • ध्वनि प्रदूषणः वाहनो से निकलने वाला शोर-शराबा, कारखानो और भारत में दिवाली के दौरान फोड़े जाने वाले पटाखो मुख्य रुप से ध्वनि प्रदूषण के जिम्मेदार है। यह जानवरो को गंभीर रुप से हानि पहुंचाता है क्योंकि वह खुद को इसके अनुरुप ढाल नही पाते है, जिससे उनके सुनने की क्षमता क्षीण पड़ जाती है।

पर्यावरण संरक्षण मात्र सरकार का ही काम नही है, इसके लिए एक व्यक्ति के रुप में हमारा स्वंय का योगदान भी काफी आवश्यक है। जाने-अनजाने में हम प्रतिदिन प्रदूषण में अपना योगदान देते है। इसलिए प्रकृति के प्रदान किए गये भेंटो का उपयोग करने वाले एक उपभोक्ता के रुप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम जल संरक्षण को बढ़ावा दे और वस्तुओं के पुनरुपयोग और पुनरावृत्ति में हिस्सा ले, बिजली और पानी जैसे संसाधनो की बर्बादी आदि कार्यो को बंद करें। इन सब छोटे-छोटे उपायो द्वारा हम अपने ग्रह के हालत में काफी प्रभावी बदलाव ला सकते है।

Essay on Save Environment in Hindi

निबंध – 4 (600 शब्द)

प्राकृतिक पर्यावरण मानव जाति और दुसरे जीवो के लिए एक वरदान है। इन प्राकृतिक संसाधनो में हवा, ताजा पानी, सूर्य का प्रकाश, जीवाश्म ईंधन आदि आते है। यह जीवन के लिए इतने महत्वपूर्ण है कि इनके बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। लेकिन बढ़ती आबादी के बढ़ते लोभ के कारण, इन संसाधनो का बहुत ही ज्यादे मात्रा में दुरुपयोग हुआ है। यह आर्थिक विकास मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत गंभीर साबित हुआ है, जिनके विषय में नीचे चर्चा की गयी है।

पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाने के कारण

यहां प्राकृतिक संसाधनो के दुरुपयोग और हानि को रोकने के लिए और प्रदूषण द्वारा पृथ्वी के जीवो पर होने वाले निम्नलिखित प्रभावो पर चर्चा की गयी है। इसलिए पृथ्वी पर जीवन को बचाने के लिए यह काफी आवश्यक है कि हम पर्यावरण को बचाएं।

  • वायु प्रदूषणः यातायात के लिए पेट्रोल और डीजल के बढ़ते उपयोग से और उद्योगो द्वारा ऊर्जा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन के बढ़ते दहन से वायु प्रदूषण में सबसे ज्यादे वृद्धि हुई है। जिसके कारणवश सल्फर आक्साइड, हाइड्रोकार्बन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और कार्बन मोनो आक्साइड आदि के स्तर में भी वृद्धि हुई है। ये हानिकारक गैसे मानव स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव डालती हैं, जिससे क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर और अन्य कई प्रकार की श्वसन संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। इसके द्वारा ओजोन परत का भी क्षय होता जा रहा है, जिससे मनुष्य पहले की अपेक्षा पैराबैंगनी किरणो से अब उतना ज्यादे सुरक्षित नही रह गया है। इसके साथ ही इससे वायु प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग में भी बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके कारणवश मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हुई है।
  • जल प्रदूषणः उद्योगो से निकलने जल में घुलनशील आकार्बनिक रासायनो और मनुष्यों तथा पशुओं के अपशिष्टो के ताजे पानी में मिलने तथा सिचाईं के दौरान उर्वरको और कीटनाशको के पानी में मिलने के कारण जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। यह ना सिर्फ पीने के पानी की गुणवत्ता को खराब करता है, बल्कि की कैंसर तथा पेट और आंत संबंधित कई सारी बिमारीयो को भी जन्म देता है। इसके अलावा जलीय जीवन पर भी इसका नकरात्मक प्रभाव पड़ता है, जल प्रदूषण मछलिंयो को भी खाने योग्य नही रहने देता है।
  • भूमि प्रदूषणः रासायनिक उर्वरको और कीटनाशको के उपयोग से मिट्टी में मौजूद ना सिर्फ बुरे कीट बल्कि की अच्छे कीट भी मर जाते है। जिससे हमें कम पोषक वाले फसलो की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भूमि प्रदूषण द्वारा रसायन से संक्रमित फसलो के सेवन से म्यूटेशन, कैंसर आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। तेजी से हो रहे वनोन्मूलन और निर्माण के कारण बाढ़ के आवृति में भी वृद्धि हुई है। जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मानव जीवन का विनाश होता जा रहा है।
  • ध्वनि प्रदूषणः कारखानों और वाहनों से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक शोर-सराबे के कारण मनुष्य के सुनने की क्षमता पर असर पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अस्थायी या स्थायी सुनने की शक्ति क्षीण पड़ जाती है। मनुष्य के उपर ध्वनि प्रदूषण का मानसिक, भावनात्मक और दिमागी स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे तनाव, चिंता और चिड़चिड़ाहट आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है, जिससे हमारे कार्य के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

पर्यावरण को बचाने के उपाय

इतिहास के पन्नो को पलटने पे पता चलता है कि हमारे पूर्वज पर्यावरण संरक्षण को लेकर हमसे कही ज्यादे चिंतित थे। इसके लिए हम सुंदरलाल बहुगुणा को मिसाल के तौर पर देख सकते है, जिन्होने वन्य संसाधनो के सुरक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी। ठीक इसी प्रकार मेधा पाटेकर ने जनजातीय लोगो के लिए पर्यावरण सुरक्षा के प्रभावी प्रयास किए थे, जो कि  नर्मदा नदी पर बन रहे बांध से नकरात्मक रुप से प्रभावित हुए थे। आज के समय में एक युवा के रुप में यह हमारा दायित्व है कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए हम भी इसी तरह के प्रयास करे। कुछ छोटे-छोटे उपायो द्वारा हम प्रकृति को बचाने में अपना सहयोग दे सकते हैः

  • हमे 3 आर(3R) के धारणा को बढ़ावा देना चाहिए, जिसके अंतर्गत रेड्यूज़, रीसायकल रीयूज जैसे कार्य आते है। जिसमें हम गैर नवकरणीय ऊर्जा के स्त्रोतो के अधिक उपयोग को कम करके जैसे कि लोहा बनाने के लिए लोहे के कचरे का इस्तेमाल करना जैसे उपाय कर सकते है।
  • ऊर्जा बचाने वाले ट्यूब लाइट और बल्ब आदि उत्पादो का उपयोग करना।
  • पेपर और लकड़ी का कम उपयोग करना जितना ज्यादे हो सके ई-बुक और ई-पेपर का इस्तेमाल करना।
  • जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम से कम करना कही आने-जाने के लिए पैदल, कार पूल या सार्वजनिक परिवाहन जैसे उपायो का उपयोग करना।
  • प्लास्टिक बैग के जगह जूट या कपड़े के बैग का इस्तेमाल करना।
  • पुनरुपयोग की जा सकने वाली बैटरियों और सोलर पैनलो का उपयोग करना।
  • रसायनिक उर्वरको का उपयोग कम करना और गोबर से खाद बनाने के लिए कम्पोस्ट बिन की स्थापना करना।

वैसे तो सरकार ने प्रकृति और वन्यजीव के सुरक्षा के लिए कई सारे कानून और योजनाएं स्थापित की गई है। लेकिन फिर भी व्यक्तिगत रुप से यह हमारा कर्तव्य है कि हरेक व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे  और अपनी आने वाली पीढ़ीयो के भविष्य को सुरक्षित करे, क्योंकि वर्तमान में हमारे द्वारा ही इसका सबसे ज्यादे उपयोग किया जा रहा है। इसे लेस्टर ब्राउन के शब्दों में बहुत ही आसानी से समझा जा सकता है, “हमने इस पृथ्वी को अपने पूर्वजो से प्राप्त नही किया है, बल्कि की अपने आने वाली पीढ़ीयों से छीन लिया है”।

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UP Board Solutions for Class 8 Environment पर्यावरण : हमारा पर्यावरण

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UP Board Solutions for Class 8 Environment पर्यावरण : हमारा पर्यावरण

  • Chapter 1 पर्यावरण को जानें
  • Chapter 2 हमारे प्राकृतिक संसाधन
  • Chapter 3 अपशिष्ट एवं उसका निस्तारण
  • Chapter 4 जल
  • Chapter 5 जल संचयन एवं पुनर्भरण
  • Chapter 6 मिट्टी और वायु
  • Chapter 7 वन एवं वन्य जीव
  • Chapter 8 पारिस्थितिकी तन्त्र
  • Chapter 9 पर्यावरणीय प्रदूषण-कारण एवं प्रभाव
  • Chapter 10 पर्यावरण असन्तुलन-मानव हस्तक्षेप का परिणाम
  • Chapter 11 जनसंख्या एवं हमारा पर्यावरण
  • Chapter 12 ऊर्जा के स्रोत एवं सतत् विकास
  • Chapter 13 आपदाएँ एवं उनका प्रबंधन

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पर्यावरण प्रदूषण पर निबन्ध | Essay on Environmental Pollution in Hindi

पर्यावरण प्रदूषण पर निबन्ध |  paryavaran pradushan par nibandh.

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Hindi Essay on “Paryavaran Pradushan”, “पर्यावरण प्रदूषण” Complete Hindi Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

पर्यावरण प्रदूषण

Paryavaran Pradushan

हमारे आस-पास का प्राकृतिक वातावरण जिसमें हम रहते हैं—’पर्यावरण’ कहलाता है। इस प्राकृतिक वातावरण का दूषित हो जाना या इसका संतुलन विकृत हो जाना ही प्रदूषण है। प्रदूषण की वृद्धि के कारणों में मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ मनचाही छेड़छाड़ है। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की, पर्वतों को तोड़ा, परमाणु भट्ठियाँ बनाईं तथा अनेक प्रकार के कीटनाशकों का प्रयोग किया जिसके कारण प्राकृतिक संतुलन डगमगा गया और हानिकारक हो गया। प्रदूषण के विस्तार में कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ, गैसें तथा औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ भी सहायक हैं।

प्रदूषण चार प्रकार का होता है वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और भूमि प्रदूषण । वायुमंडल में जहरीली गैसों के कारण वाय प्रदूषण होता है। कल कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है, इससे जल दूषित हो जाता है। महानगरों में कल कारखानों, वाहनों आदि के शोर से ध्वनि प्रदूषण तथा महानगरों में अनधिकृत बस्तियों के कारण भूमि प्रदूषण होता है। प्रदूषण से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं जिनमें साँस के रोग, पेट के रोग, पीलिया, मानसिक तनाव, हृदय रोग, एलर्जी, चर्म रोग मुख्य हैं। प्रदूषण को रोकने के लिए सर्वोत्तुम उपाय है वृक्षारोपण तथा वनों की कटाई पर रोक। साथ ही यह भी आवश्यक है कि औद्योगिक इकाइयों को नगरों से दूर स्थापित किया जाए। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि खुले-स्थानों में कूड़ा आदि फेंककर भूमि को प्रदूषित न करें, कभी हरे-भरे वृक्ष को न काटें तथा अधिक से अधिक वृक्ष लगाएँ। सभी देशवासियों को शपथ लेनी चाहिए बच्चा एक, पौधे सौ लगाए जाएँ।

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paryavaran essay in hindi for class 8

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There are points like prastavana,pradusan,pradushan ke gatak prabhav,paryavaran me sushi, vrajshaarapan me yogdan, upsaranh Please include these all point students really wants these

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Aap vidya par ek essay bataiye

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  • English Shorthand Dictation “Deal with Export of Goods” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines meaning.
  • English Shorthand Dictation “Interpreting a State Law” 80 and 100 wpm Legal Matters Dictation 500 Words with Outlines meaning.

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जानिए क्या है पर्यावरण संरक्षण और क्यों है यह आवश्यक

paryavaran essay in hindi for class 8

  • Updated on  
  • जून 5, 2024

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पर्यावरण शब्द का अर्थ है हमारे चारों ओर का वातावरण है। हर मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान दे और उसे सँवारे। पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें क्योंकि पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। अधिक जनसंख्या, वाटर साइंटिफिक इश्यूज, ओजोन डिप्लेशन, ग्लोबल वार्मिंग से लेकर वनों की कटाई, डिजर्टिफिकेशन और प्रदूषण तक, ये मानव जाति के लिए गंभीर खतरा हैं। पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है, खासकर तब जब डिजिटल मीडिया पर्यावरण संरक्षण के लिए क्रांति लाने की क्षमता रखता है। इस ब्लॉग में जानेंगे पर्यावरण संरक्षण के बारे में और विस्तार से। 

This Blog Includes:

पर्यावरण क्या है, पर्यावरण संरक्षण का महत्व क्या होता है, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के बारे में, पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता क्यों है , पर्यावरण संरक्षण के प्रकार, फॉरेस्ट कंजर्वेशन , सॉइल कंजर्वेशन, वेस्ट मैनेजमेंट , पब्लिक अवेयरनेस , प्रदूषण नियंत्रण , पर्यावरण संरक्षण पर कोट्स.

पर्यावरण शब्द ‘परि +आवरण’ के संयोग से बना है। ‘परि’ का अर्थ चारों ओर तथा ‘आवरण’ का अर्थ परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों, प्राणियों, और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं।

आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से पर्यावरण का बहुत महत्व रहा है, क्योंकि प्रकृति का संरक्षण करना मतलब उसका पूजन करने के समान होता है। हमारे देश में पर्वत, नदी, वायु, आग, ग्रह नक्षत्र, पेड़ पौधे यह सभी कहीं ना कहीं मानव के साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन बढ़ते विकास के कारण इसे लगातार नुकसान पहुंच रहा है। पर्यावरण सरंक्षण के महत्त्व से जुड़े कुछ बिंदु नीचे दिए गए हैं-

  • पर्यावरण सरंक्षण  वायु , जल और भूमि प्रदूषण को कम करता है। 
  • बायोडायवर्सिटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण सरंक्षण का बहुत अधिक महत्व है। 
  • पर्यावरण सरंक्षण सभी के सतत् विकास के लिए महत्वपूर्ण है। 
  • हमारे ग्रह को ग्लोबल वार्मिंग जैसे हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए भी पर्यावरण सरंक्षण महत्वपूर्ण है। 

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम संसद द्वारा 23 मई 1986 को पारित किया गया था और 19 नवंबर 1986 को लागू किया गया था। इसमें चार अध्याय तथा 26 धाराएं होती हैं। इसे पारित करने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों को भारत में विधि (कानून) बनाकर लागू करना है-

  • प्रथम अध्याय की धारा- 1 के अनुसार इसका विस्तार संपूर्ण भारत में है। प्रथम अध्याय की धारा- 2 में पर्यावरण पर्यावरण प्रदूषण परीसंकटमय पदार्थ अधि भोगी शब्दों की विशेष परिभाषा दी गई है।
  • द्वितीय अध्याय में 4 धाराएं हैं जिनमें धारा- 3 में पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए उपाय करने की केंद्र सरकार की शक्तियां तथा कृत्य धारा- 5 में निर्देश देने की। धारा- 6 में पर्यावरण प्रदूषण को विनियोजन करने हेतु नियमों का उल्लेख है। 
  • अध्याय 3 में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण तथा उप शासन से संबंधित 7 से 17 अर्थात 11 धाराए धारा 5 में उपलब्धियों का उल्लंघन करने पर दंड शक्ति संबंधित कानून का प्रावधान किया गया है।
  • अध्याय 4 में 18 से 26 अर्थात कुल 9 धाराओं में कानून का वर्णन है। इनमें सद्भाव में की गई कार्यवाही को संरक्षण अपराधों का संज्ञान प्रत्यायोजन की शक्तियां नियम बनाने की शक्तियां का उल्लेख है

यह भी पढ़ें :  Facts About Earth in Hindi : जानिए पृथ्वी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

आज के समय में पर्यावरण असंतुलित हो गया है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से आज विश्व का तापमान चिंतित स्तर पर बढ़ रहा है। नीचे कुछ कारण दिए गए हैं जो आपको बताएंगे कि पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता क्यों है :

  • ग्लेशियर पिघल के समुद्र में पानी के स्तर को बढ़ा रहे है, जिससे बाढ़ आ रही है। 
  • पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस के प्रभाव, ग्लोबल वार्मिंग, ब्लैक होल इफ़ेक्ट आदि को कम या कंट्रोल करने के लिए पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है। 
  • पेड़ कटते जा रहे हैं, जिससे वन क्षेत्र कम हो रहा है। 
  • नदियों का जल भी प्रदूषित हो गया है जिसके कारण पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है। 
  • ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ रही है इसलिए भी पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता है।
  • मीथेन गैसों के साथ-साथ कोलोरोफ्लोरो कार्बन्स की भारी उपस्थिति ने ओजोन परत को बड़े पैमाने पर नष्ट कर दिया है। ग्रह पर कई क्षेत्रों में अम्ल वर्षा और त्वचा कैंसर हुआ है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता बढ़ गयी है। 

यह भी पढ़ें : पर्यावरण से जुड़े इन तथ्‍यों को जानकर हैरान रह जायेंगे आप

पर्यावरण संरक्षण के प्रकार कुछ इस तरह है, जो नीचे दी गई है:

  • वॉटर कंजर्वेशन (जल संरक्षण) 
  • सॉइल कंजर्वेशन (मृदा संरक्षण) 
  • फॉरेस्ट कंजर्वेशन (वन संरक्षण) 
  • वाइल्डलाइफ रिजर्व (वन्य जीव संरक्षण) 
  • डायवर्सिटी कंजर्वेशन (जैव विविधता संरक्षण) 

पर्यावरण संरक्षण के तरीके क्या हैं?

अब जब आप पर्यावरण संरक्षण के अर्थ और महत्व से परिचित हो गए हैं, तो आइए उन मुख्य विधियों को समझते हैं जिनके माध्यम से इसे प्रभावी रूप से सरल बनाया जा सकता है:

हम जानते हैं कि पौधे और पेड़, हवा, भोजन के साथ-साथ हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले अन्य दैनिक उत्पादों के आवश्यक स्रोत हैं। वन विभिन्न जीवित प्राणियों का निवास स्थान हैं। फॉरेस्ट कंजर्वेशन उद्देश्य  यह है कि अधिक से अधिक पेड़ लगाना और साथ ही मौजूदा लोगों को पेड़ काटने से बचाना है क्योंकि पेड़ पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

पृथ्वी पर, मिट्टी मुख्य तत्व है जो मिट्टी के कटाव, लैंड डिग्रेडेशन और बाढ़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पौधों के उत्पादन के लिए मिट्टी समृद्ध पोषक तत्वों से भरी होती है। उर्वरकों और जहरीले रसायनों के न्यूनतम उपयोग को सुनिश्चित करने के साथ-साथ मिट्टी में हानिकारक इंडस्ट्रियल कचरे को समाप्त करके सॉइल कंजर्वेशन किया जा सकता है। 

खासकर विकासशील देशों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में रोजाना बड़ी मात्रा में कचरा सड़कों पर फेंका जाता है इससे विभिन्न भयानक बीमारियों के साथ-साथ मृदा प्रदूषण भी हो सकता है। हम विभिन्न टेक्नीक्स जैसे 3R का विकल्प चुन सकते हैं, जैसे पुन: उपयोग और रीसाइक्लिंग, सूखे और गीले कचरे को अलग करना।

इसके अलावा, प्रत्येक व्यक्ति को इस बात से अवेयर कराया जाना चाहिए कि वे पर्यावरण को कैसे प्रदूषित कर रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

हमें उन टॉक्सिक कंपाउंड्स पर नजर रखने की आवश्यकता है जो वातावरण को प्रदूषित करते हैं। हमें उत्सर्जन के कई रूपों को कम करने के लिए पर्यावरणीय रूप से स्थायी तरीकों को अपनाने की जरूरत है, जैसे कि कचरे को खत्म करना, बिजली की बचत करना, उर्वरकों, कीटनाशकों और कीटनाशकों के अनावश्यक उपयोग को सीमित करना और ऊर्जा-कुशल उपकरणों का उपयोग करना आदि।

यह भी पढ़ें : पढ़िए पर्यावरण और हम पर निबंध

पर्यावरण संरक्षण पर कुछ कोट्स यहां दिए गए हैं-

  • “हम सब मिलकर प्रदूषण को मिटाएंगे, और अपने पर्यावरण को स्वच्छ बनाएंगे।”
  • “आओ मिलकर कसम ये खाये, प्रदुषण को हम दूर भगाये।”
  • “प्रदूषण को रोकने में दे सभी अपना सहयोग, और प्लास्टिक का बंद करें उपयोग।”
  • “शर्म करो-शर्म करो करोड़ो रुपये पटाखों पर बर्बाद मत करो-मत करो।”
  • “प्रदूषण का यह खतरनाक जहर, लगा रहा है पर्यावरण पर ग्रहण।”
  • “प्रदूषण हटाओ, पर्यावरण बचाओं।”
  • “प्रदूषण की समस्या एक दीमक की तरह है, जो पर्यावरण को धीरे-धीरे खोखला बनाती जा रही है।”
  • “हम सब की है ये जिम्मेदारी, प्रदूषण से मुक्त हो दुनिया हमारी।”
  • “मनुष्य अभी भी इस दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है और इस धरती की सबसे बड़ी समस्या भी।”
  • “प्रकृति में गहराई से देखना शुरू करो, तुम्हें समझ आएगा कि सब कुछ कितना अच्छा है। “

सम्बंधित आर्टिकल्स 

प्राकृतिक आवास और प्रजातियों की रोकथाम, प्रबंधन और संरक्षण को पर्यावरण संरक्षण के रूप में जाना जाता है।

इसके लिए यहां कुछ सामान्य तरीके दिए गए हैं: 1. सूती बैग का प्रयोग करें और प्लास्टिक को ना कहें 2. कम पानी का प्रयोग करें और पानी बचाने के तरीके खोजें 3. रीसाइक्लिंग  4. वेस्ट मैनेजमेंट  5. सस्टेनेबल डेवलपमेंट

निम्नलिखित कारणों की वजह से पर्यावरण संरक्षण जरूरी है: 1.पर्यावरण सरंक्षण  वायु, जल और भूमि प्रदूषण को कम करता है। 2. बायोडायवर्सिटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण सरंक्षण का बहुत अधिक महत्व है।  3. पर्यावरण सरंक्षण सभी के सतत् विकास के लिए महत्वपूर्ण है।  4. हमारे ग्रह को ग्लोबल वार्मिंग जैसे हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए भी पर्यावरण सरंक्षण महत्वपूर्ण है। 

उम्मीद है कि पर्यावरण संरक्षण के बारे में आपको सभी जानकारियां मिल गई होंगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu वेबसाइट पर बनें रहें।

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पर्यावरण (परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, संरचना और संघटक)

पर्यावरण (परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, संरचना और संघटक) | Paryavaran

Paryavaran

पर्यावरण क्या है? (Paryavaran Kya Hai)

पर्यावरण के कार्य और कार्य करने की जो भी विधियां है, वो प्रकृति प्रदत्त साधनों से होती है। पर्यावरण के सभी तत्व एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। पर्यावरण धरती का जीवन आधार है। यह पृथ्वी पर विद्यमान मनुष्यों और जीवों तथा जन्तुओं और वस्पतियो के उद्गम, उद्भव उसके विकास और अस्तित्व का मुख्य आधार है। यह सब पर्यावरण पर ही निर्भर करते है।

जबसे सभ्यता का विकास हुआ है, मानव जाति की जितनी भी उन्नति हुई है, वह सब पर्यावरण के कारण ही संभव हो पाया है। पर्यावरण ने इन विकासों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पर्यावरण का तात्पर्य वनस्पतियों एव जीवधारियो के चारों ओर एक आवरण है, इस आवरण को ही पर्यावरण का नाम दिया गया है।

पर्यावरण में जो शब्द है, वह फ्रेंच शब्द environ से उत्पन्न हुआ है और environ का शाब्दिक अर्थ है घिरा हुआ अथवा आवृत्त। यह जैविक और अजैविक अवयव का ऐसा समिश्रण है, जो किसी भी जीव को अनेक रूपों से प्रभावित कर सकता है।

इन्ही पर्यावरण में कुछ ऐसे कारक भी है, जो संसाधन बनकर उनके रूप में कार्यो को संपन्न करते है और इन्ही में से कुछ नियंत्रक के कार्य करने लग जाते है। कुछ वैज्ञानिक पर्यावरण को milieu कहते है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है, चारों ओर विद्यमान वातावरण का समूह।

पर्यावरण अलग-अलग विषयों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे इकोसफियर (ecosphere) अथवा प्राकृतिक वास (habitat), जीवमंडल (geosphere) इत्यादि। सामान्य शब्दो में पर्यावरण का यह कार्य है कि वह ऐसी परिस्थितियों और भौतिक दशाओं का प्रदर्शन करता है, जो जीवों अथवा जीवों के समूह के चारों तरफ को ढकती है और उनका प्रभाव भी जीव समूहों पर पड़ता है।

पर्यावरण की विशेषताएं (Paryavaran ki Visheshtaen)

पर्यावरण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।

  • जैविक तथा अजैविक तत्व जब जुड़ते हैं तो यही योग पर्यावरण (Paryavaran) कहलाता है।
  • पर्यावरण के मुख्य तत्वों में जैव विविधता और ऊर्जा आते है। स्थान और समय का परिवर्तन पर्यावरण में होता रहता है।
  • जैविक और अजैविक पदार्थों के कार्यकारी संबंधों पर ही पर्यावरण का आधार स्थित होता है।
  • जबकि इसकी कार्यात्मक की निर्भरता ऊर्जा के संचार पर होती है।
  • पर्यावरण के अंदर ही जैविक पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिनका कार्य अलग स्थानों पर अलग-अलग ही होता है। मुख्यत पर्यावरण सामान्य परिस्थिति को संतुलित करने की ओर ही अग्रसर होता है।
  • इसे एक बंद तंत्र भी कह सकते हैं, इन सभी के अंतर्गत प्रकृति का पर्यावरण तंत्र नियंत्रित होता है तब इस नियंत्रक क्रियाविधि को होमियोस्टैटिक क्रिया विधि नाम से जाना जाता है। इसी से यह नियंत्रण में रहता है।

पर्यावरण के प्रकार (Paryavaran Ke Prakar)

पर्यावरण को जैविक और भौतिक दोनों ही संकल्पना माना जाता है। इस कारण इसके अंतर्गत मानव जनित पर्यावरण को भी रखा जाता है, इसमें केवल प्राकृतिक पर्यावरण ही नहीं जोड़ा जाता है। यह मानव जनित पर्यावरण हैं – सामाजिक व सांस्कृतिक पर्यावरण।

मुख्यत: पर्यावरण के तीन भाग हैं।

प्राकृतिक पर्यावरण

मानव निर्मित पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण.

प्राकृतिक पर्यावरण को अंग्रेजी में natural environment कहते हैं। इसमें सभी जैविक और अजैविक तत्व भी मौजूद है, जो पृथ्वी पर प्रकृति स्वरूप मिलते हैं। यही आधार है कि प्राकृतिक पर्यावरण दो भागों में बांटा है।

प्राकृतिक पर्यावरण के प्रकार

जैविक तत्व सूक्ष्म जीव, जंतु और पौधे प्रायोगिक है तथा अजैविक उत्सर्जन, ऊर्जा, जल, वायुमंडल की गैस, वायु, अग्नि और मृदा तथा गुरुत्वाकर्षण इसके अंतर्गत आते हैं।

मानव द्वारा निर्मित पर्यावरण अर्थात ऐसा पर्यावरण जो मानव ने स्वयं निर्मित किए हैं, जिसका रूप कृत्रिम है। उदाहरण के लिए औद्योगिक शहर अंतरिक्ष स्टेशन कृषि के क्षेत्र यह सभी मानव द्वारा निर्मित कृत्रिम पर्यावरण है। जनसंख्या का बढ़ना और आर्थिक विकास के प्रभाव के कारण मानव निर्मित पर्यावरण का क्षेत्र लगातार अपने स्थान में वृद्धि कर रहा है, यह लगातार बढ़ता जा रहा है।

सामाजिक पर्यावरण अर्थात social environment के अंतर्गत सांस्कृतिक मूल्य और मान्यताओं का अपना सम्मिलन है। यहां इस धरती पर भाषा, धर्म, रीति-रिवाजों और मानव की जीवन शैली इन सभी के आधार पर ही सांस्कृतिक पर्यावरण के गठन व निर्माण की रचना होती है।

यह भी पढ़े: विज्ञान किसे कहते हैं? (परिभाषा और प्रकार)

पर्यावरण की संरचना

पृथ्वी पर प्राप्त होने वाले पर्यावरणों (Paryavaran) की मूल संरचना का गठन चार भागों से मिलकर होता है।

ये 4 भाग निम्न है:

  • स्थलमंडल (lithosphere)
  • जलमंडल (hydrosphere)
  • वायुमंडल (atmosphere)
  • जैवमंडल (biosphere)

स्थलमंडल को अंग्रेजी में lithosphere कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि स्थलमंडल का जो भाग है, वह पूरी पृथ्वी का लगभग 29% भाग है। स्थलमंडल का अधिकतर भाग जीव जंतु पेड़ पौधों से भरा हुआ है, इनमें मृदा, पठार, खनिज, चट्टान पहाड़ इत्यादि की भी मौजूदगी है।

स्थलमंडल की उपस्थिति जीवों की सहायता दो तरह से करती है। पहला इन्हें रहने का स्थान दिला कर और दूसरा स्थलीय अथवा जलीय जीवों के लिए खनिज का स्रोत स्थलमंडल स्वयं ही है। स्थलमंडल भी दो भागों में बांटा है। पहला शैल और दूसरा मृदा।

इसका शैल वाला भाग कठोर होता है तथा संगठित रहता है और मृदा तब बनती है। जब शैल का उनके स्थान से अपक्षय हो जाता है, मृदा मूल शैलो, जलवायु, सजीव और स्थलाकृतियों के बीच के परस्पर क्रिया करने से निर्मित होता हैं।

जलमंडल यानी hydrosphere इस पर्यावरण (Paryavaran) का अति महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। क्योंकि इसका कार्य पृथ्वी पर स्थल जीवन और जलीय जीवन को संभावित करना है। जल ही वह मुख्य कारण है, जिससे स्थल पर जीवन संभव है। इसके अंतर्गत धरातल के जल व भूमिगत जल को शामिल किया गया है।

अनेक रूपों में पृथ्वी पर जल की उपस्थिति पाई जाती है, इसके उदाहरण निम्न है:

  • महासागर (ocean)
  • नदिया (rivers)
  • हिमनद (glacier)
  • स्थल के नीचे का भूगर्भिक जल (surface water)

जल को जीव जंतु अपने भिंड भिंड उपापचय की क्रियाओं के लिए इसे उपयोग में लाते हैं। इसके अलावा जल जीवद्रव्य का सबसे अधिक महत्वपूर्ण घटक है।

जलमंडल पर अधिकतर जल लवण के रूप में ही है और यह लवणीय जल सागर और महासागर में अधिक पाए जाते हैं। किंतु यह मनुष्य के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। अलवणीय जल अर्थात स्वच्छ जल का संग्रह मुख्य रूप से नदियों और हिम नदियों तथा भूमिगत जल में होता है। पृथ्वी पर उपयोग में लाए जाने वाले जल, कुल जल का मात्र 1% अथवा उससे भी कम मात्रा में उपलब्ध है।

वायुमंडल को अंग्रेजी में atmosphere कहते हैं। यह मानव जीवन के अति महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, इसके बिना जीवन अकाल्पनिक है। वायुमंडल विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण होता है। इसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तत्व मौजूद होते हैं।

वायुमंडल में पाई जाने वाली विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण:

01नाइट्रोजन78.8%
02ऑक्सीजन20.25%
03ऑर्गन0.93%
04कार्बन डाइऑक्साइड0.036%
05नियॉन0.002%
06हीलियम0.0005%
07क्रिप्टान0.001%
08जेनान0.00009%
09हाइड्रोजन0.00005%

वायुमंडल निम्न 4 भागों में विभक्त है:

यह वायु मंडल का सबसे नीचे वाला हिस्सा है। इसको ध्रुव पर 8 किलोमीटर और विषुवत रेखा पर 18 किलोमीटर की ऊंचाई तक मापा जा सकता है। क्षोभमंडल में तापमान गिरने की दर 165 मीटर ऊंचा और 1 डिग्री सेल्सियस तथा किलोमीटर की ऊंचाई 6.4 डिग्री सेल्सियस होता है।

क्षोभमंडल वायुमंडल की कुल राशि का लगभग 90% भाग है बादल, बारिश, तेज आंधियां यह सभी प्राकृतिक घटनाएं क्षोभमंडल से ही होती है। यह वही मंडल है, जिससे धरातल के सभी जीव जुड़े हुए हैं। इसी मंडल के अंतर्गत भारी गैस से जलवाष्प और धूल के कण का अधिकतम भाग यही अवस्थित रहता है। गर्मियों में इस मंडल की ऊंचाई बढ़ जाती है जबकि सर्दियों में ऐसा नहीं होता है। क्षोभमंडल में अवस्थित सबसे ऊपर की सीमा को क्षोभ सीमा नाम दिया गया है।

वायुमंडल के क्षोभ मंडल की सबसे ऊपर वाली परत, जिसे हम समताप मंडल के नाम से जानते हैं। समताप मंडल की ऊंचाई 18 से 50 किलोमीटर तक है विषुवत रेखा पर। समताप मंडल में ही ओजोन की परतें अवस्थित है, इसीलिए इसे एक और नाम दिया गया है ओजोनोस्फीयर (ozonsphere)।

मध्य मंडल की माप के बारे में यदि बताया जाए तो इसकी ऊंचाई 50 से 80 किलोमीटर तक है। इसके तापमान में अचानक गिरावट होना एक सामान्य घटना है। जैसे-जैसे मध्य मंडल की ऊंचाई बढ़ती है, इसके तापमान का ह्रास हो जाता है। मध्य मंडल की सबसे ऊपरी सीमा डिग्री सेल्सियस से निर्धारित की जाती है, जिसका नाम मेसोपाज है।

ताप मंडल मध्य मंडल जो 80 किमी तक है के ऊपरी वायुमंडलीय भाग जिसकी ऊंचाई अनिश्चित है, में पाया जाता है। तापमंडल में ऊंचाई के साथ साथ ही तापमान में वृद्धि होती है, ताप मंडल का तापमान बहुत अधिक होता है। लेकिन यहां ग्रीष्म ऋतु का अनुभव नहीं होता है। क्योंकि इतनी ऊंचाई पर गैस अविरल हो जाती है और ऊष्मा का रखाव कम ही रहता है।

यह मंडल दो भागों में विभक्त है।

आयन मंडल: आयन मंडल का विस्तार 80 से 640 किलोमीटर तक मध्य मंडल के ऊपरी भाग में होता है। आयन मंडल में विद्युत आवेशित कण अधिक मात्रा में होते हैं। इसी भाग में चुंबकीय घटनाएं और विस्मित कर देने वाली विद्युतीय घटनाएं होती हैं और ब्रह्मांड की किरणे भी परिलक्षित होती हैं।

इसी मंडल से परावर्तित होकर संचार कर पाना संभव होता है, रेडियो तरंगे इसी मंडल से संचार को संभव कर पाती हैं। यदि रेडियो तरंगे आयन मंडल की सहायता ना ले तो रेडियो तरंगे जमीन पर नहीं आएंगी, वह सीधे आकाश में असीमित ऊंचाई तक पहुंच जाएंगी। आयन मंडल तापमान के सबसे निचले भाग में अवस्थित होता है।

वाह्यमंडल: वाह्यमंडल 640 किलोमीटर से ऊपर तक विस्तृत है। यह वही मंडल है, जिसकी समाप्ति के बाद वायुमंडल का अंतरिक्ष में विलय हो जाता है।

यह भी पढ़े: मनोविज्ञान क्या होता है? इसकी शाखाएं और इतिहास

पृथ्वी का वह हिस्सा जहां जीवन की संभावनाएं हैं, उसे जैवमंडल के नाम से जाना जाता है। एक ऐसा क्षेत्र जहां पर स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल सभी आपस में मिल जाते हैं, वह क्षेत्र जैवमंडल का ही है। इसके अंतर्गत निचला वायुमंडल, जलमंडल और स्थलमंडल आते है। जहां जीवित प्राणी अथवा जीव रहते हैं और समायोजन स्थापित करते हैं तथा अपने जीवित रहने के लिए सभी आवश्यक तत्वों की पूर्ति जैव मंडल से ही प्राप्त करते हैं।

जैवमंडल में समुद्र तल की माप के अनुसार 200 मीटर नीचे गहराई तक तथा 6000 मीटर ऊपर ऊंचाई तक जीवन संभव है। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां जैवमंडल की अनुपस्थिति पाई जाती है, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव, ऊंचे पर्वत, गहरे महासागर इनकी जलवायु विषम होती है, इसीलिए यहां जीवन असंभव है। अतः यहां जैवमंडल उपस्थित नहीं होता।

जैव मंडल में ही सूर्य उपस्थित होता है और सूर्य की ऊर्जा द्वारा ही जीवन की संभावनाएं होती हैं तथा जीव के पोषक तत्व की पूर्ति जल, मृदा एवं वायु द्वारा हो जाती है। यहां जीवों का वितरण असमान है क्योंकि ध्रुवीय क्षेत्र ऐसा स्थान है, जहां कुछ विशेष प्रकार के जीव ही पाए जाते हैं। जबकि विषुवतीय वर्षा के कारण वन अत्यधिक जीव प्रजातियां से भरा हुआ है।

पर्यावरण के संघटक

पर्यावरण अनेक तत्वों के सम्मिश्रण से बना हुआ है, इसमें जितने भी तत्व पाए जाते हैं। सभी का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। प्राकृतिक पर्यावरण में पाए जाने वाले तत्व और पारिस्थितिकी में पाया जाने वाला तत्व दोनों समान है। परिस्थितिकी का सबसे मूल घटक पर्यावरण (Paryavaran) को ही मानते हैं।

पर्यावरण के तत्व का सामान्य स्तर पर दो समूहों में वर्गीकरण किया गया है।

पर्यावरण (Paryavaran) में जैविक घटक के अंतर्गत आने वाले तत्व हैं: पौधे प्राणी (मानव, जीव जंतु सूक्ष्मजीव और परजीवी) एवं अवघटक।

परितंत्र में जैविक घटक तथा अजैविक घटक इनकी पृष्ठभूमि का परस्पर क्रियान्वयन होता हैं, इस क्रियान्वयन से प्राथमिक उत्पादक (स्वपोषी) तथा उपभोक्ता (परपोषी) प्राप्त होते हैं।

प्राथमिक उत्पादक (primary producer)

प्राथमिक उत्पादक को स्वपोषी भी (autotroph) कहते हैं, प्राथमिक उत्पादक से उत्पन्न जीव आधारभूत रूप से हरे रंग का पौधा, कुछ विशेष शैवाल और जीवाणु, जो स्वपोषी होते है। अर्थात स्वयं अपना पोषण करते हैं तथा सूर्य के प्रकाश की सहायता से सरल और जैविक पदार्थों की उपयोगिता द्वारा स्वयं का भोजन बनाते हैं, वह प्राथमिक उत्पादन के अंतर्गत आते हैं।

उपभोक्ता (consumers)

उपभोक्ता को परपोषी (heterotrophs) कहते हैं। यह उस प्रकार के जीव है, जो अपना भोजन स्वयं नहीं तैयार करते हैं बल्कि अन्य जीवों को अपना आहार बनाते हैं। भोजन के लिए ये दूसरों पर निर्भर रहते हैं। उपभोक्ता के अंतर्गत 3 उपवर्ग शामिल किए जाते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता तथा तृतीयक उपभोक्ता या जिसे सर्वाहारी भी कह सकते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ता के अंतर्गत वे जीव आते हैं जो शाकाहारी (herbivores) होते हैं, अर्थात जिनका भोजन घास पत्ते और शाक-सब्जियां होती हैं।

द्वितीयक उपभोक्ता के अंतर्गत ऐसे जीव आते हैं जो भोजन के रूप में दूसरे जीवो का मांस खाते हैं, उन्हें मांसाहारी (carnivores) कहते हैं।

तृतीयक उपभोक्ता के अंतर्गत सर्वाहारी (Ominivores) जीव आते हैं, सर्वाहारी का अर्थ होता है सभी प्रकार का भोजन ग्रहण करने वाला। जो मांसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार के भोजन का सेवन करते हैं।

वियोजक या अपघटक

योजक या घटक के अंतर्गत विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीव आते हैं। ऐसे सूक्ष्मजीव जो मृत हुए पौधों जैविक पदार्थों और जंतु का वियोजन करते हैं, वियोजन से तात्पर्य सड़ना और गलना से है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसके दौरान सूक्ष्मजीव अपने भोजन का निर्माण करते हैं और जटिल कार्बनिक पदार्थों को एक दूसरे से अलग कर उन्हें सामान्य रूप दे देते हैं, जिनको स्वपोषी तथा प्राथमिक उत्पादक हरे पौधे उपयोगी बनाते हैं। इनमें अधिकतर जीव कवक और सूक्ष्म बैक्टेरिया के रोप में मृदा के रूप में उपस्थित रहते हैं।

पर्यावरण (Paryavaran) के जैविक घटक के अंतर्गत प्रकाश, तापमान, वर्षण, आर्द्रता एवं जल, अक्षांश, ऊंचाई, उच्चावच आदि आते हैं। जिनका वर्णन इस प्रकार हैं –

हरे पौधों को बढ़ने के लिए प्रकाश की अति आवश्यकता होती है, वह सूर्य के प्रकाश द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते हैं। सभी प्राणियों की, हरे पौधे द्वारा निर्माण किए गए भोज्य पदार्थों पर ही प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भरता होती है। जीवों के लिए सौर ऊर्जा अर्थात सूर्य से प्राप्त किया जाने वाला प्रकाश ही ऊर्जा के रूप में अंतिम स्रोत होता है।

तापमान पर्यावरण (Paryavaran) के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक है। तापमान जीवों की उत्तरजीविता बृहद रूप से प्रभावित करती है। लेकिन प्राणी अपने वृद्धि के लिए केवल एक निश्चित सीमा तक ही तापमान सह सकते हैं। आवश्यकता से अधिक या कम तापमान जीवों की वृद्धि में रुकावट पैदा कर सकती है।

कोहरे, हिमपात, ओलावृष्टि इत्यादि का सबसे महत्वपूर्ण और अजैविक कारक वर्षण के नाम से जाना जाता है। अधिकतर जीवों की निर्भरता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी प्रकार वर्षण पर निर्भर करती है। यह प्रक्रिया अधोभूमि से होती है, वर्षा की मात्राएं भिन्न-भिन्न प्रकार से होती हैं, जिनके निर्भरता इस बात पर निर्भर करती है कि आप अथवा आप का निवास स्थान पृथ्वी पर कहां और किस जगह स्थित है।

आर्द्रता एवं जल

अनेक प्रकार के पौधे और प्राणी जिनके लिए वायु में नमी होना महत्वपूर्ण है, जिससे कि उनका कार्य सही प्रकार से चल सके। कुछ ऐसे भी प्राणी पाए जाते हैं, जिनकी सक्रियता रात में अधिक होती है जब आर्द्रता की अधिकता होती है। जलीय आवास पर, रसायन एवं गैसे उनकी मात्राओं में होने वाले परिवर्तन का तथा गहराइयों में अंतर आने से वे प्रभावित होते हैं।

जैसे-जैसे हम विषुवत रेखा से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर आगे बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे सूर्य की कोणीय दूरी भी कम होती जाती है, जिससे औसत तापमान में कमी आ जाती है।

अलग-अलग ऊंचाइयों पर वर्षण और तापमान दोनों ही भिन्न-भिन्न पाए जाते हैं। वर्षण ऊंचाई के साथ आमतौर पर बढ़ता जाता है लेकिन ज्यादा ऊंचा जाने पर इसमें कमी हो जाती है।

उच्चावच को भू आकार भी कहते हैं। यह पर्यावरण (Paryavaran) का महत्वपूर्ण तत्व है, पूरी पृथ्वी का धरातल विविधता से भरा हुआ है। इन विविधताओं में महाद्वीप के स्तर से लेकर स्थानीय स्तर भी शामिल है। सामान्य उच्चावच के स्वरूपों के तीन उदाहरण है पठार पर्वत और मैदान।

पर्वत और मैदान में ऊंचाई संरचना विस्तारित की क्षेत्रीय विविधताएं देखने को मिलती हैं। जब अपरदन और अपक्षय क्रियाएं होती हैं तब भू-रूप से अनेक नई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। जैसे कहीं-कहीं पर मरुस्थली स्थलाकृति है तो कहीं पर चूना प्रदेश की आकृति तो वही एक ओर हिमानीकृत भी है तो एक ओर नदी द्वारा निर्माण किया गया मैदानी डेल्टा से युक्त प्रदेश।

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पर्यावरण अध्ययन की परिभाषा

पर्यावरण के अध्ययनों को ही पर्यावरणीय अध्ययन के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो रासायनिक, भौतिक, चिकित्सीय, जीव, जन स्वास्थ्य तथा कृषि विज्ञान आदि की शाखाओं से संयुक्त है।

पर्यावरण के अध्ययन करने के निम्न कारण हो सकते हैं:

  • जीवन के प्रत्येक स्वरूप में पर्यावरण का अपना स्थान है। पर्यावरण (Paryavaran) सभी के जीवन में एक महत्व रखता है, वह महत्त्व छोटा या बड़ा दोनों हो सकता है।
  • इसीलिए पृथ्वी पर मानवीय जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि जैव विविधता का संरक्षण किया जाए इस कारण पर्यावरण के अध्ययन की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।
  • प्रकृति की संरचना अति विशिष्ट है। प्रकृति के जो भी कार्य और क्रियाएं हैं, इसके पीछे अवश्य ही कोई निश्चित उद्देश्य होता है। कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप में प्रकृति सदैव मानव के जीवन को प्रभावित करती है। यदि प्रकृति में थोड़ा बदलाव आ जाए तो मनुष्य के जीवन पर बड़े संकट आ सकते हैं। इस कारण पर्यावरणीय संरचना का ध्यान रखना प्रत्येक मानव के लिए अति महत्वपूर्ण है।
  • जनसंख्या और संसाधनों के मध्य अनुकूल संबंध स्थापित हो, इसके लिए पर्यावरणीय अध्ययन आवश्यक है।
  • पर्यावरण का अध्ययन करके ही पर्यावरण के विषय में जागरूकता का प्रचार एवं प्रसार करके सतत विकास और आर्थिक उन्नति की बढ़ोतरी की जा सकती है।

पर्यावरण के अध्ययन के विषय क्षेत्र

वर्तमान में समय के अनुसार पर्यावरणीय संबंध में निम्न विषयों का विशेषत: अध्यापन किया जा रहा है।

  • मनुष्य द्वारा पर्यावरणीय तापमान वृद्धि और वायुमंडलीय तापमान वृद्धि एवं जलवायु में हो रहे परिवर्तन।
  • वायु प्रदूषण के कारण ओजोन परत में होल हो जाना।
  • दैवीय अथवा प्राकृतिक आपदा का अध्ययन एवं अध्यापन तथा मनुष्य द्वारा वनों का नष्ट किया जाना।
  • जैव विविधता का ह्रास हो जाना।
  • मानव संसाधन का सही उपयोग तथा उन्हें संरक्षित करना।
  • प्राकृतिक संसाधनों का हिसाब तैयार करना और जैव विविधता से समाज के सभी वर्गों तक लाभ पहुंचाना।

मानव और पर्यावरण

प्रायः मनुष्य और पर्यावरण के परस्पर संबंध का अध्यापन भूगोल विषय में होता है। प्रसिद्ध अमेरिकी भूगोलवेत्ता एलेन सी सैंपल के कथनानुसार मनुष्य अपने पर्यावरण (Paryavaran) की ही उत्पत्ति है। भूगोलवेत्ताओ ने मनुष्य और पर्यावरण के संबंध में कई अवधारणाएं प्रस्तुत की हैं, जो निम्न है:

निश्चय अथवा नियतीवादी

प्रसिद्ध वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने 1859 कहा था कि मनुष्य अपने पर्यावरण में संघर्षशील रहकर ही आज वर्तमान स्वरूप तक पहुंचा है। डार्विन के संघर्ष सिद्धांत का जिक्र सबसे पहले एफ रेटाजिल (F.Ratzel) ने अपनी किताब एंथ्रोपोज्योज्योग्राफी में किया था। वैज्ञानिक रेटाजिल ने मनुष्य और पर्यावरण (Paryavaran) के संबंध में निश्चयवाद विचारधारा का प्रतिपादन किया।

भूगोल के ज्ञाताओ का मानना है कि मनुष्य अपनी स्वयं की आवश्यकता और सुविधा के लिए पर्यावरण को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। अतः पर्यावरण (Paryavaran) से अधिक मनुष्य के जीवन का महत्व है। यह विचारधारा विडाल – डी – लाब्लश की है।

नव निश्चयवादी

वर्तमान समय में इन दोनों विचारधाराओं से भिंड लेकिन सम्मिलन रूप में नवनिश्चयवाद (neo-Determinism) अति महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिससे मनुष्य और पर्यावरण (Paryavaran) के बीच संतुलन को महत्वपूर्ण बनाकर सतत विकास का आधार तैयार किया जा रहा है। नवनिश्चयवाद को एक अन्य नाम से जाना जाता है, जिसे “रुको और जाओ नियतिवाद” कहते हैं। इस विचार का प्रतिपादन ग्रिफिथ टेलर ने किया था।

पर्यावरण संबंधी समस्या

प्रदूषण आज पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा ही किया गया है और प्रकृति के द्वारा प्रदान किया गया पर्यावरण जीव धारियों के लिए अनुकूल है। लेकिन यदि वातावरण में कुछ भी हानिकारक घटक आ जाए तो वह वातावरण के संतुलन को बिगाड़ देते हैं।

पहले से ही पर्यावरण में मौजूद तत्व जो इंसानों के जीवन के लिए आवश्यक है, उनके संतुलन को यह प्रदूषण पूरी तरीके से बिगाड़ देते हैं। जितने भी प्राकृतिक संसाधन हमें मिले हैं, वह प्रदूषण के कारण नष्ट हो रहे हैं। आज जनसंख्या की असाधारण वृद्धि और लोगों के स्वार्थ नीतियों के कारण वनों की कटाई से लेकर शहरीकरण और औद्योगिक करण के कारण प्रदूषण फैल रहा है, जो इंसानो के लिए विनाश का संकट उत्पन्न कर रहा है।

इसीलिए यदि धरती पर मानव का अस्तित्व चाहिए तो प्रदूषण को रोकना जरूरी है। तो चलिए जानते हैं कि प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं और किस तरीके से प्रदूषण फैलता है।

प्रदूषण के मूल रूप से चार प्रकार है, जो निम्नलिखित है:

वायु प्रदूषण

इंसान को जीवित रहने के लिए शुद्ध वायु और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। लेकिन आज बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में ऑक्सीजन की संतुलन बिगड़ रही है। दिन प्रतिदिन लोगों के शहरीकरण और औद्योगिक विकास के कारण वायु प्रदूषण बढ़ते जा रहा है।

वायु प्रदूषण के कारण ओजोन स्तर भी क्षय हो रहा है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक समय ऐसा आएगा, जब ओजोन स्तर पूरी तरीके से नष्ट हो जाएगा और जिसका गलत प्रभाव सभी इंसानों को भुगतना पड़ेगा। वाहनों से निकलने वाले धुंए वायु प्रदूषण के लिए सबसे बड़ा कारण है।

इसके बाद लोहा इस्पात कारखाने, कागज, वस्त्र इत्यादि बनाने के कारखाने, ईट बनाने के भट्टे इन सभी से निकलने वाले धुएं हमारे वायुमंडल को बुरी तरीके से प्रदूषित करते हैं। गांव में अभी भी ज्यादातर महिलाएं इंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करती है, जिसके कारण भी वायु प्रदूषण हो रहा है।

इन सबके अतिरिक्त बालों के स्प्रे, वार्निश, एरोसॉल स्प्रे जैसे अन्य विलायक, व्यर्थ पदार्थों के जमाव से मीथेन गैस का उत्पन्न होना यह सभी वायु प्रदूषण के कारण है। हालांकि सरकार भी वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है।

आज इंधन के रूप में लकड़ी के बजाय ज्यादातर लोग एलपीजी सिलेंडर का यूज़ करते हैं, वाहनों से निकलने वाले धुंए को रोकने के लिए सीएनजी और इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल करने के लिए कहा जा रहा है।

जल ही जीवन है और जल के बिना इस धरती पर कोई भी जीव अस्तित्व में नहीं रह सकता। यह सनातन सत्य है, जिसे हर कोई जानता है, उसके बावजूद भी हम मानव अपनी गलतियों से बाज नहीं आ रहे हैं। हमारे ही कारण दिन प्रतिदिन जल संसाधन गंदे हो रहे हैं।

हमारे घरों से निकलने वाला गंदा पानी, शहर महानगर के नाली का पानी नदियों में छोड़ दिया जाता है, बड़े-बड़े कारखाने से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी को नदी तालाब में छोड़कर जल को प्रदूषित किया जा रहा है। इसी जल को हम बाद में पीते हैं और अनेक प्रकार की बीमारियों के शिकार बनते हैं।

इसीलिए यदि धरती पर जीवन अस्तित्व में रखना है तो हमें जल प्रदूषण को रोकना पड़ेगा। सरकार भी इसके प्रति कदम उठा रही है। अब कारखाने और फैक्ट्रियों से गंदगी और केमिकल युक्त कचरे को नदी तालाब में डालने से सख्त मना कर दिया गया है। सरकार अनेक नदियां और तालाब को साफ करवा रही हैं, जो जल प्रदूषण को रोकने में एक अहम कदम है।

भूमि प्रदूषण

मनुष्य के स्वार्थ नीतियों के कारण आज भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता भी नष्ट हो रही है। मनुष्य द्वारा वनों को काटकर किया जाने वाला साफ सफाई से मिट्टी की जैविक गुण समाप्त हो रही है, जिससे भूमिका उपजाऊपण भी कम हो रहा है। आज के समय में किसानों द्वारा फसलों को उगाने के लिए उपयोग किया जाने वाला रासायनिक उर्वरक फसलों के लिए पोषक तत्व के रूप में जरूर आवश्यक हो सकता है लेकिन यह मिट्टी की उर्वकवक्ता और उसके रासायनिक गुणों को खत्म कर रहा है।

इन सबके अतिरिक्त औद्योगिक और नगरीय क्षेत्र से निकलने वाले गंदे कचरे जिसमें प्लास्टिक भी शामिल होता है, उन्हें जमीन में दफनाने से भी भूमि प्रदूषण होता हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक समय सभी जमीन पूरी तरीके से बंजर हो जाएगी, जहां पर कोई भी फसल नहीं ऊग पाएगा इसीलिए भूमि प्रदूषण को रोकना जरूरी है।

ध्वनि प्रदुषण

ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण की एक नई समस्या है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान कारखानों से निकलने वाला सायरन की आवाज, विभिन्न प्रकार के मशीन और लाउडस्पीकर से आने वाली तेज ध्वनि, ध्वनि- प्रदूषण को उत्पन्न कर रहे हैं, जो इंसानों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है और अनेक प्रकार के मानसिक समस्याओं को बढ़ा रहे हैं।

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मनुष्य के जीवन पर पर्यावरण का प्रभाव

पूरा विश्व नगरीय जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं भौतिक पर्यावरण से प्रभाव में रहती हैं। पर्यावरणीय भौतिक तत्व सबसे अधिक मानव समाज और उसकी जीवन शैली को प्रभावित करता है। इसके समकक्ष मध्य एशिया क्षेत्र और अफ्रीका और भी कई विषम जलवायु वाले क्षेत्र में वहां के निवासियों के लिए पर्यावरण (Paryavaran) उनके जीवन पर स्पष्ट रूप से प्रभाव डालता है।

उदाहरण के लिए मद्ध एशिया क्षेत्र के लोग पशुओं को चारण के द्वारा तथा कालाहारी और कांगो बेसिन के निवासी शिकारी बनकर तथा पारंपरिक रूप से की जाने वाली खेती करके और ध्रुवीय क्षेत्रों के निवासी बर्फ के घर (इग्लू) में रहने और साथ ही उन क्षेत्रों में उपलब्ध जीव जंतुओं के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इसके अलावा जलवायु, प्रत्यक्ष रूप से वहा रहने वाले प्रजातियों के रंग रूप, आंख, शारीरिक बनावट, सिर, चेहरे की आकृति को भी प्रभावित करती है।

पर्यावरण पर मनुष्य का प्रभाव

पर्यावरण पर पड़ने वाला माननीय प्रभाव मुख्यता दो रूपों में विभक्त है:

  • प्रत्यक्ष प्रभाव
  • अप्रत्यक्ष प्रभाव

प्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाला प्रभाव

कथित रूप से पड़ने वाले प्रभाव के अंतर्गत सुनियोजित और संकल्पित रूपों में प्रभाव का सम्मिलन है। क्योंकि मानव अपने द्वारा किए गए कार्यों के परिणामों से अच्छी तरह अवगत रहता है। जैसे -भूमि उपयोग परिवर्तित होना, नाभिकीय कार्यक्रम, मौसम को रूपांतरित कर देने वाले कार्यक्रम, निर्माण आदि।

प्रत्यक्ष प्रभाव कुछ समय के लिए ही दिखाई पड़ते हैं लेकिन यह लंबे समय तक पर्यावरण (Paryavaran) को अपने प्रभाव में रखते हैं, इनकी प्रकृति परिवर्तनीय होती है।

अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाला प्रभाव

अप्रत्यक्ष रूप से पड़ने वाले प्रभाव के अंतर्गत ऐसे प्रभाव आते हैं, जो पहले से सुनियोजित नहीं होते हैं।

जैसे औद्योगिक विकास के लिए किए जाने वाला कार्य और उसके प्रभाव। यह तुरंत ही परिलक्षित नहीं हो जाता ऐसे कैसे लेकिन इनमें ज्यादातर प्रदूषण और पर्यावरण अवनयन का प्रभाव रहता है। यह पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित करता है कि जो आगे चलकर मनुष्य के जीवन के लिए बहुत घातक सिद्ध होते हैं।

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सरकार ने समय-समय पर आवश्यकता अनुसार कई सारे अधिनियम पारित किए। जल प्रदूषण के बढ़ते हुए स्तर को देखकर सरकार ने 1963 में एक कमेटी गठित की, जिसने जल प्रदूषण को रोकने के लिए जल अधिनियम 1974 पारित किया।
  • साल 1952 को सरकार ने एक बोर्ड गठन किया, जिसके अंतर्गत लोगों के शहरीकरण और वनों की कटाई के कारण वन्य जीव-जंतु और उसकी कई प्रजातियों के लुप्त होने के कगार को रोकने के लिए कई जीव अभ्यारण बनाए गए और 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया।
  • 1981 में औद्योगिकरण के कारण पर्यावरण में निरंतर होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और उसकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए सरकार ने वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम पारित किया।
  • वनों के संरक्षण के लिए सरकार ने 1980 में वन संरक्षण अधिनियम भी पारित किया, जिसके अंतर्गत पेड़ पौधा उगाने के लिए लोगों को समय दिया गया।
  • मानव, प्राणी, जीव जंतु सभी को पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न संकट से बचाने के लिए सरकार ने 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लाया।
  • कुछ साल पहले सरकार ने वातावरण में हो रहे बदलाव के कारण इसे गंभीर लेते हुए सरकार ने वातावरण की रक्षा करने के उद्देश्य से सेव एनर्जी, सेव वाटर, फ्रेशर एयर, ग्रो मोर प्लांट्स, अर्बन ग्रीन जैसे न जाने कितनी ही कैंपेन चलाने का निर्णय लिया।

इतने सारे अधिनियम और निर्णय के अलावा भी तकरीबन 200 से भी अधिक कानून पर्यावरण के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। लेकिन हम मनुष्य हमेशा ही इन कानूनों का उल्लंघन करते आए हैं और अपने गलती से कभी बाज नहीं आए दिन प्रतिदिन हम प्रदूषण को बढ़ाते ही जा रहे हैं, जिसके कारण सरकार द्वारा उठाए गए अब तक कोई भी कदम प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाया। इसीलिए पर्यावरण के संरक्षण के लिए केवल सरकार को ही उत्तरदाई नहीं होना चाहिए। हम सभी का यह फर्ज है कि हम अपने पर्यावरण का संरक्षण करें।

पर्यावरण धरती का जीवन आधार है। यह पृथ्वी पर विद्यमान मनुष्यों और जीवो तथा जन्तुओं और वस्पतियो के उद्गम, उद्भव उसके विकास और अस्तित्व का मुख्य आधार है। यह पृथ्वी अथवा इसके किसी भाग पर प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली सभी जैव तथा अजैव वस्तुओं को चारों ओर से घेरे रहता है। उसमें उन सभी जैव तथा अजैव कारकों को सम्मिलित किया जाता है, जो प्रकृति में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

पर्यावरण के तीन भाग हैं: प्राकृतिक पर्यावरण, मानव निर्मित पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण

अर्थात स्वयं अपना पोषण करते हैं तथा सूर्य के प्रकाश की सहायता से सरल और जैविक पदार्थों की उपयोगिता द्वारा स्वयं का भोजन बनाते हैं, वह प्राथमिक उत्पादन के अंतर्गत आते हैं। सभी प्रकार के पेड़ पौधे प्राथमिक उत्पादन होते हैं।

यह उस प्रकार के जीव है, जो अपना भोजन स्वयं नहीं तैयार करते हैं बल्कि अन्य जीवों को अपना आहार बनाते हैं। भोजन के लिए ये दूसरों पर निर्भर रहते हैं। जीव, जंतु, प्राणी और मनुष्य सभी उपभोक्ता है।

मनुष्य तृतीय उपभोक्ता में आता है क्योंकि मनुष्य सर्वाहारी है। मनुष्य मांस भी खाता है और साग सब्जी भी खाता है इस तरह मनुष्य शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही होता है।

प्रदूषण के चार प्रकार होते हैं ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण।

ताप मंडल का विस्तार 80 किलोमीटर तक है।

पृथ्वी का ऐसा हिस्सा जहां जीवन की संभावनाएं हैं, उसे जैवमंडल के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के अंतर्गत वायुमंडल जलमंडल और स्थलमंडल आते हैं और इन तीनों मंडल में ही प्राणी जीवित रह पाते हैं और वे अपने जीवित रहने के लिए सभी आवश्यक तत्वों को यहीं से ही प्राप्त करते हैं।

हमने यहां पर पर्यावरण की परिभाषा (paryavaran ki paribhasha), विशेषता, प्रकार, संरचना और संघटक के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की है। उम्मीद करते हैं कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • पर्यावरण प्रदूषण और इसके विभिन्न प्रकार
  • सोशल मीडिया क्या है? इसके प्रकार, फायदे और नुकसान
  • शुक्र ग्रह से जुड़े रोचक तथ्य
  • आयुर्वेद का इतिहास और महत्व

Rahul Singh Tanwar

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Comments (2).

Nice ??? it is very helpful

Hello Sar aapki website bahut acchi hai

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“पर्यावरण” हमारा दायित्व पर निबंध

प्रस्तावना : पर्यावरण का अर्थ है , प्रकृति , पेड़ -पौधे , वनस्पति ,पशु -पक्षी, मनुष्य और हम सब प्राणी। पर्यावरण नहीं तो हम सभी का कोई अस्तित्व नहीं है। मनुष्य के लिए पर्यावरण महत्वपूर्ण है। औद्योगीकरण और तकनीकी उन्नति तो मनुष्य ने खूब की परन्तु प्रकृति के महत्व को समझने में  असमर्थ रहा है।  ज़्यादातर लोग इसे  समझकर भी इसकी अवहेलना कर रहे है। फैक्ट्रियों और इमारतों के निर्माण के लिए कई वर्षो से वृक्ष काटे जा रहे है।  वनो की अंधाधुंध कटाई की जा रही है , ताकि बड़े कल कारखानों , कार्यालय , स्कूल इत्यादि का निर्माण हो  सके । हम यह भूल रहे है कि अगर हम बिना सोचे समझे प्रकृति को नुकसान पहुंचाएंगे , तब प्रकृति और पर्यावरण जीवित नहीं रह पायेगा।  इन सब गतिविधियों की वजह से आज पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है । ऐसे ही चलता रहा तो इसके भयंकर परिणाम देखने को मिलेंगे।

सभी प्राणी , पेड़ , पौधे और सभी तरह की वनस्पति पर निर्भर है। हमे पेड़ पौधों से फल , सब्ज़ी , अनाज इत्यादि प्राप्त होते है। पेड़ो से हमे अनगिनत फायदे मिलते है। पेड़ पौधों से वातावरण में ऑक्सीजन का निर्माण  होता   है। प्रकाश संश्लेषण को अंग्रेजी में फोटोसिंथेसिस कहते है। प्रकाश संश्लेषण में पेड़ -पौधे अपना भोजन खुद बनाते है।  इसमें कार्बन डाइऑक्साइड , पानी और सूर्य के किरणों की ज़रूरत होती है। कार्बन डाइऑक्साइड मनुष्य छोड़ते है जिसे पेड़- पौधे अपने प्रकाश  संश्लेषण प्रक्रिया  में उसका उपयोग करते है।

प्रकाश संश्लेषण की सहायता से वातावरण में ऑक्सीजन बनता है। वातावरण  में मौजूद ऑक्सीजन के सहारे मनुष्य और अन्य प्राणी जीवित है। ऑक्सीजन के बिना जिन्दा रहना नामुमकिन है।  अगर पेड़ पौधे नहीं होंगे तो ऑक्सीजन गैस भी नहीं होगा।  अतः पर्यावरण का संरक्षण करना अत्यंत ज़रूरी है। अन्य प्राणी जैसे गाय , भैंस , बकरी , हिरण इत्यादि पशु वनस्पति खाकर जीवित है।  इसलिए मनुष्य को समझना होगा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखना कितना आवश्यक  है।

मनुष्य स्वार्थी बनकर उन्नति के चक्कर में स्वंग अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहा है। औद्योगीकरण और प्रगति के नशे में वह पर्यावरण के  संतुलन को बिगाड़ रहा है।  जनसंख्या  तेज़ी से बढ़ रही है।  लोगो को रहने के लिए घर इत्यादि चाहिए। जमीन पाने के लिए वनो को धरल्ले से काटा  जा रहा है। वृक्षारोपण किया जा रहा है  मगर फिर भी वन कटाव अत्यधिक बढ़ गया है। वनो को साफ़ करके किसान कृषि कर रहा है।  अगर वन नहीं होंगे तो पशु पक्षी कहाँ  रहेंगे।  उनका घर तो वन है। कई प्रकार की कीमती लकड़ी प्राप्त करने के लिए वृक्षों और वनो की कटाई हो रही है।  पर्यावरण को इतनी चोट पहुँच रही है कि लगातार मानव जाति को प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होना पड़ रहा है। सभी जलशयों और नदियों के जल को साफ़ और संरक्षित रखना भी मनुष्य की जिम्मेदारी है।

जिस प्रकार वृक्षों की कटाई हो रही है , मनुष्य के समक्ष कई समस्याएं उत्पन्न हो गयी है।  आये दिन कल कारखानों और फैक्टरियों से निकलता हुआ धुंआ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है।  इस प्रदूषित वातावरण में मनुष्य को कई प्रकार की बीमारियां हो रही है। सांस लेने में तकलीफ और फेफड़ो से संबंधित बीमारियों से लोग ग्रसित है । हम सभी को मिलकर वृक्षारोपण करने की ज़रूरत है।  जितना हम वृक्ष लगाएंगे , उतना ही पर्यावरण को हम बचा पाएंगे।

अगर वन नहीं होंगे तो तब हम भी जीवित नहीं रह पाएंगे। कल कारखानों से निकलता हुआ कचरा , नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है।  प्रदूषण को नियंत्रित करना  ज़रूरी है। सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कई कदम उठाये हैं। वन खत्म होंगे तो भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जायेगी।

भूमि कटाव को रोकना और बाढ़ पर अंकुश लगाने का कार्य पर्यावरण करता है। अगर वन नहीं होंगे  , तो धरती पर वर्षा नहीं होगी। वर्षा नहीं होगा तो सूखा / अकाल पड़ेगा।  जब पानी नहीं होगा , तो पशु -पक्षी भी जीवित नहीं रहेंगे ।

प्रकृति में वायुमंडल एक अहम हिस्सा है।  प्रदूषण से वायुमंडल निरंतर  प्रदूषित होने लगा है | अगर ऐसे ही  चलता रहा , तो प्रकृति पर कितना भयावह असर पड़ेगा। पर्यावरण की रक्षा करना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। जैसे -जैसे उद्योगों का विकास हो रहा है , प्रकृति और पर्यावरण अशुद्ध हो गया है। प्रदूषण के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

बगीचों और वनो को संग्रह करके रखने की ज़रूरत है।  वन महोत्सव जैसे कार्यक्रम आयोजित करके लोगो को जागरूक करने की ज़रूरत है। जिस प्रकार देश और दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है , उनके रहने के लिए जमीन कम पड़ रही है।  इससे वनो और पर्यावरण को नष्ट करके घरो का निर्माण किया जा रहा है। लोग उन्नति करने हेतु और सुख सुविधा के साधनो को पाने के लिए फैक्टरियां डाल रहे है। इससे उत्पादन में तेज़ी आ रही है। हम इतने स्वार्थी नहीं हो सकते कि हम अपने सुख के लिए पर्यावरण को समाप्त कर दे।  लगातार प्रकृति हमे चेतावनी दे रही है , इसे  हमे गंभीरता और जिम्मेदारी से लेना होगा।

मनुष्य को जीने के लिए शुद्ध जल , स्वास्थ्यवर्धक आहार और शुद्ध वायु की ज़रूरत है । अगर हम यह सब कुछ पाना चाहते है तो हमे पर्यावरण को सहज कर रखना होगा।  सीमित मात्रा में अपने दैनिक गतिविधियों को करना होगा  ताकि प्रदूषण कम हो। प्रदूषण कम होगा तो सभी जीव जंतु और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा। आज समस्त दुनिया पर्यावरण को लेकर चिंतित और परेशान है। अगर हम सब अभी सचेत नहीं हुए , तब प्रकृति अपना रौद्र रूप धारण कर लेगा और सब कुछ खत्म हो जाएगा। हम सभी को अपने दायित्व को समझकर , प्रकृति के हित में कार्य करने होंगे।  जब प्रकृति सुन्दर रहेगी , तब हमारे चारो ओर हरियाली होगी। अगर प्रकृति सुरक्षित है , तब हम और यह पृथ्वी भी सुरक्षित है।

"पर्यावरण" हमारा दायित्व पर निबंध 1

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पर्यावरण और विकास निबंध / विकास बनाम पर्यावरण पर निबंध

पर्यावरण और विकास / विकास बनाम पर्यावरण पर निबंध : विकास उस सोने के हिरन के समान हैं जिसके पीछे-पीछे भागते हुए हम उस हालात पर पहुँच चुके हैं जहां सांस लेना दूभर हो रहा है। आज प्रकृति द्वारा प्रदत्त संसाधनों का इतना अधिक दोहन किया जा रहा है की उसने पारिस्थितिकी को ही तबाह कर दिया है। ऐसे में हमें जरुरत हैं आदर्श विकास की। ऐसा विकास जिससे हमारी जरूरतें भी पूरी हो जाए और पर्यावरण को नुकसान भी न हो। विकास के दुष्परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लोगों के कल्याण के लिए विकास जरूरी है। किन्तु हमें इस बात को भी स्वीकारना होगा कि तमाम मुश्किलों का स्रोत बन रहा तथाकथित विकास अर्थहीन है।

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paryavaran essay in hindi for class 8

By Kate Conger

Reporting from San Francisco

X filed a lawsuit on Tuesday against the Global Alliance for Responsible Media, a coalition of major advertisers, claiming that it had violated antitrust laws by coordinating with brands to dissuade them from spending money on the social media platform.

The suit, filed in federal court in Texas, claims that the coalition, known as GARM, “conspired” with leading brands, including CVS, Unilever, Mars and the Danish energy company Orsted, to “collectively withhold billions of dollars in advertising revenue” that were owed to X, then known as Twitter, in the wake of Elon Musk’s takeover of the social media company in 2022.

“The illegal behavior of these organizations and their executives cost X billions of dollars,” wrote Linda Yaccarino, X’s chief executive, in an open letter to advertisers. “People are hurt when the marketplace of ideas is undermined and some viewpoints are not funded over others as part of an illegal boycott.”

With the lawsuit, X effectively declared war on advertisers, which provide the bulk of the social media company’s revenue. Since Mr. Musk acquired the company and promised to usher in a new era of unfettered free speech, many advertisers have limited their spending on X, concerned by reports of rising hate speech and misinformation there. By pursuing legal action against GARM, Mr. Musk continued to break with the leaders of other social media companies, who have forged close relationships with advertisers and been responsive to their concerns about offensive online content.

“We tried being nice for 2 years and got nothing but empty words,” Mr. Musk wrote Tuesday in a post on X . “Now, it is war.” He added in a separate post that he encouraged any company that faced a boycott to file a lawsuit.

“To the extent that Elon hadn’t already burned all bridges and ties with the entire advertising community, I don’t see how this will get any advertisers to come back to X,” said Ruben Schreurs, the chief strategy officer at Ebiquity, a marketing and media consulting firm. “It’s a last-ditch effort to force brands who don’t want to be in the cross hairs of this kind of legal action to return to the platform.”

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